शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

दर्द इतना बढा







दर्द इतना बढा सम्हाला न गया,
लाख चाहा मगर छुपाया न गया।



जाम आंखों के जो छलकने को हुए,
बहते अश्कों को फिर रुकाया न गया।

जख्म इतने दिये जमाने ने,
हम से मरहम भी लगाया न गया।

कोशिशें लाख कीं मगर फिर भी,
उनको आना न था, आया न गया।

ऊपरी तौर पे सब ठीक ही लगता लेकिन,
हाल अंदर का कुछ बताया न गया।

हम चल देंगे यकायक कि खाट तोडेंगे,
किसने जाना, किसी से जाना न गया।

जिंदगी का आज ये पल सच्चा है

इससे आगे को कुछ विचारा न गया।

चित्र गूगल से साभार

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

ये रिश्ते




रिश्ते भी कितने अजीब होते है,
      कभी लगते हैं दूर, पर्वत से 
      कभी दिल के करीब होते हैं
      कभी बहते हैं झरने से कल कल
      तो कभी बर्फ से जम जाते हैं।

      रिश्तों को सींच के रखना जतन से
      तभी वे पौधों से लहलहाते हैं
      रोशनी में होते हैं सदा रोशन
      और फूलों से खिलखिलाते हैं।
      वरना वे भाप से उड जाते हैं
      और मरुथल से सूख जाते हैं।

      रिश्ते मांगते हैं गर्माहट
      ये शीत बक्सों में नही पलते
      रिश्तों को सांस खुल के लेने दो
      ये अंधेरों में भी नही खिलते।

      रिश्ते चुभते हैं कभी कांटों से
      मन को लोहू-लुहान करते हैं
      ये आँसूं भी लाते हैं आँखों में
      गलतफहमी में खो से जाते हैं
      ऐसे में बात काम आती है  
      तब खुशियां भी ये खिलाते हैं।
     
      रिश्ते अंधेरों में थाम लेते हाथ
      और फिर राह भी सुझाते है
      डगमगाने लगते है जैसे कदम
      सहारा दे के साध लेते हैं।
      ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

मन गई दिवाली








गम की अमावस में न डाल हथियार तू
एक दीप तो हौले से जरा उजियार तू।

रोशनी की हर किरण चीरती है अंधेरा
देख रख हौसला, न मान हार तू।

मन में अगर हो आस तो पूरी करेंगे हम
यह ठान के ह्रदय में, बढ आगे यार तू।

जितनी है सोच काली उसे मांज के हटा
फिर देख अपने मन को यूँ चमकदार तू।

अपनी खुशी के फूल चमन में बिखेर दे
तो बहेगी खुशबू वाली, लेना बयार तू।

तेरे मन की रोशनी से हो उजास आस पास
तब मन गई दिवाली यही जान यार तू।






रविवार, 27 अक्तूबर 2013

पीछे मुडकर






अब अच्छा लगता है
देखना जिंदगी को
पीछे मुडकर।

जब पहुंच गया है
मंजिल के पास
अपना ये सफर।

क्या पाया हमने
क्या खोया
सोचे क्यूं कर।

अच्छे से ही
कट गये सब
शामो सहर।

सुख में हंस दिये
दुख में रो लिये
इन्सां बन कर।

कुछ दिया किसी को
कुछ लिया
हिसाब बराबर।

चित्र गूगल से साभार।

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

चांदनी की झीनी ओढनी


चांदनी की झीनी ओढनी
प्रीत की सुमधुर रागिनि
यमुना जैसे मंदाकिनि
शरद की ऋतु सुहावनी
आओ ना गिरिधर।

तज दो ना ये विराग
बसा लो मन में अनुराग
गूंज रहा प्रेम राग
जाग रहा है सुहाग
देखो मुरलीधर।

सखियाँ करे ठिठोली
बोल कर मीठी बोली
चली आई यूँ अकेली
तेरी प्यारी सहेली
ना तरसाओ श्रीधर।

ये मधुऋतु सुहानी
बिन तुम्हारे विरानी
न रूठो राधा रानी
आ गये प्रियकर।


चित्र गूगल से साभार





गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

दुर्गा स्तुति






नमस्ते गिरि नन्दिनि,
महिषासुर मर्दिनि
शुंभ निशुंभ क्रंदिनि,
मधु,कैटभ गंजिनि।

दक्ष-यज्ञ ध्वंसिनि,
कर्पूर गौरं तोषिणि
समस्त भव-भय हारिणि
संसार सागर तारिणि

शक्ति भक्ति स्वरूपिणि,
भक्त संकट वारिणि,
समस्त जग तव पुत्रवत्
हे मातु सुख प्रदायिनि।

तव चरणं शरणं जगत,
हे मातु अभय दायिनि,
शक्ति, देश रक्षा हेतु
दे मातु स्वानंदिनि।

फोटो गूगल के सौजन्य से।



गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

श्राध्द




श्राध्द शब्द का उद्गम श्रध्दा शब्द से हुआ है । श्रध्दा अर्थात् मानना या विश्वास या आस्था। बीता पखवाडा (१५ दिन), भाद्रपद माह का कृष्णपक्ष, पितृपक्ष कहलाता है। इन दिनों हम अपने दिवंगत पितरों यानि पूर्वजों को याद करते हैं उनकी अभ्यर्थना करते हैं, उन्हें  पिंडदान और तिलांजली देते हैं और उनसे आशिर्वाद प्राप्त करते हैं। हमारी श्रध्दा है कि यह सब करने से हमारे पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। हमारा धर्म इसलिये विशेष है कि वह हमें जीवित ही नही मृत व्यक्तियों का भी आदर सम्मान करना सिखाता है।
 इन पंद्रह दिनों में हम तिथि विशेष पर अपने पुरखों का, जिस दिन उनका देहावसान हुआ हो, श्राध्द करते हैं। यदि किसी कारण वश ऐसा न कर पायें तो अमावास्या के दिन, जिसे सर्वपित्री अमावास्या कहते हैं, हम श्राध्द कर सकते हैं। य़दि किसी महिला की मृत्यु सके पति से पहले होती है तो उसका श्राध्द अविधवा नवमी को कर सकते हैं। घात चतुर्दशी के दिन अपघाती मृत्यु या युध्द में जिनकी मृत्यु होती है उनका श्राध्द करते हैं। 
सर्वपित्री को किया गया श्राध्द गया में किये गये श्राध्द के जितना ही पुण्य कारक होता है। श्राध्द व्यक्ति के मृत्युदिन पर हर वर्ष भी किया जाता है, यदि किसी कारणवश ना कर पायें तो सर्वपित्री अमावास्या इसके लिये सही दिवस है।

श्राध्द पुत्र, पौत्र या पितृकुल के अन्य पुरुष कुटुंबीय द्वारा किया जाता है। यह पिछली या अगली (भगवान न करे) तीन पीढियों तक के लिये ही किया जाता है। यदि कुल में अन्य पुरुष ना हो तो दौहित्र या नाती भी श्राध्द करने का अधिकारी है। श्राध्द के खाने में चांवल की खीर और उडद के बडे आवश्यक होते हैं। प्रसाद के तौर पर गंगा जमनी लड्डू बांटे जाते हैं जो बेसन और सूजी को मिला कर बनाये जाते हैं। श्राध्द कराने वाले ब्राह्मण या पुरोहित ( ये अलग ब्राह्मण होते हैं जो यही कार्य कराते हैं) को खाना खिलाया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
श्राध्द करने वाले पुरुष को नदी के तीर पर खुले बदन केवल धोती पहन कर यह कार्य करना होता है क्यूं कि जनेऊ की स्थति को कई बार बदला जाता है। कुश की अंगूठी पहन कर अपने देवों और पुरखों का आवाहन किया जाता है। फिर इनकी पूजा करने के बाद इन्हें पिंडदान किया जाता है। पिंड याने पके चावल, काले तिल और घी को मिला कर बनाये गये मुठिये। इन्हे फिर कौओं को खिला दिया जाता है। इन कौओं में ही हमारे पूर्वजों की आत्मा है यही समझा जाता है। पहले के समय में अधिकतर बस्तियाँ नदी के तट पर ही बसती थीं नित्य के कार्य, पानी भरना नहाना कपडे धोना, सब नदी पर ही होते थे तो नदी तट पर जा कर श्राध्द करना भी सुविधाजनक था।गाँव गाँव में पुरोहित भी होते थे शुभ कर्मों के लिये भी और  तेरही, श्राध्द आदि के लिये भी।

 आज के जमाने में यह सब करने का किसी के पास समय नही होता पर श्रध्दा तो हमारे मन में होती ही है। तो मंदिर में हमारे पुरखों के नाम प्रसाद चढा कर बांटने से या किसी जरूरत मंद को खाना खिलाने से भी हमें उतनी ही शांति मिलती है जितनी श्राध्द के कर्मकांड करने से। मेरे पिताजी इसी तरह श्राध्द करते थे। इसमें लडके लडकियों का भेद भी नही हो सकता क्यूं कि दोनों ही अपने पुरखों के उतने ही अंश हैं। मेरी बडी ननद जब भी चाय बनाती है चाय का कप रख कर अपने माँ पिताजी को याद करके दोनों को चाय पीने के लिये बुलाती है, क्यूं कि दोनों को चाय बहुत पसंद थी। बाद मे वह चाय स्वयं पीती है इस तरह वह रोज ही अपने माता पिता का श्राध्द कर लेती है । आखिर श्रध्दा का प्रश्न है। समय के हिसाब से हमें इन रीति रिवाजों को अपने स्वयं के लिये बदलना होगा। मेरी सासूजी की इच्छा थी कि हम श्राध्द करने के लिये वे पैसे किसी संस्था को दान करें, तो हम वही करते हैं।
 श्रध्दा सिर्फ अपने पुरखों के लिये नही होती वरन हमारे गुरु, हमारे आदर्श, हमारे मार्ग दर्शक के लिये भी होती है। हम इन सब लोगों के प्रति भी अपनी श्रध्दा इस सर्वपित्री अमावस के दिन प्रकट कर सकते हैं नेता जी के लिये सैनिकों के फंड में चंदा दे कर। गांधी जी के आदर में किसी गरीब कुटुंब की मदद कर के। नेहरू जी, शास्त्री जी के लिये प्रधान मंत्री कोश में चंदा देकर या इसी तरह का कोई कार्य कर के। इससे हमारे धर्म की भी रक्षा होगी और हमारा  समय भी बचेगा।

सोमवार, 23 सितंबर 2013

चंद शेर -२

इस दिल से निकलेंगी दुआएं, चाहे तुम रूठे रहो
हम ना छोडेंगे मनाना, चाहे तुम झूटे कहो।

हम को तो बस आप ही हैं इस बडे संसार में
बिन सहारे के रहे तो, दिल के टूटे ही कहो।

जिनके भरोसे रह रही है जनता भारत देश में
वही छीनें उसका सब कुछ, तो लोग लुटे ही कहो।

लडकियां हों आधुनिक या देसी हों परिधान में,
ऱास्ते सुनसान हों तो, गुंडे छूटे ही  कहो।

कैसे तो निर्लज हैं हम लोग और नेता सभी
लुटती इज्जत नारियों की, कहें खूंटे से रहो।

बच्चे तक तो नही बचते हैं इनकी हवस से अब
कुचला बचपन, मसला यौवन, (इन्हे)भाग के फूटे कहो।

लडकियों अब काम नही चलना हो कर के छुई मुई
अपनी हिम्मत अपनी ताकत बढाने में जुटे रहो।

अब हमे ही सोचना होगा सुधार के लिये
स्कूल हो या घर हो अपना नीति के बूटे लहो।




रविवार, 8 सितंबर 2013

मंगल आगमन गजानन को



मंगल आगमन गजानन को
अब से प्रभु घर में विराजत है।
मणि से नैना और सूंड सरल,
मस्तक पर मुकुट सजावत है।

पाशांकुश, मोदक कर धरि के
फिर वरद हस्त से रिझावत है
गणपति सबके हिय भाये अति
दूब, जवा पुष्प से सजावत है।

आँखन से भक्त को जतन करे
फेरि सूंड के पीर हरावत है।
कानन से करे ऐसो वात
सब विघन को दूर उडावत है।

भगतन के हित व्है दयावान
टूटे दन्त से बैरी गिरावत है.
हमरे अपराध रहे कोटिन,
सब पेट में डारि भुलावत है.

सारि माया मोह के बटै डोरि
कोई बिघनराज जब ध्यावत है.
शरण गये त्यागि कबहु न प्रभु
गणराज सभी को अपनावत है ।





शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

झंझावात



झंझावात की तरह आ कर लपेट ले वह मुझे
उठाले हवा में ऊपर
पांव तले ना रहे जमीं 
जकड ले बाहों में कस कऱ
नजर से बांधे नजर
अधरों से अधर
सांस से खींच ले सांस
गले में अटके कोई फांस
क्या हो रहा है ये समझने से पहले
ले ले कब्जे में मन ओर प्राण
उसकी बाहों में  मै पडी रहूं

नीरव, निश्चल, निष्प्राण ।


सोमवार, 12 अगस्त 2013

ओ सिंह , उठो

 सिंह , उठो, जवाब दो दुष्मन को ।
त्यजो दुविधा, कि क्या करूं, कैसे करूं ?
वही करो जो करना चाहिये , जो शास्त्र कहते हैं ।
वही करो जो ईश्वर ने कहा है, गुरू ने, संतों ने कहा है ।
वैसे ही करो जो इन परिस्थितियों में उचित है जैसा शास्त्र कहते हैं ।
मत भूलो कि देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है ।

डरो नही युध्द करो, युध्द अनिवार्यता है जीवन की ।
यह युध्द तुम पर, हम पर लादा जा रहा है । देश के प्रति कर्तव्य है तुम्हारा कि उठो और युध्द करो ।

आत्मरक्षण अनिवार्यता है । युध्द में जीतोगे तो सत्ता पाओगे और नाम भी ।
नही तो तुम्हारे मित्र और शत्रु दोनों तुम्हारी निंदा करेंगे, इतिहास भी तुम्हें माफ नही करेगा ।
तुम्हारे कायरता की गाथा नमूद करेगा ।

महाभारत युध्द में कम विनाश नही हुआ फिर भी तो हम आज संख्या में बुलंद हैं ।
इस संख्या की लाज रखो । युध्द करो ।
युध्द करो ताकि जनता समझे स्वतंत्रता का महत्व ।

अभी कोई कृष्ण नही आने वाले तुम्हारे लिये, ये जनता ही है तुम्हारे कृष्ण ।

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

बदले बदले मिजाज़ मौसम के






बदले बदले मिजाज़ मौसम के
बदला बदला है नूर बारिश का
सतरा प्रतिशत है हो गई ज्यादा
सबके अनुमानों को बता के धता ।

कभी होती थी पिया सी प्यारी
अब सिरिअल-किलर सी लगती है
लग रहा है की गीली, गीली, सिली
कोई एक आग सी सुलगती है ।

कहते हैं कि बुखार धरती का
कुछ ज्यादा ही हो गया है अब
हिम शिलाएं पिघल रही देखो
किंतु मौसम उबल रहा है अब ।

गर्मी से आदमी भडकते हैं
सोचते हैं न कुछ समझते हैं
बिन किसी बात के भडकते हैं
बसों में रास्तों में लडते हैं ।

काश इस गुस्से की दिशा बदले
गुस्सा इकजुट इस तरह उबले
करे इस दानवी व्यवस्था पर
जोर का इक प्रहार और बदले ।

फिर उगेगा इक नया सूरज
फिर मिलेगी सच में आजादी
फिर स्वतंत्रता का दिन मनायेगे
सही माने में जश्ने आजादी ।




मंगलवार, 30 जुलाई 2013

सुबह






स्वर्णिम प्रभात में धीरे धीरे घुलता अंधकार
पक्षियों का कलरव, गमले में खिलता गुलाब
नल में पानी की आवाज
गैस पे पत्ती के इंतजार मे खौलता पानी,
कप में चम्मच की टुनटुन
दरवाजे की घंटी का संगीत
दूधवाला, अखबार
हाथ में चाय का कप
बाहर छज्जे पर एक कुर्सी
उस पर  मेरा बैठना
और....

सुबह सार्थक हो जाती है ।




चित्र गूगल से साभार ।

शनिवार, 20 जुलाई 2013

उदासी

अवि-वर्षा की शादी को इस साल १० जुलै को २५  वर्ष पूरे
हुए । अवि (अवनींद्र) मेरा भांजा है । मैं उनके फेस बुक पर
उनके लिये बधाई मेसेज छोडना चाहती थी । वहां अवि के
अकेलेपन को लेकर लिखे हुए कुछ शब्द देख कर मन तो कैसा
कैसा हो गया । अवि अपना बिझिनेस चलाता है और वर्षा दूसरे
शहर में गायनेकोलॉजिस्ट है । घर-संसार चलाना है, दोनो
अपनी अपनी जगह रह कर चला रहे हैं ।

अवि की मनस्थिति कुछ इन शब्दों में बयां हो सकती है ।



अकेलापन मेरा मुझसे, सवाल अक्सर ये करता है,
कि अब घर जाना होगा कब, उदासी घेर लेती है ।

मै अपनी तनहाई में अक्सर खोया रहता हूँ
तुम्हें जब याद करता हूं, उदासी घेर लेती है .

इस मेरी मजबूरी में तुम्हारा साथ ना होता
सोच कर कैसे मैं जीता, उदासी घेर लेती है ।

वो बच्चों की सफलता पर तुम्हारे साथ ना होना
और उनका रूठना मुझसे, उदासी घेर लेती है ।

मिलना दो दिनों का और लंबी सी जुदाई फिर
वापसी पर हमेशा ये उदासी घेर लेती है ।

जिंदगी क्या यही है और ऐसी ही आगे है क्या चलना  
इन खयालों के आते ही उदासी घेर लेती है ।

और जब कभी अचानक से तुम आकर के मिलती हो
बादलों में उदासी के, ऱोशनी झिलमिलाती है ।

जिंदगी जो मिली है हँस के ही इसको निभा लेंगे ,
जियें और मुस्कुरायें तो उदासी भाग जाती है ।



बधाई अवि और वर्षा
तुम साथ साथ रहो हमेशा ।




शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

नेचुरल ब्रिज




हाल ही में हम बस इत्तफाक से एक खूबसूरत जगह पर पहुंच गये कोई जाने का प्लान नही था । हम तो कुसुम ताई से मिलने ब्लेक्सबर्ग गये थे । वे अब अमरीका के पश्चिमी किनारे पर बसने जा रही हैं । बेटा वहां पोर्टलेन्ड में है तो अब इस उम्र में बेटे के पास रहना चाहते हैं वे और अरुण राव दोनो । वहां से वापिस आ रहे थे मार्टिन्स बर्ग सुहास के यहां । रास्ते में एक रेस्ट एरिआ में रुके तो मैने कुछ प्रेक्षणीय स्थलों की जानकारी के ब्रोशर उठा लिये ।
विजय, सुहास के पति कार चला रहे थे । अचानक हमने देखा कि  अगला एक्झिट नेचुरल ब्रिज का है तो मैने कहा," अरे नेचुरल ब्रिज",  तो सुहास ने एकाएक विजय से कहा ले लो एक्झिट, जल्दी । विजय ने एक्जिट तो लिया पर भुनभुनाये," ऐसे कोई एक्जिट लेता है क्या " और इस तरह हम इस खूबसूरत जगह पर आ ये । एक्जिट से ज्यादा दूर नही थी ये जगह बस 4-5 मिनिट के ड्राइव पर ही थी । आप भी जा सकते हैं I -81 से नेचुरल ब्रिज का एक्जिट लेकर ।

नेचुरल ब्रिज एक भूगर्भशास्त्रीय आश्चर्य है जो जेम्स नदी के ब्लू रिज पहाड के खोदने से बना है । ये जो एक पुल सा दिखाई देता है वह वास्तव में एक गुफा या सुरंग की छत है,  गुफा के अवशेष के रूप में यही बचा है । यह कोई २१५ फीट ऊंचा और ९० फीट चौडा है । इसे वर्जीनिया के प्राकृतिक ऐतिहासिक स्थल का दर्जा मिला है ।

कहते हैं यह यहां के मूल निवासियों ( मोनेकन कबीला ) का श्रध्दास्थान है उनके पोहाटन कबीले पर विजय का प्रतीक । यह श्वेत वर्णीयों के यहां आने से पहले की बात है ।

ऐसा भी माना जाता है कि अमरीकी के प्रथम राष्ट्रपती जॉर्ज वाशिंगटन यहां सर्वेयर के रूप में आये थे और उन्होने ब्रिज के एक पत्थर पर अपना नाम उकेरा था । उनके नाम के आद्याक्षर वाला पत्थर यहां मिला भी था । Vdo 1 नीचे दी हुई लिंक क्लिक करें
थॉमस जेफर्सन  अमरीका के तीसरे राष्ट्रपती ने १७७४ में किंग जॉर्ज III से २० शिलिंग में  १५० वर्गफीट जमीन खरीदी थी जिसमें यह नेचुरल ब्रिज भी शामिल था । उन्होने ही इस जगह को साफ सुथरा करवा कर एक केबिन बनाया जहां वे तफरीह के लिये आया करते थे । कहते हैं वे अपना पत्थर इस ब्रिज तक उछाल पाये थे ।

आज इस जगह को काफी विकसित किया गया है । इसका टिकिट २१ $ प्रति व्यक्ति लगता है इसमें हम  एक खूबसूरत ट्रेल पर चलने का सुखद अनुभव ले सकते हैं और नेचुरल ब्रिज, सेडार क्रीक, लेस फॉल्स तथा मोनेकन गांव देख सकते हैं । २८ डॉलर का टिकिट लेने पर केवर्न और बटर फ्लाय गार्डन भी देख सकते हैं पर चलना काफी पडता है । नीचे दी हुई लिंक क्लिक करें
हम तो केवल नेचुरल ब्रिज और सेडार क्रीक ही देख पाये और चलने की हिम्मत नही थी  । नेचुरल पुल की सुन्दरता का मज़ा आप भी लें ।