रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होरी


होरी पे ऐसे रंग ना डारो,
रार ना मचाओ बनवारी ।
खिलत रहे फुलवा गुनगुनाए भंवरा
देख देख मोर हंसत काहे पियरा
सखी सहेली करत ठिठोली
काहे दो उन्हें अवसर गिरिधारी । रार न मचाओ बनवारी

रंग भिगोया गुलाल गाल मले
चूनर भीगी भीगे मोर केश पडे
थर थर कांपत, गात सुकोमल
और न मारो न मारो पिचकारी । रार न मचाओ बनवारी

गोप गोपी संग रास रचायें
जमुना तट पे धूम मचायें
हम बूंद, सागर तो आप प्रभु
बिनती करो स्वीकार हमारी । रार न मचाओ बनवारी

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

अहसास



तुम्हारे प्यार का अहसास लपेटे रहता है मुझे कोहरे सा
कानों में गुनगुनाता है एक मधुर रागिनी
पायल की छनछन, बन जाती है मेरे दिल की धडकन
मन मोर नाचने लगता है उसके ताल पर
और इस अहसास में मै, हो रहता हूं मगन
अपने में ही ।

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

दुनिया तो...


सब कुछ कितना बेमानी है
दुनिया तो आनी जानी है ,
हर पल सदा बदलने वाली
नित्य ही ये नई कहानी है । सब कुछ....

वो इच्छाएँ, वो आशाएँ,
अगणित अगणित अभिलाषाएँ,
जिनके पीछे रहे दौडते
लेकर सालंकृत भाषाएँ
व्यर्थ किया जिस पर इतना श्रम
कमल-पत्र ऊपर पानी है । सब कुछ..

वो बचपन की छोटी छोटी
सपनों वाली बीरबहूटी
वो साथी से आगे होना
लड-झगड कर हंसना रोना
याद आ रही है बचपन की
आँखों मे लेकिन पानी है । सब कुछ.....

यौवन की मदमाती मस्ती
कुछ तो अपनी भी थी हस्ती
दुनिया अपने मुठ्ठी में थी
जीत की इच्छा घुट्टी में थी
धन,साफल्य, सम्मान, प्रियतमा
केवल मुझको ही पानी है । सब कुछ....

अब उम्र के इस पडाव पर
पंछी से बच्चे छोड गये घर
रहे अकेले वृध्द दंपति
रिश्ते नाते होते जर्जर
जीवन क्या ये सार्थ मान लें?
या ये बातें बचकानी है । सब कुछ....

एक बात पर समझ गये हैं
जितने भी अब बाकी पल हैं
ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है । सब कुछ......