पुरुष के नाम ......
आज झूल रही हूँ जिंदगी और मौत के बीच
जीना था मुझे, उनको और उन जैसों को देनी थी सीख और समझ
इस दिशा में करना था काम ।
मेरे आहत और टूटे शरीर के भीतर थी एक ज्वलंत जीजीविषा और दबंग मन
कि कुछ ऐसा करूं कि आगे ऐसा ना हो किसी
के साथ, ना बनें हमारी छोटी छोटी खुशियां दुखभरी दास्तान ।
बताऊं उनको जो बनते हैं हमारे पिता,
नेता, मार्गदर्शक, पथ प्रदर्शक
कि जब तुम ही अपना आचरण स्वच्छ न रखो, तुम ही स्त्री की इज्जत ना करो तो
तुम्हारे बच्चे, और ये आम आदमी क्या सीखेंगे, किस राह पर चलेंगे ।
गलत करोगे गलत को आश्रय दोगे तो यही समाज
मिलेगा और कल को तुम्हारी बहु बेटियां यही भुगतेंगी ।
माँओं को भी विनती है सिखायें बेटों को
करें नारी का सम्मान ।
मेरी ये टूटी फूटी देह साथ नही दे रही मेरा, इसलिये अलविदा............
पर
जारी रखना ये संघर्ष ताकि औरत पा सके इस समाज में अपना सही
स्थान और सम्मान और फिर ना हो किसी की ऐसी हिम्मत ।