सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

जीने के लिये

बस एक टुकडा धरती
और एक मुठ्टी आसमान
इतना काफी है जीने के लिये
चाहिये नही तुम्हारा ये जहान

जिसमें नफरतों के ऊँचे किले
दफ्न करते हैं प्यार के मेहमान

फुरसतें है किसे मुहब्बत के लिये
वक्त महँगा है सस्ता है इन्सान

गरगराती इन मशीनों में पिसे
जा रहे हैं दिल के अरमान

और किसी अजब दौड में शामिल
हाँफते हाँफते दौडते इन्सान

जानते जो नही कहाँ मंजिल
कब पायेंगे वो अपना मकाम

बस एक टुकडा धरती
और एक मुठ्टी आसमान


आज का विचार

जीवन का उद्देश है बहते रहना सहज और स्वच्छंद ।

स्वास्थ्य सुझाव

मूली या पत्ता गोभी के पत्तों को धीरे धीरे चबा चबा कर
खाने से अवसाद ( डिप्रेशन ) से छुटकारा मिलता है ।

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

मुनिया

छुन छुन बजती पैंजनिया
चलने को तत्पर मुनिया
एक एक कर पाँव उठाती
पाँव तले उसके दुनिया

डग मग डग मग भरती है डग,
डोल रही जैसे नैया
आँखें इधर उधर दौडाती
फैलाती जाती बहियाँ

ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ

छुन छुन बजती पैंजनिया

आज का विचार
केवल पशु ही अपने लिये जीता है
मनुष्य वही है जो औरों के लिये जीता ही नही
मरता भी है ।

स्वास्थ्य सुझाव
घुटने के दर्द के लिये सरसों के तेल से
रोज पाँच बार क्लॉक वाइज और पाँच
बार एन्टि-क्लॉक वाइज मालिश करें काफी आराम
मिलेगा ।

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

कैसा आया है वसंत

कैसा ये आया है वसंत
सर्दी में ठिठुरा ठिठुरा सा
धुंद की गीली चादर ओढे
कोई बूढा झुका हुआ सा

कहाँ खो गई धूप गुनगुनी
कहाँ छुप गई हवा बसंती
सिकुड गई नन्ही सी कलियाँ
बिन सूरज़ के कैसे खिलती

पंछी हुए बावले फिरते
तितली की हिम्मत ना होती
कैसे ढूंढे बाग बगीचे
ना कोई संगी ना कोई साथी

कोयल भी है चुप्पी साधे
भौरों नें छोडा गुंजारव
सर्दी ने सबको जकडा है
आसमंत सब नीरव नीरव

कैसा ये आया वसंत
जब गुम हो गये रंग सजीले
शाल दुशाले चादर ओढे
दुबक गये वासंती चोले