बस एक टुकडा धरती
और एक मुठ्टी आसमान
इतना काफी है जीने के लिये
चाहिये नही तुम्हारा ये जहान
जिसमें नफरतों के ऊँचे किले
दफ्न करते हैं प्यार के मेहमान
फुरसतें है किसे मुहब्बत के लिये
वक्त महँगा है सस्ता है इन्सान
गरगराती इन मशीनों में पिसे
जा रहे हैं दिल के अरमान
और किसी अजब दौड में शामिल
हाँफते हाँफते दौडते इन्सान
जानते जो नही कहाँ मंजिल
कब पायेंगे वो अपना मकाम
बस एक टुकडा धरती
और एक मुठ्टी आसमान
आज का विचार
जीवन का उद्देश है बहते रहना सहज और स्वच्छंद ।
स्वास्थ्य सुझाव
मूली या पत्ता गोभी के पत्तों को धीरे धीरे चबा चबा कर
खाने से अवसाद ( डिप्रेशन ) से छुटकारा मिलता है ।
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008
मुनिया
छुन छुन बजती पैंजनिया
चलने को तत्पर मुनिया
एक एक कर पाँव उठाती
पाँव तले उसके दुनिया
डग मग डग मग भरती है डग,
डोल रही जैसे नैया
आँखें इधर उधर दौडाती
फैलाती जाती बहियाँ
ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ
छुन छुन बजती पैंजनिया
आज का विचार
केवल पशु ही अपने लिये जीता है
मनुष्य वही है जो औरों के लिये जीता ही नही
मरता भी है ।
स्वास्थ्य सुझाव
घुटने के दर्द के लिये सरसों के तेल से
रोज पाँच बार क्लॉक वाइज और पाँच
बार एन्टि-क्लॉक वाइज मालिश करें काफी आराम
मिलेगा ।
चलने को तत्पर मुनिया
एक एक कर पाँव उठाती
पाँव तले उसके दुनिया
डग मग डग मग भरती है डग,
डोल रही जैसे नैया
आँखें इधर उधर दौडाती
फैलाती जाती बहियाँ
ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ
छुन छुन बजती पैंजनिया
आज का विचार
केवल पशु ही अपने लिये जीता है
मनुष्य वही है जो औरों के लिये जीता ही नही
मरता भी है ।
स्वास्थ्य सुझाव
घुटने के दर्द के लिये सरसों के तेल से
रोज पाँच बार क्लॉक वाइज और पाँच
बार एन्टि-क्लॉक वाइज मालिश करें काफी आराम
मिलेगा ।
शनिवार, 9 फ़रवरी 2008
कैसा आया है वसंत
कैसा ये आया है वसंत
सर्दी में ठिठुरा ठिठुरा सा
धुंद की गीली चादर ओढे
कोई बूढा झुका हुआ सा
कहाँ खो गई धूप गुनगुनी
कहाँ छुप गई हवा बसंती
सिकुड गई नन्ही सी कलियाँ
बिन सूरज़ के कैसे खिलती
पंछी हुए बावले फिरते
तितली की हिम्मत ना होती
कैसे ढूंढे बाग बगीचे
ना कोई संगी ना कोई साथी
कोयल भी है चुप्पी साधे
भौरों नें छोडा गुंजारव
सर्दी ने सबको जकडा है
आसमंत सब नीरव नीरव
कैसा ये आया वसंत
जब गुम हो गये रंग सजीले
शाल दुशाले चादर ओढे
दुबक गये वासंती चोले
सर्दी में ठिठुरा ठिठुरा सा
धुंद की गीली चादर ओढे
कोई बूढा झुका हुआ सा
कहाँ खो गई धूप गुनगुनी
कहाँ छुप गई हवा बसंती
सिकुड गई नन्ही सी कलियाँ
बिन सूरज़ के कैसे खिलती
पंछी हुए बावले फिरते
तितली की हिम्मत ना होती
कैसे ढूंढे बाग बगीचे
ना कोई संगी ना कोई साथी
कोयल भी है चुप्पी साधे
भौरों नें छोडा गुंजारव
सर्दी ने सबको जकडा है
आसमंत सब नीरव नीरव
कैसा ये आया वसंत
जब गुम हो गये रंग सजीले
शाल दुशाले चादर ओढे
दुबक गये वासंती चोले
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