दर्द इतना बढा सम्हाला न गया,
लाख चाहा मगर छुपाया न गया।
जाम आंखों के जो छलकने को हुए,
बहते अश्कों को फिर रुकाया न गया।
जख्म इतने दिये जमाने ने,
हम से मरहम भी लगाया न गया।
कोशिशें लाख कीं मगर फिर भी,
उनको आना न था, आया न गया।
ऊपरी तौर पे सब ठीक ही लगता लेकिन,
हाल अंदर का कुछ बताया न गया।
हम चल देंगे यकायक कि खाट तोडेंगे,
किसने जाना, किसी से जाना न गया।
जिंदगी का आज ये पल सच्चा है
इससे आगे को कुछ
विचारा न गया।
चित्र गूगल से साभार