शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

हम बोले तो ......




हम बोले तो बडबोले
वे बोले, वाह, क्या बोले !

कौन किसी की सुनता है,
सब अपनी अपनी बोले ।

उनसे कल क्या बात हुई, 
जो तेरा तन मन डोले ।

काम गती पकडे कैसे,
गाडी खाये हिचकोले.

रानी हुकुम चलाये तो,
मंत्री प्रधान क्या बोले ।

महंगाई ऊपर चढती
रुपया नीचे को  होले ।

टिप्पणियां जो कम आयें,
ब्लॉगर यूँ मन को खोले ।

लिक्खूं या फिर ना लिख्खूं
मन इस दुविधा में डोले ।

समय से सब सही होगा,
धीरे धीरे हौले हौले ।



चित्र गूगल से साभार ।

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

हम स्वतंत्र हैं



हम स्वतंत्र हैं,  कुछ भी करने के लिये ।
सडक पर थूकने के लिये,
मूंगफली के छिलके फैलाने के लिये,
हल्दीराम के ठोंगे फेंकने के लिये,
अपने घर का कूडा करकट रास्ते पर डालने के लिये,
ऑफिस की स्टेशनरी घर लाने के लिये,
प्रॉजेक्टस् के पैसे में से अपना कट लेने के लिये,
स्कूल के बच्चों से अपनी आटाचक्की चलवाने के लिये,
क्लास में ना पढाने के लिये,
ट्यूशन पढने ना आने वाले बच्चों को फेल करने के लिये,
कोर्स परीक्षा के आस पास जैसे तैसे खत्म करवाने के लिये,
मटीरियल में मिलावट करने के लिये,
सामान बेच कर रसीद ना देने के लिये,
मनमाने दाम वसूल ने के लिये,
देश के लोगों का पैसा अपनी जेब में भरने के लिये,
वादे सिर्फ करने के लिये,
काम करने के लिये घूस लेने के लिये,
घटिया सामान लोगों के गले उतारने के लिये,
अपने हक से ज्यादा पाने के लिये,
वोट पाने के लिये नोट देने के लिये,
दादागिरि करने के लिये,
अपना हक जताने के लिये,
हर दिन गलत काम करने के लिये,
कमजोर पर अत्याचार करने के लिये,
नारी को पांव की जूती समझने के लिये,
जबरन पैसा वसूलने के लिये,
किसी की जान तक लेने के लिये,
और पता नही कितना और क्या क्या करने के लिये ,
पैसा और पॉवर, है न हमारे पास ।

हम स्वतंत्र नही (?) हैं,
अपने परिवार और देश में सबको समान अधिकार देने के लिये,
अपने खिलाडियों को सुविधाएं देने के लिये,
सिपाहियों को उमदा हथियार देने के लिये,
युध्द के समय सही एक्शन का आदेश देने के लिये,
उनके परिवारों की देखभाल के लिये,
अपनी सीमाओं की रक्षा के लिये,
अपने नागरिकों के सुख सुविधा का सामान जुटाने के लिये,
उनको सुरक्षा प्रदान करने के लिये,
ऩारी को भी इन्सान समझने के लिये,
पीने का साफ पानी देने के लिये,
रोशनी देने के लिये,
सबको कम से कम दो जून की रोटी उपलब्ध कराने के लिये,
सब को शिक्षा और रोजगार का समान अवसर देने के लिये,
स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिये,
आतंकवाद से निपटने के लिये,
असमानता हटाने की कोशिश करने के लिये,
अच्छे और सच्चे लोगों को बढावा देने के लिये,
ईमानदारी से अपना काम करने के लिये
नही हैं हम स्वतंत्र,
पॉवर जो नही है, और पैसा, वो कहां है हमारे पास,
सब स्विस बैंक में जो रख दिया है ।

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

माँ को राखी


जरूरत है कि आज (भारत) माँ को राखी बांधी जाये ।
वचन देने के लिये कि यह राखी उसकी रक्षा के लिये है, जो
दर असल हमारी ही रक्षा है ।

मां जिसके गोद में कांधों पर खेल कर हम बडे हुए ।
मां जिसने हमें पाल पोस कर बडा किया, पढने लिखने की सुविधा दी ।
पांवों पर खडे होने का सहारा दिया ।
वही मां आज कैसे दुर्दिन देखने को मजबूर है ।
कैसी लूट खसोट हो रही है उसके साधनों की ।
कैसे उसके बहुतसे बच्चे वंचित हैं सुविधाओं से ।
वह दुखी है, विवश है ।
वह हमारी और तक रही है ।

हम जो सबल हैं हम जो कुछ कर सकते हैं ।
पर हम तो अपने लिये ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं बटोर रहे हैं ।
हमें फुरसत कहां कि माँ को देखें, उसके वंचित संतानों को देखें ।
यह बाजार वाद यह पूंजी वाद हमें भावनाहीन, चेतना-शून्य करता जा रहा है ।
जरा ठहरें, सोचें कि हमें ये कहां ले जायेगा ?
हमारे संतानों को हम कैसे इन्सान बनायेंगे ?
इन्सान या हैवान या फिर संवेदनाशून्य रोबोटस् ।
बाज़ार का खाना, बाज़ार का पानी और आया के संस्कार और क्या बनायेगा इनको ।
दादा दादी नाना नानी तो हमें गंवारा नही घर में ।

जरूरत है कि मां को फिर से संवारा जाये, उसका बल बना जाये ।
रिश्तों को संजोया जाये ।
यह वचन दिया जाये मां को कि उसकी रक्षा ही हमारा आद्य कर्तव्य है,
और यह हम प्राण पण से निभायेंगे ।
यह राखी इसी वचन का प्रतीक है ।