मंगलवार, 28 जून 2011

चलते रहिये चलते रहिये 3-विक्टोरिया फॉल्स


कमरे में आकर नहाया और निकल पडे विक्टोरिया प्रपात देखने, इसका अफ्रीकी नाम है मोसी ओआ तून्या इसका अर्थ है धुआं जो गरजे । सबसे पहले तो वह बस ली जो होटल से हर आधे पौने घंटे पर चलती है । कोई दस मिनिट में पहुँच गये स्मोक दैट थंडर्स के गेट पर । बाहरसे कुछ भी दिखाई नही देता । वहां काफी दूकानें थी जहां चित्र, मूर्तियाँ, रेनकोट आदि मिल रहे थे तो रेन कोट किराये पर लिये और अंदर आये । (विडियो)1

30-30 $ टिकिट लिया । प्रपात में गिरने से पहले झाँबेझी नदी काफी चौडी हो जाती है पर ज्यादा गहरी नही है । इसमें काफी उप-नदियां आकर मिली हैं । प्रपात से पहले दो नदियां मिलती हैं इसमें लुआम्पा और कुआन्डो । टिकिट लेकर अंदर आये, अंदर जाकर चलते चले गये, और क्या नजारा था ! आंखें कृतार्थ हो गईं ।
व्योम से उतरे, पाताल गहन
जल का प्रचंड, अवतरण
छाया कुहरा, गहरा गहरा
अवगुंठन, न कोई दर्शन
उठीं फुहारें, बरसे सावन (विडियो)2

रिम झिम रिम झिम, बिना घन ।
हरियाला बन, मन हिरण
डोले, संग पवन, सनन सन
ऐसा सुखद, अनुभवन
मानो पा लिया, त्रिभुवन।
ये कोई कविता नही है मन के भाव हैं तो इसको अनदेखा किया जा सकता है ।
नायगारा प्रपात से दुगना गहरा और दुगने से कुछ ज्यादा लंबा है ये प्रपात । लगता है पूरी की पूरी झांबेझी नदी कूद पडी हो खाई में और ऐसा ही है । बीच बीच में जमीन के उठान है जो इसको गरमी में बहुत सी धाराओं में विभाजित कर देते हैं । पर हम गये तब इसमें 95 प्रतिशत पानी था तब भी इसे सात भागों में बांटा गया है सबसे पहला है डेविल्स कैटरेक्ट । मुख्य प्रपात सबसे लंबा है इसे मेन फाल्स कहते हैं । पानी इतने जोरों से इतने गहराई में गिरता है कि उससे होने वाली बौछार उँचे जाकर बारिश की तरह गिरती है । इसी की वजह से यहां रेन फॉरेस्ट बना हुआ है ।
यहां किस्म किस्म के पाम वृक्ष टीक, एबोनी, महोगनी आदि वृक्ष भी हैं और है लोह वृक्ष (आयरन वुड) । य़ह दुनिया के सात प्राकृतिक आश्चर्यों में गिना जाता है । इसकी खोज करने वाले पहले यूरोपियन थे डेविड लिविंगस्टन जिन्होने इस प्रपात को एक द्वीप पर से देखा जो अब लिविंगस्टन आयलेंड के नाम से जाना जाता है । लिविंगस्टन ने इसे रानी विक्टोरिया के नाम पर विक्टोरया फॉल्स नाम दिया । हालांकि यहां के लोग इसे पहले से ही जानते थे। अब आप सब प्रपात के विडियो से आनंद उठायें । (विडियो)3

बीच में मै और विजय थकान की वजह से एक बैंच पर बैठ गये । पर मै फिर से सुरेश और सुहास के साथ झांबेझी पुल देखने चली गई । यह काफी लंबा रास्ता था और बारिश हुए ही जा रही थी ।।
हम चल कर उस जगह तक गये जहां झांबेझी नदी पर पुल बना हुआ है जो झांबिया और झिंबाब्वे को जोडता है । रास्ते में एक जगह जहां रास्ता प्रपात की तरफ गया था वहां लिखा था खतरा!!!!! आगे अपने भरोसे जायें । हम भी आगे बढ गये ।
यह नदी कई खाइयाँ जिन्हें गॉर्ज कहते हैं, बनाती चलती है और प्रपात के रूप में गिरने के बाद संकरी हो जाती है पर बहती बहुत तेज है । यहां हमने एक साथ दो दो इंद्रधनुष बनते देखे ।
सुना है कि चांदनी रात को भी इस फॉल पर इंद्रधनुष बनता है हम तो देख नही पाये । खूब घुमाई हो गई थी भीग भी गये रेनकोट होते हुए पर चलते चलते सूख भी गये । बहुत मजा आया वापिस आये एक डीवीडी खरीदी फॉल्स की। वहां कुछ नर्तक नाच रहे तथे । हमारी बस अभी आनी थी तो वह नाच देखा और उसकी भी डीवीडी खरीदी । सुहास ने एक हाथी खरीदा । मेने एक हिप्पो । सचमुच का नही शो पीस । (विडियो) 4

बस तब तक आ ही गई । बस में बैठे और लंच करने उसी जगह गये जहां से वॉटर होल दिखता था । तब बहुत से पंछी दिखे चीलें, गिध्द, हॉक वगैरा (क्यूंकि होटल के लोग इन्हे मीट खिलाते हैं )। बंदर भी आ गये । तीन चार मगर भी देखे जो सुस्त से पडे हुए थे धूप सेंक रहे थे और शिकार की ताक में थे । एक जंगली सूअर भी देखा । हिरन तो थे ही । जकाना पक्षी भी थे । मगर के आस पास कोई भी नही फटक रहा था
खाना खा कर थोडा लेटे । साढे चार बजे बोट क्रूज़ के लिये जाना था । साढे तीन बजे उठे तैयार हुए और नीचे आकर बस की वेट करने लगे । तीन चार और और बसें आईं पर हमारी नही थीं आखिर कार हमारी बस आई और हम उसमें बैठ कर चल पडे । क्रूज़ के लिये बस ने हमें जहां उतारा वहां अफ्रीकी नर्तक हमारे स्वागत में खडे थे हमारे आते ही उन्होने नृत्य करना चालू किया । नर्तकों ने हमें भी अपने साथ नाचने को बुलाया तो हम भी नाचे वहां एक ड्रम बजाने वाले का पुतला था उसके साथ फोटो खिंचवाया । फिर चढे बोट में । हमारा जोरदार स्वागत हुआ । रेड वाइन मानो बह रही थी । साथ में थी नमकीन मूंगफली । इतने में शिप का कैप्टन आया और कहा क्षमा चाहता हूँ पर हम आगे नही जा सकेंगे । अभी तो क्रूज शुरू हो ही रही थी । हमारे सबके मुख पर प्रश्न चिन्ह टंग गये । तो उसने हंस कर कह मै देख रहा हूँ कि आप लोग वाइन पी ही नही रहे । तो पीजीये, फिर मै आगे बढता हूँ । (विडियो) Cruise1

उसके साथ जो लडकी मैनेजरियल असिस्टंट थी वह कहने लगी, “जो पीयेगा नही उसे गुलाबी हाथी नही दिखेंगे“, सारे लोग हँस पडे और हमारी बोट आगे बढी । सबसे पहले हमे दिखे हाथी, तीन थे, माँ बाप और बच्चा । झांबेझी नदी इतनी चौडी है कि देखते ही बनती है । विक्टोरिया फॉल्स से पहले इसमें दो बडी नदियां आकर मिलती हैं । इस बोट-क्रूज में हमे केरला की बैक व़ाटर सैर याद आ रही थी । पर वहां नदी इतनी चौडी नही थी । बोट आगे जा रही थी हम अब उत्सुक थे हिप्पो देखने के लिये । और अचानक शोर मचा हिप्पो हिप्पो । देखा पानी के ऊपर कुछ चट्टाने सी हिल रही थीं यह दरियाइ घोडों की पीठ थी । जैसे बोट कुछ आगे बढी उनके सिर नज़र आये । कोई पांच या छह हिप्पो थे । हमारी बोट को इनके बिलकुल पास ले जाने लगे तभी एक हिप्पो खडा हो गया उसका पूरा शरीर दिखाई दिया । ऐसे तन कर खडा था पठ्ठा कि और पास आये तो उलट दूंगा । उसके बाद देखा एक मगरमच्छ का बच्चा जो आराम से एक चट्टान पर लेटा था, इसे काफी अच्छे से देख पाये । (विडियो) Cruise2

फिर अचानक बादल घिर आये और हवा तेज चलने लगी । नैया डगमग डगमग डोलने लगी । बिजलियाँ चमकने लगी हमने कोशिश की कि इसे कैमरे में कैद करें । एक तरफ डर भी लग रहा था कि ठीक ठाक वापिस पहुंच जायें । खैर पहुंच तो गये और एकदम ठीक ठाक पहुँचे ।
वापिस जाकर डिनर खाया । बोमा रेस्तरॉँ में नही जा पाये क्यूं कि बारिश हो रही थी । सुहास बहुत मायूस थी तो मैनेजर ने पूछा क्या हुआ, क्यूं उदास हो ? सुहास ने कहा हमें बोमा रेस्तरॉं में जाना था नाच देखने ड्रम सुनने । तो बोले बस इतना ही ? नाच और ड्रम यहीं करवा देते हैं और वाकई हमने नाच भी देखा और ड्रम भी सुने पर बोमाँ मे ये कैसे होता ये सवाल तो रहा ही । यहाँ ये हमारा आखरी डिनर था, कल तो ब्रेकफास्ट के बाद हमें निकलना था । पर ब्रेकफास्ट करते हुए जानवर दिख जायें ये आस भी थी । दूसरे दिन सुबह आराम से उठे नहा धो कर तैयार हुए सामान पैक किया और नाश्ता करने गये । हमारे हमेशा के स्पॉट पर बैठे और एक बार और सफारी का आनंद उठाया । फिर कमरे में आये सामान उठाया और रिसेप्शन पर जाकर बैठ गये । हमारी टैक्सी आई और उसने हमें हवाई अड्डे छोडा । उडान समय से थी तो दो घंटे बाद वापिस जोहेन्सबर्ग और एडम के घर । गाडी में एडम ने हमे बताया कि कल हम चीता दौड देखने जायेंगे और परसों सफारी । (क्रमशः)

मंगलवार, 21 जून 2011

चलते रहिये चलते रहिये -2…. विक्टोरिया फॉल्स सफारी लॉज


सुबह साढे चार बजे उठे । नहा धो कर तैयार होकर नीचे आये । एडम और एमी ने चाय नाश्ता तैयार किया था सो नाश्ता कर के हमें साढे सात निकलना था दस बजे की हमारी उडान थी ब्रिटिश एयरवेज की । विक्टोरिया फॉल्स उसी नाम के शहर (गांव कहना ज्यादा उपयुक्त होगा ) में स्थित है । यह झिंबाब्वे मे है । इसके लिये हमें अलग से विसा की जरूरत थी । पर वह हमें उतरने के बाद भी मिल सकता था तो वही तय किया था । उडान दो घंटे की थी । विमान में वेज खाना ही नही था ।हमें एक टॉफी खा कर ही संतोष करना पडा । हम पहुंचे बारा बज कर 10 मिनिट पर । उतर कर हमें विसा के लाइन में खडा रहना पडा । एयरपोर्ट छोटासा था और टूरिस्ट काफी थे तो हमें बाहर फुट पाथ पर लाइन में खडा रहना पडा । हम खडे थे, इतने में कुछ लोग एका-एक हमसे आगे चल कर अंदर चले गये । बस फिर क्या था हमें गुस्सा आ गया कि भेद भाव क्यों हो रहा है । पता चला वे सब एक ही ग्रूप के थे । थोडी देर बाद हमें भी अंदर बुला लिया गया तो विजय हंस कर बोले, “अब क्या करें ? मना कर दें अंदर जाने को, कि हम तो अपनी बारी आने पर ही जायेंगे ।“ क्या बोलती मै, चुप-चाप अंदर चली गई । तीस तीस डॉलर फीस जमा कराई तब वीसा मिल गया ।
फिर एयरपोर्ट से बाहर आये और हमारे लिये जो होटल से टैक्सी आने वाली थी उसको देखने लगे । हमारे होटल का नाम था विक्टोरिया सफारी लॉज और हमें लाने के लिये जो टैक्सी नियत थी वह थी वाइल्ड होरायझन नामक कंपनी की ।
यह तो हमने देखा नही बस टैक्सी पर विक्टोरिया सफारी लॉज देख कर एकदम से उसमें जा कर बैठ गये । यह भी ना देखा कि आदमी के हाथ में जो बोर्ड है उस पर किसका नाम लिखा है । उसने भी, ग्रूप ऑफ फोर, पूछ कर बिठा लिया । थोडी देर बाद और चार लोग आये तो ड्राइवर थोडा परेशान हो गया । फिर नाम पूछा तो गुप्ते और जोगळेकर नाम देख कर कहा ये आपकी टैक्सी नही है । तब तक हमने उसने जो पानी की बोतल वगैरा दी थी उन्हे खोलकर पानी वानी पी लिया था । खैर वह हमारे टैक्सी ड्राइवर को खोज कर लाया और हम हमारी टैक्सी में बैठ कर होटल की तरफ रवाना हो गये । रास्ते पर दोनो तरफ के जंगल देख कर मै सोचती जा रही थी कि ये तो कोई घना जंगल नही दिखता फिर यहां जानवर कैसे दिखेंगे । रास्ते पर लोग भी ज्यादा नही दिखे । धीरे धीरे होटल दिखने लगे । फिर एक शानदार मोड लेकर हमारी टैक्सी विक्टोरया सफारी लॉज के आगे आकर रुक गई । एकदम अफ्रीकन संस्कृति के दर्शन हो गये । हमारी टैक्सी रुकते ही अफ्रीकन लिबास में एक आदमी जिसका नाम नफात था हमारे स्वागत के लिये आगे आया और उसने हमारे पाँव जमीन पर ना पडें इसके वास्ते एक लंबी टाट-पट्टी सी बिछा दी और हम बडी शान से .. और मन में कुछ सकुचाते हुए उस पर चल कर स्वागत कक्ष में पहुँचे । वहां दो लोग थे, उनमे से एक का नाम था मेंबर जो याद रहा। यहां काफी लोग क्रिस्चियन हैं ।
होटल का गेट-अप एकदम पारंपरिक अफ्रीकन घरों की तरह था घास का बना मोटा छप्पर खंबों पर टिका हुआ पर अंदर से हमारे कमरे वगैरा एकदम आधुनिक सुख सुविधाओं (4 सितारा ) से सुसज्जित थे । कमरे और परिसर देख कर हम तो बहुत खुश हो गये । परिसर में सामने एक बगीचा था उसके बीचों बीच एक पेड था जिसका तना ऐसे लग रहा था मानो पत्थर का हो । हमारे इस पैकेज में जो कि ७०० डॉलर प्रति व्यक्ति था जोहेन्सबर्ग से विक्टोरिया फॉल्स और वापसी का हवाई भाडा, होटल में तीन दिन तक रुकने का डबल बेड कमरा, नाश्ता तथा रात का भोजन शामिल था और इस के साथ एयरपोर्ट से लाने ले जाने की सुविधा और एक बोट क्रूज भी थी जिस मे पानी में रहने वाले जानवरों के दर्शन हो जाते थे । सबसे पसंद आई बेड के ऊपर लगी मसहरी जो पलंग के नीचे तक श्री देवी की साडी की तरह लटकती तो मच्छर घुसने का कोई चान्स ही नही रह जाता । स्वागत काउंटर पर जो लोग थे बहुत ही आतिथ्य शील और विनम्र थे । यह हमारा पहला खास अफ्रीकी अनुभव था और बहुत सुखद था । स्वागत कक्ष की सजावट भी एकदम पारंपारिक थी । स्वागत कक्ष के साथ ही थी एक अफ्रीकन शो पीसेज की दुकान भी पर जाहिर है कि ये दुकान बहुत महंगी थी । स्वागतकों ने हमे कमरों की चाभियां तो दी हीं साथ ही साथ वहां के खाने पीने के रेस्तराँ तथा खाने के समय के बारे में भी बताया । यह भी बताया कि पास ही उनका एक बोमा रेस्तराँ भी है, यह एक विशेष रेस्तराँ होता है, जहां अगली रात को नृत्य तथा ड्रम्स का प्रोग्राम है । सुबह साढे चार से उठे हम लोगों को तो काफी थकान हो गई थी । तो कमरे की चाभियां लीं और कमरे में आकर नेशनल प्रोग्राम चालू । (विडियो)

शाम साढे चार बजे उठे और सुहास विजय के कमरे में गये । चाय पी। कमरे में चाय कॉफी की व्यवस्था थी । फिर बाहर बालकनी में बैठ कर पंछी देखते रहे । एक पक्षी तो, जो बचपन में घुमा कर टर्र टर्र आवाज करने वाला खिलौना होता था वैसी आवाज निकाल रहा था और थी बया चिडिया की तरह चिडिया थीं जिनके घोंसले होते तो वैसे ही हैं जैसे बया के पर थोडे बेतरतीब से होते हैं । सुहास विजय के कमरे के बालकनी से एक पानी का तालाब भी दिखाई देता था पर वहां जाना मना था । बहुत से जानवर वहां पानी पीने आते थे । हम काफी देर तक वहां देखते रहे पर बडे सारस जैसे पंछियों के अलावा कुछ न दिखा । अब शाम होने वाली थी । काफी देर बैठने के बाद अंदर आने ही वाले थे कि 4-5 हाथियों का एक झुंड आ गया उसमें एक बडा हाथी, जो पिता होगा, पहरा देने खडा हो गया और बाकी के बारी बारी पानी पीते रहे । उनमें से एक माँ थी और बाकी बच्चे । खूब मज़ा आया । (विडियो)

ऐसे स्वतंत्र हाथी वो भी इतने सारे हमने कब देखे थे । रात का डिनर वहीं था और कॉम्लीमेंट्री था । डिनर में बहुत प्यार से वहां के हेड वेटर नें पूछ ताछ की हमारे टेबल पर आकर हमारा ऑर्डर लिया । जब चीज तैयार होकर आती थी तो से खोलने का एक उत्सव सा होता ढक्कन जोर से उठाकर वे एक तरह की आवाज निकालते और सब खुश होकर ताली बजाते । खाना खाते हुए नाच गाने का प्रोग्राम भी हुआ । डाइनिंग हॉल के हर सेक्शन के लिये यह कार्यक्रम दोहरा दिया जाता , हम ने भी बहुत आनंद उठाया । होटल का स्टाफ सचमुच ही बहुत विनम्र और हर तरह की मदद के लिये तत्पर था । (विडियो)

वापिस कमरे में आकर हम चारों ने कल का प्रोग्राम तय किया हमारे पास कल का ही दिन था परसों तो हमारी वापसी थी । कल सुबह हम जायेगे विक्टोरिया फॉल्स देखने । शाम को हमारी बोट क्रूज़ थी । तो तय किया कि उठेंगे आराम से और नाश्ता कर के चल पडेंगे फॉल्स के लिये ।
सुबह आराम से उठे, चाय के लिये गये सुहास के कमरे में, वहां के बालकनी से तालाब जो दिखाई देता था । होटल में ही एक जगह एक खूबसूरत तालाब और झरना था वहां से भी वॉटर होल दिखाई देता था । वहां एक हिरन आया फिर दो तीन चार बहुतसे हिरन आ गये । वे सारस जैसे बडी चोंच वाले बडे पक्षी जिन्हे जकाना कहते है बहुत से थे एक तो बिलकुल बुत की तरह एक पेड़ पर बैठा था जैसे कोई पुतला हो । फिर एक सफेद हंस की तरह का पक्षी भी दिखाई दिया । हमने सोचा नाश्ता करने चलते हैं वहां के खिडकी से सब साफ दिखाई देगा । तो गये । कैमरा ,दूरबीन सब साथ ले गये क्यूंकि वहां से तालाब जिसे ये लोग वॉटर होल कहते है काफी नजदीक है और साफ दिखाई देता था । वहां और भी हिरण देखे और देखे मगर मच्छ । मन तो था कुछ देर और बैठें पर जाना जो था (विडियो) ।


(क्रमशः)

बुधवार, 15 जून 2011

चलते रहिये चलते रहिये- घूमना दक्षिण अफ्रीका

इस बार जब सुहास दिल्ली आई थी तभी तय हो गया था कि अगली ट्रिप हमारी दक्षिण अफ्रीका की होगी । एडम, उनका एक शिष्य जिसे हम भी अच्छी तरह जानते हैं (दिल्ली में जो था वह दो साल ), आज कल प्रीटोरिया में पोस्टेड है । कोई अपना हो तो जाने की सुविधा तो रहती ही है ।
तो जब हमारा वार्षिक अमरीका प्रवास शुरू हुआ तो सुहास नें कहा कि तुम लोग यहां (मारटिन्सबर्ग वेस्ट वर्जीनिया) मई में ही आ जाओ क्यूं कि हमें १६ मई को ही चल देना है और ३१ मई की हमारी वापसी होगी । दिल्ली से चल कर हम २६ अप्रेल को पहुँचे एन्डरसन, साउथ केरोलाइना राजू के यहाँ । वहाँ राजू- रुचिका और मानसी- साक्षी के साथ १२-१३ दिन रहे और चल पडे अपने हमेशा के रूट पर । यानि पहले कुसुम ताई के घर और फिर सुहास के यहाँ । सुहास के यहां ६ दिन खूब मौज मस्ती की हमारे शादी की वर्षगांठ थी 12 को तो चायनीज रेस्तरॉँ मे खाना खाया । (विडियो)

सोला तारीख को हमारी उडान थी ५ बजकर 40 मिनिट पर, साउथ आफ्रीकन एयर वेज की । पूरे १७ घंटे की उडान थी एक घंटे का पडाव डकार, सेनेगल में था पर हमें उतरने की इजाज़त नही थी । साफ सफाई और इंधन लेने के लिये ही यहां रुकना था कुछ यात्री अवश्य उतरते और चढते हैं । हमारा गंतव्य था जोहान्सबर्ग जो प्रीटोरिया से एक घंटे की दूरी पर
है ।
हम घर से १२ बजे ही चल पडे सुहास के पडोसी जिम लवीन ने हमें एयरपोर्ट पर छोडा । सुहास के यहां ये अच्छी व्यवस्था है कहीं भी जाना हो जिम जी का ट्रक हाजिर है । ये ट्रक बडा वाला नही छोटा घरेलू ट्रक है पर हम लोगों का सामान और ६ व्यक्ती आराम से आ सकते हैं । इस बार प्रकाश और जयश्री हमारे साथ नही थे । किरण ( उनकी सबसे छोटी बेटी ) को मुंबई जाना था और वह मेडिकल के प्रथम वर्ष में यू एस में पढ रही है, फिर अगले चार साल तक मुंबई नही जा पायेगी इसी से वे लोग नही आये ।
हम चैक इन सिक्यूरिटी वगैरा सब कर करा के 2 बजे अपने गेट पर पहुँच गये । वहाँ पिझ्जा पास्ता का लंच किया । इस बार प्रकाश नही थे तो कोई पूरी भाजी वगैरा नही थी वरना नका हमेशा आग्रह रहता है कि जहां तक हो सके घर का खाना हो । तो हमारी यात्रा नियत समय पर आरंभ हुई । साउथ अफ्रीकन एयर लाइन का विमान अच्छा है सीटों के बीच थोडी ज्यादा जगह है इकोनोमी क्लास में भी । पर प्रवास बहुत लंबा था और मनोरंजन की व्यवस्था लचर । साउंड ठीक नही था, और टी वी स्क्रीन हमसे दूर टंगा था । खैर हम चार लोग थे तो बोरियत को कम तो कर ही लिया । आधा समय तो सोने में निकल गया बचा हुआ खाने पीने में बातें करने मे ।
सतरा घंटे प्रवास कर के हम पहुँचे जोहान्सबर्ग, 17 मई को शाम पाँच बजे । एडम, हमें लेने आ गया था । पहुँचते ही सबसे पहले रैंड लिये जो वहां की करंसी है । एक डॉलर सात रैंड के बराबर है पर बहुत से टैक्स काट कर हमें हजार डॉलर के ६८५८ रैंड मिले । एडम के साथ घर आये हमारे लिये उसने एक बडी गाडी किराये पर ले रखी थी । घर पर पहुँचे तो अंधेरा । भारत की याद गई । घर में सारे उपकरण बिजली के हैं तो खाना नही बन पाया था । तो हम सब गये नमस्कार रेस्टॉरेन्ट में खाना खाने और चाय भी तो पीनी थी । मसाला चाय तो बहुत ही बढिया थी और खाना भी अच्छा था । रेस्तरॉँ के मालिक गुजराती थे बडे मिलनसार । एडम तथा एमी को जानते भी थे तो बहुत सी बातें भी हुई । जब वापिस एडम के घर आये तो बिजली आ गई थी एडम ने हमें अपने अपने कमरे दिखाये । थके तो हम थे ही तो तुरंत ही निद्रा देवी के आधीन हो गये । (विडियो)

आज 18 तारीख थी मई क, एडम हमें प्रीटोरिया घुमाने वाला था । मेरी जब सात बजे आँख खुली तो बाकी सब लोग उठ कर चाय पी चुके थे । यू एस के हिसाब इस वक्त रात का डेढ बजा था । मैने चाय पी और बिस्किट खाया जिसे यहाँ और यूएस में भी कुकी कहते हैं । नाश्ते में एडम को पोहे खाने थे । हम खास यू एस से उसके लिये लेकर आये थे । तो सुहास नें पोहे बनाये, एमी ने ऑमलेट और चाय । मैने तथा बाकी लोगों ने तैयार होने और खाने का काम किया । साढे ग्यारह बजे हम लोग निकले प्रीटोरिया घूमने ।
सबसे पहले हम यूनियन बिल्डिंग देखने गये । ये यहाँ का राष्ट्रपती भवन है । यह भी उसी आर्किटेक्ट ने डिझाइन किया है जिसने हिंदुस्तान का राष्ट्रपती भवन किया है । क्यूं न हो दोनों के मालिक तो वही ते गोरे अंग्रेज़ साहब । इसके साथ ही एक सुंदर पार्क था और दोनों के बीच सडक के फुटपाथ पर ठेले टाइप दुकानें । मालाएं, इयर रिंग्ज और बहुत से शो पीस बिक रहे थे हमने भी की थोडी खरीदारी । रास्ते में हमने प्रीटोरिया यूनिवर्सिटी, इंडियन हाय कमिशन और दूसरे देशों के दूतावास देख सच मानो चाणक्यपुरी की याद आ गई ।
इसके बाद सौ साल पुराने एक कैफे में गये कैफे-रिचे नाम के । यह पूरे दक्षिण अफ्रीका का सबसे पुराना कैफे है । यहाँ कॉफी बोल में पेश की जाती है कप में नही । कॉफी बढिया थी । सैंडविचेज और मफिन्स भी खाये । यहाँ एडम ने हमें सावधान कर दिया था कि सडक पर कैमरा, पर्स आदि बाहर न निकालें, छिन सकता है । तो हमने कैफे में बैठ कर ही तस्वीरें खींची । (विडियो)

घर आये तो हमने खाना बनाया । एडम को भारतीय खाना खाना था और उसके एक दोस्त क्रिस जो भारतीय मूल के हैं पर यहीं पले बढे हैं अपनी दो बेटियों के साथ आने वाले थे । खाने से पहले एडम, सुहास और विजय को, थाइ मसाज करवाने ले गया । ऱात को क्रिस अपनी बेटियों के साथ आये उनके साथ खूब गप शप हुई । उन्होने ही हमें बताया कि कहा कहां जाना चाहिये । रात को जल्दी सोये सुबह जल्दी उठना था । कल हमें जाना था विक्टोरिया फॉल्स ।
(क्रमशः)

रविवार, 5 जून 2011

ग्रीष्म

जलता सूरज
गरम गरम धरती
रोटी की तरह दिन भर सिकती ।

घिसी चप्पल जलाती पांव
सूखे ठूँठ पर कौवों की काँव काँव।
पीपल के पत्ते भी स्तब्ध
हवा के डैने कैद बंद ।

सूखे होंठों को गीला करती जीभ
दूर तक पानी की नही कोई सींच ।
सूना पनघट, खाली गगरी
छांव से खाली आंगन, देहरी ।

पसीने की चिपचिपाहट
खीझ, झुंझलाहट, पॉवरकट ।
घूंघट के नीचे माथे पर पसीने
बच्चे नंगे अन-तराशे नगीने ।

पानी के लिये सब तरसे
कब आयें बादल और कब बरसे ।
गरमी है ये जेठ की गरमी
नही बरतेगी कोई नरमी ।