शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

घुमक्कडी-३



सुबह जल्दी ही नींद खुल गई । चाय पीने के बाद बालकनी में से ऑकलैन्ड की खूबसूरत सुबह का नजारा देखा बादलों को चीर कर धीरे धीरे बाहर आता सूरज जैसे लिहाफ में से निकल रहा हो । हमारे इस बालकनी में से सामने ही हार्बर का दृश्य नजर आता था । खूब सारी सेल-बोटस् । काफी गप्पें लगाईं शाम के खाने के लिये भी कुछ बना लिया फिर भी हम सुबह ८ -८:30 तक घर से निकल गये ।(विडिओ )

और युनिवर्सिटि से फ्री बस लेकर पहुंचे स्काय टॉवर के टूरिस्ट ऑफिस । आज हमारा प्रोग्राम था ऑकलैन्ड सही माने में देखने का, तो ३५-३५ डॉलर के टिकिट लिये और कंडक्टेड साइट सीइंग के लिये निकल पडे । पहला ही पडाव था स्काय टॉवर पर वहीं बस को वापिस आना था तो हमने सोचा क्यूं न पहले म्यूज़ियम देखा जाये । तो वहीं उतरे । म्यूज़ियम की इमारत ही बडी भव्य
थी । अंदर जाकर देखा ५ -५ डॉलर के टिकिट थे पर हम सब सीनियर सिटिझन थे तो हमें वही टिकिट ३-३ डॉलर में मिल गये । म्यूज़ियम में बहुत अचरज वाली चीजें देखी (जाहिर है, म्यूजियम में और क्या देखेंगे ?) । पहला सेक्शन तो दुनिया भर से इकठ्ठी की गई खूबसूरत चीजों का था । माइकेल एन्जेलो के शिल्प, चीन की पॉटरी, कई चीजें भारत से भी थीं और जापान से भी जिन्हे ये लोग साउथ पेसिफिक आर्टिफेक्टस कहते हैं । माओरी लोगों( यहाँ के मूल निवासी) की बनायी चीज़ें भी । (विडिओ देखें)
दूसरा सेक्शन यहाँ के लोकल लोगों (माओरी ) के इतिहास का था तथा उनकी संस्कृति ओर शिल्प भी प्रदर्शित किये गये थे । जब अंग्रेज यहाँ पर आये तो यहाँ माओरी लोग रहते थे । वे पॉलिनेशियन मूल के थे ओर हवाई के लोगों की तरह ही फिजी से यहाँ आकर बस गये थे । माओरी लोग काफी शूर-वीर और लडाके थे । अंग्रेज़ों को उन्होने काफी टक्कर दी परंतु अंग्रेज़ अपनी टेक्नॉलॉजी की वजह से उन पर भारी पडे और अंत में न्यूज़ीलैन्ड उनका हो गया पर फिर भी पॉलिनेशियन मूल के लोग आज न्यूज़ीलैन्ड में काफी संख्या में से दिखते हैं । भारतीय भी काफी हैं ।
इस विभाग में हमने देखीं लकडी की तरह तरह की मानवीय आकृतियां घर, दरवाजे, नावें, औजार और सब उकेरे हुए शिल्प।
फिर पशु-पक्षी और पौधों का सेक्शन था । यहाँ हमने तरह तरह के पक्षी देखे । एमू और किवी यहाँ के प्रसिध्द पक्षी है । यह न उडने वाले पक्षी है । एमू आकार में बहुत बडा है और अब संख्या में कम हो गये हैं । यहां उस समय में इन्हीं की बहुतायात थी जब अन्न बहुत उपलब्ध था और न ही कोई बडे दुष्मन ही, इसीसे उडने की जरूरत ही नही थी । इससे इनके पंखों की क्षमता जाती रही और आकार बडा हो गया । किवि इसके मुकावले आकार प्रकार मेंछोटा है, और भी बहुतसे पक्षी थे । अलबेट्रॉस तथा सी-गल्स और छोटी बडी अलग लग तरह की बहुत सी चिडियाँ । (विडिओ )

आखरी में था ज्वालामुखी सेक्शन । ऑकलैन्ड में रंगीटोटो नामक ज्वालामुखी है जो अस्सी साल पहले जागृत हुआ था कई लोग उसकी चपेट में आ गये थे और जानवर भी । इसकी एक पूरी फिल्म देखी जहां ज्वाला मुखी के विस्फोट के समय हमारी कुर्सियों के नीचे की भी जमीन हिलती है तो उससे काफी कुछ वास्तविक सा लगता है । रंगीटोटो पर्वत हमारे अपार्मेन्ट के बालकनी से भी दिखता था । इसी सेक्शन में लावा से पेट्रिफाइड एक आदमी भी रखा था । एक हाथी भी । न्यूजीलैन्ड पहले भारत और ऑस्ट्रेलिया से जुडा हुआ था । इसीसे यहाँ के कुछ पोधे और पशु भारत जैसे हैं हाथी,चीता,शेर,हिप्पो और बहुत से प्रायमेट्स, बाद में अलगाव की वज़ह से इनमें काफी परिवर्तन आगया । म्यूजिंयम के अंदर ही स्वागत कक्ष के पास एक सुंदर सा रेस्तराँ भी है । फिर बाहर आकर हम ने अपनी एक्प्लोरर बस पकडी, हमारा अगला पडाव था स्काय टॉवर ।
स्काय-टॉवर दुनिया के सबसे ऊँचे टावरों में से एक है । इसे ऑकलैन्ड टॉवर भी कहते हैं । इसकी ऊँचाई आयफेल टॉवर से भी ज्यादा है ३०९ मीटर (यहाँ किसने देखा है आइफेल टॉवर !)। यहाँ मीटर ओर किलो ही चलते हैं अमेरिका की तरह मील ओर पाउंड नही । यहाँ नीचे एक खूबसूरत होटल भी है स्काय सिटी । इसका परिसर बहुत ही खूबसूरत है, और ऊपर से नीचे के नजारे का तो कहना ही क्या ? (विडिओ देखें)

तो हमने यहाँ २८ -२८ डॉलर के टिकिट खरीदे और लिफ्ट से ऊपर गये । इतनी उँचाई से सारा ऑकलैन्ड शहर बेहद खूबसूरत दिखा । खूब तसवीरें खींची और एक चक्कर लगाया । गैलरी के फ्लोर के कुछ हिस्से कांच के बने थे तो वहाँ से नीचे देखने में थोडा थोडा डर भी लगा । वहाँ से स्काय डायविंग भी कुछ लोग कर रहे थो तो उसकी तसवीरें खींची । उन्हें देख कर ही थ्रिल महसूस हो रही थी । खुद तो करने की हिम्मत थी नही तो देख कर ही खुश हो गये । फिर नीचे आये वहां नीचे के स्टोर से कुछ पिक्चर पोस्टकार्ड खरीदे । और तुरंत ही पते लिख कर पोस्ट भी कर दिये सबने अपने अपने नाती-नातिनों, पोते पोतियों को । फिर थकान हो रही थी तो एक टैक्सी पकडी और मकाम पर वापिस । इस ट्रिप पर हम खूब एहतियात बरत रहे थे दुनिया भर में एच१ एन १ कै हौवा फैला हुआ था तो बाहर सिर्फ गरम चाय या कॉफी ही पीना खाना घर पर ही कुछ बना लेना आदि । तो सुबह ही कुछ बना कर रख लेते और शाम को माइक्रोवेव में गरम करके खाते । इससे सेहत के साथ साथ बचत भी तो हो रही थी । इसीसे चुपचाप टैक्सी ली और मकाम पर । फ्री बस लेते तो युनिवर्सिटी से तो आगे पैदल ही जाना पडता ।
रास्ते इस तरह ऊँचे नीचे हैं कि सैनफ्रानसिस्को का क्रुकेड स्ट्रीट याद आ गया । और हम सब तो ठहरे आर्थ्राइटिस वाले या सीनीयर सिटीझन, तो टैक्सी में जाने में ही खैर थी । शाम को खाना खाने के बाद दिन भर की शूटिंग कैमरे से टीवी पर देखी और गपशप हँसी मज़ाक कर के सो गये । यहाँ नींद बहुत जल्दी आती थी, “खा के गिलौरी शाम से ऊँघे वाला हाल था” । और खुलती भी बहुत जल्दी थी ।
(क्रमश:)

सोमवार, 24 अगस्त 2009

घुमक्कडी-2


हवाई सफर
आज 17 जुलै हम सब सुबह चार बजे से ही उठ गये थे । उडान तो 2:56 की है पर तीन घंटे पहले चैक-इन करना होगा और हवाई अड्डे पहुंचने के लिये एक घंटा । हमेशा की तरह हमें एयरपोर्ट छोडने सुहास के पडोसी जिम और उनके दामाद स्टीव आये थे । हम अपने सामान से लैस होकर दो गाडियों में बैठ कर वॉशिंगटन डी सी के डलास एयरपोर्ट पर पहुँच गये । टिकिट तो पहले से ही इंटरनेट पर खरीद लिये थे । जैसे ही हम UNITED के चेक-इन काउंटर पर पहुँचे सुहास जो कि हमारी ग्रूप लीडर है ने सबके टिकिट और पासपोर्ट लिये और चैक-इन कराने पहुँची । बहुत देर हो गई पर हमारा सामान जाने के कोई आसार ही नही दिख रहे थे । पता चला कि काउंटर के कंप्यूटर पर हमारे टिकिटों के नंबर ही नही मैच हो रहे थे, (विडिओ देखें)


”प्रथम ग्रासे मक्षिका पात्” । फिर सुहास लाइन से बाहर निकली और उसने बुकिंग एजेन्ट को फोन मिलाया । बहुत देर तक बातें होती रही और हम इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार करते रहे । इसी बीच मैने तो फोन भी कर लिये दो तीन लोगों को । सबने अलग अलग कियॉस्क पर जाकर ऑटो चैक-इन कराने की भी कोशिश की पर सब व्यर्थ। फिर सुहास फोन पर मिली जानकारी लेकर जल्दी से काउंटर पर आईं और इधर चैक-इन क्लर्क को भी हमारे नंबर मिल गये । सबकी अटकी हुई सांसे खुल गईं और हमने सिक्यूरिटी चैक के लिये प्रस्थान किया ।
ठीक 2 बज कर 50 मिनिट पर हमारी उडान जानी थी पर एक डेढ करते करते पूरे तीन घंटे बाद फ्लाइट ने उडान भरी । हमें सीटें भी क्या मिलीं थीं छे के छे लोग छै अलग अलग सीटों पर और मेरी सीट तो दो मोटे गोरों के बीच मैने सुरेश से कहा मै तो यहाँ नही बैठूंगी और उनसे सीट बदल ली तो जयश्री और मै थोडे से पास पास यानि आगे पीछे बैठ गये । अब हमे चिंता हो रही थी कि लॉस-एन्जेलिस से हमे अगली फ्लाइट मिलती है या नही । वैसे दोनो उडानों के बीच 3 घंटे का अंतराल था पर छह, 60 से 75 के बीच के, बूढों का सवाल था और इंटरनेशनल चैकिंग के लिये 3 घंटे पहले पहुँचना आवश्यक था । पर हमारी प्रार्थनाएँ काम आईं और थोडी भागदौड के बाद हमें हमारी न्यूझीलैंड एयर की उडान ठीक से मिल गई और सीटें भी ठीक ठाक मिलीं । पूरे बारह घंटे की सीधी उडान थी ऑकलेन्ड तक की । सब इतमीनान से बैठ गये और खाना खाकर जो सोये तो बस उठने के 3-4 घंटे बाद ही हम ऑकलेन्ड के हवाई अड्डे पर उतर गये । सुंदर चमचमाता एयरपोर्ट देख कर तबियत खुश हो गई ।

हमारे पास कुछ पैक किया हुआ खाने पीने का सामान था जो हमने फॉर्म में सही सही बता दिया था ।
पर फिर भी जब मेरा बैक पैक एक्स रे मशीन से निकला तो बंदे ने मुझे रोक लिया । वॉट इज इन द बैग । मैने कहा दवाएँ और चॉकलेट फिर सब खोला तो एक गोल अंटे की तरह की गोली निकली जो उडान पर मिली थी । फिर उसने कहा कितनी गोलियाँ हैं मैने कहा बस यही । फिर भी वह नही माना कहने लगा फाइव ऑर सिक्स, तो मैने पूरा बैग उलट दिया और एक चॉकलेट का पैकेट निकला जिसमें गोल गोल फूल की तरह चॉकलेट थीं तब जाकर कहीं उसे संतोष हुआ । बाहर निकले तो हमें टैक्सी लेने आने वाली थी पर कोई नही दिखा । फिर से फोन मिलाये गये । आखिरकार पूरा एक घंटा इंतज़ार करने के बाद एक अलग ही टैक्सी लेकर हम क्वेस्ट ऑन सिन्ट्रा लेन नामक अपार्टमेन्ट बिल्डिंग पहुँचे जहाँ हमे रहना था । बाद में पता चला कि सुहासजी ने उस टैक्सी वाले को हमारे पहुंचने की तारीख ही 2 दिन पहले की बताई थी (17 जुलै )। असल में न्यूज़ीलैन्ड यू एस से 14 घंटे आगे है और सुहास जी के दिमाग में हमारे चलने की तारीख 17 जुलै ही फंसी हुई थी, पर ठीक है अंत भला तो सब भला।
यह बिल्डिंग एकदम पहाडी के ऊपर हो ऐसी थी । पूरा का पूरा ऑकलेन्ड ही पहाड काट कर बनाया सा लगता है । खूब ऊँचे नीचे रास्ते हैं । हम जैसे सीनीयर्स की तो खासी परेड थी । हम तो घूम घाम कर वापसी पर टैक्सी से आते थे ताकि पहाड़ न चढना पडे, पर है बहुत खूबसूरत । हमारा अपार्टमेन्ट भी सुंदर था दो बेड रूम और एक लिविंग रूम कम किचन । पहुंचते ही हमने सामान तो रखा ऑफिस में क्यूंकि अपार्टमेन्ट तैयार नही था सफाई हो रही थी और निकल पडे ऑकलैन्ड की सैर करने । भूख लगी थी उतरते ही एक स्टार-बक कॉफी दिखा तो घुस गये ।(विडिओ देखें)


खाली हम ही थे तो बडी खातिरदारी हुई तो हमने कॉफी और क्रूसाँ खाये वहीं हमें पता चला कि हम मुफ्त बस में शहर का एक चक्कर लगा सकते हैं । हम यूनिवर्सिटी के इलाके में थे शायद इसी वज़ह से । तो यूनिवर्सिटि बस स्टैन्ड पर पहुँचे पता चला हर दस मिनिट पर बस जाती है । तो बस थोडे से इंतज़ार के बाद ही बस मिल गई और हम बडी उत्सुकता के साथ ऑकलैन्ड के लैन्डमार्कस देखने में व्यस्त हो गये । स्काय टॉवर, म्यूजियम, हार्बर और खूबसूरत शहर । वापसी तक हमारा अपार्टमेन्ट भी तैयार था । दो बैड रूम हमने ऐसा तय किया था एक लिविंग रूम कम किचन ओर एक बालकनी जहां से हार्बर का खूबसूरत नज़ारा दिखता था ।
ऑकलैंन्ड दो खूबसूरत हार्बरस् के बीच स्थित है वैटिमाटा और मानाकाऊ, ये माओरी नाम हैं । यहां के निवासियों और टूरिस्ट की सुविधा के लिये यहां खूबसूरत व्हाइनयार्डस्, बीचेज़ तथा रंगीटोटो द्वीप और पहाड़ीयाँ हैं । और भी कई आकर्षण हैं जिनके बारे में आगे बतायेंगे ही ।
तो घर आकर खाना खाया – सब्जी बनाई, रोटी तो बनी बनाई मिल गई । फिर लंबी तान कर सो गये । तकरीबन २०-२१ घंटे का सफर हो गया था । ५ घंटे का एल ए तक और तीन घंटे इंतजार तथा १२ घंटे का एल ए से ऑकलैन्ड तक का सफर ओर यहां आते ही फिर घूमना ग्रोसरी खरीदना वगैरा ।
लेकिन ताज्जुब की बात थी कि यहाँ सुबह चार बजे तक ही नींद खुल जाती । कुछ दिग्गज़ तो 3 बजे से ही जग जाते । (क्रमश:)

बुधवार, 19 अगस्त 2009

घुमक्कडी-१


पिछले तीन चार सालों से सुहास की बदौलत हमारा कहीं न कहीं घूमना अक्सर तय रहता है। सुहास ही दिसंबर से सब प्लान कर लेतीं हैं। होटल या अपार्टमेन्ट,टिकिटस् सब तैयार होता है । और तो और बच्चों से बात करके हमारा कॉन्ट्रिब्यूशन भी वह उनसे ले चुकी होतीं हैं । हमारे लिये सिर्फ घूमना और उसका आनंद उठाना ही रह जाता है जो बहुत ही आसान है ।
हर साल की तरह हमारा छह लोगों का घूमने का प्रोग्राम 1जुलै को शुरू हो गया है । मैं, सुरेश,प्रकाश,जयश्री सुहास और विजय सब के सब साठ से ऊपर । इस बार प्रोग्राम न्यूजिलैन्ड तथा ऑस्ट्रेलिया का है पर शुरू तो सुहास तथा कुसुम ताई के घर कुछ दिन बिताने के बाद ही हुआ इस बार 4 जुलै को हम कुसुम ताई के यहाँ थे ब्लैक्सबर्ग में वहाँ पर आतिशबाजी देखना बहुत ही आसान था घर के पिछवाडे में ही पडौसियों के साथ फोल्डिंग कुर्सियाँ चादर वगैरा लगा कर आराम से देख पाये आप भी आनंद लें (विडिओ देखें)

। 6 तारीख को प्रकाश और जयश्री भी सुहास के साथ आये हमने दाल बाटी और भुनी सब्जियों का कार्यक्रम बनाया, भारतीय लोगों की यही खासियत है कि उनके कार्यक्रमों में खानापीना हमेशा सेन्ट्रल रहता है । और हाँ जैसे कि हम सब के इकठ्ठा होने पर तय है, सत्यनारायण जी की पूजा और कथा भी हुई ।
हमारा प्रोग्राम यू एस में कोलंबस का भी था । हमारे भांजे भतीजियों में इस साल उल्का का निमंत्रण था । उल्का कोलम्बस (ओहायो ) मे रहती है और हॉन्डा में इन्डस्ट्रियल इंजीनियर है । तो आजकल उसके यहाँ हैं । उसके पतिदेव जिम विल्सन घर बनाते हैं और एंटीक चीजों के बहुत शौकीन हैं । अपने घर में बहुत सी चीजें उन्होने ही बनाई हैं । मसलन डेक, स्क्रीन रूम, बेसमेन्ट आदि । आज उल्का का जन्म दिन है । हम सब को संकट चौथ का उपवास है इसीलिये शाम को उडीपी में जाने का प्रोग्राम है । उल्का के दो प्यारे से बच्चे हैं अलेक्झेंडर और तारा । दिन में सब ने उपवास में चलने वाली साबूदाने की खिचडी खाई । खाना पीना होने के बाद दोपहर में जब हम मूवी देख रहे थे और उल्का अपने कमरे में चली गई तो उसकी दस साल की बेटी तारा किचन में खटर पटर कर रही थी । पता चला माँ के लिये केक बनाया जा रहा है । पूछा कुछ मदद चाहिये, तो बोली नही मै कर लूंगी मुझे आता है । छोटी सी बच्ची का माँ के लिये प्यार देख कर बहुत अच्छा लगा, और ताज्जुब हुआ उसका आत्मविश्वास देख कर । शाम को उडीपी में जा कर सब लोगों ने दक्षिण भारतीय खाने का मज़ा लिया । घर आने के बाद तारा का बनाया केक उल्का ने काटा और सबने केक खाया (विडिओ देखें)

दूसरे दिन उल्काने जापानी खाना बनाया नूडल्स तथा किमपाप । किमपाप एक सुशी की तरह का ही व्यंजन है इसमे जापानी स्टिकी राइस में काले तिल मिलाकर उसे खूब नरम कर लेते हैं और फिर उसे एक छोटी सी चटाई पर समुद्री काई नीचे रख कर उसपर फैला देते हैं और उसके अंदर मछली या फिर गाजर, ककडी या उबले अंडे भर कर रोल बनाते हैं और इस रोल के छोटे छोटे स्लाइस बनाकर पेश किया जाता है तथा सोय सॉस के साथ खाते हैं । (विडिओ देखें)

शाम को हमने उल्का के लिये तीन चार सब्जियां बन। दी और उसने उन्हे छोटे छोटे डिब्बों में पैक कर के फ्रीज़ कर दिया कि जब उसका मन हो वह खा सके क्यूं कि उसके पति जिम तो अमेरिकन खाना ही खाते हैं और बच्चे भी । तारा को कभी कभी भारतीय खाना पसंद है ।
इसके पहले जिम ने हमें अपना एंटीक कलेक्शन दिखाया जो उन्होनें जापान से लाया था । जापानी बक्से, लेखन का दराजों वाला टेबल और किमोनो के बक्से तथा एक खूबसूरत स्क्रीन । हर चीज का इतिहास तथा समय की भी जानकारी दी । (विडिओ देखें)

कल हमें वापिस जाना है मार्टिन्सबर्ग, तो शाम को पिज्झा का डिनर था ।
दूसरे दिन सुबह निकले और छह –सात घंटे की ड्राइव के बाद पहुंचे मार्टिन्स बर्ग । कल शाम खिचडी खाई । आज सुबह नान और आलू टमाटर का साग तथा शाम को पावभाजी का प्रोग्राम था । दो दिन में तैयारी करके हमें अपने ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलेन्ड टूर पर निकलना है वॉशिंगटन से लॉस एन्जेलिस
और फिर ऑकलेन्ड । कल निकलना है । फ्लाइट 2 : 56 पर है । आज फाइनल पैकिंग करना है । रातको सैंडविचेज़ भी बनाकर रखना है ताकि सुबह सिर्फ खाने का काम बाकी रहे ।
(क्रमश:)

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

सलाम


उन वीरों को सलाम,
रणधीरों को सलाम,
देशभक्तों को सलाम,
शहीदों को सलाम ।

सलाम हिमालय को
और गंगा को सलाम
थार के मरुथल को
हरेभरे खेतों को सलाम ।

इस हिंद देश के
निवासियों सलाम
बाहर गये देश के
प्रवासियों सलाम ।

सलाम ज्ञानियों को
विज्ञानियों सलाम
देश के भविष्य
नौ-जवानों को सलाम

आजादी को सलाम
करना, रह के सावधान
भीतर बाहर दुष्मनों को
करना है नाकाम ।

भारत मां को सलाम
जन्मभूमि को सलाम
तेरे मेरे, सबके
कर्मभूमि को सलाम

सलाम सलाम सलाम
सलाम सलाम सलाम ।

सोमवार, 10 अगस्त 2009

इतिहास की बातों को

ऊँचा कद देख किसी का, न तुम जलो
अपनी अपनी औकात है, मान के चलो ।
इतिहास की बातों को इतिहास में रखो
वर्तमान में ही करके कुछ, दिखायें चलो ।
बीती सो बात गई, अब उस पे क्या रोना
एक राह नयी मिल के सब बना लें चलो ।
कहने वाले तो कुछ कह के रहेंगे
तुम उनकी बात को, अनसुना कर चलो ।
सरकार को निकम्मा कह कह के थक गये
अब अपनी गिरेबान ज़रा झाँक कर चलो ।
जबाँ चलाने के लिये लगता नही ज़ोर
मेहनत के लिये हो गर तैयार, तो चलो ।
एक ठान ली है जब, तो उसी राह पर बढो
बाधायें तो आयेंगी, पर पार कर चलो ।
ऐसे दिन की फिर सुहानी ही होगी रात
आयेगी सुख की नींद ये बात मान लो ।

शनिवार, 1 अगस्त 2009

माँ की खबर

चलना है चलते ही जाना है दस कोस
मां की खबर मिली है,
किसी किसी गांव से होकर
उस तक पहुँची है आज ।
भीमा कहता है, छोटे को
लेकर चली जा तू, मैं देख लूंगा बच्चों को
माँ की हालत कहीं ज्यादा न बिगड़ गई हो ।
चल रही है वह टूटी फूटी आधी अधूरी खबर के सहारे
गाँव, खेत, जंगल पार करती । सोचती है कब मिली थी आखरी ।
अचानक एक गांव में झुग्गियाँ नजर आती हैं उसके अपने लोगों की
यहीं होगा शायद भाई का झोंपडा ।
पूछती पूछती अचानक पहुँचती है एक उखडे पाल के पास
कुछ पहचान की निशानियाँ देख कलेजा धक से रह जाता है
फूट फूट के रो पडती है, कैसे चली गई री , मेरी बाट नही जोही ।
आँखों से आंसू की नदी बह निकलती है ।
पता चलता है पिछले बुध को ही चली गई माँ,
भाई भी पाल उखाड कर चला गया ।
हताश, बच्चे को छाती से चिपकाये
चलने लगती है सावरी, उलटी दिशा में पांव खींचते हुए ।

और मै सोचती हूँ कि जब मेरे माँ के जाने की खबर आई थी
तो दूरी से विवश मैं, न जा सकी न आँसू ही बहा सकी,
पैसे की गरमी से सूख जो गये थे ।