बुधवार, 30 दिसंबर 2009
नव वर्ष की शुभ कामनाएँ !
रात्रि के घने तिमिर से जब प्रभात का नया सूरज फैलायेगा अपनी किरणें इस दुनिया पर तो क्या सचमुच सब कुछ नया नया होगा ? क्या पुराने दुख सुख में बदल जायेंगे, क्या भ्रष्टाचार के मकड जाल से मिलेगी हमें मुक्ती ? क्या नारी का योग्य सम्मान उसे मिलेगा ? क्या बालश्रम खत्म होगा, क्या कुछ और ज्यादा बच्चे जा पायेंगे स्कूल ? क्या सुधरेंगे राजनीतिज्ञ (!), सत्ताधारी ? क्या दरिंदों को सजा मिलेगी ? क्या न्याय मिलेगा जनता को आसानी से या कि हमेशा की तरह इतनी देर से कि वह अंधेर ही साबित हो । क्या जागेगा राष्ट्रप्रेम ? क्या राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन में भारत साबित कर पायेगा अपनी क्षमता ? क्या हम सब यानि आम आदमी कर पायेगा निश्चय कि वह अपने स्तर पे नही देगा भ्रष्टाचार को बढावा । हर एक अपने स्तर पर रहेगा अडिग नही होने देगा अन्याय बच्चे पर, कमजोर पर, नारी पर ।
कुछ कुछ आशा बंध तो रही है । समाचार माध्यम कुछ जिम्मेदार नजर आ तो रहे हैं । हम सब नये साल के अवसर पर ये प्रतिज्ञा तो कर ही सकते हैं कि हम अपने अंदर का एक दुर्गुण हटायेंगे और दो अच्छे गुणों को अपनायेंगे । फिर शायद गुजरे साल से ये नया साल बेहतर हो ।
नव वर्ष शुभ हो, मंगल हो ।
आओ,
हम खोलें एक नया पन्ना
उसमें लिखें नई इबारत
अपने यश की उत्कर्ष की
सीख लें अपनी भूलों से
गलती न करे उन्हें दोहराने की
तभी होगी आवभगत सफल
नये वर्ष की ।
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
गम ना कर
कैसा ये धोखा हमारे साथ हुआ
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।
जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।
सुकून से तो जीते थे
चाहे रोटी कम थी
अब जान का दुष्मन हर निवाला हुआ ।
भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।
अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।
जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।
सुकून से तो जीते थे
चाहे रोटी कम थी
अब जान का दुष्मन हर निवाला हुआ ।
भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।
अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
अपना घर तो अपना घर है
छह महीनों के बाद दिल्ली आ गये अपने घर, तभी तो फिलहाल लिखना पढना बन्द सा है । घर की सफाई, सामान लाना- क्यूंकि जाते हुए तो सब खाली कर के जाते हैं । इस बार ये ज्यादा महसूस हो रहा है क्यूंकि आरथ्राइटिस जोरों पर है । और कीमतें 6 महीनों में डेढ गुनी हो चुकी हैं । पर फिर भी यहां आकर बडा सुकून महसूस होता है । अपना घर और अपना देश – बात ही कुछ और होती है । राजू तो कहता भी है “वहाँ क्या आपका सिंहासन रख्खा है “ , तो मै कह भी देती हूं,” हां बेटा सिंहासन ही है समझो “।
घर तो मीनाजी ने थोडा बहुत साफ करवा रखा था । आते ही पता चला कि नल में एक बूंद भी पानी नही है, सब नल सूखे । हम एयरपोर्ट से आते हुए दो बोतल पानी ले आये थे और दो बोतल मीनाजी ने रख दिया था, तो काम चल गया । पर नाना तरह के सवाल मन में, कहीं मोटर तो खराब नही हुई या फिर टंकी तो नही क्रेक हुई पर दूसरे दिन पानी भी आया और पता चल गया कि सब ठीक है वह तो गाडी धोने वालों की कृपा से सारा पानी सायफन हो गया था । तो सारा कुछ सामान्य होते होते हफ्ता दस दिन लग ही जाते हैं । और रात दिन का फर्क- सारी (आधी ) दुनिया सोती है तब हम जगे होते हैं -अल्लाह सोये तो खुदा जागे वाली बात । पर वह भी ठीक हो ही गया ।
कुछ दिन से सुबह सुबह रामदेव बाबा जी के साथ प्राणायाम कर रहे हैं । आज सोचे कि कुछ तो लिखा जाय और कुछ नही तो आप बीती ही सही । यहाँ की सब्जी में चाहे वह कैसी (जहरीली !) ही हो गज़ब का स्वाद है जो वहां की ओवर साइज्ड सब्जियों में कभी आ ही नही सकता । मलाई वाला दूध, खुशबूदार घी आ.SSSSSSSSSSSSSहा । तो अभी तो आनंद उठा रहे हैं जब मुश्किलें सामने आयेंगी तो वह भी झेल लेंगे ।
सोचते हैं हमारे वापिस जाते जाते मेट्रो भी शुरू हो जायेगी गुडगांव वाली भी, तो आसान हो जायेगी जिंदगी थोडी । धूल तो हवा में हमेशा ही रहेगी और नाक, आंख, मुह, कान में जाती रहेगी पर अपने देश की मिट्टी है, अपनी है तो प्यारी है । पार्क में घूमने जाते हैं तो अमीरों के बिगडैल बच्चों द्वारा फेंकी गई पानी की जूस की बोतलें प्लास्टिक के रैपर्स, कागज, थैलियां फिकीं मिलती हैं, बावजूद इसके कि जगह जगह कूडे दान लगे हैं कुछ मेहेरबानी महरियों की और उनके बच्चों की भी होती है कूडा बढाने में । कुछ पशु-पक्षी प्रेमी अपने घर का बासी खाना पार्क के प्रंवेश द्वार पर फेंक रखेंगे कि कोई गाय कौवा चिडिया खा ले अपने कोर्ट यार्ड उन्हे इसके लिये उपयुक्त नही लगते । पर अपने लोग हैं नादान हैं तो क्या ।
और इस बार तो हमने पैसे बचाने के लिये अपना फोन भी होल्ड पर करवाया था और ब्रॉडबैन्ड इंटरनेट भी । आते साथ ही इन्होने चाणक्यपुरी का चक्कर लगाया और फोन का होल्ड खुलवा दिया फोन तो तुरंत चालू हो गया, पर ब्रॉड बैन्ड क्या और नैरो बैन्ड क्या इंटरनेट नही आ रहा । रोज फोन कर रहे हैं एम टी एन एल के ऑफिस में पर इंटर नेट नही आ रहा । मजे की बात ये है कि उनकी तरफ से भी रोज फोन जाता है, “आ गया जी” । “अजी कहां आया” कहा कि उधर से फोन बंद । कभी कभी वे फोन के लिये भी पूछ लेते हैं, “फोन सही चल रहा है जी आपका “, “हां वह तो चल रहा है पर इंटरनेट..” इतना सुनते ही बंदा फोन काट देता । करीब 15 दिन से ये ही कहानी है हार कर इन्होने एयरटेल का कनेक्शन ले लिया । एक बार एक बंदा आ कर आधा घंटा खटपट कर के फोन पर फोन करके इंस्ट्रक्शन्स लेके कंप्यूटर से जूझता रहा पर नतीजा वही- नो लक । मैने कहा कि,” एम.टी.एन.एल. बंद कर देते हैं” । सुनते ही ये बोले, “पागल हो गई हो, पता चला फोन भी कट गया, सालों से लोगों के पास हमारा जो नंबर है वह लगेगा ही नही । इन का कुछ ठीक नही है ये कुछ भी कर सकते हैं” । तो अभी तक हम इंतजार में हैं कि शायद कभी हमारी किस्मत खुले और ये ब्रॉडबैन्ड काम करने लगे । पर एयरटेल की मेहरबानी से आप से मेल मुलाकात का रास्ता तो खुल ही गया है ।
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