रविवार, 30 नवंबर 2008

सिंह हो तो


सिंह हो तो उठो गर्जना करो
और सियार हो, तो कुछ कहना नही है ।
दुष्मन के वार पर पलट वार तो करो
गर कायर हो, तो कुछ करना नही है ।

अपनी संख्या पर गर नाज़ है तुम्हें
उस नाज़ जैसा कुछ तो कर गुजरो
वरना तो कीडे भी जन्मते हैं करोडों
मरना है जो कीडों सा, कुछ कहना नही है ।

जिनके बाजू मे है ताकत और हिम्मत
एक बार जोश से उनकी जयकार तो करो
भरलो स्वयं में उनका ये जज्बा जोश का
कमजोर ही रहना है, तो कुछ कहना नही है ।

घर और पाठशाला बने केंद्र नीति का
राष्ट्र प्रेम से बच्चों को कर दो ओत प्रोत
हर बच्चा बनें एक आदर्श सैनिक भी
सिखाओ ये पाठ कभी डरना नही है ।

समय पडे तो खुद ललकारो दुश्मन को
एक दिन तो हम सबको मरना यहीं है
डिस्को नही, हमको है तांडव की जरूरत
वरना हम जैसों की फिर सजा यही है ।

आज का विचार
मान सम्मान किसी के देने से नही मिलते अपनी अपनी योग्यता के अनुसार मिलते हैं ।

स्वास्थ्य सुझाव

नियमीत व्यायाम करें,
बलशाली बनें ।

शनिवार, 22 नवंबर 2008

श्रध्दांजली


जैसे ही दिल्ली पहुँचे खबर मिली कि अण्णा की तबियत बहुत ज्यादा खराब है .
तुरत फुरत टिकिट कटवाकर जबलपूर गये । नलियाँ लगाकर बिस्तर पर लेटे भाई
को देखा तो दिल कचोट सा गया । पर उन्होंने सब को पहचान लिया ।
इतनी तकलीफ के बावजूद उनका पहेलियीँ बुझाने का स्वभाव वैसा ही था । शाम को
हम दोबारा मिलने अस्पताल गये तो मुझे और मिलिंद को देखकर एक सरगम गुनगुनाये
और कहा बताओ कौनसा राग है .। मैने कहा,” क्या अण्णा तुम भी किसे पूछ रहे हो “ तो
थोडा हँस कर चुप हो गये । उसी दिन उनके एक दोस्त मिलने आये और मजाक करने
लगे,” काले साब समोसा ले आऊँ” तो कहा ,”अरे तुम ले तो आओगे पर ये लोग मुझे खाने
नही देंगे, चुपके से ले आना बाद में” । उसके बाद तो ताकत जैसे हर दिन कम ही होती गई ।
और बोलना भी कम कम होकर सिर्फ दर्द के बारे में बात करने तक ही सीमित हो गया और
१९ नवंबर को सुबह साढेपांच बजे उन्हे इस पीडा से मुक्ति मिल गई । अण्णा और मै साथ साथ बडे हुए थे । खेलना लडाई झगडा क़ॉलेज जाना सब एक साथ आँखों के सामने से सरक गया । दूसरे दिन जबलपूर के अखबार में उनके लिये श्रध्दांजली छपी वही यहाँ दे रही हूं । और कुछ तो लिखा नही जा रहा ।

इसे दो बार क्लिक कर के पढें ।

रविवार, 2 नवंबर 2008

कभी तो चले आओ


कभी तो चले आओ मेहमान बन कर
और पूछो मेरा नाम अनजान बनकर ।

हमें हक्का बक्का कर दो तुम इतना
हम ना समझ पाये अचरज हो कितना
देखें कभी तुम को या फैले घर को
या चीजें सम्हालें परेशान बनकर । कभी तो......

कहें बैठने को या पानी पिलायें
चाय को पूछें या पंखा चलायें
न सूझे जो कुछ तो शरबत ले आयें
या खुद ही खडे हों गुलदान बनकर । कभी तो..

तुम्हारे ही चेहरे को पढते रहें हम
देखो जो तुम, तो नजरें चुरायें
या फिर ये सोचें झुका कर के पलकें
कि क्यूँ आये हो दिल का अरमान बनकर । कभी तो ...

तुम कुछ जो पूछो तो हम कैसे समझे
खयालों में जब हों अपने ही उलझे
तुम ही हमें फिर बता देना हँस के
कि क्या काम था और आये हो क्यूं कर । कभी तो.....

आज का विचार

याद रहे कि आप बहुत खास है और आपकी भूमिका आपके अलावा और कोई नही निभा सकता ।

स्वास्थ्य सुझाव

रक्त में लोह की मात्रा बढाने के लिये खायें
३ बादाम
३ खूबानी
३ खजूर
३ अंजीर
१५ मुनक्का
सबको मिला कर रोज नाश्ते में खायें ।
२ महीनें करें ।