मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

मौसम



हवा में नमी है थोडी और हलकी सी गरमाहट
शिशिर विदाई ले रहा, और वसंत की है आहट ।

कहीं खिल रहे हैं पलाश और फूल उठे हैं कहीं सेमल,
नये नये फूलों की खुशबू भीनी भीनी और कोमल ।

कोयल की कूक कभी कभी अब गूंजती है अमराई में,
रंग छलकने ही वाले हैं राधा की अंगनाई में ।

मन रंगीला तन रंगीला कैसी ये तरुणाई है
इसके चलते वृध्दों नें भी जोश की बीन बजाई है ।

धरती की धानी चुनरिया सज गई पीले बूटों से
सरसों के लहराते खेत ये, सोना बिखरा हो जैसे ।

हवा बसंती चली बजाती, रुनझुन कानो में पायल,
कौन है ऐसा जो न हुआ हो इस मधुवंशी का कायल ।

यह मौसम थोडे दिन का है, इसको हम भरपूर जिये
फिर न गरमियों से तंग होंगे इन यादों में जो खोयें ।

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

आज मै तुमसे मिलूंगी



आज मै तुमसे मिलूंगी प्यार की ऊंचाइयों पर
भावों की नापूंगी मै गहराइयां
और छू लूंगी वे सारे रंग छाये आसमां पर ।

झरने जैसी बहती मेरे हंसी की वह खिलखिलाहट
मेरे होने की अजब परछाइयाँ
बांध लूंगी मै तुम्हे फिर आज बाहों के बिना पर ।

रात से गहरे हैं मेरे बादलों से उडते गेसू
इनमें ही बसती हैं कुछ पुरवाइयां
खुशबूओं से तर हुआ है आज मेरा मन, मनेतर ।

सुबह की लाली है छायी आज मेरी भंगिमा मे
रोशनी की मन में कुछ शहनाइयाँ
आज छेडूंगी अनोखी रागिनी के, मै, मधुर स्वर ।

ये उजासों के खजाने, करेंगे संपन्न हमको
हम मिटा देंगे, जो थीं तनहाइयां
और फिर उडने लगेंगे पंछी अपने आसमाँ पर ।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

पुनः केरल- कोच्चि या कोचीन


कोच्चि या कोचीन –
दिन आंठवा –
आज जब हमारा भ्रमण परिवार कमरे से बाहर आया तो सामान लॉबी में रखा हुवा था जो कि पूर्व से दो तीन गुना ज्यादा था और आज कोच्चि में तो शॉपिंग ही शॉपिंग थी । आज अगर सिक्यूरिटी वाले कुत्ते हमारा सामान सूंघते तो मसालों की गंध से काफी कनफ्यूज़ हो जाते । तो नाश्ता कर के हम अपने बस में बैठे और चल पडे कोचीन की ओर । यह १४० किलोमीटर का प्रवास था आधा रास्ता पहाडी क्यूं कि मुन्नार जो पार करना था । रास्ते में एक छोटा सा प्रपात देख कर चाय कॉफी ब्रेक हुआ और लोग लगे फोटो खींचने (३६,३७) ।



इस के बाद करीब साढे बारह बजे हम कोचीन पहुंचे । यहां हमारा होटल था आइ. एम. ए. हाउस । आज हमें स्वयं ही सामान कमरों तक ले जाना था हमें पहले सेही आगाह किया गया ता कि कमरे छोटे हैं तो सामान ठीक से रखें । आज पहली बार यह कुछ अच्छा नही लग रहा था ।
कमरे में पहुँच कर देखा कि वे छोटे छोटे कमरे असल में स्यूटस् थे ( 1Bedroom apartment) । हम पांच लोगों के बीच से तीन स्यूटस् मिले थे मजा ही आ गया । हमारे पूरे प्रवास की यह सबसे सुखद व्यवस्था थी । यह इन्डियन मेडिकल असोसिएशन का गेस्ट हाउस था जो मेडिकल टूरिज्म के लिये प्रसिध्द है, तो सोचिये ।
खाने के बाद हम गये हाइकोर्ट जेट्टी की तरफ वहां नौका-भ्रमण का आनंद उठाया । एक जगह बोट को रोक कर हमने प्राचीन धर्मस्थल देखें । ये थे, सेंट फ्रांसिस चर्च, बालव्यट्टी द्वीप, डच पैलेस और एक सेनेगॉग और अजायब घर । इस द्वीप पर अब केवल ६ यहूदी परिवार रहते हैं । वापसी में चायनीज़ फिशिंग नेटस् भी देखे ।

नवां दिन – आज हमारे सफर का आखरी दिन था सब एक दूसरे की पूछताछ कर रहे थे पते ले रहे थे। इन आठ दिनों में हम अजनबियों को ये सचिन ट्रेवल्स कितने करीब ले आया था ।
आज हम सब गुरुवायूर के कृष्ण मंदिर जा रहे थे । यहां भी लुंगी साडी वाला ड्रेस कोड था । कुछ थके पडे लोग बस में ही बैठे रहे और हम जैसे उत्साही तपती धूप में चल कर मंदिर पहुंचे । एक किलोमीटर लंबी लाइन थी तो हमने परिसर में ही मस्तक दर्शन किया पर मै और जयश्री लाइन में भी लगे रहे तो कृष्ण को पा ही लिया और अच्छे से दर्शन हो गये । प्रकाश भाई साहब को दर्शन ना पाने का खेद रहा ।
दर्शन के बाद पेटपूजा की एक उडुपी रेस्तराँ में । खाने के बाद खरीदारी की और वापिस होटल । रास्ते में हम रुके पीलखाने जहां गुरुवायूर मंदिर के हाथी रखे जाते हैं मोटी जंजीरों से बांध कर । कुछ हाथी सूंड से शॉवर ले रहे थे तो कुछ मस्ती में नाच रहे थे । खूब मज़ा आया फोटो भी खींचे (४०,४१,४२ ) ।



हमें बताया गया कि यहां उन्हे उनके अनुचित व्यवहार के लिये दंडित किया जा रहा है, पर मुझे तो वे काफी खुश और मस्त लगे ।
वहीं से हम गये श्रीमद्शंकराचार्य जी के गांव कालडी (कलारी), उनका घर को देखने । यहां शंकराचार्य की माताजी का एक स्मृतिमंदिर भी है । यहां श्री शंकराचार्य जी के छोटी किंतु हिंदुधर्म के पुनरुत्थान के लिये सबसे महत्वपूर्ण जीवन यात्रा का वर्णन प्राप्त होता है (४३,४४) ।


कहते हैं यहां से नदी का प्रवाह बहुत दूर था तो शंकराचार्य जी ने अपनी माताजी की स्नानादि सुविधा के लिये नदी का प्रवाह मोड कर मंदिर की सीढियों तक लाया ।
दूसरी तरफ गुरुवायूर स्थित कृष्ण मंदिर के कृष्ण की काले ग्रेनाइट की मूर्ती भी है । यहां दर्शन करके प्रकाश भाई तो काफी खुश हुए और उनका गुरुवायूर में दर्शन न पाने का मलाल जाता रहा ।
फिर की खरीदारी और अपनी जेबों को खाली करके दूकानदारों की जेबों को भरपूर गरम किया । रात का खाना वापसी पर होटल में खाया । आज की शाम हमारी आखरी शाम थी । हम सब सचिन ट्रेवल्स को इस खूबसूरत ट्रिप के लिये धन्यवाद करना चाहते थे । हमारे कुछ साथियों ने सचिन ट्रेवल्स के प्रशंसा में चंद शब्द कहे (२०)।

मुझे भी मौका मिला कुछ कहने का । मेरा किसी ट्रेवल एजेन्सी के साथ टूर करने का यह पहला मौका था जो कि बडा सुखद रहा । खाने का इंतजाम तो बेहद अच्छा रहा सब तरह के व्यंजन होते थे जो अलग अलग लोगों के रुचि को ध्यान में रख कर बनाये जाते थे । शाकाहारी तथा मांसाहारी सभी खुश थे । सभी व्यक्ति स्वस्थ रहे । वापसी के प्रवास के लिये भी खाने के पैकेट साथ दिये । ज्येष्ठ नागरिकों का खास ख्याल रखा । सुबह पांच बजे निकलना था और इसके पहले करनी थी सारी पैकिंग ।
दूसरे दिन सुबह अपनी फ्लाइट पकड कर हम मुंबई वापस पहुंचे । मंदिरों में तस्वीरें खींचने की मनाही थी इसीसे वे तस्वीरें यहां नही हैं । पर हमने तो बहुत आनंद उठाया आपको मजा आया ?

(समाप्त)

सुहास (वन्दना)

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

पुनः केरल सुहास की जबानी- २ अलेप्पी और पेरियार और मुन्नार


चौथा दिन- सुबह साढेसात बजे नाश्ता करके हमने अलेप्पी की तरफ कूच कर दिया । सचिन के आदेशानुसार हमें अपना सामान पैक करके रात को ही कमरों से बाहर रख देना होता था ताकि सुबह सामान रखने की कोई हडबडी ना हो । तो नाश्ता होते ही बसों में बैठ कर हम चल पडे अलेप्पी की और, रास्ते में प्रकृति का आनंद उठाते हुए । बस में कोई फिल्म लगा दी गई थी ताकि रास्ता बहुत लंबा ना लगे । कई लोग फिल्म देखते देखते निद्रा के आधीन होकर खुर्राटे भी भरने लगे । आधे रास्ते पर कॉफी ब्रेक हुआ । फिर वापिस बस में । हमारे बस का सचिन प्रतिनिधी अपने चेहरे को गंभीर रख कर ऐसे ऐसे मजेदार चुटकुले सुना रहा था कि हंसते हंसते बेहाल हो गये । समय आराम से कट गया । अलेप्पी पहुंच कर हम एक बढिया होटेल पागोडा रिसॉर्ट में रुके । खाना खाया थोडा आराम किया और फिर गये बैक वॉटर सैर के लिये । समंदर का पानी एक कनाल सी बनाते हुए जब जमीन में अंदर आता है तो उसे बैक वॉटर कहते है । हमने एक दुमंजिला बोट का टिकिट लिया दो ढाई घंटे की सैर की । हमने सुंदर सी बडी बडी हाउस बोटस् भी देखीं । इनमें ज्यादातर फिरंगी ही १५००० रुं प्रतिदिन किराया देकर रहते हैं फोटो ।


सैर पर खूबसूरत हरियाली, नारियल के पेड और पक्षी दर्शन में बहुत मज़ा आया । शामको वापिस होटल आये ।
रात को हमें सूचित किया गया कि आज रात को ही अपना एक दिन का सामान एक छोटे बैग में रख लें, कल बडी सूटकेसेस नही निकाली जायेंगी ।
पांचवा दिन – नाश्ते के बाद जल्द ही पेरियार के लिये प्रस्थान किया । यह करीब १२० किलोमीटर का रास्ता था । सुंदर चाय बागानों से होते हुए संकरे रास्ते से हमारी बस गुज़र रही थी । पेरियार करीब ३,६३० फीट की ऊँचाई पर है । हम पहुंचे पेरियार के कुमुली नामक छोटे से गांव में और होटेल एस एन इंटरनेशनल में चेक इन किया ।


खाने के बाद थोडा सुस्ताकर चल पडे मसाले के बागों में । वहां कुछ लोगों ने हाथी की सवारी भी की, हाथी बाबा, टनानटून करते हुए (फोटो) ।


वहां एक जानकार आदमी हमारे साथ कर दिया गया जो हमें पूरी बाग दिखाता रहा और दालचीनी, लौंग, इलायची,कॉफी आदि पौधों के बारे में बताता भी रहा (फोटो) ।




सबने वहां से मसाले भी खरीदे ।
आज डिनर का नज़ारा कुछ और ही था । हम सब प्रेक्षक बन कर बैठे । दो सुंदर सी, भरत नाट्यम के पोशाक में सजी, छात्राओं नें भरत नाट्यम और कत्थक नृत्य प्रस्तुत किये । मोहिनी अट्टम कैसे ना होता वह तो केरल का खास नृत्य है । अंतिम नृत्य वंदेमातरम पर था जिसो देख कर लोग भाव-विभोर हो गये । हमारे साथियों में से भी कुछ लोगों ने नृत्य प्रस्तुत किये । साथ ही साथ हमने गरमा गरम सूप का भी आस्वादन किया । सभी लोगों ने कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की और फिर डिनर के बाद अपने अपने कमरों में वापिस, अजी, सोने के लिये, कल जल्दी जो उठना था ।

छटा दिन- सुबह बडे ही तडके दरवाजे पर चाय लीजीये की गुहार हुई और चाय पीकर हम सब जल्दी जल्दी तैयार हुए और बस में बैठ कर चल पडे मुन्नार की और । मुन्नार पहाडी जगह है कोई ५२८० फीट की ऊँचाई पर । यह पेरियार से आगे पहाडियों में ११० किलोमीटर दूर है । हम सब बस प्रवासी इतने दिनों में एक परिवार से हो गये थे । बस में फिर वही हंसना बतियाना चलने लगा । इस बार हमारा सचिन प्रतिनिधी अंताक्षरी के मूड में था । शुरू हुई खाने के डिशेज की अंताक्षरी और भाई साहब अजीबो गरीब डिशेज बना बना कर (शब्दों से ) लोगों को हंसा हंसा कर बेहाल करने लगे । ब आया तो बकरे की दाहिनी टांग, फिर ब आया तो बकरे की बांयी टांग, झ से झिंगुर मसाला, म से मच्छर का झोल वगैरा वगैरा । रास्ते का आनंद अपूर्व था एक तरफ ऊंची पहाडियां तो दूसरी तरफ गहरी खाई, सांस खींच कर बैठे थे, पर हमारे कुशल ड्राइवर की जय हो ।


आधे रास्ते पर कालीपाडा में बस को रोक कर चाय का प्रबंध किया गया वहां बहुत सुंदर फूल थे विभिन्न रंगो वाले ।
मुन्नार के रास्ते में पडा टेक्काडी, जहां जंगली जानवर देखने थे । हममें से कुछ लोग लाइन में लग कर बोट के टिकिट ले आये । दो ढाई घंटे बोट की सैर की पर जंगली सूअर बंदर और कुछ पंछियों के अलावा कुछ भी नही दिखा पर बोटिंग का आनंद तो आया । शाम को मुन्नार पहुँचे । वापसी पर होटल के रेस्तरां में केरल का खास खाना खाया जिसे केले के पत्तों पर परोसा गया । चांवल और सांभार को ये लोग चोर और मोर कह रहे थे ।

सांतवा दिन – सुबह साढेसात बजे हम राजमलाई पहाडी की और चले जहां पर हमें जंगली दुर्लभ बकरियां देखनी थी, जो सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं फोटो (३४, ३५ )।



भारत में शायद वहां से लाई गईं हैं (?) ।
यहां एक विशेष प्रकार के नीले फूलों की वादी है । ये फूल १२ सालों में सिर्फ एक बार खिलते हैं और सारी घाटी खूबसूरत नीले रंग में रंग जाती है,२००६ में खिले थे तो अब २०१८ में खिलेंगे । आप प्लान बना रहे हों तो तबका बनाइये पर......... ये न थी हमारी किस्मत ।
इस पहाडी से उतर कर हम पहुंचे इराविकलम नेशनल पार्क जहां तीन नदियां मिलती हैं –मधुताली, कुंदता और तूडानी । मुन्नार यानि इन तीन नदियों का संगम । हम लोग नदी किनारे ईको पॉइंट पर भी गये और अपनी प्रतिध्वनित आवाजें सुनी फोटो (२२) ।

नदी के दूसरी तरफ नीलगिरी के पेडों का घना जंगल है । सचिन के सौजन्य से गरम पकोडे और चाय का लुत्फ उठाया । फिर आगे बढे तो देखा मुत्तुपट्टी बांध । बडा ही लुभावना दृष्य था, खूब चौडा नदी का विस्तार, नीलगिरी पहाड और दूसरी तरफ बांध से तेजी से गिरता पानी (फोटो) ।

उस रात हम एक मज़ेदार खेल खेले कच्चा पापड पक्का पापड । इसको तेज तेज बोलना था जो ना बोल पाये वह आउट । विनर को मिला इनाम में एक ज्यादा पापड । इसी तरह सात के अंक का खेल था जहां आपको सोच कर सात, सात के मल्टिपल या फिर जिसमें सात आये ऐसे अंक बोलने थे । खूब मज़ा आया हंस हंस के पेट में बल पड गये । कल हमें कोचि जाना है जो हमारी यात्रा का आंतिम पडाव है ।

सुहास (वन्दना)
(क्रमशः)

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

पुनः केरल- इस बार सुहास की जबानी


इस साल सुहास को केरल जाना था । हम चूंकि हाल ही में केरल हो आये थे हम नही गये । हम गये मालगुंड, कोकण में, पर वह अब कुछ दिन बाद । इस बार सुहास नें उनकी केरल यात्रा का वर्णन स्वयं ही लिखा है । तो पढिये केरल यात्रा सुहास की जबानी ।

मै, प्रकाश, जयश्री, विजय और मेरी चचेरी बहन विजया केरल गये सचिन ट्रेवल्स के साथ । मैने अमरीका में बैठ कर हमारे ग्रूप के लिये काफी सारे टूर आयोजित किये थे इसीसे ट्रेवल एजेन्सी के साथ
टूर करने के पहले मौके पर काफी उत्सुकता थी । केरल के बारे में इतना पढा और सुना था तो मैने प्रकाश से कहा कि केरल चलोगे तो मै भारत आउंगी और उसने आनन फानन में यह टूर आयोजित कर भी ली । मेरे बडे भाई सुरेश और भाभी आशा जिनका ये ब्लॉग है गत वर्ष ही केरल घूम आये थे तो वे गये कोकण आशा के भाई के पास और हम गये केरल । हमारा यह टूर जनवरी 8 से 17 तक था ।
त्रिवेंद्रम और कन्याकुमारी और कोवालम बीच -
मुंबई से हमारी सुबह की उडान थी जिस ने हमें त्रिवेंद्रम पहुंचाया । वहां हवाई अड्डे पर सचिन के प्रतिनिधी हमारे स्वागत के लिये उपस्थित थे । वे हमें एक शानदार वातानुकूलित बस से एक बढिया होटल में खाना खिलाने ले गये । फिर हमें सीधा कन्या कुमारी (तामिल नाडू), ले जाया गया । वहां समंदर के किनारे स्थित एक खूबसूरत होटल माधिनि में हमे कमरे दिये गये । उत्तर भारत में तो ये सर्दी के दिन है पर वहां केरल में लोग गर्मी से परेशान दिख रहे थे । हमारे कमरे से ही हिंद महासागर का अद्वितीय दर्शन हो रहा था । एक और स्वामी विवेकानंद जी का स्मारक (रॉक मेमोरियल ) और दूसरी तरफ एक सफेद झक पोर्तुगीज़ चर्च । (फोटो 1,2,3 )




शाम को कमरे से सूर्यास्त का लुभावना दृष्य देख कर मन प्रसन्न हो गया (फोटो 4)



रात को नींद खूब अच्छी आई दूसरे दिन यानि 9 तारीख को सुबह चाय नाश्ता (भरपेट) कर के चल पडे विवेकानन्द स्मारक की तरफ । सचिन के सौजन्य से, एक फेरी (बोट) में बैठ कर वहां पहुंचे । बडा ही सुंदर है ये स्मारक । समुद्र के जल सिंचन से शुध्द हुई से पावन शिला पर स्वामीजी ने 1892 में ध्यान लगाया था जब उन्हें अपना जीवन ध्येय मिला । स्मारक एक भव्य मूर्ती है जो शिला को शिल्प में परिवर्तित करती है । आसपास का परिसर भी स्वच्छ और आकर्षक है । समंदर का हरा नीला जल शिला से आठखेलियां करता बडा मनोहारी लगता है । यहां हम स्पष्ट रूप से अरब सागर, बंगाल का उपसागर और हिंद महा सागर का मिलन देख पाये । इस सागर त्रिवेणी को देख बेहद सुख मिला । कन्याकुमारी के इस तट से 15000 किलोमीटर तक सिर्फ पानी ही पानी है । (फोटो 5,6)

वहां से लौट कर हम कन्याकुमारी मंदिर पहुंचे । कहते हैं शिवजी की राह तकती देवी पार्वती वरमाला लेकर आज भी वहीं खडी है । उनके नाक का अत्यंत चमकीला हीरा आनेवाले जहाजों की दिशाभूल करता था, इसीसे मंदिर के चारों और अब दीवार खडी कर दी गई है ।
(फोटो 6)


इसके बाद हम गये महात्मा गांधीजी के स्मारक जहां उनकी अस्थियों का सागर में विसर्जन हुवा था । यह एक अत्यंत शांत और साफ सुथरी जगह थी हम लोगोंने कुछ देर ध्यान लगाया फिर नारियल पानी पी कर देह को भी ठंडक पहुंचाई (सौजन्य सचिन ट्रेवल्स )। वापसी पर हम एक प्राचीन शिवमंदिर (सुचीन्द्रन मंदिर) देखने गये । वहां पर ड्रेस कोड था पुरुषों के लिये लुंगी और स्त्रियों के लिये साडी । वहीं प्रांगण में कुछ स्तंभ से बने हुए थे जिनको पीटने पर उनमे से विभिन्न वाद्यों की आवाजें जैसे तबला, मृदंग, पखावज वगैरा निकलती हैं ।

उस रात डिनर के समय सभी का स्वागत और आपसी परिचय हुआ । हमें एक बैकपैक भी मिला जिसमें काफी सारी खाने की चीजें थीं जो हमारा रास्ते की भूख का इन्तजाम था । हर रात हमें अगले दिन के कार्यक्रम की जानकारी मिलती थी और कब तैयार रहना है यह बताया जाता था ।

तो 10 तारीख को सुबह सुबह नाश्ते के बाद हमने त्रिवेंद्रम की और प्रयाण किया । रास्ते के दोनो तरफ
नारियल के पेड और केले के बागीचे, कहीं पथरीले पहाड (फोटो 7,8)


तो कहीं सुंदर झरने और कल कल बहती नदियां, मन प्रसन्न था । बस का प्रवास अगर लंबा होता तो सचिन के प्रतिनिधी चुटकुले सुनाकर खेल खिलवाकर उसे खुशनुमा बनाकर चुटकियों में गुजरवा देते । कोई तीन घंटे का सफर करके हम पहुंचे पद्मनाभ मंदिर । यहां भी ड्रेस कोड वही था पुरुषोंके लिये सिर्फ लुंगी और स्त्रियों के लिये साडी । कतार में लगकर दर्शन किये । मंदिर के गर्मेंभगृह में अंधेरा था, सिर्फ और तेल के दियों का ही प्रकाश था । बाहर आकर एक रेस्तरां में लंच खाया फिर हॉटेल में चेक इन किया । दोपहर में वैली लेक गये वहां एक बहुत सुंदर पार्क था । जानवरों के आकार में कटी झाडियां और फूलों के खूबसूरत पौधे और पानी का ताल बडा ही मनमोहक था (फोटो 9,10 )।



पार्क में ही चाय का प्रबन्ध हो गया और हम चल पडे कोवालम बीच । बहुत ही रमणीय सागर तट है यह । कुछ विदेशी वहां सूर्यस्नान ले रहे थे, कुछ समुद्र स्नान का आनंद उठा रहे थे । सचिन ट्रेवल्स की तरफ से नारियल पानी और मूंगदाल के गरमा गरम बडे खिलाये गये । नारियल के पेडों के नीचे बैठ कर हम काफी देर तक बतियाते रहे और लहरें गिनते रहे (फोटो 11 12)।


शाम को प्रकाश भैया को चाय की बडी तलब लगती थी तो मै और वो कोई ना कोई गुमटी या टपरी देख कर चाय जरूर पीते थे । रात का खाना रोज की तरह ही शानदार था ।

सुहास (वंदना )
( क्रमशः )