चौथा दिन- सुबह साढेसात बजे नाश्ता करके हमने अलेप्पी की तरफ कूच कर दिया । सचिन के आदेशानुसार हमें अपना सामान पैक करके रात को ही कमरों से बाहर रख देना होता था ताकि सुबह सामान रखने की कोई हडबडी ना हो । तो नाश्ता होते ही बसों में बैठ कर हम चल पडे अलेप्पी की और, रास्ते में प्रकृति का आनंद उठाते हुए । बस में कोई फिल्म लगा दी गई थी ताकि रास्ता बहुत लंबा ना लगे । कई लोग फिल्म देखते देखते निद्रा के आधीन होकर खुर्राटे भी भरने लगे । आधे रास्ते पर कॉफी ब्रेक हुआ । फिर वापिस बस में । हमारे बस का सचिन प्रतिनिधी अपने चेहरे को गंभीर रख कर ऐसे ऐसे मजेदार चुटकुले सुना रहा था कि हंसते हंसते बेहाल हो गये । समय आराम से कट गया । अलेप्पी पहुंच कर हम एक बढिया होटेल पागोडा रिसॉर्ट में रुके । खाना खाया थोडा आराम किया और फिर गये बैक वॉटर सैर के लिये । समंदर का पानी एक कनाल सी बनाते हुए जब जमीन में अंदर आता है तो उसे बैक वॉटर कहते है । हमने एक दुमंजिला बोट का टिकिट लिया दो ढाई घंटे की सैर की । हमने सुंदर सी बडी बडी हाउस बोटस् भी देखीं । इनमें ज्यादातर फिरंगी ही १५००० रुं प्रतिदिन किराया देकर रहते हैं फोटो ।
सैर पर खूबसूरत हरियाली, नारियल के पेड और पक्षी दर्शन में बहुत मज़ा आया । शामको वापिस होटल आये ।
रात को हमें सूचित किया गया कि आज रात को ही अपना एक दिन का सामान एक छोटे बैग में रख लें, कल बडी सूटकेसेस नही निकाली जायेंगी ।
पांचवा दिन – नाश्ते के बाद जल्द ही पेरियार के लिये प्रस्थान किया । यह करीब १२० किलोमीटर का रास्ता था । सुंदर चाय बागानों से होते हुए संकरे रास्ते से हमारी बस गुज़र रही थी । पेरियार करीब ३,६३० फीट की ऊँचाई पर है । हम पहुंचे पेरियार के कुमुली नामक छोटे से गांव में और होटेल एस एन इंटरनेशनल में चेक इन किया ।
खाने के बाद थोडा सुस्ताकर चल पडे मसाले के बागों में । वहां कुछ लोगों ने हाथी की सवारी भी की, हाथी बाबा, टनानटून करते हुए (फोटो) ।
वहां एक जानकार आदमी हमारे साथ कर दिया गया जो हमें पूरी बाग दिखाता रहा और दालचीनी, लौंग, इलायची,कॉफी आदि पौधों के बारे में बताता भी रहा (फोटो) ।
सबने वहां से मसाले भी खरीदे ।
आज डिनर का नज़ारा कुछ और ही था । हम सब प्रेक्षक बन कर बैठे । दो सुंदर सी, भरत नाट्यम के पोशाक में सजी, छात्राओं नें भरत नाट्यम और कत्थक नृत्य प्रस्तुत किये । मोहिनी अट्टम कैसे ना होता वह तो केरल का खास नृत्य है । अंतिम नृत्य वंदेमातरम पर था जिसो देख कर लोग भाव-विभोर हो गये । हमारे साथियों में से भी कुछ लोगों ने नृत्य प्रस्तुत किये । साथ ही साथ हमने गरमा गरम सूप का भी आस्वादन किया । सभी लोगों ने कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की और फिर डिनर के बाद अपने अपने कमरों में वापिस, अजी, सोने के लिये, कल जल्दी जो उठना था ।
छटा दिन- सुबह बडे ही तडके दरवाजे पर चाय लीजीये की गुहार हुई और चाय पीकर हम सब जल्दी जल्दी तैयार हुए और बस में बैठ कर चल पडे मुन्नार की और । मुन्नार पहाडी जगह है कोई ५२८० फीट की ऊँचाई पर । यह पेरियार से आगे पहाडियों में ११० किलोमीटर दूर है । हम सब बस प्रवासी इतने दिनों में एक परिवार से हो गये थे । बस में फिर वही हंसना बतियाना चलने लगा । इस बार हमारा सचिन प्रतिनिधी अंताक्षरी के मूड में था । शुरू हुई खाने के डिशेज की अंताक्षरी और भाई साहब अजीबो गरीब डिशेज बना बना कर (शब्दों से ) लोगों को हंसा हंसा कर बेहाल करने लगे । ब आया तो बकरे की दाहिनी टांग, फिर ब आया तो बकरे की बांयी टांग, झ से झिंगुर मसाला, म से मच्छर का झोल वगैरा वगैरा । रास्ते का आनंद अपूर्व था एक तरफ ऊंची पहाडियां तो दूसरी तरफ गहरी खाई, सांस खींच कर बैठे थे, पर हमारे कुशल ड्राइवर की जय हो ।
आधे रास्ते पर कालीपाडा में बस को रोक कर चाय का प्रबंध किया गया वहां बहुत सुंदर फूल थे विभिन्न रंगो वाले ।
मुन्नार के रास्ते में पडा टेक्काडी, जहां जंगली जानवर देखने थे । हममें से कुछ लोग लाइन में लग कर बोट के टिकिट ले आये । दो ढाई घंटे बोट की सैर की पर जंगली सूअर बंदर और कुछ पंछियों के अलावा कुछ भी नही दिखा पर बोटिंग का आनंद तो आया । शाम को मुन्नार पहुँचे । वापसी पर होटल के रेस्तरां में केरल का खास खाना खाया जिसे केले के पत्तों पर परोसा गया । चांवल और सांभार को ये लोग चोर और मोर कह रहे थे ।
सांतवा दिन – सुबह साढेसात बजे हम राजमलाई पहाडी की और चले जहां पर हमें जंगली दुर्लभ बकरियां देखनी थी, जो सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं फोटो (३४, ३५ )।
भारत में शायद वहां से लाई गईं हैं (?) ।
यहां एक विशेष प्रकार के नीले फूलों की वादी है । ये फूल १२ सालों में सिर्फ एक बार खिलते हैं और सारी घाटी खूबसूरत नीले रंग में रंग जाती है,२००६ में खिले थे तो अब २०१८ में खिलेंगे । आप प्लान बना रहे हों तो तबका बनाइये पर......... ये न थी हमारी किस्मत ।
इस पहाडी से उतर कर हम पहुंचे इराविकलम नेशनल पार्क जहां तीन नदियां मिलती हैं –मधुताली, कुंदता और तूडानी । मुन्नार यानि इन तीन नदियों का संगम । हम लोग नदी किनारे ईको पॉइंट पर भी गये और अपनी प्रतिध्वनित आवाजें सुनी फोटो (२२) ।
नदी के दूसरी तरफ नीलगिरी के पेडों का घना जंगल है । सचिन के सौजन्य से गरम पकोडे और चाय का लुत्फ उठाया । फिर आगे बढे तो देखा मुत्तुपट्टी बांध । बडा ही लुभावना दृष्य था, खूब चौडा नदी का विस्तार, नीलगिरी पहाड और दूसरी तरफ बांध से तेजी से गिरता पानी (फोटो) ।
उस रात हम एक मज़ेदार खेल खेले कच्चा पापड पक्का पापड । इसको तेज तेज बोलना था जो ना बोल पाये वह आउट । विनर को मिला इनाम में एक ज्यादा पापड । इसी तरह सात के अंक का खेल था जहां आपको सोच कर सात, सात के मल्टिपल या फिर जिसमें सात आये ऐसे अंक बोलने थे । खूब मज़ा आया हंस हंस के पेट में बल पड गये । कल हमें कोचि जाना है जो हमारी यात्रा का आंतिम पडाव है ।
सुहास (वन्दना)
(क्रमशः)