ज्ञात से अज्ञात तक का अस्ति से नास्ति का भी
कैसी होगी राह वो ले जायेगी जो मंजिल तलक,
पथ पूर्ण से शून्य का क्या जगायेगा कोई ललक।
कौन सा होगा वो वाहन, जो पहुँचायेगा गंतव्य
तक,
राह सरल सुगम होगी या फिर हो भरी कंटक
।
राह में होगा अंधेरा या होगा क्या प्रकाश भी,
व्याप्त केवल शून्य होगा या कोई विचार
भी।
क्या मिलेंगे वहाँ सारे जो गये मुँह मोड
कर,
या मेरे होने से न होने का ही होगा सफर।
क्या मै मिल पाउँगी वहाँ ज्ञान-देव के
विठ्ठल से,
व्यास जी के क़ष्ण से उस रुक्मिणि देवी के वर
से।
गीता में जो कह गये सभी मुझ तक आयेंगे,
चित्र गूगल से साभार