मै तो चाहती हूँ जन्म लेना, लेकिन मै उस माँ की कोख में हूँ जिसकी पहले से ही दो बेटियोँ है ।
मेरा अस्तित्व अब खतरे में है । यह किसी भी पल समाप्त हो सकता है । मेरी मजबूर माँ पर दादी और
पिताजी जोर डाल रहे हैं कि वह भ्रूण का लिंग परीक्षण करवा ले । माँ नही चाहतीं पर उनकी आवाज़ ही
कहाँ है, वह तो दब गई है इस समाज की खोखली मान्यताओं के नीचे । पुत्रों को अनुचित महत्व देना हमारे
पितृ-सत्ताक पध्दती की देन है । श्राध्दों में जब तक पुत्र तिलांजली और जल नही देगा पितरों का उध्दार जो
नही होगा ।
पुत्र चाहे माँ बाप को झूटे को भी न पूछे तो भी वही घर का चिराग है । और बेटी चाहे जिंदगी भर सेवा करे तो भी वह पराया धन है । और इस पर यह परिवार नियोजन ! पहले जब 5-7 बच्चे हुआ करते थे या कभी कभी तो इससे भी ज्यादा तो कन्या भ्रूण को गर्भ में ही खत्म करने की नौबत नही आती थी । पर अब दो या तीन बस के जमाने से कन्या भ्रूणों की शामत आ गई है । ऐसा नही है कि दंपत्ती बेटियों के खिलाफ हैं, उनके जन्म पर भी खुशियाँ मनाई जाती हैं । पर अगर बेटा नही है तो कुछ कमी तो महसूस की ही जाती है । पहली संतान के लिये तो कोई लिंग परीक्षण नही करवाता, पर यदि पहली संतान बेटी है तो 90 प्रतिशत दंपत्ती लिंग परीक्षण करवाते हैं और कई मामलों में लडकी का भ्रूण नष्ट कर दिया जाता है । पुराने जमाने में राजस्थान के ही किसी वर्ग विशेष में नवजात लडकियों को दूध में डुबो कर मार दिया जाता था । अभी हाल ही की बात है जब एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान एक महिला डॉक्टर को, मोटी रकम लेकर, कन्या भ्रूणों को नष्ट करने का काम करते हुए केमरे पर पकडा गया था । यह लिंग परीक्षण तकनीक तो इन बेटों के दीवानों के लिये वरदान साबित हुई है ।
गाँवों में भी लोगों को इसकी जानकारी है और वे भी इसका लाभ उठाना चाहते हैं, बेटा जो चाहते
हैं सब ।कोई सोचना नही चाहता कि यह बेटों की इतनी अधिक चाहत हमें कहाँ ले जायेगी । हम दो हमारा एक नीती के कारण चीन में यह पाया गया कि परिवार नियोजन की जितनी सख्ती सरकार करती गई कन्या भ्रूण के हत्या के मामले उतने ही बढते गये और अब वहाँ स्त्री : पुरुष अनुपात इतना अधिक गडबडा गया है कि बहुतसे चीनी पुरुषों को पत्नी मिलना मुश्किल हो गया है ।
भारत में भी कुछ राज्यों मे कन्याभ्रूण को नष्ट करने कि वजह से लडके लडकियों का अनुपात असंतुलित हो गया है है । धीरे धीरे यह स्थिति विस्फोटक हो सकती है । महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को बढा सकती है । और क्या पता द्रौपदी की कहानी आज भी सच ही हो जाय ।
यह स्थिति बेहद खतरनाक और अवांछनीय भी । वक्त रहते इस बारे में कुछ ठोस कदम उठाना
जरूरी है । क्या आप इस कन्या भ्रूण की मदद करेंगे ? प्रस्तुत है इस विषय पर एक कविता
मुझे आने दो माँ,
मै भी यहाँ पर साँस लेना चाहती हूँ
मेरी भी आँखें चाहती हैं देखना संसार को
मै भी तो अब जन्म लेना चाहती हूँ
मेरे कान भी सुनेंगे प्यार भरे बोल तेरे
मै तेरी गोदी में सोना चाहती हूँ
मै भी चलूंगी अपने नन्हे कदम रखकर
नापना संसार को मै चाहती हूँ
मै भी उडूँगी अपनी बाँहों को पसारे
आसमाँ मुट्ठी में करना चाहती हूँ
रोक लो औजारों को तुम दूर मुझ से
मै तुम्हारे पास आना चाहती हूँ
नष्ट ना कर दे कोई यह देह मेरी
मै तुम्हारी शक्ती बनना चाहती हूँ
मुझे आने दो माँ !
आशा जोगळेकर
आप इस बारे में क्या कर सकते हैं ? इस विषय पर अपनी आवाज़ उठाईये । आईये 3 फरवरी 2008 को होने वाले ऑल इन्डिया कॉंग्रेस ऑफ ऑबस्ट्रेटिक्स एन्ड गायनेकॉलॉजी के कन्याभ्रूण बचाओ पब्लिक फोरम में ।