बुधवार, 30 जनवरी 2008

कहानी भ्रूण-परीक्षण की



मै तो चाहती हूँ जन्म लेना, लेकिन मै उस माँ की कोख में हूँ जिसकी पहले से ही दो बेटियोँ है ।
मेरा अस्तित्व अब खतरे में है । यह किसी भी पल समाप्त हो सकता है । मेरी मजबूर माँ पर दादी और
पिताजी जोर डाल रहे हैं कि वह भ्रूण का लिंग परीक्षण करवा ले । माँ नही चाहतीं पर उनकी आवाज़ ही
कहाँ है, वह तो दब गई है इस समाज की खोखली मान्यताओं के नीचे । पुत्रों को अनुचित महत्व देना हमारे
पितृ-सत्ताक पध्दती की देन है । श्राध्दों में जब तक पुत्र तिलांजली और जल नही देगा पितरों का उध्दार जो
नही होगा ।

पुत्र चाहे माँ बाप को झूटे को भी न पूछे तो भी वही घर का चिराग है । और बेटी चाहे जिंदगी भर सेवा करे तो भी वह पराया धन है । और इस पर यह परिवार नियोजन ! पहले जब 5-7 बच्चे हुआ करते थे या कभी कभी तो इससे भी ज्यादा तो कन्या भ्रूण को गर्भ में ही खत्म करने की नौबत नही आती थी । पर अब दो या तीन बस के जमाने से कन्या भ्रूणों की शामत आ गई है । ऐसा नही है कि दंपत्ती बेटियों के खिलाफ हैं, उनके जन्म पर भी खुशियाँ मनाई जाती हैं । पर अगर बेटा नही है तो कुछ कमी तो महसूस की ही जाती है । पहली संतान के लिये तो कोई लिंग परीक्षण नही करवाता, पर यदि पहली संतान बेटी है तो 90 प्रतिशत दंपत्ती लिंग परीक्षण करवाते हैं और कई मामलों में लडकी का भ्रूण नष्ट कर दिया जाता है । पुराने जमाने में राजस्थान के ही किसी वर्ग विशेष में नवजात लडकियों को दूध में डुबो कर मार दिया जाता था । अभी हाल ही की बात है जब एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान एक महिला डॉक्टर को, मोटी रकम लेकर, कन्या भ्रूणों को नष्ट करने का काम करते हुए केमरे पर पकडा गया था । यह लिंग परीक्षण तकनीक तो इन बेटों के दीवानों के लिये वरदान साबित हुई है ।
गाँवों में भी लोगों को इसकी जानकारी है और वे भी इसका लाभ उठाना चाहते हैं, बेटा जो चाहते
हैं सब ।कोई सोचना नही चाहता कि यह बेटों की इतनी अधिक चाहत हमें कहाँ ले जायेगी । हम दो हमारा एक नीती के कारण चीन में यह पाया गया कि परिवार नियोजन की जितनी सख्ती सरकार करती गई कन्या भ्रूण के हत्या के मामले उतने ही बढते गये और अब वहाँ स्त्री : पुरुष अनुपात इतना अधिक गडबडा गया है कि बहुतसे चीनी पुरुषों को पत्नी मिलना मुश्किल हो गया है ।
भारत में भी कुछ राज्यों मे कन्याभ्रूण को नष्ट करने कि वजह से लडके लडकियों का अनुपात असंतुलित हो गया है है । धीरे धीरे यह स्थिति विस्फोटक हो सकती है । महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को बढा सकती है । और क्या पता द्रौपदी की कहानी आज भी सच ही हो जाय ।

यह स्थिति बेहद खतरनाक और अवांछनीय भी । वक्त रहते इस बारे में कुछ ठोस कदम उठाना
जरूरी है । क्या आप इस कन्या भ्रूण की मदद करेंगे ? प्रस्तुत है इस विषय पर एक कविता

मुझे आने दो माँ,
मै भी यहाँ पर साँस लेना चाहती हूँ

मेरी भी आँखें चाहती हैं देखना संसार को
मै भी तो अब जन्म लेना चाहती हूँ

मेरे कान भी सुनेंगे प्यार भरे बोल तेरे
मै तेरी गोदी में सोना चाहती हूँ

मै भी चलूंगी अपने नन्हे कदम रखकर
नापना संसार को मै चाहती हूँ

मै भी उडूँगी अपनी बाँहों को पसारे
आसमाँ मुट्ठी में करना चाहती हूँ

रोक लो औजारों को तुम दूर मुझ से
मै तुम्हारे पास आना चाहती हूँ

नष्ट ना कर दे कोई यह देह मेरी
मै तुम्हारी शक्ती बनना चाहती हूँ
मुझे आने दो माँ !


आशा जोगळेकर

आप इस बारे में क्या कर सकते हैं ? इस विषय पर अपनी आवाज़ उठाईये । आईये 3 फरवरी 2008 को होने वाले ऑल इन्डिया कॉंग्रेस ऑफ ऑबस्ट्रेटिक्स एन्ड गायनेकॉलॉजी के कन्याभ्रूण बचाओ पब्लिक फोरम में ।

शनिवार, 26 जनवरी 2008

गणतंत्र दिवस


गणतंत्र दिवस की आप सबको शुभ कामनाएँ।
इस अवसर पर कई साल पहले लिखा गया
मेरे बडे भाई (स्व.)डॉक्टर शरद काळे द्वारा लिखित
गीत प्रस्तुत है ।

गणतंत्र दिवस मंगल-मय हो
भारत जन जीवन सुखमय हो । गणतंत्र...

देशभक्ती के कलाकार ने
तूलिका धरी चित्र बनाने
आंग्ल रंग रक्तिम धो उसने
इसे किया तिरंगा निर्भय हो । गणतंत्र...

संविधान का अंतिम खाका
बना आज इस दिन ने देखा
पंचशील का राग अनोखा
छेड उठे सब तन्मय हो । गणतंत्र...

भारत के अगणित सेनानी
तन मन धन की कर कुर्बानी
हुए अमर ये अमर कहानी
दोहरायें नत-मस्तक हो । गणतंत्र...


आज का विचार

वर्तमान समय ही मनुष्य का अपना है ।


स्वास्थ्य सुझाव

कदंब के पत्ते या छाल को उबाल कर इस पानी से
धोने पर कोई भी पुराना घाव धीरे धीरे भरने लगता
है और अच्छा हो जाता ङै

सोमवार, 21 जनवरी 2008

सेन्सेक्स फिसला


इस शेअर बाजार की ऐसी बदली शक्ल
बस ठिकाने आगई, लालाओं की अक्ल

लालाओं की अक्ल कि सेन्सेक्स ऐसे फिसला
निवेशकों को याद आगया अगला पिछला

और सुनो भैया आगे है फिसलन भारी
रुक जाओ वरना फिर अस्पताल की तैयारी

आज का विचार
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान

स्वास्थ्य सुझाव

मन की शांति के लिये करें भ्रामरी प्राणायाम ।

शनिवार, 19 जनवरी 2008

कभी नही सोचा था

कभी नही सोचा था
आँख से निकलेंगे आँसू ऐसे
गर्म पानी का कोई सोता हो जैसे
रुकने का नाम ही नही लेते हैं
बस बहते ही जाते हैं

कभी नही सोचा था
तुम दोगे मुझे इतना दर्द
ये रिश्ता हो जायेगा इतना सर्द
जिसमें थी कभी ऐसी गर्माहट
बिन देखे पहचानते ते आहट

कभी नही सोचा था
मै पड जाउंगी इतनी अकेली
तुम ही तो थे मेरे सखा सहेली
अब जो मुँह तुमने फेर लिया है
मुझे तनहाई ने घेर लिया है

कभी नही सोचा था
प्यार की बली चढेगी
विवाह की वेदी पर
आँखें बनेंगी बस
आँसुओं का घर
कभी नही सोचा था


आजका विचार

वैयक्तिकता को जो भी कुचले वह तानाशाह ही है ।

स्वास्थ्य सुझाव

झांईदार और मुहाँसे वाली त्वचा पर आलू के स्लाइस पर छाछ लगा कर हफ्ते में तीन बार मले ।

सोमवार, 7 जनवरी 2008

तकलीफें

तकलीफें तो सदा रहेंगी
तकलीफें जीवन का हिस्सा
आँसू और हँसी से लिख्खा
जाता हर जीवन का किस्सा

दिन के बाद रात आती है
वैसे सुख और दुख आता है
गहराता अंधियारा जितना
ऊषाकाल पास आता है

एक सिक्के के ये दो पहलू
गिरे कभी चित और कभी पट
अनुपात बराबर ही रहता है
जितनी भी हम करलें खटपट

तकलीफें हम को निखारती
अग्नि-तप्त ज्यूँ चमके सोना
ये तो बेहतरी का मौका
तकलीफों पर फिर क्य़ू रोना

खुशियों की ही तरह कष्ट को
सहज भाव से हम स्वीकारें
दोनो के ऊपर उठनें की
कोशिश में जीवन को सँवारे


आज का विचार
संदेह सच्ची मित्रता का विष है ।

स्वास्थ्य सुझाव

बाल झड रहे हों तो तुलसी के पत्ते सुखा कर उसका पाउडर बना लें
और जहाँ से बाल झड रहे हों उस जगह मलें।