सोमवार, 29 सितंबर 2008
देवी स्तुती
सुहास्य वदना, विशाल नयना
मौक्तिक दशना मुक्त कुंतला
अंकुश, पाश, त्रिशूल धारिणी
सुरक्त वसना रक्त कुंडला
करुणा दया क्षमा भवतारा
शक्ति, पार्वती, विद्युत-चपला
सिंह वाहिनी, रिपु संहारिणि
दैत्य विनाशिनी भक्त वत्सला
मोहित, चकित भक्त भय-आतुर
आश्चर्यान्वित, हर्षित विपुला
आशिर्वाद हस्त आश्वासित
मातु-चरण वंदन करि सकला
शनिवार, 27 सितंबर 2008
दर्द
इस दर्द का करें क्या कि सहा नही जाता
दर्द को दिये बिन, उनसे रहा नही जाता ।
तनहाई है कि चिल्ला चिल्ला के कह रही है
यह बोझ अकेले से सम्हाला नही जाता ।
अब किससे करें बात, क्या किसको बतायें
ये हाले-दिल किसी से कहा नही जाता ।
हम अपने दर्द की कहें या उनकी भी सुनें
इस कहने सुनने में भी कुछ बहा नही जाता ।
शायद हो कि ये दर्द ही बन जाये दवा अब
हम से तो इसका कुछ भी किया नही जाता ।
आज का विचार
जो आदमी दूसरों को दुख देता है क्या वह कभी सच्ची खुशी पा सकता है
स्वास्थ्य सुझाव
यकृत (लिवर) को स्वस्थ रखने के लिये एक कप अनार के रस में आधा चम्मच हल्दी और आधा चम्मच सेंधा नमक डाल कर दिन में ३ बार लें ।
दर्द को दिये बिन, उनसे रहा नही जाता ।
तनहाई है कि चिल्ला चिल्ला के कह रही है
यह बोझ अकेले से सम्हाला नही जाता ।
अब किससे करें बात, क्या किसको बतायें
ये हाले-दिल किसी से कहा नही जाता ।
हम अपने दर्द की कहें या उनकी भी सुनें
इस कहने सुनने में भी कुछ बहा नही जाता ।
शायद हो कि ये दर्द ही बन जाये दवा अब
हम से तो इसका कुछ भी किया नही जाता ।
आज का विचार
जो आदमी दूसरों को दुख देता है क्या वह कभी सच्ची खुशी पा सकता है
स्वास्थ्य सुझाव
यकृत (लिवर) को स्वस्थ रखने के लिये एक कप अनार के रस में आधा चम्मच हल्दी और आधा चम्मच सेंधा नमक डाल कर दिन में ३ बार लें ।
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
मौसम की पायल
ये कौन गुनगुनाया
हवा पे गीत आया
लहर बन के छाया
डालियाँ भी देखो लरजने लगीं
मौसम की पायल बजने लगी
पानी में तरंगे
आकाश में पतंगे
मन में उमंगे
उमड उमड कैसे मचलने लगीं
मौसम की पायल बजने लगी
कलियाँ लगीं खिलने
फूल मुस्कुराने
बुल बुल तराने
में, प्यार के फसाने सुनाने लगी
मौसम की पायल बजने लगी
अलसाई दुपहरी
धूप खूब गहरी
शाम ठहरी ठहरी
सहेलियाँ ठिठोली देखो करने लगीं
मौसम की पायल बजने लगी
चांद और बादल
नैना और काजल
चुनरी शामल शामल
तारों भरी रात देखो सजने लगी
मौसम की पायल बजने लगी
आज का विचार
अगर हम हर कार्य खुशी से करेंगे तो
हमें कोई भी कार्य कठिन नही लगेगा ।
स्वास्थ्य सुझाव
दांत को कीडे से बचाने के लिये १ चम्मच गुलाब जल में
१/४ चम्मच काला नमक, १/४ चम्मच पिसी काली मिर्च, १/4 चम्मच हल्दी
मिला कर मालिश करें ।
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
अलास्का क्रूझ समापन और सीएटल- ७
दूसरे दिन जल्दी ही सारा निबटाना था क्यूं कि शिप के पहुँचते ही हमे साढे ग्यारह बजे
सीएटल के लिये बस लेनी थी । हमारे अर्ली बर्डस् आखरी बार शिप से सूर्योदय देखने ५ बजे से ही उठ के बैठ गये थे । (देखें विडियो )
शिप पर नाश्ते की व्यवस्था तो थी ही तो सब जल्दी जल्दी तैयार होकर नाश्ते के लिये गये । उसके पहली रात को ही हमारी सूटकेसेस हमने दे दी थीं ताकि वे हमें पोर्ट पर वापस मिलें । फिर अपना अपना हाथ का सामान लेकर हम वेटिंग एरिआ में आकर बैठ गये । शिप ७ बजे ही शिप डॉक हो गया था ।
करीब साढे ९ बजे हमारा नंबर आया फिर हम भी लाइन में लगे वही इमिग्रेशन वगैरा किया क्यूंकि केनडा मे प्रवेश कर रहे थे
। वहां से बाहर निकले सामान लिया, काफी ढूंढना पडा, पर मिल गया ।
(देखें विडियो )
बाहर आये तो वही समोसों की दूकान दिखी तो सब के लिये समोसे तथा सैंन्डविचेज़ पैक करवा लिये क्यूंकि आज यही हमारा लंच था । शिप वाली रईसी खतम । फिर खडे हुए टैक्सी के लाइन में । काफी टेन्स थे कि टाइम से बस स्टेंड तक पहुंचेंगे या नही पर सब कुछ ठीक ठाक हो गया । और हमें टैक्सी भी मिल गई और हम समय से पहले पहुँच भी गये । बस के आने में टाइम था ते सब ने खडे खडे ही लंच भी कर लिया । (देखें विडियो )
हमारा अगला पडाव था सीएटल । यहां हम जगदीश और सरला जी के मेहमान थे । ये लोग कुसुम ताई और अरुण जी के दोस्त थे । जगदीश हमें बस स्टेंड पर लेने आने वाले थे । सीएटल आने के पहले फिर एक बार इमिग्रेशन की परेड हुई ।
सीएटल पहुंचते पहुंचते सुहास ने जगदीश जी से फोन पर बात कर ली और हमारे पहुँच ने के थोडी ही देर बाद वो हमें लेने आ गये एक बडी सी गाडी लेकर ताकि हम सब लोगों का सामान ठीक से आ जाये ।
इसके लिये उन्हें अपने पडौसी की गाडी उधार लेनी पडी यह हमें बहुत बाद में मालूम पडा । । सीएटल पहुंचे थे हम चार बजे भूक भी लगी थी चाय भी पीनी थी पर जगदीश जी ने कहा कल तो आपको बोइंग फैक्टरी देखने जाना है तो आज अभी स्नोकालमी फॉल देखते हैं ।“ अ....भी.........”. सोचा सबने पर बोला कोई कुछ नही सुहास ने ही कहा कि घर ही चलते हैं चाय पीना है ।
“वो कोई बात नही पहले रेस्टॉरेन्ट में चाय पीयेंगे और फिर देखेंगे फॉल”, जगदीश जी ने सुझाव दिया और हमने किया भी वही । फॉल पर पहँचे रेस्टॉरेन्ट में चाय और कुकीज़ खाकर थोडे रिवाइव हुए और फिर देखा फॉल, क्या फॉल था साहब, मिनि नियाग्रा ही समझ लीजीये,
(देखें विडियो )
मन प्रसन्न तो हुआ ही थकान भी उतर गई । काफी देर वहाँ खडे खडे गिरते हुए नदी को देखते रहे फिर आस पास थोडा घूमें और घर ।
घर भी एकदम सुंदर था । मर्सर आयलेंड पर वॉशिंगटन लेक के किनारे । घर जाते ही सरला जी से मिले । पहली बार मिले थे लेकिन स्वागत जोरदार था एक अलग तरह का घर का बना फ्रूट पंच और चबेना , मुरमुरे के साथ मिला हुआ नमकीन । एकदम से मालवे के सेव परमल की याद आ गई । फिर उनका सुंदर सा घर देखा उसके खूबसूरत डेक पर खडे रह कर वॉशिंगटन लेक देखते रहे और देखते रहे उसमें डूबते हुए सूरज को । कुसुम दीदी के बारे में बहुत सारी बातें हुईं और सरला जी ने ये भी बताया कि उनके बातों से ही वे हमें भी जानती हैं । सुहास से तो उनका घनिष्ट परिचय था ही । शाम को जगदीश हम सब को आस पास टहलने के लिये ले गये । करीब ३०-३५ मिनिट उस खूबसूरत इलाके में घूमते रहे । यहां भी गुलाबों की कोई कमी नही थी ।
घर आकर डिनर किया खिचडी, एक अलग तरह का पिज्जा और बैंगन और पालक की अनोखी सब्जी जिसमे फ्रेश सोयाबीन भी डलीं थीं । अगले दिन हमें बोइंग की फेक्टरी देखने जाना था । सुहास का प्लानिंग एकदम परफेक्ट सबके टिकिट विकिट इंटरनेट पर ही बुक कर लिये थे । जगदीश जी निव़ृत्ती से पहले बोइंग में ही काम करते थे तो वे भी हमारे साथ आये अपने नाती किरण के साथ । नाती को भी तो दिखानी थी बोइंग फेक्टरी ।
हमने सरलाजी से चाय के सामान के बारे में पूछा तो बोलीं फिकर ना करो चाय मैं बना दूंगी । हमारे ५ बजे उठने वाले प्रकाश भाउजी के लिये एक सुखद आश्चर्य इंतजार कर रहा था । बाहर डेक पर योगा मेट बिछी थी और केतली में गरमा गरम मसालेदार चाय । और क्या मसाला था, चाय के मसाले के साथ तुलसी और पुदीने की पत्ती भी डाली थी शायद । ऐसी झन्नाटेदार चाय पीकर मजा आ गया । सरला जी तो सुबह ५ बजे ही घूमने चली जातीं हैं करीब ३ मील चल कर वे अपने व्यायाम शाला जातीं हैं और वहां व्यायाम कर के फिर उतना ही चल कर घर आतीं हैं । हम लोग जगदीश जी के साथ गये लेक पर घूमने ।
अच्छे खासे एक डेढ घंटे की घुमाई हुई, फिर घर आकर ब्रंच किया और गये बोइंग फेक्टरी। जैसा कि सब जानते हैं बोइंग दुनिया कि नंबर वन कमर्शियल ओर मिलिटरी जेट लाइनर बनाने वाली कंपनी है । दुनिया के सबसे बडी बिल्डिंग में स्थित है ( तकरीबन ४७२,०००,००० क्यूबिक फीट )। दुनिया भर में इसके कोई १००० ऑपरेटर्स हैं जो बोइंग जहाज खरीदते है या लीज करते हैं ।(देखें विडियो )
करीब चार घंटे की टूर होती है यह और दो हिस्सों मे बटी हुई । इसमें ७४७ ,७६७, ७७७ और ड्रीम लाइनर इन सारे हवाई जहाजों के असेंबली आपको दिखाई जाती है और बने बनाये जहाज तो दिखाते ही हैं । बोइंग हवाई जहाजों के सारे पार्ट अन्यत्र बनाये जाते हैं जिनमें बहुतसे देशों की भागीदारी है । जी ई, प्राट एन्ड विटनी तथा रोल्स रॉईस इसके एन्जिन बनाते हैं । पहली टूर में कार्गो प्लेन देखने के बाद जब हम एसेंबली लाइन देखने आये तो एक जायजेन्टिक लिफ्ट में हमे जाना पडा । यहां हमने देखे ऊपर बताये सारे जहाज, मेन्यूफेक्चर के विभिन्न अवस्थाओं में । हमें बताया गया कि ३ मिनिट में एक पार्ट लग जाता है । बहुतसा काम मेन्यूअली हो रहा था । करीब ९० देश इसके कस्टमर हैं । ड्रीमलाइनर ही वो जहाज़ है जो नॉनस्टॉप उडानें भरता है जैसे न्यूयॉर्क-दिल्ली । तो बहुत मजा आया फिर एक्जीबीशन भी देखा कुछ लोगों ने बोइंग की टोपियां खरीदीं हमने ७७७ के २ मॉडल खरीदे । और वापिस आये घर । हमारी सीएटल यात्रा का यह आखरी दिन था कल हमे जाना था मिनियापोलिस (मिनिसोटा) माधुरी के घर ।(देखें विडियो )
उसके बाद हम सब अपने अपने ठिकानें पे जाने वाले थे । तो शाम को सरला जी और जगदीश से गप्पें मारीं उनकी बेटी लोपा से भी मुलाकात हुई । दूसरे दिन उन्होने हमें छोडा एयरपोर्ट । और हम चल पडे अपने आखरी पडाव पर ।
हम मिनियापोलिस के समयानुसार पहुँचे रात को ११ बजे माधुरी और अमित हमें लेने आये थे । घर पहुंच कर बढिया सा खाना खाया और सो गये कुसुम ताई भी वहाँ हमें मिलीं ।
तीन दिन माधुरी के यहाँ मौज मस्ती की उसका पती अमित बहुत ही मिलनसार और मजाकिया है खाना बनाने का भी शौक रखता है । लगा ही नही कि पहली बार मिल रहे हैं । माधुरी ने आमरस पूरी बनाई तथा एक दिन मसाला दोसा खिलाया और एक दिन चायनीज रेस्तराँ में गये हम सब । प्रकाश और जयश्री को वहीं रुकना था । तो माधुरी की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाकर हम बाकी सब ४ जुलै को अपने अपने ठिकाने वापिस आये । बहुत बुरा लगा बिछुडने का करीब महीने भर से साथ थे, और बहुत बढिया वक्त गुजारा था । बहुत एन्जॉय किया था हमने तो, क्या आप तक थोडासा मजा पहुँचा ।
(समाप्त)
बुधवार, 10 सितंबर 2008
अलास्का क्रूझ-६
सुबह हमेशा की तरह उठे और चाय नाश्ता निपटा कर तैयार हो गये । (देखें विडियो )
यहाँ जूनो के लिये
भी हमने शिप द्वारा आयेजित कोई टूर्स के टिकिट नही लिये थे । यही सोचा था कि बस या टैक्सी लेकर घूमेंगे । जैसे ही जूनो के पोर्ट पर शिप ने डॉक किया हम सब भी और सारे लोगों के साथ शिप के बाहर आ गये । अब हम एक अनुभव लेकर तैयार थे तो इनफॉर्मेशन सेंटर ढूँढ निकाला । (देखें विडियो )
वहाँ पता चला कि हम एक टैक्सी ( भाडा १ घंटे का ५५ $ ) लेकर २ घंटे में जूनो के महत्वपूर्ण स्थान देख सकते हैं । जूनो अलास्का की राजधानी है । यह माउंट जूनो और गस्टिनोउ कनाल के बीच में बसा हुआ है । जनसंख्या करीब ३०,००० । यहाँ के लोगों के जीवन यापन के साधन हैं टूरिज़म, मछली उद्योग और माइनिंग । शुरु शुरु में यहाँ नदी के पानी में सोने के नगेट्स मिल जाते थे पर बाद में वे कम हे गये तो माइनिंग से सोना निकलने लगा । और गोल्डरश भी अलास्का का तभी शुरू हुआ । जूनो में भी एक बहुत बडा ग्लेशियर है जिसका नाम है मेंडेनहाल ग्लेशियर, एक और भी है लेमन ग्लेशियर दोनों ही सडक से ही दिखाई देते है । जूनो से पहले अलास्का की राजधानी सिटका थी जो हमे कल देखना है । अलास्का में कई हजार साल तक तो ट्लिंगित इंडियन लोगों का ही राज़ रहा पर बादमें रशियाने इसपर अपना अधिकार कर लिया । १८६७ में यूनाइटेड स्टेट्स ने इसे खरीद लिया पर अमेरिकन यूनियन में इसका विलय १९४९ में जाकर हुआ । रिचर्ड हैरिस और जोसेफ जूनो नामक दो अमेरिकन प्रवासी यहाँ सोने के खोज में आये थे । यहाँ के मूल निवासियों ने ही उन्हे सोना खोजने की राह बताई । पहले कई सालों तक जूनो का नाम हैरिसबर्ग भी था जो १८३१ में बदल कर जूनो सिटी रख दिया और बाद में रहा केवल जूनो, जोसेफ जूनो के नाम पर।
हम बाहर निकल कर आये थे तो वहां हमें एकदम सामने ही एक बडी सी दूकान भी दिखी थी जिसमे से हम गिफ्ट्स खरीद सकते थे । सोचा पहले सैर हो जाये फिर करेंगे खरीदारी ।
थो हमने एक टैक्सी की, टैक्सी का नाम था ग्लेशियर टैक्सी सर्विस। टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि करीब दो घंटे में वह हमें बिअर फेक्टरी और ग्लेशियर दिखा सकता है और साथ ही बॉल्ड ईगल भी । क्रूझ शिप की तरफ से ग्लेशियर पर चलना तथा कुत्तों की गाडी की सैर भी आयोजित थी, पर कीमत थी ३५०$ प्रति व्यक्ती और हम सीनीयर सिटिझन्स कहां ग्लेशियर पर चलते वलते । तो हमारे लिये हमने यह टैक्सी वाला ऑप्शन ही ठीक समझा ।
पहले हम गये मेंडेनहाल ग्लेशियर । इसे हम बहुत ही पास से देख पाये । इस के पास ही एक जल-प्रपात भी था जिसका पानी नीचे आकर एक तालाब का रूप ले रहा था और इस तालाब के ऊपरकी तरफ था ग्लेशियर वैसा ही मोटे बर्फ की शिलाखंड सा बहुत से लेयर्स वाला । और वैसे ही नीले सफेद थोडे से हरे और मटमैले रंगों के परतों वाला । (देखें विडियो )
और बहुत ही पास से हम इसे देख रहे थे, लग रहा था कि थोडी कोशिश से हम इस पर चढ भी सकते हैं । बहुत देर तक इस ग्लेशियर को देखते रहे , ढेर सारी तसवीरें लीं ऐसा नजारा एक बार अलास्का छोडने पर कहाँ मिलने वाला था । वहाँ आसपास घूमते रहे, फिर हमने वहाँ एक पॉरक्यूपाइन भी देखा और कोशिश की उसके फोटो ले सकें ।
बहाँ से फिर हम गये बीअर फैक्टरी- नाम था अलास्कन ब्रूअरी । वहाँ जाते ही हमारा स्वागत फ्रेश बीअर से से हुआ और फिर हमें डिस्टिलरी दिखाई गई । और एक बडा ही रोचक लेक्चर सुनने को मिला । लेक्चर देने वाला बडा ही मजाकिया किस्म का आदमी था ।(देखें विडियो )
फिर ब़ॉल्ड ईगल देखने गये । असल में यह ईगल कोई गंजा वंजा नही होता, क्यूंकि इसका सर सफेद होता हैं इसी कारण दूर से यह गंजा लगता है । इनकी खूब सारी तस्वीरें लीं । वापिस इनफॉर्मेसन सेंटर पर आये तो वहाँ रशियन डांसर्स का ट्रूप आया हुआ था उनके साथ फोटो खिंचवाये ।(देखें विडियो )
य़ह सब करते करते भूख लग आई थी और अभी तो शॉपिंग भी करनी थी । तो उसी टैक्सी से वापिस आये पोर्ट पर और शॉप में जाकर बेटों, बहुओं और पोतियों के लिये थोडे बहुत गिफ्ट आयटम्स लिये और वापस अपने अड्डे पर । लंच किया ।
खरीदारी को दुबारा देख कर एप्रिशिएट किया । शाम को फॉर्मल डिनर में हमें मिला भारतीय खाना । मसाले वाली आलूगोभी, बैंगन का भर्ता और दाल, साथ में पराठे । गोवानीज़ वेटर ने(देखें विडियो )
सचमुच ही अपना वादा निभाया था । खूब एन्जॉय किया और स्वीट डिश के रूप में पेश की गई खीर । खाने के बाद देखा रंगारंग कार्यक्रम और फिर वापिस अपने अड्डे पर । कल हमे देखना था सिटका । अलास्का की पुरानी राजधानी
तो दूसरे दिन सुबह सुबह तैयार होकर निकल पडे सिटका देखने । यह हमारा आखरी पडाव था इसके बाद तो एक दिन सफर और फिर वापिस वेनकुअर । सिटका भी केचिकन तथा जूनो की तरह बहुत खूबसूरत है । पहाडी घुमावदार रास्ते बर्फ से ढके पहाड और सुंदर सुंदर छोटे छोटे घर । सिटका जाने के लिये हमे हमारे शिप से हमें एक छोटी बोट में बैठना पडा जो हमे सिटका ले गई ।
सिटका का नाम यहां के मूल निवासियों की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है द्वीप के बाहर बसे लोग । यह पहले रशियन अख्तियार में था इसीसे यहाँ रशियन तथा मूल अमेरिकन निवासियों की मिलीजुली संस्क़ृति दिखती है । शुरु में यहां की आमदनी भी सोने की माइनिंग तथा मछली उद्योग से ही होती थी । यहां की जनसंख्या है केवल ८००० और इनमे करीब १८% यहां के मूल निवासी हैं ।(देखें विडियो )
सिटका में हमने फिर टैक्सी ली टैक्सी चालक एक लडकी थी नीना उसकी टैक्सी पर भी नीनाज टैक्सी लिखा हुआ था । उसने कहा कि वह हमें पहले ग्रिजली बेअर दिखाने ले जायेगी और बाद में यहाँ की चॉकलेट फेक्टरी । बाकी चीजों के लिये तो आपको हेलीकॉप्टर या बोट राइड लेनी होगी । हम ने व्हेल वॉचिंग पहले केपकॉड में भी की थी तो सोचा चलो ठीक है ।
तो पहले गये हम भालू देखने । वहां के प्रवेश द्वार पर ही एक तालाब मे खूब सारी बत्तखें थीं
हमें देखते ही खाना मांगने लगीं । हमारे पास तो कुछ था भी नही उन्हें देने के लिये पर वहां के जेनीटर ने बताया कि आज इनका ब्रेकफास्ट लाने वाला आदमी लेट हो गया है इसीसे इतना चिल्ला रहीं हैं । वैसे भी इन्हें आप कुछ खाने को नही दे सकते । बाद में भालू भी देखे बडे बडे पर थोडे सुस्त से थे ।(देखें विडियो )
थोडी देर वहां रुक कर फिर चॉकलेट फेक्टरी गये । जातेही हमें सेंपल के तौर पर एक एक चॉकलेट मिली । बाद मे फेक्टरी भी देखी और चॉकलेट भी खरीदे । छोटी सी फेक्टरी थी इसे देख कर सालों पहले ग्वालीयर में देखी जे बी मंघाराम की बिस्किट फेक्टरी की याद आ गई । (देखें विडियो )
टैक्सी से वापस अपने ठिकाने आगये जहाँ से हमें बोट में बैठ कर शिप तक पहुंचना था ।
इस बार हम खाना खाकर विजय के साथ कसीनो भी गये पर किसी को भी खेलना आता नही था । विजय से ही सीख कर थोडी देर खेले, जब एक डॉलर खत्म हो गया तो वापिस रूम पर आ गये । डेक पर गये एक केबल कार ऊपर जा रही थी उसकी तस्वीरें खींचीं ।
कल सारा दिन शिप पर ही रहना था और फिर परसों सुबह वापिस वैनकुअर । हमने तय किया कि कल भी हम सारा शिप एक बार फिर से घूम कर देखेंगे कुछ चीजें खरीदेंगे अगर ठीक लगीं तो और क्रूझ का भरपूर मजा लेंगे क्यूं कि कल के बाद तो इस शिप को, इस वीआयपी ट्रीटमेन्ट को अलविदा कहना है । और हाँ अपना सोने का नेशनल प्रोग्राम वह भी करना ही है ।
और सब कुछ ठीक वैसा ही किया । पर हमें और भी बहुत से काम करने थे मसलन सारे वेटर्स और अटेन्डन्टस को शिप के नियमानुसार टिप देनी थी । इन लोगों की तनखा तो बहुत कम होती है टिप्स पर ही सारा दारो-मदार रहता है । इसलिये शिप का मेनेजमेंट आपको इस संबंध में गाइड करता है । तो हमने वे फॉर्मस भरे और उनके सर्विसेस के लिये उन्हे नवाजा भी । वाकई बहुत अच्छी सर्विस दी सबने हमारे अटेंडेन्ट Clemence तो पता नही कितनी बार हमारा कमरा ठीक करता रहता था । जब भी हम बाहर से आते कमरा और बाथरूम हमेशा चकाचक मिलते । (देखें विडियो )
रोज ताजे फूल और फल लाकर रखता और केन्डीज़ भी । उसी तरह हमारे फॉर्मल डाइनिंग रूम का गोवानीज़ वेटर Marvin, हमारे लिये आउट ऑफ वे जाकर पसंद का खाना पेश करता । वह रहने वाला भी ठाणे का था जहाँ हमारे देवर देवरानी का घर है तो थोडा भावनात्मक जुडाव भी हो गया था । और हाँ जनरल डाइनिंग के स्टर फ्राय बनाने वाले बंगाली बाबू पॉल जी को कैसे भूल सकते हैं हमे देखते ही बढिया सी स्टर फ्राय पेश करते थे । और हाँ हमें बैग्स भी तो पैक करनी थी ।
(क्रमश:)
रविवार, 7 सितंबर 2008
अलास्का क्रूझ-५
सुबह सुबह सब लोग जल्दी उठे । उतरने से पहले नहाना तथा ब्रेक फास्ट करना था । तो जल्दी से तैयार हुए नाश्ता किया और १३ वे डेक पर आकर खडे हो गये ।(देखें विडियो )
शिप की चाल अब धीमी हो गई थी और बस अब आने ही वाला है केचिकन ऐसा लगते लगते पूरा एक घंटा बीत गया तब जाकर केचिकन की कोस्ट लाइन दिखना शुरू हुई ।(देखें विडियो )
इसके करीब आधे घंटे बाद हमारा शिप डॉक हुआ । और हम अपने अपने आय कार्ड और मनी बैग लेकर क्यू में लग गये ताकि उतर सकें । केचिकन के लिये हमने कोई शिप के द्वारा आयोजित टूर के टिकिट नही लिये थे क्यूं कि वे थे मोटर बोट से वॉ’टर वर्ल्ड की सैर , या प्रायोजित टूर । हमने तय किया कि हम उतर कर टैक्सी लेंगे और सारा केचिकन घूम आयेंगे । तो उतरे बाहर निकलते हुए हम में से हर एक को कुछ कूपन मिले वे हमने एकदम सम्हाल कर रख लिये । उतरने के बाद पता चला यहाँ टैक्सी नही है टूरिस्ट बसें हैं और घोडे की बग्घी है । पर दोनो ही बहुत महंगी थीं ३०$ से ४० $ प्रतिव्यक्ती । थोडे और आगे बढने पर हमें टूरिस्ट इनफॉर्मेशन सेंटर दिखा । वहाँ पता चला कि हम १ $ प्रति व्यक्ती देकर एक घंटे तक सारा केचिकन घूम सकते हैं । यह हमें एकदम पसंद आ गया और हम बस स्टेंड पर आकर खडे होगये । पता चला कि बस आने में अभी २० मिनिट हैं उतने में हमें वह दूकान दिख गई जो हमें कूपन के ऐवज़ में फ्री ब्रेसलेट देने वाली थी । और थी भी बिल्कुल ५ मिनिट के रस्ते पर तो मैं और जयश्री दोनो फटाफट जाकर वो ब्रेसलेट ले आये । किसी काम का नही था पर रख लिया कि पोतियों के लिये खेल ही सही । अब तक थोडी थोडी बारिश भी शुरू हो गई थी । वापिस स्टॉप पर आये तब तक बस का भी समय हो चला था और थोडी ही देर में वह आ भी गई । और हम सब बस मे आराम से बैठ गये । बस चली और हमे ड्राइवर बताता जा रहा था कि कौन जगह क्या है ।(देखें विडियो )
सुंदर सा शहर है केचिकन ।. पहाडी घुमाव दार रास्ते । बर्फ से ढके पहाड और नदी झरने और नेटिव अमेरिकन संस्कृति को दर्शाते हुए टोटम पोल । और ढेर सारी हरियाली तथा सुंदर सुंदर फूल ।बीच में एक जगह पानी के पास से बस जा रही थी तो पता चला कि यहाँ नदी में सोना भी मिलता है ।
तो केचिकन तो देख लिया बस में बैठे बैठे । शिप के पास ही आखरी स्टाप था तो उतर कर
वापिस शिप पर । जल्दी जल्दी लंच के लिये गये और बढिया सा खाना खाया तरह तरह के आईसक्रीम और कुकीज भी थीं तो सोचा क्यूं न डिझर्ट भी हो जाये । विजय को आइसक्रीम का बडा शौक था । तो वे तो रोज ही तरह तरह की आइसक्रीम ट्राय करते थे ।
और क्यूंकि केचिकन देख कर थक गये थे तो दोपहर में सोने का कार्यक्रम बना था । शाम को चाय के बाद थोडा डेक पर चले । इतने मे डिनर टाइम हो गया । हमारी जिंदगी जैसे थोडी थोडी खाने के बीच बीच में ही चल रही थी । हम डिनर के लिये जा रहे थे कि हमारी एक सहयात्री ने कहा,” अरे इतनी भूक लग रही है, पिछले १५ मिनटों से मैने कुछ भी नही खाया है”। कहा तो गया था ये मजाक में, पर सचाई इससे बहुत अलग नही थी । पर फॉर्मल डिनर का हमें फायदा ही हुआ कि हम थोडा, कम से कम डिनर पर, ओवर-ईटिंग से
बच गये ।
हमारे गोवानीज़ वेटर ने जब देखा कि हम देसी लोगों को रोज़ रोज के इस साहबी खाने में कुछ मजा नही आ रहा तो उसने कहा कि वह अपने हेड-वेटर से बात करके हमारी पसंद का
खाना बनवाने की कोशिश करेगा । पर खाना अच्छा ही था सिर्फ वेज़ लोगों के लिये वेरायटी थोडी कम हो जाती थी ।
उस दिन डिनर के बाद मूवी दिखाने वाले थे, कसीनो रॉयल । तो सबने मूवी देखी जो १० बजे खत्म हुई । कमरे में आकर हमनें अब तक की अपनी की हुई सारी शूटिंग देखी और सो गये । कल हमें देखना था हबर्ड ग्लेशीयर । इसके लिये हमें कहीं उतर कर नही जाना था । शिप में बैठे बैठे ही देकना था इसे ।(देखें विडियो)
ग्लेशियर होता क्या है इसके बारे में जानकारी देने के लिये सुबह एक लेक्चर भी अरेंज किया था शिप पर ।
ग्लेशियर एक बडी सी खूब धीरे बहने वाली बर्फ की नदी होती है जो बर्फ के सतह पर सतह जमा होने से बनती है यह ग्लेशियर अक्सर वातावरण के दाब से प्रभावित होता रहता है । जिससे बर्फ के बडे बडे शिला खंड या छोटे छोटे टुकडे टूट कर गिरते रहते हैं ।ठूटते समय इनमें से कभी धीमी तो कभी तेज विस्फोट की तरह आवाजें निकलती रहती हैं । इन शिलाखंडों को आइसबर्ग कहते हैं । आइस बर्ग का केवल दसवां हिस्सा ही पानी के ऊपर तैरता है ऐसा समुद्र के पानी और शुध्दबर्फ के घनत्व में फर्क के कारण होता है ।(देखें विडियो )
दूसरे दिन सुबह देखा कि शिप बिलकुल पतली सी पानी की लेन में से जा रहा है । इसको इन वॉटर्स कहते हैं । समुद्र तो लग ही नही रहा था । पर हम बालकनी छोडकर गये ही नही कहीं, ब्रेकफास्ट और लंच पर भी खिडकी के पास ही जगह ढूढ ली । धीरे धीरे पतली गली छोडकर शिप थोडे चौडे पानी में आगया और पानी में बर्फ के छोटे छोटे टुकडे दिखाई देने लगे ।
धीरे धीरे इन टुकडों की संख्या और आकार बढने लगे । शिप मे से तो यह ऐसा लग रहा था जैसे अस्पताल का कचरा समुद्र में फेंक दिया हो । पर हमारा शिप बहुत सम्हाल सम्हाल कर धीरे धीरे चल रहा था ताकि किसी बर्फ की शिला से टकरा ना जाये ।(देखें विडियो )
और थोडी ही देर में जिसका सुबह से इन्तजार था वह हबर्ड ग्लेशियर दिखाई देने लगा । एक लंबी चौडी बर्फ की शिला की तरह ही दिख रहा था वह जिसका ओर छोर दिखाई नही दे रहा था । कितनी तो इसकी सतहें थीं, और कितने तो रंग दिख रहे थे इन बर्फ के सतहों में नीले रंग का बर्फ जो सबसे पुरानी पर्त को दर्शा रहा था ( ग्लेशियर की यह सतह करीब ४०० साल पुरानी है )।, और सफेद रंग का बर्फ सबसे नवीन पर्त को । बीच बीच में हरे और मटमैले रंग भी थे जो बर्फ में अटके हुए वानस्पतिक अवशेषों को दर्शा रहे थे ।(देखें विडियो )
हबर्ड ग्लेशियर एक टाइडल वॉटर ग्लेशियर है जो करीब १२२ किलोमीटर लंबा है । इसका मूल स्त्रोत समुद्री सतह से ११,००० फीट ऊँचा है । यह ग्लेशियर अभी भी बढता जा रहा है ।
जब कि दूसरे ग्लेशियर कम होते चले जाते हैं ।
जीवन में पहली बार ग्लेशियर को देखा । हमारा शिप करीब आधा मील दूरी पर था । शिप भी चारों तरफ से घूम घूम कर ग्लेशियर दिखा रहा था तोकि कोई भी देखने से वंचित ना रह जाये । हम भी भाग भाग कर सब तरफ से व्यू देख रहे थे और तसवीरें खींच रहे थे ।(देखें विडियो )
हम में से हर एक ने बहुत सारी तसवीरे खींचीं और ग्लेशियर के बैकग्राउंड में अपनी अपनी खिंचवाईं भी । काफी देर तक करीब डेढ घंटा वहां रुकने के बाद शिप धीरे धीरे चल पडा । बाकी सारा दिन कैसे बीता पता ही नही चला ।
शाम को डिनर और उसके बाद का एन्टरटेनमेंट तो अच्छा था ही हमारा सबका ग्लेशियर को लेकर बातों का सेशन भी बढिया रहा । कल देखना था जूनो या जुनोऊ, अलास्का की राजधानी उसी की खुशी में रात बीत गई ।
(क्रमश:)
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
अलास्का क्रूझ- ४
आराम से सोफे पर, बिस्तर पर पसर कर बैठे ही थे कि अनाउन्समेन्ट हुआ कि साढे चार बजे सेफ्टी ड्रिल के लिये जाना है । देखा कि सवा चार तो बज चुके हैं चाय की बडी तलब लग रही थी । पता चला कि टॉप डेक पर चाय नाश्ते का इंतजाम है तो पहुँच गये ये सोचकर कि चाय तो पी ही सकते हैं । और चाय पी कर वापिस रूम पर आये ड्रिल के लिये सेफ्टी जैकेट जो रूम में रखा था लिया और पहुंचे पांचवे डेक पर । यह शिप १२ मंजिला था जिसके ४ थी से लेकर १२ वीं मंजिल तक क्रूझर जा सकते थे। नीचे की तीन मंजिल स्टाफ के लिये थीं जिनमें कोई व्यू नही था, पानी के नीचे जो रहती थीं । सारे पेसेंजर्स के लिये यह ड्रिल अटेंड करना जरूरी था तो बार बार पुकार लगाई गई जब तक सारे आ नही गये और फिर बताया गया कि सेफ्टी जैकेट कैसे पहनते हैं और बोट्स कहाँ रहती हैं इमरजेन्सी में कैसे डेक ३ पर पहुंचना है वगैरा वगैरा (इसका विडियो पिछले भाग में देख सकते हैं) । हमारा सामान अब तक नही पहुँचा था तो हम रिसेप्सन पर जाकर जो कि डेक ५ पर था रिपोर्ट कर आये पर मेनेजर ने कहा कि चिंता की कोई बात नही है आपका सामान पहुंच जायेगा। फिर भी ऊपर आकर हमने रूम अटेंडंट से पता लगाने को बोला और उस ने सामान आखिर लाकर दे ही दिया .
वहाँ से आये तो पता चला हमारा डिनर टाइम हमारे अपग्रेडेशन के साथ ही अपग्रेड हो गया है यानि ८ बजे के स्थान पर ६ बजे । इतने जल्दी खाने की हम देसी लोगों को आदत तो नही थी पर करते क्या सुंदर कमरे के साथ हमारे खाने का टाइम भी अपग्रेड हो गया था ।
इतने में ही शिप चलने लगा इसी लिये हम सब बालकनी में आकर खडे हो गये । हमारे कमरे साथ साथ और बालकनी दोनों कमरों की साथ साथ ही थी । समंदर की लहरें शाम के रंग और धीरे धीरे आगे को बढता जहाज हम सभी इस का आनंद उठा रहे थे । तय किया कि आज तो हम जनरल डायनिंग में ही खाना खायेंगे । कल से देखते हैं फॉर्मल डायनिंग का शो । और हम सारे थोडी देर लेट गये फिर आराम से साढे सात बजे तैयार हुए और खाना खाने पहुंच गये । और क्या खाना था,(देखें विडियो )
इटालियन पास्ता, सलाद, सूप तथा पिज्जा । खाया पीया और रूम पर वापिस आये तो हमारा रूम अटेंडेंट हमारी राह देख रहा था बोला , “अरे आप फॉर्मल डाइनिंग में नही गये आपके टेबल पर कोई नही था और वहां का वेटर भी गोवा का है आप लोगों के न जाने से उसकी बडी निराशा हुई । वह तो आपकी उत्सुकता से राह देख रहा था” । तो उसे, कल अवश्य जायेंगे बोल कर रूम मे आ गये और जिसको किताब पढनी थी वो किताब पढने मे लग गया जिसे टी वी देखना था उसने टी वी देखा और सो गये । अगले दिन सारा दिन ट्रेवल ही करना था ।
हम में से सुहास ,सुरेश और प्रकाश जल्दी उठने वालों में से थे तो उनका सुबह जल्दी उठ कर सनराइज़ यानि सूर्योदय देखने का प्रोग्राम बन गया मै, जयश्री और विजय ठहरे सूर्यवंशी तो हमने तो ७ बजे तक सोने का तय कर लिया था । चाय–कॉफी तो सबसे ऊपर यानि १२ वे डेक पर रात १० बजे तक और सुबह फिर ६ बजेसे मिलने लगती । तो जब मेरी आंख खुली साढे ६ बजे तो जयश्री तैयार थी मै उठी तो उसने पूछा ,चलें ऊपर, सब लोग तो चले गये । हाँ बस ५ मिनिट कह कर मैं भी बाथरूम मे जाकर जल्दी जल्दी तैयार होकर आ गई ।
हम दोनों डेक पर जाने के बजाय सीधे रेस्तराँ मे गये और एक एक कप चाय पी । डेक पर आये तो ये तीनों अपने केमरे वैमरे सहित वापस रूम में जा रहे थे । हम दोनों ने डेक पर कम से कम ६ चक्क्रर लगाये । नीचे आये तो रूम में आज के कार्यक्रम का फ्लायर पडा था यह प्रोग्राम जरूर देखना है मैने फ्लायर देख कर कहा । रात को ८ बजे डांस प्रोग्राम था ।
वैसे दिनभर लेक्चर , योगा, जिम, स्विमिंग, हाउसी, वॉल क्लाइंबिंग जैसे कई कई कार्यक्रम थे जयश्री का और मेरा बडा मन था तंबोला खेलने का पर वह तो १० बजे से था और शुरू हो चुका था । पर हम सब मिलकर यानि दोनों कमरों की जनता, पहले नाश्ते के लिये गये जहाँ अमेरिकन और एशियन और यूरोपियन नाश्ता हमारा इन्तजार कर रहा था । नाश्ता किया और पूरा शिप देखने चले गये ।
सारे डेक घूम घूम कर देख लिये । असल डेक थे ५,६,७,११,और १२ कहीं केप्टन साहब का स्पेशल क्लब था तो कहीं शापिंग और कहीं कसीनो और ७ वे पर था फॉर्मल डाइनिंग हॉल
और थिएटर ,११ वी पर ही हमारे कमरे थे और एक्झीबीशन। बाकी डेक्स पर रहने के कमरे थे या स्वीटस थे । १२ वे पर जनरल डाइनिंग था एक तरफ एशियन ओर दूसरी तरफ अमेरिकन और युरोपियन बाहर की तरफ स्विमिंग पूल थे, चलने का ट्रेक था और और ऊपर जाने की सीढी यानि १३ वे डेक पर जहां सिवा डेक के और कुछ भी नही था । पर वहाँ से व्यू एकदम साफ था ।
फिर लंच करने गये सच मानिये सजे हुए खाद्य पदार्थों को देख कर भूख भी खूब लगती थी
और मैने तो तय कर लिया था वजन बढने की बिलकुल परवाह न करते हुए खाना भी खूब एन्जॉय करना है । उस दिन हमने एशियन लंच किया खूब बढिया स्टर फ्राय था जिसे बनाने वाले थे एक बंगाली बाबू । पर क्या स्टर फ्राय बनाते थे । मसाले, लोग देख कर और हां पूछ कर भी , डालते थे । इसके अलावा सूप सेलेड और, और भी बहुत सी चीजें थीं । मांसाहारियों की तो खासी मौज थी पर हमारे लिये भी बहुत वेरायटी थी । एक दो इंडियन चीजें भी होती ही थीं ।
खाना वाना खाकर थोडी देर रूम में आकर सारे पसर गये ।
आज फॉर्मल डिनर के लिये जाना था ६ बजे तो सारे लोग तैयार हुए अपने अपने बेस्ट अटायर में । रात को ८ बजे फिर डांस प्रोग्राम भी देखने जाना था । तो ठीक ६ बजे पहूंच गये । हमारा वेटर जो गोवा का था तेजी से हमारे पास आया और हमें अपने टेबल पर ले गया टेबल ८ लोगों का था । हमारे साथ एक गोरा कपल भी था । उस दिन तो उन लोगों ने बडे प्यार मोहब्बत से बातें की पर अगले ही दिन से उनहोने अपनी टेबल बदल ली ओर हमने भी चैन की सांस ली । हमारी प्रायवेसी जो वापिस बहाल हो गई थी । उस दिन तो हमारा डिनर मेनू फ्रेंच था और छोटे छोटे पोर्शन बडे नजाकत और नफासत से पेश किये गये। पांच कोर्स डिनर था । परोसने और खाने में पूरे पौने दो घंटे लग गये । फिर वहां से फारिग हुए तो पहुँच गये डांस देखने और खूब मजा आया ।
लौट कर जिसने जो करना था किया पर पहले शैंपेन खोली और सेलिब्रेट किया । अगले दिन हमें देखना था केचिकन ।
(क्रमश:)
वहाँ से आये तो पता चला हमारा डिनर टाइम हमारे अपग्रेडेशन के साथ ही अपग्रेड हो गया है यानि ८ बजे के स्थान पर ६ बजे । इतने जल्दी खाने की हम देसी लोगों को आदत तो नही थी पर करते क्या सुंदर कमरे के साथ हमारे खाने का टाइम भी अपग्रेड हो गया था ।
इतने में ही शिप चलने लगा इसी लिये हम सब बालकनी में आकर खडे हो गये । हमारे कमरे साथ साथ और बालकनी दोनों कमरों की साथ साथ ही थी । समंदर की लहरें शाम के रंग और धीरे धीरे आगे को बढता जहाज हम सभी इस का आनंद उठा रहे थे । तय किया कि आज तो हम जनरल डायनिंग में ही खाना खायेंगे । कल से देखते हैं फॉर्मल डायनिंग का शो । और हम सारे थोडी देर लेट गये फिर आराम से साढे सात बजे तैयार हुए और खाना खाने पहुंच गये । और क्या खाना था,(देखें विडियो )
इटालियन पास्ता, सलाद, सूप तथा पिज्जा । खाया पीया और रूम पर वापिस आये तो हमारा रूम अटेंडेंट हमारी राह देख रहा था बोला , “अरे आप फॉर्मल डाइनिंग में नही गये आपके टेबल पर कोई नही था और वहां का वेटर भी गोवा का है आप लोगों के न जाने से उसकी बडी निराशा हुई । वह तो आपकी उत्सुकता से राह देख रहा था” । तो उसे, कल अवश्य जायेंगे बोल कर रूम मे आ गये और जिसको किताब पढनी थी वो किताब पढने मे लग गया जिसे टी वी देखना था उसने टी वी देखा और सो गये । अगले दिन सारा दिन ट्रेवल ही करना था ।
हम में से सुहास ,सुरेश और प्रकाश जल्दी उठने वालों में से थे तो उनका सुबह जल्दी उठ कर सनराइज़ यानि सूर्योदय देखने का प्रोग्राम बन गया मै, जयश्री और विजय ठहरे सूर्यवंशी तो हमने तो ७ बजे तक सोने का तय कर लिया था । चाय–कॉफी तो सबसे ऊपर यानि १२ वे डेक पर रात १० बजे तक और सुबह फिर ६ बजेसे मिलने लगती । तो जब मेरी आंख खुली साढे ६ बजे तो जयश्री तैयार थी मै उठी तो उसने पूछा ,चलें ऊपर, सब लोग तो चले गये । हाँ बस ५ मिनिट कह कर मैं भी बाथरूम मे जाकर जल्दी जल्दी तैयार होकर आ गई ।
हम दोनों डेक पर जाने के बजाय सीधे रेस्तराँ मे गये और एक एक कप चाय पी । डेक पर आये तो ये तीनों अपने केमरे वैमरे सहित वापस रूम में जा रहे थे । हम दोनों ने डेक पर कम से कम ६ चक्क्रर लगाये । नीचे आये तो रूम में आज के कार्यक्रम का फ्लायर पडा था यह प्रोग्राम जरूर देखना है मैने फ्लायर देख कर कहा । रात को ८ बजे डांस प्रोग्राम था ।
वैसे दिनभर लेक्चर , योगा, जिम, स्विमिंग, हाउसी, वॉल क्लाइंबिंग जैसे कई कई कार्यक्रम थे जयश्री का और मेरा बडा मन था तंबोला खेलने का पर वह तो १० बजे से था और शुरू हो चुका था । पर हम सब मिलकर यानि दोनों कमरों की जनता, पहले नाश्ते के लिये गये जहाँ अमेरिकन और एशियन और यूरोपियन नाश्ता हमारा इन्तजार कर रहा था । नाश्ता किया और पूरा शिप देखने चले गये ।
सारे डेक घूम घूम कर देख लिये । असल डेक थे ५,६,७,११,और १२ कहीं केप्टन साहब का स्पेशल क्लब था तो कहीं शापिंग और कहीं कसीनो और ७ वे पर था फॉर्मल डाइनिंग हॉल
और थिएटर ,११ वी पर ही हमारे कमरे थे और एक्झीबीशन। बाकी डेक्स पर रहने के कमरे थे या स्वीटस थे । १२ वे पर जनरल डाइनिंग था एक तरफ एशियन ओर दूसरी तरफ अमेरिकन और युरोपियन बाहर की तरफ स्विमिंग पूल थे, चलने का ट्रेक था और और ऊपर जाने की सीढी यानि १३ वे डेक पर जहां सिवा डेक के और कुछ भी नही था । पर वहाँ से व्यू एकदम साफ था ।
फिर लंच करने गये सच मानिये सजे हुए खाद्य पदार्थों को देख कर भूख भी खूब लगती थी
और मैने तो तय कर लिया था वजन बढने की बिलकुल परवाह न करते हुए खाना भी खूब एन्जॉय करना है । उस दिन हमने एशियन लंच किया खूब बढिया स्टर फ्राय था जिसे बनाने वाले थे एक बंगाली बाबू । पर क्या स्टर फ्राय बनाते थे । मसाले, लोग देख कर और हां पूछ कर भी , डालते थे । इसके अलावा सूप सेलेड और, और भी बहुत सी चीजें थीं । मांसाहारियों की तो खासी मौज थी पर हमारे लिये भी बहुत वेरायटी थी । एक दो इंडियन चीजें भी होती ही थीं ।
खाना वाना खाकर थोडी देर रूम में आकर सारे पसर गये ।
आज फॉर्मल डिनर के लिये जाना था ६ बजे तो सारे लोग तैयार हुए अपने अपने बेस्ट अटायर में । रात को ८ बजे फिर डांस प्रोग्राम भी देखने जाना था । तो ठीक ६ बजे पहूंच गये । हमारा वेटर जो गोवा का था तेजी से हमारे पास आया और हमें अपने टेबल पर ले गया टेबल ८ लोगों का था । हमारे साथ एक गोरा कपल भी था । उस दिन तो उन लोगों ने बडे प्यार मोहब्बत से बातें की पर अगले ही दिन से उनहोने अपनी टेबल बदल ली ओर हमने भी चैन की सांस ली । हमारी प्रायवेसी जो वापिस बहाल हो गई थी । उस दिन तो हमारा डिनर मेनू फ्रेंच था और छोटे छोटे पोर्शन बडे नजाकत और नफासत से पेश किये गये। पांच कोर्स डिनर था । परोसने और खाने में पूरे पौने दो घंटे लग गये । फिर वहां से फारिग हुए तो पहुँच गये डांस देखने और खूब मजा आया ।
लौट कर जिसने जो करना था किया पर पहले शैंपेन खोली और सेलिब्रेट किया । अगले दिन हमें देखना था केचिकन ।
(क्रमश:)
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