रविवार, 27 जून 2010
जीवन चलने का नाम
हां तो हर साल की तर्ज पर हमारा इस वर्ष का प्रोग्राम बना मेडिटेरेनिअन क्रूझ का । हमारी लीडर, ऑरगेनाइझर, मेनेजर हमेशा की तरह थी सुहास । तो हम सब सुहास के घर मार्टिन्स बर्ग में इकठ्ठा
हुए । सुहास के दो दोस्त बीट्रीस और एनातोली स्पेन के मेड्रिड और बार्सीलोना में रहते हैं । एनातोली है तो रशियन पर उसका बार्सीलोना में ५ कमरों का अपार्टमेन्ट है । बीट्रीस अपने माँ के यहां रहती है पर हम माद्रिद में होटल मे रुकने वाले थे । हमारी क्रूझ क्यूंकि बार्सीलोना से थी तो वह तो देखना ही था ।
इसके पहले हम गये थे जेक्सनविल (फ्लोरिडा ). यहां रश्मी रहती है प्रकाश भाउजी की बडी बेटी । रश्मी ने इस बार उसकी छोटी बहन किरण की ग्रेजुएशन और उसके मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के सम्मान में एक पार्टी रखी थी तो सब उसके यहां एकत्रित थे । वहां का हमारा रहना और पार्टी बडी जोरदार रही । किरण ने गेन्सविल के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया है ।
वहां से हम सब आये मार्टिन्सबर्ग । हमेशा की तरह हमारा ब्लेक्सबर्ग (कुसुमताई के यहाँ ) का भी चक्कर लगा और फिर १५ तारीख को सुबह साढे नौ बजे की उडान थी हमारी मेड्रिड के लिये । ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट थी । स्पेन-एयर की मेड्रिड की सीधी उडान है पर वो सिर्फ फिलाडेल्फिया से जाती है । हमें फ्लाइट बदलनी थी लंदन में । दो तीन दिन से काफी आशंकित थे हम सब क्यूं कि १८ मई से ११ जून तक ब्रिटिश एयरवेज के कर्मचारियोंने समय समय पर हडताल की घोषणा कर रखी थी । हमारी फ्लाइट के लिये चेक-इन हमने रात को ही कम्प्यूटर पर ऑनलाइन कर लिया था वो हो गया तो थोडी तसल्ली थी । तो हमारी उडान का सब कुछ ठीक ठीक हो गया और हम चल पडे । हमारी उडान समय पर थी और १६ मई को सुबह छह बजे लंदन पहुंची । लंदन उतेर तो हमे मेड्रिड की उडान के लिये दूसरे टर्मिनल पर जाना था । हम पहले भी लंदन एयरपोर्ट से उडाने बदल चुके हैं पर अब की ३-४ साल बाद आये तो काफी काया पलट हो गया था । समय काफी था तो पराठे अचार का नाश्ता कर के कॉफी पी । पानी का फाउन्टेन कहीं भी नही दिखा । पानी की बोतल खरीदी २ पाउन्ड में । फिर बहुत सारे एस्केलेटर्स से ऊपर नीचे किया । करने के बाद ट्रेन पकडी उतर कर फिरसे एस्केलेटर्स से चढ-उतर करने के बाद हम सिक्यूरिटी तक पहुंचे । उडान समय पर थी यह एक अच्छी बात हुई ।
सुबह कोई १० बजे हमारी उडान मेड्रिड पहुँची । वहाँ हमें लेने सुहास ताई की दोस्त बीट्रिस आने वाली थी उससे उनकी दोस्ती तब हुई थी जब बीट्रिस शिक्षकों के एक्सचेन्ज प्रोग्राम के अंतर्गत मार्टिन्सबर्ग सुहास के स्कूल में आई थी वहां वह दो साल रही । इस तरह सुहास और बीट्रिस की दोस्ती हो गई ।vdo 2742
बापरे बाप ! मेड्रिड का इत्ता बडा एयर पोर्ट वहां पर भी वही कसरत । खूब सारे एस्केलेटर्स चढो और फिर उतरो । इतना सब करने के बाद जब इमिग्रेशन के काउंटर पर आये तो सिर्फ हम ही थे । दो तीन अफसर ऊंघते से बैठे थे, उन्होने हमारा पासपोर्ट देखा और ठप्पा लगाकर दे दिया न कोई सवाल न कुछ । हम बाहर आये तो बीट्रिस हमें मिली । सुहास ताई से बडी गर्मजोशी से मिली । और हम सबसे भी । खुश मिजाज़, ठहाके लगाकर हसने वाली बीट्रीस देखते ही सबको भा गई । उसने हमारे लिये एक सुपर शटल बुक कर रखी थी जिसमे ६ सवारी और सामान आराम से आ सकता है ।
बीट्रिस ही हमें हमारे होटल ले गई । होटल का नाम था बारसेलो-टोरे-एरियास । होटल के कमरे अच्छे थे न छोटे न बडे । दो कमरे लिये थे एक में तीनो मर्द और एक में औरतें । इससे एक कमरे का किराया बच जाता था नही तो ३ कपल्स के लिये तीन कमरे लेने पडते । बीट्रीस ने हमारे लिये खूब सारा नाश्ते का सामान लाया था । मफिन्स, मारी बिस्किटस्, केक, कुछ स्पेनिश पकवान और भी न जाने क्या क्या, दूध, चीनी, कॉफी और खास इंग्लेंड से लाये हुए टी बैग्स भी थे, साथ ही थे ६ बडे बडे मग्ज । कहने लगी यहां के होटलों में माइक्रोवेव नही मिलेगा । मैं केटल ला दूंगी । आज संडे था तो बाजार बंद मिला । शाम को हम सोल जायेंगे वहां शायद मिल जाये । वह वापिस जा रही थी कहने लगी मेरे दोस्त के साथ मेरा लंच है । हमने उसे अपने पराठा रोल में से दो दे दिये ताकि उन दोनों का लंच हो जाये । स्पेन के लोगों की बल्कि सारे यूरोप के लोगों की ये खासियत है कि वे खाते कम हैं और चलते बहुत ज्यादा हैं और फिट लगते हैं । दो तीन मील रोज का चलना मामुली सी बात है और जब वे कहते हैं कि बस ५ मिनट का रास्ता है तो समझ लीजिये कि आपको कम से कम एक डेढ किलोमीटर तो चलना ही है । और एक बात बहुत ही कम लोग अंग्रेजी बोलते या समझते हैं फिर भी इनका सारा काम बखूबी चलता रहता है । हमने भी थोडे बहुत शब्द सीख ही लिये सालिडा माने बाहर का रास्ता और एन्ट्राडा माने भीतर का । साला याने जगह या लाउंज । एक जगह साला वी आय पी लिखा देखा और खूब हंसे ।
इसी तरह एक और जगह ,साला गयारे, लिखा था । ये गयारे शायद किसी जगह का नाम हो । पर हम तो हिंदी सोच कर बहुत मजे ले रहे थे ।
बीट्रीस शाम को कोई साढे पांच बजे पहुँची हमारे पास । हम सबको चाय पीने का बडा मन था । बीट्रीस ने कहा ट्रेन स्टेशन चलते हैं वहीं कैफे में चाय भी मिल जायैगी और आगे फिर सोल भी जा सकेंगे । तो हम चलें स्टेशन के लिये । करीब १ मील चल कर कैफे आया । वहीं बाहर खूबसूरत से टेबल सजे थे । तो हम ने बैठ कर चाय का ऑर्डर दे दिया, चाय तो वाकई बढिया थी । ७ चाय के दाम १२ यूरो । बडा खला, पर अब तो इसकी आदत डालनी ही थी । स्टेशन का नाम था स्यूदाद लिनीअल मतलब शहर जो एक लंबी लाइन में बसा हो । मेरे तो बहुत पांव दुख रहे थे और विजय भी जादा चल नही सकते (उनके घुटनों की सर्जरी हो चुकी है ) हमारे ग्रूप के सबसे सीनीअर मेंबर । तो हम दोनो तो वापिस होटल आ गये और रेस्ट किया पर हमारे और चार मेंबर ने हमें उनके इस यात्रिका की कहानी सुनाई आप भी सुनें ।4384 1
चाय पीने के बाद ये लोग ५ मिनिट और चल कर स्यूदाद लिनीअल स्टेशन गये और टिकिट लिये सोल के लिये इसके लिये इन लोगों को पहले वेन्टास स्टेशन जाना पडा फिर वहां से दूसरी ट्रेन बदल कर पहुँचे सोल स्टेशन । फिर कोई १ मील पैदल चलकर सोल के बाजार मे आये ये मेड्रिड का डाउन टाउन है । खूब घूमें पर जैसे ही बिजली की कैटल वाली दूकान तक पहुँचे, दूकान इन लोगों के सामने ही बंद हो गई । कैटल नही मिली । फिर बीट्रीस ने कहा कि मेरी दोस्त फलां जगह हमें मिलेगी फिर हम उसके साथ खाना खायेंगे एक रस्तराँ में उसने बुकिंग कर रखी है । वे लोग चलते ही जाना, चलते ही जाना, करते करते आगे बढ रहे थे और हर पांच मिनिट बाद बीट्रीस उन्हे दिलासा दे रही थी कि बस पहुँच गये । पर १५-२० मिनिट के बाद आखिरकार वह मिलन स्थल आ ही गया । बीट्रीस की दोस्त बहुत अच्छी थी इन लोगों से बडे प्यार से मिली फिर कुछ १०-१५ मिनिट की बातचीत परिचय आदि के बाद वे फिर होटल की और चल पडे । फिर उतना ही चलना पडा जितना कि सोल स्टेशन से डाउन टाउन था सब लोग बहुत थके थे पर सुहास ताई की तो वह दोस्त ही थी हमारे लिये वह जब इतना कर रही थी तो चलना तो था ही । फिर वह रेस्तराँ आ गया, इन लोगों के लिये बीट्रीस और उसके दोस्त ने ही ऑर्डर किया क्यूं कि स्पेनिश तो किसी को नही आती थी । पता चला कि एक तरह का नमकीन चावल था जो वेजिटेरियन ही मंगवाया पर बीट्रीस तथा उसकी दोस्त ने अलग से स्क्विड मंगवाये और चावल में मिलाकर खाये । रात के खाने का अमेरिकन टाइम होता है साढे छै, तो स्पेनिश टाइम साढे नौ से सा़ढे दस, ग्यारा कुछ भी हो सकता है बहर हाल इन लोगों ने ११ बजे खाना ऑर्डर किया, बारा बजे तक निबटे फिर बजार घूमे और टैक्सी से रात को २ बजे होटल आये । लेकिन मेड्रिड बाय नाइट का नज़ारा आप भी देखें और मज़े लें ।vdo 4384 2
इधर विजय और मैने थोडी देर टी वी देखा फिर दूध और कॉर्नफ्लेक्स खाया और अपने अपने कमरे में सो गये पर चिंता तो हो रही थी कि इन लोगों को भाषा तो आती नही कैसे ट्रेन से वापस आयेंगे । क्यूं कि बीट्रीस तो वहीं सोल में अपने दोस्त के पास रह जायेगी । इतनी देर हो गई, कहीं रास्ता तो नही भूल गये । जब ये लोग आये तो जान मे जान आई । (क्रमशः)
रविवार, 20 जून 2010
सीढी
क्यूं करोगे संतोष आधी रोटी से,
छीन लो अगर तुमको दो चाहिये ।
तीन की या चार की भी हो सकती है जरूरत,
तुम्हारी उम्र और काम के हिसाब से,
नही कर लेना है सबर अब ।
अपनी जरूरत तो पूरी करना ही है,
ज्यादा की भी चाह रखनी है ।
देखना है नये सपने ।
सपने ऊँचाइयों के,
शिखरों के,
नीले आसमान के,
सितारों से आगे के ।
हक है ये तुम्हारा
कोई खैरात में नही मांग रहे हो।
करो मेहनत, बढो आगे
मंजिल की और ।
एक के बाद दूसरी,
तीसरी और चौथी मंजिलें
तय करो और पाते जाओ ।
छोटा पड जायेगा आसमान
तुम्हारी आशाओं के आगे ।
एक काम और करना
सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना ।
शुक्रवार, 4 जून 2010
वतनी
इस जिंदगी को, जीने का सलीका क्या है ?
मै जानता नही, कोई मेरे सरीखा क्या है ।
हम अपने आप को, देखें जो मन के शीशे में ,
जान जायेंगे असल क्या, और दिखावा क्या है ।
वो जो करते थे, दावा-ए-मुहब्बत हमसे,
अब हाल ये कि सलाम क्या और दुआ क्या है ।
मैं जो इतना हूँ परेशान, तो भला क्यूं कर ,
क्यूं सोचता हूँ, कि ये हाल वतन का क्या है ।
ये जो हैं चाट रहे देश, लगे दीमक से,
इन नेताओं का धरम क्या है औ ईमाँ क्या है ।
नेता तो मान लिया बस हैं पांच सालाना,
इन बाबुओं को जनम भर का मिला ठीका है ।
जब आप-हम ही न सोचें वतन के बारे में,
वतनी कहलाने का फिर अपना तरीका क्या है ।
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