शनिवार, 5 अगस्त 2017

दर्द ओ ग़म तो




दर्दों ग़म तो लाखों हैं इस ज़माने में,
ख़ुशी को लेकिन अक्सर ढूँढना ही पड़ता है ।

रंजिशों की तो  यहाँ सदा बिछी है बिसात
मात देने को सिकंदर ही बनना पड़ता है।

टी वी अख़बार तो छापते हैं बस बुरी ख़बरें
अच्छी ख़बरों को तो कोने में घुसना पड़ता है।

भूखे चेहेरों पे लाने के लिये छोटी हँसी
अपनी रोटी में से थोड़ा खिलाना पड़ता है।

अपनी कमाई में से कुछ तो थोड़ा सा
दूसरों की ख़ातिर भी रखना पड़ता है।

ग़मों में टूटने से बचने के लिये
दुख में भी मुस्कुराना पड़ता है।

हम हँसे तो लोग भी मुस्कुरा देंगे
रोशनी  हो तो अंधेरों को हटना पड़ता है।

ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम सनम
ऐसे तो फिर जीना सभी को पड़ता है ।