तुम थे उस सदी के महानायक
तुमने जानी थी आज़ादी की सही कीमत
मुफ्त में या भीक में मिली चीज़ की कोई
महत्ता नही होती
तुम्हें पता था ।
इसी लिये तो तुम चाहते थे लड कर अपना हक
लेना
लडे भी ।
कितने दर्द सहे, परायों से अपनों से भी,
जिससे की उम्मीद उसीने मुंह फेर लिया
तुमने नही मानी हार, उठ खडे हुए हर बार।
शत्रु का शत्रु वह अपना मित्र यही कहावत मानी
और धैर्य से की प्रतीक्षा मदद की ।
जिसने दी मदद उससे ली ।
अपने बलबूते पर बनाई आज़ाद हिंद फौज
और चकित कर दिया दुष्मनों को भी ।
और कितनी करीब थी मंजिल जब रास्ता गुम हो गया ।
अपनों ने ही तुम्हें पराया कर दिया ।
चाहे यश किसी और दरवाजे पर चला गया,
पर तुम, सिर्फ तुम्ही थे उस सदी के महानायक ।