रविवार, 31 अगस्त 2008

सात राज्यों की सैर और अलास्का क्रूझ-3


इक्कीस जून की सुबह जल्दी उठ कर नहा धो कर तैयार हो गये । नाश्ता किया और सामान लेकर पहुंचे रेल्वे स्टेशन । अजित, साँन्ड्रा और कुसुम ताई सब हमें छोडने आये । कुसुमताई अब हमें माधुरी (प्रकाश-जयश्री की बेटी ) के यहाँ मिलने वाली थीं मिनियापोलिस (मिनिसोटा) में, अलास्का तो वे २-३ बार देख चुकीं थीं । अमेरिका में रेल-यात्रा का हमारा यह पहला मौका था । ट्रेन में अभी वक्त था तो पहले तो सब ने खूब गप्पें मारी ।

फिर जब
पता चला कि यहाँ रेल में भी एयर-लाइन की तरह सामान चेक-इन कराना पडेगा । तो वह किया । बाकायदा सारी सूट केसेस का वजन हुआ और उनको रेल्वे वालों ने अपने कब्जे में ले लिया । हमारी तो मौज हो गई सिर्फ हैन्ड-लगेज लेकर चढ गये डिब्बे में । राजधानी की तरह आराम-देह ट्रेन और राजधानी से कहीं ज्यादा साफसुथरी, मेरा मतलब राजधानी एक्सप्रेस से है । और लोग कम । तीन घंटे का सफर था सीएटल तक का । हम जाकर उनका केन्टीन भी देख आये । अब तक हम अमेरिका में भी खाना साथ ले कर चलने का महत्व समझ चुके थे तो इस बार भी वही किया था । (चित्र शो)

तो अपना खाना और रेल्वे से खरीदी कॉफी बस हो गई पेट पूजा । सीएटल पहुँचे, उतर कर देखा हमारा सामान स्टेशन के अन्दर बडे सलीके से रखा हुआ है । सामान लिया । और स्टेशन से बाहर आकर बैठ गये । स्टेशन का फाउन्टेन खराब था तो पानी खरीद कर पीना पडा ।
वहाँ से हमें चार बजे बस लेनी थी वेनकुअर (कनाडा ) के लिये । ठीक चार बजे बस आई हम तो वैसे ही बैठे बैठे बोर हो रहे थे तो बस के आते ही चढने को लालायित हो उठे । लेकिन ड्राइवर ने हमें अपने टाइम से ही चढने दिया । पंधरा मिनिट के बाद बस मे बैठे। बस भी हमारी वॉल्वो बसेस की तरह ही थी । मुश्किल से एक सवा घंटा बस चली होगी कि रुक गई बस । अब क्या, यह प्रश्न हमारे दिमाग में उथल पुथल मचाने लगा ।
ड्राइवर ने बताया कि यहाँ इमिग्रेशन होगा क्यूं कि बस केनडा में यानि दूसरे देश में प्रवेश करने वाली है । सारा सामान उतारा, पासपोर्ट आदि लेकर खडे हो गये छहों के छहों लाइन में । इस पूरी उठापटक में ४० मिनिट चले गये सोचा कि अब तो पहुँचने में देर हो जायेगी पर ट्रेवल टाइम में यह ४० मिनिट भी इनक्लूडेड थे । तो बस और डेढ घंटे बाद ड्राइवर ने बताया कि यह बस वेनकुअर मे ३ जगह रुकेगी । रिचमंड और डाउन टाउन वेनकुअर ।
हमारा होटल टेवल-लॉज रिचमंड में था तो हम वहीं उतरे और कहाँ तो हम सोच रहे थे कि वेनकुअर से रिचमंड ३०-३५ डालर खर्च होंगे तो यहाँ तो हमें हमारा होटल बस में से ही दिखाई दे गया । उतरने के बाद महज ४-४ डॉलर में हम अपने होटल पहुँच गय़े । बडा सुंदर होटल था और कमरे भी अच्छे थे । मैं, जयश्री और सुहास एक कमरे में तथा सुरेश, प्रकाश और विजय कमरे में तो दो ही कमरों में काम हो गया था । थकान हो गई थी तो वैनकुअर देखने का विचार रद्द कर दिया और शाम को पिज्जा मंगवा कर खाया । TV पर हमारी अब तक की शूटिंग देखी । जाकर पता किया कि होटल से port तक जहाँ से हमारी क्रूझ शुरू होनी थी कोई ट्रांसपोर्ट है या नही पता चला कि होटल से ही बस जाती है और उसका टिकिट है १० $ प्रति व्यक्ती । पर जाना तो था ही । बस सुबह ११ बजे जाने वाली थी।(चित्र शो)

तो हम जल्दी सो गये ता कि थकान अच्छी तरह उतर जाय ।
तो भाई दूसरे दिन सुबह सब लोग आराम से उठे सुहास और मैने प्राणायाम भी किया ।
तैयार हुए और नाश्ता किया फिर होटल के आसपास थोडा घूमें । एकदम से याद आया कि समीर भाई तो इसी देश में रहते हैं पर पता किसे मालूम था नही शहर का नाम तक तो पता नही , तय किया कि घर जाकर उडन तश्तरी देखनी पडेगी पते के लिये । वैसे मेरी ये सोच बिलकुल उन दादी माँ जैसी थी जो भारत में अक्सर मुझसे पूछती हैं,” हमारे दिनू से मुलाकात होती है क्या कभी, वह भी तो अमरीका में ही रहता है “।
बस ठीक ११ बजे आई, पर हमारी कुलबुलाहट ने हमें १०:३० से ही रिसेप्शन पर लाकर बैठा दिया । खैर बस अपने टाइम पर ही आई और हम चल पडे गंतव्य की और । रास्ते में खिडकी से झाँक झाँक कर देखते रहे कि थोडा सा वेनकुअर ही देख लें । करीब डेढ घंटा लगा हमें पहुंचने मे । और पहुंच गये हम पोर्ट पर । और पोर्ट के अन्दर दुकानें भी थीं और हमें वहाँ मिल गये समोसे । हम में से कुछ लोगों का संकट चतुर्थी का उपवास था तो वे तो
बस देखते ही रह गये । और हम बाकी लोगों ने मजे किये समोसा और चाय के साथ ।
फिर इंतजार करते रहे कि कब शिप पर बुलावा आये । शिप को तो ५ बजे चलना था ।
पर लगभग ३ बजे हमें बुला लिया गया और फिर वापिस इमिग्रेशन क्यूंकि शिप तो यू एस
जा रहा था अलास्का । (चित्र शो)

इमिग्रेशन के बाद हमने शिप में प्रवेश किया और चेक इन किया तो हमें हमारे कमरे की कार्ड चाभी मिल गई । अपने कमरे के सामने आकर खडे हो गय़े ( कमरा नंबर हमें पहले ही मिल चुका था), और चाभी लगाई पर यह क्या, कमरा तो खुला ही नही । हम परेशान फिर वहाँ के फ्लोर अटेंडेंट से मदद मांगी । उन्होने भी कोशिश की पर कमरा फिर भी नही खुला फिर उस अटेंडेंट ने रिसेप्शन पर जाकर पता किया तो पता चला कि हमारे कमरे बदल गये हैं यानि अपग्रेड किये गये हैं । सुहास ने क्यूंकि बुकिंग काफी जल्दी करा ली थी और बाद में और ज्यादा लोगों ने बुक कराया तो हमें कमरे, ऊपर के फ्लोर यानि पेंटहाउस फ्लोर पर मिल गये । अटेंडंट ने कहा कि हम उसके साथ चलें वह हमें कमरे तक पहुंचा भी देगा और हमारा सामान भी हमें वहीं मिल जायेगा । तो हम गये साहब और उसने कमरा खोल भी दिया और हम महिलाएं अपने कमरे में और पुरुष अपने कमरे में गये और क्या कमरे थे सुखद अनुभव था । सारी झंझट को भूल गये ।(चित्र शो)

खूबसूरत डबल बेड और तीसरे व्यक्ति के लिये सोफा कम बेड । बडे टेबल पर ताजे फूल । एक टोकरी में फल और साथ में एक शेंपेन की कॉम्लीमेंट्री बॉटल । साइड टेबल पर टेबल लैंप, हरेक के लिये २-२ केन्डी एक छोडासा सुंदर सा बाथरूम , एक क्लॉझेट और पीछे के दरवाजे के बाहर एक खूबसूरत नज़ारा दिखाती हुई बालकनी । अब आयेगा मजा क्रूज का ।

(क्रमश:)

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

सात राज्यों की सैर और अलास्का क्रूझ-2

दूसरे दिन सुबह चार बजे उठ गये ८ बजे की फ्लाइट जो पकडनी थी । और फ्लाइट वॉशिंगटन डी सी से लेनी थी । पोर्टलेंड में ३-४ दिन अजित (बडी दीदी का बेटा ) के यहाँ रुकना था । सफर में ८ घंटे लगने वाले थे । हालाँकि वेस्ट कोस्ट तीन घंटे पीछे होने की वजह ले पोर्टलेन्ड समय के अनुसार तो हम साढे ग्यारह बजे ही पहुंचने वाले थे । इतने सब लोगों के लिये खाने पीने की खूब सारी चीजें ऱख लीं और तो और पूरी आलू भी बनाकर ले लिये । ताकि शिकागो एयर-पोर्ट पर जहाँ से पोर्टलेंड की फ्लाइट लेनी थी, खाने पीने के पैसे बच जायें । यकीन मानिये उस आलू-पूरी में वह मजा आया कि कोई भी पिझ्जा विझ्जा उसके सामने पानी भरता नजर आता । तो पोर्टलेंड समय के अनुसार साडेग्यारह बजे हमारी उडान पहुँच गई ।


अजित हमें लेने आया था । अजित की पत्नी सांड्रा अमेरिकन है परंतु उसके घर जाते ही एक सरप्राइझ हमारा इंतजार कर रहा था । सांड्रा ने हमारे लंच के लिये विशुध्द भारतीय खाना तैयार किया था दाल सब्जी और रोटी । कुसुम दीदी की एक दोस्त चित्रा भी पोर्टलेंड में ही रहतीं हैं उन्होने चटनी रायते की व्यवस्था कर दी थी । हम तो इस बहू के कायल हो गये ।
विदेशी होकर भी देशी सासों, ससुरों के लिये इतनी मेहनत ।

खाने के बाद अजित हमें एक सुंदर सा जलप्रपात (फॉल) दिखाने ले गया । नाम आप चित्र में देख सकते हैं । बहुत ही सुंदर फॉल और खूबसूरत दृश्य । मै, मेरे पती सुरेश और देवर प्रकाश ऊपर तक जाकर बिलकुल नजदीक से फॉल देख कर आये । (चित्र शो) इसके बाद अजित हमें उसका लॉ कॉलेज दिखाने ले गया । सबसे पहले अमेरिकन ट्रेव्हलर्स लुईस और क्लार्क के नाम पर है यह कॉलेज और बहुत ही खूबसूरत परिसर । बहीं से देखा बर्फ से ढका माउन्ट सेंट हेलन ।(चित्र शो)

दूसरे दिन नाश्ते के बाद हम सब अजित के साथ रोज़-गार्डन गये । कुसुम दीदी घर पर ही रुक गईं बहू की मदद के लिये । और क्या कमाल का रोज़-गार्डन था वह । जिधर तक नजर जाये गुलाब ही गुलाब । छोटे गुलाब बडे गुलाब पीले गुलाब, सिंदूरी गुलाब, जामुनी गुलाब, शेडेड गुलाब, गुलाबी और सफेद तो थे ही उसके अलावा मेरून के विविध शेडस् लाल के विविध शेडस् एक लाल गुलाब तो इतना गहरा कि उसे नाम देना पडा ब्लेक रोज़ । करीब २-३ घंटे उस गुलाबी बागीचे में घूमते रहे । जिधर देखती हूँ उधर तुम ही तुम हो वाला हाल था । यहाँ हर साल गुलाबों की प्रतियोगिता होती है और सर्वोत्तम गुलाब को इनाम भी मिलता है और वह इस बागीचे का हिस्सा बन जाता है । ऐसे कई प्राइझ विनिंग गुलाब (चित्र शो)

इस बागीचे में देखने को मिलते हैं । हम सब ने खूब तसवीरें खींची और खिंचवाईं । ( स्लाइड शो देखें और साथ साथ दुर्गा स्तुति का आनंद लीजीये) ।

अगले दिन हमें स्टर्जन एक्वेरियम और सामन लेडर देखने जाना था । तो हम सुबह सुबह तैयार होकर चल पडे । तो पहले गये स्टर्जन पार्क यह एक एक्वेरियम है जहाँ बडी बडी स्टर्जन मछलियाँ हमने देखी । उनकी हेचरीज भी देखीं । फिशरीज़ की पढाई करने के बावजूद कभी ऐसी बडी मछलियाँ प्रत्यक्ष देखने का मौका नही लगा था । बहुत मजा आया । वहीं पर कुछ काली और मोरपंखी रंग की बतखें भी देखी ।(चित्र शो)

फिर गये पॉवर हाउस जहाँ पर हमें सामन सीढी (Salmon Ladder) देखने जाना था । यह प़ॉवर हाउस कोलंबिया नदी पर स्थित है और इसका पात्र इतना चौडा है कि समुद्र ही लगता है । सामन एक समुद्री मछली होती है जो सिर्फ प्रजनन के लिये मीठे पानी में सही कहें तो एस्चूरी (जहां नदी समुद्र से मिलती है) में आती हैं और यह समुद्र से नदी तक का सफर बहुत मुश्किल होता है क्यूं कि प्रवाह के विरुध्द तैर कर आना पडता है (नदी का पानी तो तेजी से समुद्र से मिलता रहता है) इनकी सुविधा के लिये बांधों में इस तरह की सीढीयाँ बनाई जातीं हैं ताकि इन मछलियों का प्रवास थोडा बहुत सुखकर हो और प्रजनन में बाधा न पडे । इसमें भी इन्सान का निजी स्वार्थ तो होता ही है । (चित्र शो)

ये सीढियाँ इस तरह बनाई जातीं हैं कि मछली नदी की तरफ आगे को चली जाये और पानी भी इस तरह छोडा जाता है कि उसमें वेग तो हो पर इतना भी नही कि मछलियाँ थक कर वहीं दम तोड दें । चालीस साल पहले पढी हुई बातों को सामने घटते देखा तो बडा मजा आया । ये मछलियां प्रजनन के बाद थक कर दम तोड देती हैं पर उनके बच्चे थोडी ताकत आते ही वापस समुद्र में चले जाते हैं ।(चित्र शो)

घर आये तो लंच तैयार था । खाना खाया गप्पें मारीं ओर थोडा लेटे । फिर अजित और सांड्रा का पियानो सुना । दोनो बहुत अच्छा पियानो बजाते हैं । अजित ने तो इंजीनियरिंग और लॉ के साथ साथ म्यूजिक मेजर भी किया है । (चित्र शो)

अगले दिन अजित हमें जंगल में ट्रेल-वॉक के लिये ले गया । जिंदगी में पहली बार ट्रेल पर गये। वैसे तो छोटी सी ट्रेल थी कोई २० मिनट की वॉक पर जंगल काफी घना था । एक पगडंडी पर चल रहे थे हम । तरह तरह के पेड पौधे ऊँचे ऊँचे भी इतने कि मानो आसमान छू रहे हों और छोटे झाडीनुमा भी और बीच के से पेड भी जैसे हमारे यहाँ आमतौर पर दिखते हैं । (चित्र शो)

खूब इच्छा थी जानने की कौनसा पेड कौनसा है , पर मेपल, ओक, पाइन और सायकस और क्रिसमस ट्री के अलावा ज्यादा किसी को कुछ मालूम नही था । धूप बहुत छन छन के आरही थी । इसीसे सब बहुत सुखद लग रहा था । पक्षी थे पर बडे पशु नही दिखे गनीमत । मोटी मोटी गिलहरियाँ जो सब जगह दिख जातीं हैं अवश्य दिखीं । रात का खाना हमारा चित्रा और कुमार (कुसुम दीदी के मित्र) के घर था । दूसरे दिन सुबह ११ बजे की हमारी ट्रेन थी सीएटल के लिये । साँन्ड्रा ने हमारे टिकिट पहले से ही निकाल रखे थे ।
(क्रमश:)

शनिवार, 23 अगस्त 2008

सात राज्यों की सैर और अलास्का क्रूझ

मार्च की बात है रात को ऐसे ही लेट कर एक किताब पढ रही थी कि फोन की घंटी बज उठी फोन उठाया तो सुहास (मेरी छोटी ननद) थी लाइन पर । न दुआ न सलाम बस छूटते ही बोली, “इस बार पक्का अलास्का जा रहे हैं भाभी, और तुम लोग भी आ रहे हो” ।


“क्या अलास्का, पता है कितनी ठंड होगी वहाँ और मेरा आरथ्राइटिस, मेरे घुटने जाम करवाने हैं क्या”, मेरा जवाब । अरे क्रूझ पर जा रहे हैं, शिप में, पैदल नही । और हर बार तेरे लिये तापमान देख कर जगह चुनेंगे तो बढिया बढिया जगह कैसे देख पायेंगे । तू चल तो कुछ नही होगा तेरे घुटनों को और मुझे देख मै कुछ कह रही हूँ ३ साल बडी हूँ तुझसे । और तय हो गया कि इस बार जैसे ही अप्रेल में हम यू.एस. पहुँचेंगे एक डेढ महीने बाद ही हमें बडी दीदी के यहाँ पहुँचना है जहाँ एक लंबा चौडा कार्यक्रम हमारा इंतजार कर रहा होगा ।
और इस प्लान के तहत हम राजू (हमारा बडा बेटा ) के यहाँ से १ जुलै को निकल पडे एन्डरसन (साउथ केरोलाइना) से । हमारा पहला पडाव था ब्लेक्सबर्ग (वर्जीनिया) जहाँ सुरेश की बडी दीदी कुसुम ताई रहती हैं । उनके पास ३-४ दिन रहे उनके साथ मेरी बहुत बनती है, इत्तेफाक से हम दोनों की जन्म तारीख एक ही है । कुसुम ताई को जो मूवी या जो किताब अच्छी लगती है उसे वे बार बार देखती या पढती हैं । उनके यहाँ जोधा अकबर देखी जो उन दिनों की उनकी पसंदीदा मूवी थी मुझे भी अच्छी लगी । वे हमे क्लेटर लेक की सैर कराने ले गईं जो बहुत ही सुंदर लेक है (चित्र-शो में देखें ) । वहाँ से सुहास के यहाँ पहुँचे ६ तारीख को ७ को वहाँ प्रकाश और जयश्री (सुरेश के छोटे भाई और भावज) भी आ गये ।

और फिर १३ तारीख तक हम सब सीनीयर सिटिझन्स ने बडे मजे किये । हम में जयश्री सबसे छोटी थी (५९की) उसे हम बेबी ऑफ दि ग्रूप कहते थे । तो हमने खूब खाने बनायें और खायें भी, जोक्स सुनायें घूमें फिरे और मूवीज देखीं और तो और हिन्दी सीरीयल भी देखें और जम के क्रिटिसाइज़ किया और हँसे भी खूब । सत्य नारायण जी की पूजा भी की मजे उडाते उडाते भगवान जी की याद भी आ गई (न न यह पहले से ही तय था )।
(चित्र शो में देखें )

तेरह को पहुँचे अजय (सुहास का बेटा) के यहाँ, न्यू जर्सी के ओशन सिटी । मनमें थोडी हिचक थी कि इतने सारे लोग जा रहे हैं पहली बार कैसा रहेगा पर खूब मजा आया । अजय ने केवल हम लोगों को घुमाने के लिये वीक-एन्ड फ्री रखा था । पहले दिन शाम को वह हमें ओशन सिटी बीच पर ले गया वहाँ बोर्ड वॉक किया और एक जलेबी नुमा चीज खाय़ी उसे फ्राइड केक कहते हैं जैसे जलेबी के घोल को छोटे छोटे पकोडों के आकार में एक के ऊपर एक चिपका कर एक केक सा बना दिया हो । दूसरे दिन सुबह फिर बीच पर गये पानी में घूमें और रेत का किला बनाने में आकाश (अजय का बेटा) की मदद की । रेत पर चले पर यहाँ शंख सीपी कुछ नही मिले क्यूंकि यह रीक्लेम किया हुआ बीच है । घर आये तो मीनू (अजय की पत्नी) ने पाव-भाजी और सूप तथा सेलेड का प्रोग्राम बनाया था । अमित भी अर्चना और श्रेया के साथ (हमारा छोटा बेटा, बहू, और पोती) आ गया था । खूब मजा आया श्रेया तो जैसे सब के लिये खिलौना बन गई थी (चित्र शो)। शाम को एटलान्टिक सिटी घूमें ये लास वेगास की तरह की ही जगह है सब दूर खाना पीना और कसीनो । पर हर कसीनो है बहुत सुन्दर । कोई ३ मील का बोर्ड वॉक है और कोई २५-३० अलग अलग कसीनो । एक ताज़महल नामका भी कसीनो था । (चित्र शो )

वहाँ पर खूब घूमें । काफी कसीनो देखें भी, पर जूआ नही खेला । पैसे किसके पास थे । पंधरा को सुबह वापिस मार्टिन्सबर्ग । रास्ते में एक फूड कोर्ट में खाना खाया । सतरा की सुबह हमें पोर्टलेन्ड के लिये फ्लाइट लेनी थी ।

(क्रमश:)

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

राखी

आज हिंदु केलेंडर के हिसाब से इस ब्लॉग को एक बर्ष पूरा हुआ । पहली कविता भी राखी पर ही थी और उस पर उन्मुक्त जी की टिप्पणी पाकर बहुत खुशी हुई थी । पूरे साल आप सब ब्लॉग मित्रों का जो स्नेह मिला है उससे बहुत ज्यादा खुशी मिली है मुझे । यही स्नेह बनाके रखें.


भैया तुम राखी पे आते,
कितने बीते सावन हम तुम फिर दोहराते । भैया...

यादों के वे मधुर मधुर स्वर
अपनी अपनी आवाजों में उनको गाते
फिरभी हम कोई बडे गवैया नही कहाते ।भैया...

वो बचपन का छोटा आंगन
आंगन की छोटी फुलवारी
फुलवारी में शायद कुछ कुछ हम तुम बोते ।भैया..


खेल खेल में हँसना रोना
गुस्सा करना और मनाना.
कितने कितने हंगामें तो दिन में होते । भैया...

वो थाली वो दीपक रोली
वो राखी कुछ चमकी वाली
बांधती मैं और तुम जवरन रुपए रख देते ।भैया...

ऱाखी पर अब मिल नही पाते
पर यादों के कितने सोते
इस मनमे अक्सर कल कल कल
बहते रहते । भैया....
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आज का विचार
मुसीबत के हर पहाड के सामने कोई न कोई
चमत्कार जरूर होता है बस प्रयत्न पूरे होना चाहिये ।
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स्वास्थ्य सुझाव
दुबले पतले लोगों को वजन बढाने और स्वस्थ रहने के लिये
१ कटोरी अंजीर , १ कटोरी खूबानी, १ कटोरी बादाम और आधी कटोरी मिश्री
टुकडे कर के एक डिब्बे में रख लें दिन में ३ बार खाय़ें ।
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शनिवार, 9 अगस्त 2008

पंद्रह अगस्त

पात हरे,पातों के बीच रंगबिरंगे
फूल खिले चटखीले, लहरायें ज्यूं तिरंगे
फूल कुछ सफेद और हैं कुछ नारंगी
जैसे धरती माँ की चुनरी हो तिरंगी

ये तो धरा की छवि, और आसमाँ है नीला
और नीले आसमाँ पे सूरज कुछ पीला
पीले सूरज को ढकने आये कुछ बादल
कुठ ऊदे, कुछ सफेद, कुछ काले काजल


जगह जगह झंडे पताकाएँ फहराते
बच्चे कुछ शरमीले, कुछ गीत गाते
भारत माता का ये अर्चन करते हैं
और वीरों का उसके वंदन करते हैं

याद किये जाते हैं वीरों को अपने
जिन्होंने कभी देखे और सच किये सपने
करते हैं प्रतिज्ञाएं कि बनेंगे वीरवर
जियेंगे वतन के वास्ते मरेंगे तो वतन पर

देख कर ये जश्ने आजादी आँख भर आई
अपना देश तो अब सुरक्षित है भाई

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

मौका परस्त

नफरत करें या प्यार वो हम उनके हो लिये
दो चार दिन को ही सही बस साथ हो लिये ।

अब देखना है करवट किस, बैठता है ऊँट
अपना है क्य़ा, दायें तो कभी बायें हो लिये

जनता का क्या है उसको तो देना किसीको वोट
हम उसके साथ थे कभी, अब इसके हो लिये


सिक्का तो उसका चलता है जो मौका न छोडता
मौका जो छोड दे, उसे फिर क्या तो बोलिये

इस स्यासती अखाडे में पहलवान हैं सभी
हम है उसी के साथ कि जय जिसकी, बोलिये


आज का विचार

अगर हम आज भी बीते हुए कल में जीयेंगे
तो आनेवाले कल को कैसे देख पायेंगे ।

स्वास्थ्य सुझाव

दाँत के दर्द को कम करने के लिये एक टुकडा अद्रक
नमक लगा कर गरम करें और दुखते दाँत के नीचे रख लें
धीरे धीरे चबाते रहें दर्द अवश्य कम होगा ।