शनिवार, 29 दिसंबर 2007

नव नर्ष की शुभ कामनाएँ

यह नये वर्ष की नई सुवह ।
यह नये वर्ष की..

ऊषा गाती मंगल प्रभात
यह दशों दिशाएँ सद्य:स्नात
यह खग कलरव का अरुण गान
नूतन अवनी, अभिनव विहान
महकता धरा आँचल मह मह । यह नये वर्ष की


फूलों के चेहरे चटकीले
बच्चों के पेहरे रंगीले
नव तरुणों की ऊँची उडान
और वृध्दों की कुछ कम थकान
नूतन समाज का नव वैभव । यह नये वर्ष की..

धुल जाये भय का तम काला
घर घर में फैले उजियाला
य़ह उजियाला करना अक्षय
होगा हमको बनकर निर्भय
भारत फिर कहलाये सह्रदय । यह नये वर्ष की..

कोई न रहे उदास चिंतित
हम हर लें उसके दु:ख त्वरित
सबके चेहेरे स्मित आलोकित
यह वैभव हो अपना स्व-रचित
अनुभव कर लें आत्मिक गौरव । यह नये वर्ष की..

यह मंगल गान रहे गुंजित
यह धरा सदैव रहे सुरभित
जन-जन का मानस हो प्रमुदित
कुसुमित बगिया, आंगन मुकुलित
पुलकित मन प्राण करें अनुभव । यह नये वर्ष की..




आज का विचार

त्याग मे सुख अवश्य है पर त्याग का अर्थ
कायरता नही होना चाहिये ।

स्वास्थ्य सुझाव

कान में रिंगिंग ठीक करने के लिये
तुलसी के ६ पत्ते पहले दिन खाइये
और रोज़ एक एक बढाते हुए २१ पतों तक
खाकर बंद कीजीये ।

रविवार, 23 दिसंबर 2007

कहीं तुमने तो नही याद किया

आज किस कदर अनमनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

यूँही बिखरी लटें सवाँर रही
कभी चेहेरे को ही निहार रही
और जब किसी ने पूछा तो
बात को हँसी में टाल रही
किस लिये यूँ बनी ठनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

गीत के बोल गुनगुनाती हूँ
गाती हूँ खुद को ही सुनाती हूँ
और जरा किसी आहट पे
मुस्कुरा कर के चुप लगाती हूँ
आज क्यूँ साँझ रागिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

आँखों को बंद करके रहती हूँ
जाने क्यूँ खुद से बात करती हूँ
कभी नाराज़ कभी खुश होती
कभी फिरसे उदास रहती हूँ
किसलिये यूँ विरहिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

आज का विचार

किसी और के समय को सुंदर बनाना समय का सच्चा सदुपयोग है ।

स्वास्थ्य सुझाव

बंद नाक खोलने के लिये नाक के बाहर ऊपर से नीचे
देसी घी मलें ।

रविवार, 16 दिसंबर 2007

याद

आती है याद तुम्हारी हवा के साथ
महकी खुशबू से रात रानी के
फिर तो मन भी खिला खिला रहता
बे वजह रात आसमानी से

जब भी सुन लूँ पुराना गीत कोई
तुम जहन में ही उतर आते हो
और कैसे वहाँ से चोरी से
दिल के आईने में बस जाते हो

क्या तुम्हें भी मै याद आती हूँ
जब भी सुनते हो नया गीत कोई
या कि फिर किताब में छूटा
देखते हो दबा सा फूल कोई

हो गये दिन बहुत, न तरसाओ
बस मेरे पास लौटकर आओ
मेरी साँसों को फिर से महकाओ
मेरे जीवन में रंग ले आओ


आज का विचार

जो पक्षी बादलों में घोंसला बनाना चाहता है
वह सदैव ऊँची डालियों पर ही विचरण करता है ।

स्वास्थ्य सुझाव

गॅस और एसिडिटि के लिये
१ चम्मच जीरा पाउडर
१ चम्मच धनिया पाउडर
एक चौथाई चम्मच अजवायन पाउडर
१ गिलास गुनगुने पानी मे डाल कर हिलायें
और धीरे धीरे पीयें ।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

जिंदगी की शाम

जिंदगी की शाम हो गई
जिंदगी ही जाम हो गई
न आगे बढे ना पीछे मुडे
कोशिशें नाकाम हो गई । जिंदगी की......

हाथ छूटे, साथ छूटे
रिश्ते सारे निकले झूटे
काँटे बन गये सारे बूटे
बीच रस्ते में खडे हम
भीड में सुनसान हो गई । जिंदगी की......

चुप लगाये हम बेचारे
अब तो आगे ही हमारे
नाकामियों के किस्से सारे
लोग गिनवाने लगे हैं
जान ही हलकान हो गई । जिंदगी की

रोशनी कम, आंख है नम
सांस भी आती है थम थम
क्या खुशी है और क्या गम
किसको फुरसत है कि देखे
रात क्यूँ सरे शाम हो गई । जिंदगी की......

देह अपनी थकी हारी
रूह बे गैरत बिचारी
पूछती है बारी बारी
फूलों वाली थी ये क्यारी
खिली रहती थी हमेशा
कैसे अब वीरान हो गई । जिंदगी की......

आजका विचार
सफलता वही होती है जिसमें इन्सान अपनी मर्जीसे अपनी जिंदगी जीता है ।

स्वास्थ्य जानकारी

बिच्छू का जहर अब केन्सर के इलाज में । इसमें एक विशेष किस्म का प्रोटीन पाया जाता है जो केवल केन्सरस कोशिकाओं से ही बंधता है और उन्हे नष्ट करता है ।।शोध में इसका प्रयोग अब ब्रेन ट्यूमर्स पर किया जा रहा है और सफलता प्राप्त हुई है
(ये महज़ जानकारी है, इलाज नही )।

सोमवार, 3 दिसंबर 2007

अंतक की असलियत

मृत्यु, मैने तुम्हे देखा है,
जाना है, समझा है करीब से
तुम वो नही हो जो कवियों और संतों ने
हमे बहलाने के लिये बताया था ।

नही हो तुम कोमल भावों वाले वर
जो सजधज कर आता है अपनी प्रिय
दुल्हन का वरण करने
नही हो तुम वह जिसके लिये हमारी
आत्मा नव-वधु की तरह घबराई,
शरमाई और उत्सुक होती है
नही हो तुम हमारी मुक्ति का द्वार

तुमतो डकैत हो, जो इस आत्मा वधु के
घर को खंड खंड विखंड करते हो
अपनी विषैली साँसों से से दूषित करते हो
अपने फफूंदी औजारों से गला गला कर
क्षत-विक्षत करते हो

और फिर इस घर से उसे, नोच कर,
खसोट कर ले जाते हो
परिवार जनों को बिलखता, टूटा और आहत छोडकर
किसी बलात्कारी की तरह

जान गये हैं तुम्हारी असलियत
तुमको देख लिया, जान लिया, समझ लिया करीब से ।

श्रध्दांजली
हमारे परम स्नेही एवं मित्र श्री ओमप्रकाश रस्तोगी जी कल सुबह साढे दस बजे
काल कवलित हो गये । इतने अच्छे इन्सान कम ही देखने को मिलते हैं।
अपने परिवार जनों की उनकी हर मुसीबत में सहायता करने वाले रस्तोगी जी
अपने पडोसियों से भी सौहार्दपूर्ण एवं सहायक संबंध बनाये रखते थे ।

पिछले आठ सालों से वे एक असाध्य और दुर्धर रोग से किसी बहादुर योध्दा की तरह
जूझ रहे थे और किसी की भी हमदर्दी उन्हें गँवारा नही थी । किसी भी संबंधी को
बताये बिना उस रोग से टक्कर देते हुए उन्होने अपने सारे दायित्वों की पूर्ती की ।
उनके इस संघर्ष की साथी रहीं उनकी हमसफर मीनाजी । इसी संघर्ष के
हम भी साक्षी रहे हैं । उन्हें हम सब की और से भावभीनी श्रध्दांजली।
उनके इसी संघर्ष और उसकी समाप्ती पर सादर थी ये कविता।


आजका विचार
किसी वस्तु या व्यक्ती का अभाव ही दु:ख है ।

स्वास्थ्य सुझाव
रात के पहले पहर की नींद हमें दुगना विश्राम देती है ।

शनिवार, 1 दिसंबर 2007

कैसे वो रात गुजरी

मेरे करीब होकर ऐसे वो रात गुजरी
मुझसे नजर चुराकर हाय वो रात गुजरी ।
नींदें मेरी उडायीं सपने कहाँ से देखूँ
बस आँखों ही आँखों में मेरी वो रात गुजरी ।
ख्यालों में अपने उनको मैने सजाया भी तो
बेख्याल हो गया मै, कैसे वो रात गुजरी ।
हमने उन्हे बुलाया ले ले के नाम उनका
मेरी ये बात शायद उन्हें नागवार गुजरी ।
सांसों में नाम उनका ले ले के जी रहा था
वो ही लगीं उखडने, परेशान रात गुजरी
उनके लिये की मैने अल्लाह की इबादत
वो बुत परस्त निकले, मंदिर में रात गुजरी ।
हुई मेरी कोशिशें सब नाकाम, दोस्त मेरे,
अब तू बता कि तेरी कैसी थी रात गुजरी ।


आज का विचार
सफलता के नियमों को पढने से सफलता नही मिलती
उन्हे समझना भी बहुत जरूरी है ।

स्वास्थ्य सुझाव
अगर दिन में नींद आये तो थोडा बाहर निकल कर धूप (रोशनी) में घूमें, नींद जाती रहेगी ।

सोमवार, 26 नवंबर 2007

यात्रा ए हवाई 5...अंतिम..

यात्रा ए हवाई अब तक
हवाई जाने का प्लान बनते ही हम खुश हो गये । हम दोनो बॉस्टन से और सुहास और विजय वॉशिंगटन से Los Angeles (एल ए ) पहुंचे । वहीं से हमे होनोलूलू (हवाइ की राजधानी) के लिये उडान लेनी थी । Los Angeles (एल ए ) में विजय के भाई तथा भाभी के साथ हॉलीवुडमे यूनिवर्सल स्टुडिओ देखा जहां फिल्मों की शूटिंग की जाती है । हवाइयन द्वीप समूह में वैसे तो छोटे बडे कोई १०७ द्वीप हैं पर केवल ६ ही बसे हुए है । हम कवाई में ही पूरा हप्ता रहने वाले थे । तो दूसरे दिन सुबह ९ बजे हमने एयर ट्रान की उडान ली और पहुंच गये होनोलूलू । वहाँ से फिर आलोहा एयर से आधे घंटे में कवाइ पहुंच गये । वहाँ पहुंच कर हमने एक सुबरू कार किराये पर ली । कवाई के खूबसूरती का आनंद उठाते हुए हम कार से हनलाई बे रिसॉर्ट की और चल पडे जहां हमे एक हफ्ते के लिये टाइम शेयर का अपार्टमेन्ट मिला था । (सुहास के बेटे अजय को सौजन्य से ) दूसरे दिन गये हनलाई बीच और पक्षी अभयोद्यान वहाँ खूब मजे किये । तीसरे दिन फार्मर्स मार्केट गये और हदाई के फल और सब्जियाँ खरीदीं । चौथे दिन हमें जाना था हिंदु मोनॅस्ट्री और वायमिया केनियॉन्स । हिंदु मोनेस्ट्री में कोई २५० विद्यार्थी हिंदु ध्रर्म की दीक्षा ले रहे हैं । ये एक शिव मंदिर है । यहां मुख्य मू्र्ती स्फटिक का शिवलिंग है । और नटराज की भी बहुतसी मूर्तीयाँ हैं । आस पास का परिसर तो बहुत ही सुंदर है । विभिन्न प्रकार के पेड पौधों से सजा हुआ । वायमिया केनियॉन्स कवाई के पश्चिम में हैं। ये हैं बडी बडी खाइयाँ और पहाड , दस मील तक फैली हुई हैं और बहुत ही भव्य हैं । इन सब सुंदर जगहों से आँखों को तृप्त कर हम थोडी देर समंदर के किनारे बैठे सी पॉन्ड बीच पर और वापिस ठिकाना पास किया । गुरुवार को हमें हवाइयन पार्टी –लुआउ में जाना था स्मिथ परिवार के घर , वहाँ पहले हम लोगों का सवागत हुआ फिर एक बडे से बागीचे की सैर फिर एक कुकिंग डेमो, फिर खाना और फिर नृत्य और गायन ।
अब आगे..

गुरुवार रात से ही खूब बारिश हो रही थी और रात भर हुई । यह हवाई की सामान्य बारिश नही थी । हमें शुक्रवार को बोट टूर पर जाना था । गुरुवार रात को ही ऑरगेनाइजर का फोन आ गया कि कल की टूर शायद न हो और आप कल कनफर्म कर लेना । सुबह ७ बजे पहुँचना था । हम सब जल्दी जल्दी तयार हुए । और फोन करने स्वागत कक्ष में पहुंचे कि बोट अगर जाने वाली हो तो हमारे तरफ से कोई देरी न हो । लेकिन पता चला -नही बोट नही जायेगी और यही क्या कोई भी बोट नही जायेगी, क्यू कि तूफान का अंदेशा है । गया दिन पानी में । बडे मायूस हो कर कमरे में लौटे। अगला दिन हमारा आखरी दिन था, इसलिये कुछ ज्यादा प्लान भी नही किया था । इतवार को सुबह ही हमारी उडान थी । उसके पहले कार भी वापस करनी थी । तो नाश्ता कर के फिर आ गये नीचे स्वागत कक्ष में कि कल के लिये ही कोशिश करते हैं पर, “नही कल भी कोई बोट टूर नही “ जवाब मिला । फिर हेलीकॉप्टर टूर के लिये पता किया वह थी पर अगले दिन । तुरंत उसके लिये बुकिंग किया वह सुबह थी १० बजे । उसके लिये हमें ९ बजे पहुंचना था । चलो शनिवार तो हुआ बुक ।
अब आज क्या करें । थोडी देर में धूप निकल आई करीब ११ बजे थे । तो सोचा चलो पहले थोडी बहुत शॉपिंग करते हैं और एक और बीच एक्सप्लोर करते हैं । फिर बैठे सुबरू में और पहुंचे एबीसी स्टोर गिफ्टस् खरीदें और फिर अनीनी बीच ।
ये वाइल्ड बीच माना जाता है । रास्ते में एक फल की दूकान से शुगर लोब पाइन एपल खरीदे और आम भी । कि थोडा चबेना हो जाये ।

ऐसे देखने से तो कोई तूफान वूफान का पता नही चल रहा था । मै और सुहास शंख और सीपियाँ ढूँढने लगे पर कोरल के टुकडों के सिवा कुछ न मिला । पर समंदर था
उग्र । काफी बडी बडी और ऊँची ऊँची लहरें आ रहीं थी । उन लहरों की बहुत सी तसवीरे ली, विडियो किया । वहाँ बडे सारे लडके सर्फिंग कर रहे थे । फिर वहाँ किनारे पर यहां से वहाँ घूमे । फिर सुहास ने और मैने रेत के घर बनाये, पाँव को रेत में डाल कर उसके ऊपर रेत थाप थाप कर । फिर सुहास को क्या सूझी उसने अपनी पॅन्ट घुटने तक ऊपर उठा कर उस पर खूब सारी रेत डाल कर थाप कर बैठी रही । पूछने पर कहा नेचरोपॅथिक ट्रीटमेन्ट ले रही हूँ आरथ्राइटिस के लिये । ३-४ घंटे वहाँ गुजारने के बाद मुल्लाजी वापस अपने मस्जिद में । फिर अपने पंछी दोस्तों के साथ चाय बिस्कुट का दौर चला । फिर थोडा टी वी देखा और नीचे रिसॉर्ट घूमने चले गये फिर वहीं के रेस्तराँ में पिज्झा खाया और वापस रूम्स में । कल हेलीकॉप्टर टूर पे जाना था सभी उत्साहित थे और थोडे आशंकित भी, पहली बार जो चढना था हेलीकॉप्टर पर । बोट पर न जा पाने का दुख सभी को था पर मुझे, सुहास और विजय को थोडा ज्यादा । झूलॉजिस्ट जो ठहरे । हमने तय किया था कि हेली टूर की बजाय बोट टूर लेंगे पर हेलीकॉप्टर पर तो चढना बदा ही था ।
दूसरे दिन सुबह ९ बजे खा पीकर पहुँच गये हॅली पॅड पर। हमारी हॅली कंपनी थी
हेली-यू एस ए । पहले हमारा कॉफी व कुकीज से सत्कार हुआ फिर हमें इस टूर के
बारे में एक फिल्म दिखाई गई जिसके कुछ अंश आप भाग ३ में देख चुके हैं ।
दर असल हेलीकॉप्टर आपको पूरे कवाई की आसमानी सैर कराता है । तो भई फिल्म देख कर तो तबियत खुश हो गई । वहाँ से बाहर निकले तो हमें सेफ्टी जॅकेट दिये गये उन्हे पहनना कैसे यह बताया गया और सुरक्षा से लैस होकर हम सब चढ गये हॅलीकॉप्टर पर (बिलकुल चढ़ जा बेटा सूली पर वाले अंदाज में) । मुझे और सुहास को आगे बिठाया गया क्यूंकि हम दोनों का वज़न अपेक्षा कृत कम था । और विजय तथा सुरेश को पीछे इस बात का उन्हें बडा मलाल रहा क्यूंकि फोटो आगे से ही अच्छे खींचे जाते और हमारी काबिलियत पर और मर्दों की तरह उन्हें भी ज्यादा भरोसा नही था । तो हमारे हेलीकॉप्टर ने उडान भरी और ले गया वो हनलाई बे के ऊपर । फिर हरे भरे खेतों के ऊपर से होता हुआ पहुंचा वाईलेले पहाड पर बीच में एक जगह न्यू्क्लीयर पॉवर हाउस दिखाई दिया और नोमोलोकामा प्रपात देखें । इस बडे प्रपात के अलावा बहुत सारे छोटे छोटे झरने भी देखें । फिर दिखीं वायमिया केनियॉन्स जिनका एक बडा सा भाग काफी हराभरा और सुंदर था और ज्वालामुखी पहाडी । इसके बाद था अलक्काई स्वाम्प और पिर भव्य और दिव्य़ नापाली कोस्ट । जहाँ आप उतर नही सकते सिर्फ देख सकते हैं ,क्यूंकि यहाँ कोई बीच नही है सारा का सारा कोस्ट पहाडी है । पहाड और सीधा नीचे समंदर । जो कि हमारा आखरी पॉइन्ट था , इसके बाद वापिस । बडे एकसाइटेड उतरे सब के सब । टूर की डीवीडी हमें भेंट स्वरूप मिल गईं । वापस आये खाना खाय़ा और हनलाइ बीच पर पहुँच गये । देर तक बैठे रहे सूरज के डूबने के इंतजार में और खूब तसवीरें लीं । कल तो उगते सूरज को देख सकते थे हम कवाई में बस । तो वापिस आ कर हवाई के गाने सुनते रहे । फिर रात को पॅकिंग किया सुबह ८ बजे जो निकलना था । सोने से पहले कवाई को धन्यवाद तिया इतना अच्छा समय देने के लिये । सुबह उठे, तैयार हुए और निकल पडे, जानेसे पहले सब को महालो कहा जिसका मतलब है घन्यवाद । फिर कवाइ एयर पोर्ट फिर होनोलूलू और एक और फ्लाइट से एल ए । रात भर एल ए में गुजारने के बाद फिर अगली फ्लाइट से बॉस्टन और ड्युरहम अमित के घर । सब को सफर के खूब किस्से सुनाये और गिफ्टस दिये । हमने तो बहुत एन्जॉय किया, आपको कुछ मजा आया ?
..समाप्त...
(उपरोक्त संदर्भ मे--चित्र SlideShow देखे )





(उपरोक्त संदर्भ मे--व्हीडिओ देखे )

बुधवार, 21 नवंबर 2007

यात्रा ए हवाई ४

यात्रा ए हवाई अब तक
हवाई जाने का प्लान बनते ही हम खुश हो गये । हम दोनो बॉस्टन से और सुहास और विजय वॉशिंगटन से Los Angeles (एल ए ) पहुंचे । वहीं से हमे होनोलूलू (हवाइ की राजधानी) के लिये उडान लेनी थी । Los Angeles (एल ए ) में विजय के भाई तथा भाभी के साथ हॉलीवुडमे यूनिवर्सल स्टुडिओ देखा जहां फिल्मों की शूटिंग की जाती है । हवाइयन द्वीप समूह में वैसे तो छोटे बडे कोई १०७ द्वीप हैं पर केवल ६ ही बसे हुए है । हम कवाई में ही पूरा हप्ता रहने वाले थे । तो दूसरे दिन सुबह ९ बजे हमने एयर ट्रान की उडान ली और पहुंच गये होनोलूलू । वहाँ से फिर आलोहा एयर से आधे घंटे में कवाइ पहुंच गये । वहाँ पहुंच कर हमने एक सुबरू कार किराये पर ली । कवाई के खूबसूरती का आनंद उठाते हुए हम कार से हनलाई बे रिसॉर्ट की और चल पडे जहां हमे एक हफ्ते के लिये टाइम शेयर का अपार्टमेन्ट मिला था । (सुहास के बेटे अजय को सौजन्य से ) दूसरे दिन गये हनलाई बीच और पक्षी अभयोद्यान वहाँ खूब मजे किये । तीसरे दिन फार्मर्स मार्केट गये और हदाई के फल और सब्जियाँ खरीदीं । चौथे दिन हमें जाना था हिंदु मोनॅस्ट्री और वायमिया केनियॉन्स । हिंदु मोनेस्ट्री में कोई २५० विद्यार्थी हिंदु ध्रर्म की दीक्षा ले रहे हैं । ये एक शिव मंदिर है । यहां मुख्य मू्र्ती स्फटिक का शिवलिंग है । और नटराज की भी बहुतसी मूर्तीयाँ हैं । और आस पास का परिसर तो बहुत ही सुंदर है ।विभिन्न प्रकार के पेड पौधों से सजा हुआ । वायमियावासमिया केनियॉन्स कवाई के पश्चिम में हैं। येहैं बडी बडी खाइयाँ और पहाड , . यो दस मील तक फैली हुई हैं और बहुत ही भव्य
हैं । इन सब सुंदर जगहों से आँखों को तृप्त कर हम थोडी देर समंदर के किनारे बैठे सी पॉन्ड बीच पर और वापिस ठिकाना पास किया ।
अब आगे.........


आज था गुरुवार और आज हमें हवाइयन पार्टी में जाना था जिसे हवाइयन भाषा में लुआउ कहते हैं । हवाई में जो यहाँ के रईस परिवार हैं, वे ये डिनर कम मनोरंजन पार्टियाँ आयोजित करते हैं । यही इनका कमाई का जरिया है । क्यूं कि टिकिट खरीद कर ही इस पार्टी में आप शामिल हो सकते हैं ।
इनके पास बडे बडे बागीचे हैं और शानदार घर हैं और बडे बडे परिवार भी । एक परिवार में कम से कम ५० सदस्य होते हैं चार पाँच पीढीयाँ तो आराम से होती है। और परिवार के ही लोग स्वागत से लेकर मनोरंजन तक का भार सम्हालते हैं, जिसमें खाना बनाना, सजाना, आवभगत करना, मनोरंजन कार्यक्रम करना सब आता है। इस तरह का परिवार देखकर और इन्हें यूँ मिलजुल कर ये एकदम अभिनव बिजनेस करते देखकर बडा अच्छा लगा ।

हम जिस परिवार की पार्टी में गये थे ये था स्मिथ परिवार इनके पर-दादा मिस्टर स्मिथ
जो कि ब्रिटिश मूल के थे, कोई ८० साल पहले कवाई में आये और यहीं के हो गये । शादी भी हवाइयन लडकी से की और इन्ही दोनों का ये परिवार है । । ज्यादा तर सदस्य शक्ल से हवाइयन ही लगते हैं ।
इस परिवार में ये काम इनके दादाजी ने शुरू किया
हमें इस पार्टी के लिये साढेचार बजे पहुँचना था । तो हम ने चार बजे तक अपने और काम निबटाये जैसे सामान खरीदना, लॉंड्री करना, सोना इत्यादि । और चार बजे निकल पडे। ये स्मिथ इस्टेट वाइलुआ नामक नदी के पास है । कोई ३० एकड में फैला हुआ तो बागीचा ही है ।

ठीक साढेचार बजे हम वहाँ पहुंच गये । और लाइन में लग कर टिकिट ले लिया । टिकिट लेकर फिर स्वागत की लाइन में खडे हुए पर जैसे ही हमारी बारी आई बडे प्रेम से मुस्कुराकर हमें शंखों की माला पहनाई गई जिसको लेई कहते हैं (लेई यानि माला या हार बडे खूबसूरत ऑरकिड्स की भी लेई बनाई जाती है ) ) । , और आलोहा कह कर हमारा स्वागत किया गया । उसके बाद हवाइयन सुंदरियोंसुदरियों के साथ हमारी फोटो खींची गई । य़े सुंदरियाँ अपने पारंपरिक पोशाक में थीं (चित्र SlideShow देखे ) । वहाँ से आगे हमें ट्राम के लिये लाइन में लगना था । य़ह ट्राम ही हमें बागीचे की सैर कराने वाली थी । एक वक्त में इसमे कोई २०-२५ लोग बैठ सकते है । तो शुरू हो गई हमारी बागीचे की सैर । दुनिया भर से लाये हुए पेड पौधे इस बागीचे में देखे जा सकते हैं । चंपा, चमेली, मोगरा, जास्वंदी, सोन चंपा (मेग्नोलिया) , बोगनबेलिया, बर्ड ऑफ पेराडाइज, पपीता, अननास, कटहल, अवोकेडो,आम, इमली, तरह तरह के पाम (ताड वृक्ष) और किस्म किस्म के पक्षी । तरह तरह की का बत्तखें , कबूतर, तीतर, काकाकुवा और मोर भी । मोर के छोटे छोटे चूजे भी देखे जो मोर की तरह सुंदर रंगों वाले नही होते बल्कि थोडे भूरे मटमैले रंग के होते हैं । हवाई में तितलियाँ नही होतीं, दूसरे जमीनों से इतनी दूर का सफर तय कर पाना उनके लिये असंभव होता है । यहाँ एक जापानीज गार्डन भी था, छोटे छोटे तरतीब से कटे हुए पेड जिनकाडिनका छत्रीनुमा आकार बडा हीङी मोहक था। वहीं हमे मिले दो बतख जो कि कुछ खाना पाने की आस में हमारे पास पास आते ही जा रहे थे और मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि मेरे पास उन्हे देने के लिये कुछ भी नही था। और फिर देखे मोर इतने सारे कि दिल खुश होगया । इनके खूब सारे फोटे खींचे । आप भी चित्र SlideShow देखिये ।

ये सब करते करते काफी समय गुज़र गया, अब सब लोग इकटठा होकर इमू समारोह का इंतजार कर रहे थे । इमू एक जमीन के अंदर की भट्टी को कहते हैं । इसमें हवाईयन लोग सुअर का मांस पकाते हैं (चित्र SlideShow देखे ) । आग इस भट्टी के ऊपर सुलगती है । मै तो विशुद्द शाकाहारी और हम में से जो मांसाहारी भी थे उन्होने सु्अर तो कभी नही खाया था और न ही ऐसी कोई ख्वाहिश थी । पर वो पूरी प्रक्रिया देखने के बाद लगा कि अन्न को पूर्ण ब्रह्म यूं ही नही कहा गया । तो सू्अर तो पक गया था, इस इमू समारोह में उस भट्टी को खोल कर उसे निकाला भर जाना था ।
इतने में हमने देखा कि दो पंडानुमा व्यक्ती वहाँ आये गेरुए रंग की लुंगी पहने । उनके हाथों मे बडा सा शंख था । बडे श्रध्दा से उस शंख को बजाया गया तीन बार और फिर शुरू हुई भट्टी खोदने की प्रक्रिया । उन्ही दो लोगों ने फिर कुदाल लेकर भट्टी को खोदा ऊपरी मिट्टी की कोई ६ इंच मोटी परत हटा कर सफेद चादर निकालीं गईं इस दौरान सारा धुआँ धुआँ या भाप भाप हो रहा था । चादर के हटते ही दिखीं कुछ लकडियाँ जिन्हे हटाने पर उनके नीचे एक स्टेनलेस स्टील के बडे से ट्रे में केले के पत्तों में लिपटा हुआ सुअर का माँस जो कि साफ किया हुआ था । और उसी ट्रे पर एक बडे़ से स्टील के पतीले में पानी था जो काफी़ गरम लग रहा था। जाहिर है कि पकाने की क्रिया भाप से हुई होगी । उस ट्रे को फिर वहाँ से डायनिंग हॉल में ले जाया गया । (चित्र SlideShow देखे )

अब खाने के लिये चलने की घोषणा हो चुकी थी तो हम सब चल पडे । सुंदरसुदर सजे हुए टेबलों पर फूल रखे हुए थे । हमने एक टेबल चुना और हम चारों बैठ गये । बार बार घोषणाएँ की जा रही थी कि मधुशाला खुली है, सबके लिये, आओ और जिसे जो चाहिये लेकर पीओ ,माईताई (एक हवाइयन किस्मकिसम का मद्य ) , बीअर, वाइन, हवाइयन पंच (फलों का मिलाजुला रस) सब है यहाँ । मैने और सुहास ने हवाइयन पंच लिया और विजय और सुरेश ने माईताई । थोडी देर के बाद डिनर अनाउन्स हुआ और हम खाने के टेबल पर गये इतने विभिन्न प्रकार के व्यंजन थे । पर जैसे लोग अपनी जडों को छोडना नही चाहते वैसे ही जिस पदार्थ का यहाँ महत्व था और जिसे चखने का बारबार अनुरोध किया जा रहा था वह था पोई यह शकर कंद को उबाल कर घोंट कर बनाया जाता है और जितनी श्रध्दा से इसे खाया जाता है वह देखते ही बनता है । यह शायद वह खाना हो जिसे खाकर इन लोगों ने अपने शुरू के दिन निकाले हों । बहर हाल स्वाद मे तो कुछ खास नही लगा । पर और खाना बहुत था । तरह तरह के सलाद, फल, ब्रेड (इतनी नरम) छोंकी हुई बीन्स , तरह तरह के केक, आइसक्रीम, मश्रूम और बहुतसे मांस के पदार्थ (चिकन, क्रेब, झींगे और यहाँ की प्रसिध्द मछली माही माही)। खाना लेकर हम अपने टेबल पर आये और सामने स्टेज पर स्मिथ परिवार के सदस्य रंगारंग कार्यक्रम पेश कर रहे थे (डान्स और गाने) (उपरोक्त संदर्भ मे--व्हीडिओ देखे )। और कुछ सदस्य हमारे टेबल पर आ कर और खाना लेने का अनुरोध कर रहे थे । बिलकुल भारत की याद आ गयी ।



बढिया डिनर तथा कॉफी के बाद प्रोफेशनल्स द्वारा डान्स का कार्यक्रम था , जिसके लिये हमें पास ही एक थियेटर में जाना था । तो गये और सीट पर बैठे । ये ओपन एयर थियेटर था । परदा तो था नही तो पहले बिलकुल अंधेरा कर दिया गया और जैसे ही नर्तक, नर्तिकाएँ स्टेज पर आते तो फ्लड लाइटस् उनके ऊपर फेंकी जाती । शुरू में हवाईयन नृत्य हुआ फिर ताहिती इस नृत्य द्वारा बताया गया कि कैसे यहाँ के मूल निवासी ताहिती से यहाँ आये । ये अपने आपको अग्नि पुत्र मानते है । शायद इसका इन द्वीपों पर जीवंत ज्वालामुखी होने का कोई संबंध हो । तो इस नृत्य द्वारा ये कहानी बताई गई कि कैसे अग्नि देवता ने इन्हे ताहिती से हवाई द्वीपों में जाने का आदेश दिया और कैसे ये यहाँ आकर बस गये । इसके बाद युध्द नृत्य हुआ जिसमें खूब जोर से नगाडे बजा कर नाच हुआ । इसके उपरान्त चीन व जापान के नृत्य हुए (चित्र) । तब तक ९:३० बज गये थे और बारिश भी होने लगी थी इसलिये बडी अनिच्छा से हम कार की और रवाना हुए । नई जगह रात का वक्त इसलिये सुहास को थोडी टेन्शन हो चली थी। पर बहुत मजा आया इस लूआउ में । (क्रमश:)

शनिवार, 17 नवंबर 2007

यात्रा ए हवाई ३

यात्रा ए हवाई अब तक
हवाई जाने का प्लान बनते ही हम खुश हो गये । हम दोनो बॉस्टन से और सुहास और विजय वॉशिंगटन से Los Angeles (एल ए ) पहुंचे । वहीं से हमे होनोलूलू (हवाइ की राजधानी) के लिये उडान लेनी थी । Los Angeles (एल ए ) में विजय के भाई तथा भाभी के साथ हॉलीवुडमे यूनिवर्सल स्टुडिओ देखा जहां फिल्मों की शूटिंग की जाती है । हवाइयन द्वीप समूह में वैसे तो छोटे बडे कोई १०७ द्वीप हैं पर केवल ६ ही बसे हुए है । हम कवाई में ही पूरा हप्ता रहने वाले थे । तो दूसरे दिन सुबह ९ बजे हमने एयर ट्रान की उडान ली और पहुंच गये होनोलूलू । वहाँ से फिर आलोहा एयर से आधे घंटे में कवाइ पहुंच गये । वहाँ पहुंच कर हमने एक सुबरू कार किराये पर ली । कवाई के खूबसूरती का आनंद उठाते हुए हम कार से हनलाई बे रिसॉर्ट की और चल पडे जहां हमे एक हफ्ते के लिये टाइम शेयर का अपार्टमेन्ट मिला था । (सुहास के बेटे अजय को सौजन्य से ) रास्ते में तरह तरह के पेड पौधे देखते हुए हम हनसाइ बे रिसॉर्ट पहुंचे । बेहद खूबसूरत परिसर और अपार्टमेन्ट। उस दिन तो खास कुछ किया नही पर दूसरे दिन हनलाइ बे बीच पर गये । और खूब मजे किये । उसके बाद गये लाइट हाउस और पक्षी अभयोद्यान । बहाँ पर फोटोग्राफी की ।अब आगे....


तीसरे दिन करने को कुछ खास नही था सुहास और विजय टाइम शेयर वालों का लेक्चर सुनने चले गये जिसमें हमे कोई दिलचस्पी नही थी, पर उस लेक्चर को सुनने से हमे डिसकाउन्टेड टूर टिकिटस् मिलने वाले थे। तो हम दोनों ने किताबें उठाईं और उनके आने तक पढते रहे । आते हुए वे हवाइयन लंच लेकर आये । मेरे लिये पीटा सेंडविच था अवोकेडो सॉस के साथ बाकी लोगों ने चिकन पाडा़ । दोपहर में हम फार्मर्स मारकेट देखने गये । ये हमारे यहाँ के हाट की तरह होता है । खुली जगह पर रेडियाँ लेकर लोग फल और सब्जियाँ बेच रहे थे हवाई में काफी सारे अलग तरह के फल मिलते हैं । (
यहां क्लीक करीये और देखे व्हीडिओ of Fruit market
एक होता है पॅशन फ्रूट जो ऊपर से दिखने में बडा ही सुंदर होता है स्वाद भी ठीक ही होता है पर ऊपर का सुंदर भाग केवल छिलका होता है और खाया जाने वाला भाग कुछ पक्षियों की बीट की तरह दिखता है । हम तो एक बार खाकर ही भर पाये ।
पर वहाँ के आम और अननास बडे ही मीठे होते हैं इतने कि एक तरह के अननास तो कहलाते ही शुगर पाइन एपल हैं । एक और फल होता है बेतरतीब सा कटहल की तरह खुरदरे छिलके वाला पर हम तो उसे खरीदने की हिम्मत नही जुटा पाये । खाते तो शायद अच्छा लगता पर पॅशन फ्रूट को लेकर थोडी निराशा जो हुई थी । वापसी पर फिर थोडी देर समंदर के किनारे बैठे । यहां क्लीक करीये और देखे व्हीडिओ Hanalai bay
बुधवार को हमें देखनी थी हिंदु मोनेस्ट्री । चौंक गये ना! हाँ भई हाँ कवाई में हिंदु मंदिर । मोनेस्ट्री इसलिये कि यहाँ बाकायदा हिंदु धर्म की शिक्षा दी जाती है । और कोई २५० विद्यार्थी आजकल यहाँ दीक्षित हो रहे हैं । तो हमें तो यह मोनेस्ट्री जरूर ही देखनी थी । सुबह ८ बजे निकल पडे मंदिर के लिये । इस मोनेस्ट्री की स्थापना एक तामिल गुरू श्री शिव सुब्रम्हण्यम स्वामी ने की थी । यह शिवजी का मंदिर भी दक्षिण भारतीय पध्दती का ही है और पूजा की विधी भी । किस्मत ने हमें आरती के वक्त ही वहाँ पहुंचाया, मन तो बस प्रसन्न होगया ।
यहां क्लीक करीये और देखे कवाई में हिंदु मंदिर । मोनेस्ट्री का व्हीडिओ
और यहाँ के पुजारी और गुरू ज्यादातर गोरे, अमेरिकन । कुछ दक्षिण भारतीय भी हैं । मंदिर और उसका परिसर अत्यंत रमणीय । शिवलिंग स्फटिक का बना हुआ है परंतु उसका फोटो नही लेने देते । यह मंदिर शिवजी के नटराज रूप को समर्पित है । उनकी विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियाँ शायद पीतल की बनी हुईं या सोने का पानी चढीं हो सकती हैं यहाँ देखी जा सकती हैं।
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हमें बताया गया कि विभिन्न योगासन नटराज जी की मुद्राओं पर ही आधारित हैं । मंदिर का परिसर घुमाया हमे वहीं की एक शिष्या ने । मंदिर के द्वार पर ही थी गणेश जी की एक सुंदर प्रतिमा । वहाँ का परिसर तो कमाल का था । मंदिर जाने के रास्ते के दोनो तरफ सुदर सुंदर फूलों वाले पौधे लगे हुए थे औ बीच मे लाल पत्थरों से बना एक रास्ता । मंदिर के बाहर एक तालाब था और उसमें एक नटराज की मूर्ती । एक बहुत बडा पेड था जिसकी लंबी लंबी पत्तियाँ थीं पर उसमें से बरगद की तरह जडें सी निकल रहीं थी जो जमीन में जाकर खंभों वाला मंडप सा बना रहीं थीं । और पीछे की तरफ अलग अलग तरह के पेड़ पौधे और सबसे पीछे एक बडा सा लेक ।
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न चाहते हुए भी हमें वहाँ से विदा लेनी पडी क्यूं कि आगे हमे जाना था वायमिया केनियॉन्स । केनियॉन्स प्राकृतिक रूप से बनी खाईयाँ होती हैं जो हजारों साल पानी के पठारों पर प्रचंड गती के साथ बहने से बनती है, जमीन का जो भाग इस पानी के बहाव को सह जाता है वह चोटियों के रूप में दिखता है । ये एक अद्भुत दृश्य की सृष्टी करते हैं । जहाँ ये पाये जाते हैं वहाँ बारिश नही के बराबर होती है और यह इलाका उजाड़ सा लगता है । अमेरिका के पश्चिमी भाग में अरिझोना के ग्रॅंड केनियॉनस् हैं जो इस तरह के सबसे बडे प्राकृतिक बनाव हैं।
उपरोक्त संदर्भ मे--व्हीडिओ देखे
व्हीडिओ1
व्हीडिओ2

कवाई के इन केनियॉनस् को ग्रॅंड केनियॉनस् ऑफ पेसिफिक कहा जाता है । ये इनके विभिन्न रंगों के कारण बहुत ही सुंदर दिखते हैं । इनमें तीन रंग स्पष्ट रूप से दिखते हैं, नारंगी, हरा और काला । नारंगी और काला मिट्टी और पत्थर की वजह से तथा हरा वनस्पती से । मजे़ की बात यह है कि यह कवाई का ही एक हिस्सा है जहाँ १०-१० मिनट मे बारिश होती है । और जरा सा तो है कवाई । पूर्व का हिस्सा हराभरा और नमी वाला बीच में अलक्काई स्वाम्प और एकदम उत्तर पश्चिम में ये ग्रॅंड केनियॉनस् ऑफ पेसिफिक। तो हम रास्ता ढूँढते हुए वायमिया केनियॉन्स के बोर्ड तक पहुँचे वहाँ से आगे थोडी चढाई पडती थी । उस लंबे घुमावदार रस्ते से होकर हम एक बिलकुल समतल जगह पर पहुँच गये ।
वहाँ पहुँचने तक सब को भूक सता रही थी क्यू कि मंदिर जाना था तो नाश्ता तो किया नही था । वहाँ से आगे सीढीयाँ थीं और थोडी चढाई भी । सीढीयों के पास ही कुछ लोग खाने पीने का सामान बेच रहे थे । शकरीले (sugared) अननास, आम तथा कुछ तिल की बर्फी नुमा मिठाई जो हमारे लिये तो अमृत थी ।
खाने का सामान और पानी लेकर सीढीयाँ चढकर हम एक और समतल जगह पर आ गये । वहाँ रेलिंग लगी हुई थी और सामने था केनियॉनस् का भव्य दृश्य ।
उपरोक्त संदर्भ मे-चित्र- देखे
चित्र1
चित्र2
ये केनियॉनस् हजारों सालों में वाइलेले नामक पहाड से निकली हुई वायमिया नदी के पानी के कारण बनी हैं । १० मील लंबी तथा १ मील चौडीं इन केनियॉनस् की गहराई कोई ३५०० फीट है । हम तो ऐसा कुछ पहली बार देख रहे थे, जो अपने आप में एक अनुभव था । पहाडों पर जो आडी रेखाएँ सी दिखती हैं वे ज्वालामुखी से समय समय पर निकलने वाले लावा के कारण बनती हैं । पर आजकल कवाई में कोई जीवंत ज्वालामुखी नही है ये सिर्फ मावी और बिग आयलेंड में ही देखें जा सकते हैं कितनी देर तक खडे होकर हम इन केनियॉनस् को देखते रहे खूब सारी तसवीरें और विडीओ लिये ।
जाना ही था इसलिये वहाँ से निकले, जितनी दूर तक देख सकते थे मुड मुड कर देखते रहे । कवाई का यह भाग इतना सूखा था कि पेड जले से लग रहे थे । पर जेसे ही हम चढाई से नीचे उतर कर आये एक फलों से लदा आम का पेड देखा । रास्ते में एक दुकान से सेंडविच खरीदे और एक बीच पर जाकर लंच किया । इस बीच का नाम था सॉल्ट पॉन्ड बीच । यहाँ किनारे के पास कोरल्स की एक दीवार सी बन गई है और उसकी वजह से एक खारे पानी का तालाब सा बन गया है इसीलिये नाम है सॉल्टपॉन्ड बीच। शाम के बाद फिर वापसी । (क्रमश:)सॉल्ट पॉन्ड बीच व्हीडिओ देखे
...धन्यवाद...

मंगलवार, 13 नवंबर 2007

.....यात्रा ए हवाई २...

यात्रा ए हवाई अब तक
हवाई जाने का प्लान बनते ही हम खुश हो गये । हम दोनो बॉस्टन से और सुहास और विजय वॉशिंगटन से Los Angeles (एल ए ) पहुंचे । वहीं से हमे होनोलूलू के लिये उडान लेनी थी । Los Angeles (एल ए ) में विजय के भाई तथा भाभी के साथ हॉलीवुडमे यूनिवर्सल स्टुडिओ देखा जहां फिल्मों की शूटिंग की जाती है । अगले ही दिन हमें
होनोलूलू की फ्लाइट लेनी थी। और वहाँ से आगे फिर कवाई की । हवाइयन द्वीप समूह में वैसे तो छोटे बडे कोई १०७ द्वीप हैं पर केवल ६ ही बसे हुए है । हम कवाई में ही पूरा हप्ता रहने वाले थे । तो दूसरे दिन सुबह ९ बजे हमने एयर ट्रान की उडान ली और पहुंच गये होनोलूलू । वहाँसे फिर आलोहा एयर से आधे घंटे में कवाइ पहुंच गये । वहाँ पहुंच कर हमने एक कार किराये पर ली ।
अब आगे.....



हमें कार मिली थी सुबरू या सुबारू । कार मे बैठे बैठे हम बाहर के दृश्यों का आनंद लेते हुए आपस में बातें करते जा रहे थे । अरे देखो आम का पेड, और बोगनवेलिया । और ये क्या पेड हैं एक जेसे कतार में, हाँ वोही पीले फूलों वाले । सुहास ने बताया कि यहाँ मेकेडेमिया नटस् बहुत होते हैं, ये शायद वही पेड हैं । ये मेकेडेमिया नटस् देखने में बडे साइझ के चने जैसे लगते है पर तेल बीज होने की वजह से स्वाद में मूंगफली की तरह होते हैं । पर मूंगफली का स्वाद ज्यादा अच्छा होता है ।
मौसम तो हवाई का हमेशा खुशनुमा । न जादा गरम न ज्यादा ठंडा । बारिश आये भी तो दस मिनट और फिर बंद । औरे १०-१० मिनट को बारिश आती रहती है पर आपका घूमना फिरना उससे नही रुकता ।
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नजर जाय वहाँ तक हरियाली और नीलिमा (सागर की या आसमान की) । इसी को निहारते हुए, सुंदर दृश्य और सुहावने मौसम का मजा लेते हुए, हम अपने गंतव्य की और बढ़ चले । हमे जाना था हनलाई बे रिसॉर्ट । नक्शा देखते हुए रास्ते के बोर्डस् पर भी हमारी नजर थी, ताकि कहीं रास्ता चूक ना जायें। और रास्ता मिलही गया । Princeville Hotel का रास्ता और हनलाई बे रिसॉर्ट का रास्ता एक ही था और हम एक सुंदर रास्ते से गुजरते हुए पहुँच गये हनलाई बे रिसॉर्ट । इतने सुंदर सुंदर पौधे और फूल कि आंखें तृप्त हो गईं । और अभी तो ये मजा़ हम पूरे ६ दिन लूटने वाले थे ।
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सुंदर से स्वागत कक्ष में आकर हमने अपने अपार्टमेन्ट के बारे में पता किया और चाबी लेकर आ पहुंचे अपने ठिय्ये पर । हमारा अपार्टमेन्ट दूसरे मंजिल पर था, हमारे स्वागत के लिये तैयार । सोफा, डायनिंग टेबल खूबसूरत फलॉवर व्हेस में सुंदर फूल और दोनो बेडरूम्स में सफेद झक बिस्तर और प्रकृती के नजा़रे लेने के लिये एक एक खूबसूरत बालकनी । मन प्रसन्न हो गया ।
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इतना सब करते करते शाम हो चली थी चाय की चाह थी और उसका जुगाड़ भी हमारे पास था घर से लेके जो चले थे । और यहाँ था एक पूरा किचन सारी सुविधाओं के साथ । तो चाय पी और सामान लाने के लिये निकले, कार का ये फायदा तो था ही । घर वापस आये और थोडा टी वी देखा खाना खाया और सो गये ।
सुबह सुहास ने चाय बनाकर हमें जगाया और चाय के कप लेकर हम आ बैठे बालकनी में, क्या खूबसूरत हरे भरे पेड़ थे। बाहर का नजा़रा और हाथ में चाय बस जिदगी सफल हो गई । चाय पीते पीते हमने देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत पक्षी सिर पर लाल टोपी लगाये हुए हमारे टेबल के आस पास चक्कर काट रहा था । कभी वो बालकनी की रेलिंग पर बैठता कभी टेबल पर, पर रुकता नही था यहां से उड वहाँ बैठ वहाँ से उड यहाँ बैठ यही कर रहा था । पर बिस्कुट खाने का लालच उसे ज्यादा दूर जाने नही दे रहा था ।
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हमने थोडेसे बिस्कुट तोड कर टेबल पर बिखेर दिये और थोडी देर को अंदर आगये ।
फिर क्या था देखते ही देखते पूरी टेबल साफ । और बाद में तो इन से अच्छी खासी दोस्ती हो गई । इतनी की हाथसे बिस्कुट का टुकडा़ लेने तक । और इनकी देखा देखी और भी एक दो पंछी आने लगे । और नीचे बागीचे में एक बडा ही सुंदर मुर्गा घूमता रहता था जो वक्त बेवक्त बांग दिया करता था ।
चाय नाश्ते से निबट कर हम गये हनलाई बे बीच पर ।शुरू में तो हमें रेत वाला बीच दिखा ही नही तो सोचा शायद यह कोरल वाला ही बीच है । तो हम उन कोरल्स पर चलते चले गये । कोरल्स को बीच बीच में समंदर का पानी इकट्ठा हो गया था और बिलकुल कांच की तरह साफ पानी इतना कि तैरती हुई मछलियाँ भी दिख रहीं थीं । आगे जाकर थोडी और खुली जगह थी तो सुरेश से तो रहा न गया उन्होने तो वहीं तैरना सुरू कर दिया वहाँ एक दो लोग और भी तैर रहे थे। मै और सुहास मछलियों को देख देख कर खुश हो रहे थे तभी हमें वहाँ एक साँप नजर आया पढ रखा था कि सारे समुद्री साँप जहरीले होते हैं और पट्टे वाले । था वह इतना सुंदर काले पीले पट्टों वाला चमकीला, कि हम दोनो तो डर के बावजू़द वहीं खडे रहे । धीरे धीरे वह एक छेद के अंदर चला गया । पर फिर हमने तैरने वालों को आगाह कर देना ही उचित समझा, ये तो बाद में जाके पता चला कि वो सांप नही बल्कि मुर्रे ईल नामक मछली थी जो दिखती साँप की तरह है ।
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सुरेश वैसे ही पानी से बाहर आ गये थे क्यूंकि कोरल से उनका पेट तथा बाजू छिल गये थे । इतने में हमने देखा कि आगे बाय़ीं तरफ बहुतसे लोग तैर रहे थे और कुछ नौकायें भी चल रही य़ीं तो हम भी वहाँ चले गये और वहाँ देखा एक खूबसूरत रेतीला बीच, रेत एकदम बारीक पाँव के नीचेसे रेशम की तरह फिसलती । और जब हम अंदर गये तो देखा एक एक हाथ लंबी मछलियाँ नीले और नारंगी रंग के डिझाइन में । वहाँ भाई बहन ने खूब तैराकी की । मैने भी समंदर का भरपूर मजा़ लूटा । विजय की घुटने की सर्जरी
हो चुकी है इसलिये वे भी मेरी तरह ही पानी में घूम घूम कर ही मजा़ ले रहे थे । बहुतसे लोग वहाँ सर्फिंग भी कर रहे थे । जब काफी थकान हो गई और भूक भी सताने लगी तब जाकर हमने अपने अपार्टमेन्ट का रुख किया ।
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लंच के बाद हमें जाना था लाइट हाउस और पक्षी अभयोद्यान, तो बस बैठे सुबरू में और चल पडे । ड्राइविंग का जिम्मा सुहास का था । तो कार मे बैठकर चले लाइट हाउस की और । यह जगह काफी पास थी कार पार्क करके हम बडी देर तक दूर से ही लाइट हाउस और पक्षियों को देखते रहे । वहीं पास के पेड पर अननास की तरह के फल लगे थे ।
हवाई के पेड पौधे काफी मिलेजुले किस्म के होते हैं कुछ एकदम ट्रॉपिकल और कुछ टेम्परेट । एक तरफ जास्वंदी, कृष्ण कमल, चंपा , बोगनबेल, नारियल तथा आम होते हैं तो दूसरी और मॅकेडेमिया और अवोकेडो जैसे पेड भी ।
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यहाँ के लोग ज्यादा तर आशिया के हैं । मूलत: चीन जापान, तथा ताहिती के, इन्हे पॉलिनेशियन मूल का कहा जाता है । अच्छे मिलनसार लोग होते हैं ।
फिर हमने लाइट हाउस को करीब से देखा । एक जगह समुंदर का पानी पहाडी के बीच में आकर खूब तेजीसे उछल रहा था वहाँ पानी एकदम दूधिया हो जाता था उसकी बहुतसी तसवीरें लीं
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फिर वहाँ पक्षियों के बारे में एक फिल्म देखी । जगह जगह पर पक्षियों के बारे में जानकारी भी दी हुई थी । हमने उड़ते पक्षियों को कॅमरे में कैद करने की कोशिश की । वापसी पर एक जगह झाडियों में एक मादा पक्षी को अंडे सेते हुए देखा पर फोटो नही ले पाये । समंदर की कुछ और तसवीरें लीं और फिर वापस । (क्रमश:)
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बुधवार, 7 नवंबर 2007

....यात्रा ए हवाई....


हवाई जाने का प्लान बनते ही मन जैसे हवा में तैरने लगा, और अचानक ही होटों पे आ गया वो गीत, कहते हैं मुझको हवा हवाई, हवा हवाई, हवा हवाई, हवा हवाई । वैसे पहले ही देख लिया था कि आस पास कोई नही है......... । तय हुआ कि हम चारों- मैं, सुरेश, सुहास और विजय (सुरेश के बहन और बेहनोई ) जायेंगे ताकि हम अपने तरीके से सफर का मन मुराद आनंद ले सकें । सम वयस्क होने का यही तो फायदा था । सुहास और विजय को वॉशिंगटन (डी सी )से आना था और हम दोनो को बॉस्टन(Massachusets) से । तो सोचा कि हम Los Angeles (एल ए ) में मिलेंगे वहाँ थोडा घूम-फिर लेंगे और वहीं से लेंगे होनोलूलू की उडान ।
यहां क्लीक करे और बॉस्टन से होनोलूलू व्हाया एल ए ( Los Angeles), गुगल मॅप देखे

तो तैयारी करके हमने अपनी यात्रा शुरू की । और पहुँच गये एल ए. । वहां पर एक दिन सतीश और फे (विजय के भाई और भाभी) की मेहमान नवाजी़ का लुत्फ उठाय़ा और उनके साथ घूमे युनिवर्सल स्टुडिओ, जो कि हॉलिवुड में ही स्थित है । वहाँ देखा और जाना कि मूवी कैसे बनती है सेटस् कैसे होते है, एक्सिडेन्ट्स कैसे शूट करते हैं, और मौज मस्ती कैसे की जाती है । यही सब हमने पिछले साल हैदराबाद के रामोजी स्टुडिओ में भी देखा था, छोटे पैमाने पर ।

यहां क्लिक करिये और चित्र देखें, युनिवर्सल स्टुडिओ, हॉलिवुड


दूसरे दिन सुबह ९ बजे की उडान थी हमारी । वेस्ट कोस्ट का समय ईस्ट कोस्ट से ३ घंटे पीछे होता है मतलब बॉस्टन समय से ६ बजे । हवाई का समय तो एल ए से भी
६ घंटे पीछे होता है । सारी खानापूरी करके हम अपने सफर की उडान पर चले । हमारी एयर लाइन थी एयर-ट्रान । होनोलूलु हम पहुंचे ११ बजे वहाँसे हमे जाना था कवाइ जो हवाइयन द्वीप समूह में से एक द्वीप है । हवाइयनद्वीप समूह में वैसे तो १०७ द्वीप हैं पर उनमें केवल ६ ही बसे हुए हैं । ये हैं बिग आयलेंड, मावी, कवाइ, ओहू, लनाई और मोलोकाई ।
यहां क्लिक करिये और सुनिये हवाई का संगीत,
(MP3 Files on server plays well with RealPlayer..Thanks)हरेक की अपनी अपनी विशेषता है । जैसे बिग आयलेंड में ज्वालामुखी देखने को मिलते हैं, परंतु खूबसूरती में सारे ही द्वीप एक जैसे हैं। खूबसूरत बीचेज, समंदर का नीला पानी, रेशमी रेत और तरह तरह के फूल और पत्ते कुछ परिचित और कुछ एकदम नये, और हाँ कोरल्स भी । हमने सुना था कि ज्यादा एक्टिविटीज आप कवाइ में कर सकते हैं इसी से हमने यहीं पूरा हप्ता बिताने की बात सोची । छह दिन छह जगह घूमने की न तो ताकद थी न ही बजट़ आखिर बच्चों को कितना परेशान करते! कवाई में अजय (सुहास का बेटा) का टाइम शेअर का फ्लेट भी था तो रहने का इंतजाम था ही ।
तो हवाई की राजधानी होनोलूलू में न रुकते हुए हमने कवाई के लिये आलोहा एयर की फ्लाइट ली १२:५० की और पहुँच गये कवाई १:३० बजे । आलोहा हवाई का अभिवादन है, जैसे हैलो या नमस्ते । कवाई एयरपोर्ट पर ही हमने एक कार किराये पर ले ली ताकि घूमने फिरने में आसानी हो । कार में बैठे और चल पडे अपने ठिकाने पर, रास्ते में दोनो और की खूबसूरती निहारते हुए । ( क्रमश: )
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यहां क्लिक करें Asha

सोमवार, 5 नवंबर 2007

दीपावली अभिनन्दन



दिया जला, लौ कांपी
कुछ सहमी, घबराई
पवन के झकोरे से
थर थर थर्राई
पर एक क्षण, दूजे पल
इठली, मुसकाई
साथी के कानों में,
हौले से गुनगुनाई
जागो नैना खोलो
दीवाली आई।

सबको दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनाएं ।


आजका विचार

अच्छा काम करने के लिये अच्छे माहौल की प्रतीक्षा जरूरी नही हम कहीं से भी शुरू कर सकते हैं ।


स्वास्थ्य सुझाव

गायका शुध्द घी आँखों में रात को लगा कर सोने से आँखों की ज्योती बढती है ।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

वो बारिश के दिन



वो बारिश के दिन और भीगी सी रातें
तुम्हारी ही यादें तुम्हारी ही बातें

वो शाम सलोनी नदी का किनारा
वो पानी में पांव हिलाना तुम्हारा
वो पायल का बजना
वो लहरों का उठना
और पत्तों का करना हवाओ से बातें । वो बारिश....

महकता सा गजरा,और तीखा सा कजरा
वो नदिया पे बहता हुआ एक बजरा
वो बिखरी सी अलकें
वो बोझिल सी पलकें
वो प्यार की अनगिनत सौगातें । वो बारिश....

हवा का मचलना दुपट्टे का उडना
तुम्हारा सहमना सिमटना सिकुडना
वो आंचल को ओढे
फिरसे सम्हलना
और करना सहज प्यारी प्यारी सी बातें । वो बारिश....

बिजली कड़कना, बूंदों का गिरना
बूंदों का लडियों में बंध कर बिखरना
वो भीगा बदन
और भीगा सा चेहेरा
और आँखों में सिमटी हुई बरसातें । वो बारिश....

कहाँ है वो नदिया, कहाँ है वो पानी
कहाँ थम गई तेरी मेरी कहानी
भँवर में कहाँ
खो गई नाव अपनी
बिछडे हैं ऐसे कि मिल भी न पाते । वो बारिश..


आज का विचार

हारने के कई रास्ते होते हैं पर जीतने का सिर्फ एक ।


स्वास्थ्य सुझाव

बकरी का दूध पीना Cirrhosis of Liver में लाभकारी होला है ।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2007

....विश्वास




न तुम मेरे झोंपडे को राख करो,
न मैं तुम्हारे महल बे-चिराग करूं ।
न तुम मेरे मुंह से निवाला छीनो,
न मैं तेरे बच्चों को रहन रख लूं ।
न तुम मेरे बहनों की चूडियाँ तोडो
न मैं तुम्हारे घर पे आसमाँ तोडूं ।
न तुम हम जैसों पे कहर बरपाओ
न मैं तुम्हारे सुख चैन को हराम करूं ।
न तुम सुनों मौका-परस्त की बातें
न मैं ही उसके इरादों को अंजाम करूं ।
आ गया वक्त समझ लें हम इनकी चालों को
तुम मेरा ख्याल करो, मैं तुम्हारा ख्याल करूं ।
न तुम दो साथ सियासत करने वालों का
न मैं इनकी बातों का एतबार करूं ।
तुम जीओगे और हम को भी जीने दोगे
क्या मैं अब इस बात का विश्वास करूं ।


आज का विचार
कोई कमजोर इन्सान किसी को माफ नही कर सकता
क्यूंकि माफ करना तो एक ताकतवर इन्सान का गुण है ।

स्वास्थ्य सुझाव
आधे कप लौकी के रस में आधा चम्मच अद्रक का रस मिलाकर
इसे 6 ब्राम्ही के पत्ते और बारा तुलसी के पत्तों के साथ पीने से
भूलने की बीमारी (अलझाइमर्स) में लाभ पहुँचता है ।

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2007

जीने की कला



हमारी आधी से अधिक जिंदगी हम या तो यह सोचते हुए बिता देते हैं, कि बीता हुआ समय कितना अच्छा था या फिर इस चिंता में कि भविष्य कैसा होगा । और जो हमारा आज है उसके लिये हम कुछ नही करते इतना भी नही कि ये आज कैसे आनंद से बीते । अगर हम हर पल में जीना सीख लें तो समझ लेंगे कि हमें जीने की कला आ गई । जैसे कि किसी ने कहा है, Past is history, future is mystery, but this moment is a gift, that is why it is called present. तो एक एक कदम चलें और हर कदम मस्ती में चलें । झूमते गाते चलें । हर पल का आनंद उठाते चलें । आनंद के लिये किसी बडी घटना का इंतजार करने की जरूरत नही है । प्रकृती स्वयं इतनी सुंदर है कि सिर्फ नज़र उठाकर देखने भर की जरूरत है और आनंद स्वयं हमें ढूंढता हुआ चला आयेगा । जो सूर्यास्त और सूर्योदय देखने हम माउंट आबू या दार्जिलिंग जाते हैं वही हमे अपने कमरे की खिडकी से भी उतना ही सुंदर दिखाई दे सकता है बल्कि देता है बस आपको उसे उस पल आँख उठाकर देखना भर है ।
यह दुनिया खूबसूरत चीजों से भरी पडी है हमें सिर्फ नजर भर उठाना है । चीजों से मेरा मतलब बंगले, गाडियाँ तरह तरह के गेजेट्स से नही है । यह महज़ एक कोयल की कूक हो सकती है या बारिश की पहली फुआर, मिट्टी की सौंधी खुशबू या समंदर के किनारे पाँव के नीचे रेत को अनुभव करना या फिर रेल का सफर जिसमें आप स्टेशन पर उतर कर गरमागरम पकौडे खा सकें या बुक स्टॉल पर अपनी मन पसंद मेगझीन या किताब खरीद सकें । या ब्ल़ॉग पर अपने लिखे पर आई कमेंटस् पढ सकें (अब इसके लिये तो आपको कंप्यूटर नामका गेजेट जरूर लगेगा ) ।

हमारी रोजमर्रा की जिंदगी इतनी ज्यादा तनाव पूर्ण और भाग दौड भरी हो गई है कि अक्सर हम अपने आप को बदहवास पाते हैं । घडी के साथ हमारी रेस सुबह से शाम तक चलती ही रहती है ।अगर हम हर पल कुछ करते ना रहें तो हम खुद को दोषी समझने लगते हैं । लाल बत्ती पर होने वाला तमाशा मैने तो बहुत बार भुगता है, और आप सब भी इससे अच्छे से वाकिफ होंगे ।


लाल बत्ती के हरा होने तक भी किसी को चैन नही है । हॉर्न की कर्ण भेदी आवाजें , गडियों का एक दूसरे से आगे घुसना, और तो और बसें भी पीछे नहीं हैं, तमाम चिल्लपों मची हुई । परिणाम, शांती से जिस ट्राफिक लाइट को पार करने में पाँच से दस मिनट लगते वहीं अधैर्य के कारण 20 मिनट लग जाते हैं । बस या ट्रेन में चढते हुए भी हम इसी अधैर्य का परिचय देते हैं । किसी भी लाइन में लगकर देख लीजीये चाहे वह सिनेमा के टिकिट की हो या मंदिर में भगवान के दर्शन की । हम अपने इसी बेचैनी का प्रदशर्न करते हैं । भाई ( या बहन भी, कोई मुझे अपनी जाति का पक्षपाती न समझे) इतनी जल्दी किस बात की है, ठंड रख ।

छोटी छोटी बातें जो किसी तरह हमारे बस में नही होतीं हमें परेशान कर डालती हैं । जैसै ट्रेन का लेट होना या बीच रास्ते में बस का खराब हो जाना, मैने तो यह बहुत बार भुगता है । भुगता शब्द से ही आप समझ गये होंगे कि उस वक्त भुनभुनाने में मै किसी से पीछे नही थी । पर इस से होता क्या था तनाव बढता था, थकान हो जाती थी, और घर पहुँचने पर घर वालों की खैर न होती थी क्यूं कि सारी भडा़स तो उन्ही पर निकलती थी न । आप कहेंगे खुद तो वही किया ओर अब हमें सिखाने चली हैं । बात तो ठीक है आपकी पर सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नही कहते , नही कहते न !

इस संदर्भ में मुझे याद आ रहे हैं डॉक्टर मोर्स और उनकी बेटी एलिझाबेथ । वे हमारे यहाँ भारत घूमने आये थे । जिस दिन वे लोग आगरा घूमने गये थे उस दिन आगरा में जातीय दंगे हो गये । हम घर पर परेशान कि कैसे आयेंगे ये लोग अब वापस, मेरे पती ने उनके साथ जाने के लिये प्रस्ताव भी रखा था लेकिन उन्होने यह कह कर मना कर दिया था कि उन्हें protected environment में मजा नही आयेगा । दंगों के इलाके से तो एक स्कूटर वाला उन्हें बचा कर ले आया था पर उनकी ट्रेन जो सुबह पांच बजे चलने वाली थी
दो घंटे लेट हो गई थी । इसके बावजूद कि एक दिन पहले ही वहाँ दंगे हुए थे ये बाप बेटी खुश कि चलो थोडा टाइम मिल गया
तो Sun rise के स्नेप्स ले लेते हैं, ऑटो में बैठे अपना मन पसंद spot ढूंडा और खूब तसवीरें लीं । और वापस आकर खुशी खुशी ट्रेन में बैठे, घर पहुंचे और खूब हँस हँस कर सारी बातें सुनाईं । मै तो हैरान कि ऐसे भी लोग होते हैं !

और हम सब चिंता बडी करते हैं । जिन बातों से हम फिक्रमंद होते हैं उनमें से आधी से ज्यादा तो बातें कभी होती ही नही हैं । इस कारण हम अपना सुख चैन जरूर खोते हैं । इस फिक्र की जगह हम इन चिंता के कारणों को क्रम से लगालें और उनका हल ढूँढे तो हमारा दिमाग भी बिझी रहेगा और कोई हल भी निकलेगा । और एक बडे काम की चीज़ है विश्वास अपने ऊपर और लोगों की अच्छाई के ऊपर । बहुतसे हमारे काम तो उस विश्वास के बल बूते पर ही पार लग जाते हैं । तो जो करना ज़रूरी है वह करो और भूल जाओ । मेक्सिकन लोग अपने घर में एक कपडे की गुडिया रखते हैं जिसे वे वरी डॉल बोलते हैं, अपनी सारी चिंताएं वे लोग इस वरी डॉल को दे कर चिंता मुक्त हो जाते हैं । आयडिया अच्छा है न !

अगर इनसान से सिर्फ एक चीज मांगने को बोला जाय तो वह क्या मांगेगा ! शायद खुशी । तो खुश रहिये और खुश रखिये ।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

.....रात और सुबह....



लेकर अनूठी बारात, चली तारों भरी रात
चांदसा दूल्हा, साँवली दुलहन
मंद मंद सुगंधी पवन
नया जोडा, दूधिया चांदनी,
शर्मीली दुलहन, रात मन मोहनी
साथ साथ ले हाथों में हाथ
दूल्हा दुल्हन बिछायें बिसात
सुबह तक चले फिर खेल
जबतक न बैठे हार जीत का मेल
मेरी हुई जीत या तुम हारे
दोनो सोचते रहे बिचारे
थक कर सो गई रात
चांद भी लुढका देने साथ
सुबह जब आई
कर दी सारी सफाई


आजका विचार

आप कभी भी उतने ज्यादा दुखी या खुश नही होते जितना आप सोचते हैं।


स्वास्थ्य सुझाव

तुलसी के काढे से तनाव दूर होता है ।

सोमवार, 22 अक्तूबर 2007

आगे चुकता करें




हाल ही में मैने एक मूवी देखी, नाम था Pay it Forward , बहुत ही पसंद आई । आप में से भी बहुत लोगों ने देखी हो शायद । कहानी मै यहाँ नही बता रही । उसकी जो थीम थी वह कुछ इस प्रकार थी । क्या ये दुनिया आपको अच्छी लगती है , अगर नही तो आप इसको अच्छी बनाने लिये क्या कर सकते हैं । और इसको कार्यान्वित करने के लिये आपका प्लान क्या है ? स्कूल की ७वी कक्षा में एक छोटासा लडका एक प्लान कक्षा के सामने रखता है । इसके अनुसार वह तीन लोगों की मदद करेगा ताकि उनकी जिंदगी कुछ आसान हो । और बदले में वे तीनों लोग ओर तीन तीन लोगों की मदद करेंगे जिससे उनकी जिंदगी की समस्याएं सुलझे और यह क्रम इसी तरह चलता रहा तो दुनिया अच्छी हो जायेगी ।
बचपन में हम सबको बताया गया था कि जो आपकी मदद कर रहा है उसका ऋण चुकाने का मौका आपको मिल जाये तो आप किस्मत वाले हैं पर अक्सर ऐसा होता नही है । इसलिये आप को जब भी मौका मिले किसी असहाय की मदद अवश्य करें । पर ये तो और भी अच्छा है कि यह कडी शुरू ही आपसे हो । यह मदद कुछ भी हो सकती है मसलन, भूखे को खाना खिलाना, किसी को गाडी या स्कूटर पे लिफ्ट देना, किसी को पिटनेसे बचाना, किसी की स्कूल की फीस भरना, घायल को अस्पताल पहुँचाना आदि । और इसकी बारंबारता (Frequency) आप पर निर्भर है । रोज़, हफ्ते में, या फिर महीने में या सालमें । लेकिन जो भी आप तय करें उसे निभायें । मदद छोटी भी हो सकती है और बडी भी सब आपकी क्षमता पर निर्भर है ।
बहुत बार ऐसा भी हो सकता है कि आप कामयाब न हों जिसकी मदद आप करना चाहते हैं वह आपकी मदद ना ले या आप ठीक से कर ना पायें या आप करें पर कामयाब न हों, पर सही कदम उठाना जरूरी है और इसे उठाने से आप के अंदर एक संतोष भर उठेगा । और जरूरतमंद तो कई हैं । एक ढूंढो तो हजा़र मिलते हैं । हालाँकि जरूरी है कि इसकी जरूरत असली हो और यह आपके,“ आगे चुकता करने” के प्लान को आगे बढाये । और तीन बार कामयाबी हासिल करना बहुत कठिन नही होगा । एखाद बार हो सकता है कि जिसकी आपने मदद की वह धोखेबाज़ निकले पर वह आपकी नही उसकी परेशानी है और कोशिश करने में और करते रहने में क्या हर्ज है ?
और हम ये आसानी से कर सकते हैं । इसके लिये चाहिये होगा सिर्फ दृढ निश्चय और आत्मविश्वास ।

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

गोविंद दादा

हमारे एक फुफेरे भाई हुआ करते थे गोविंद दादा । उमर में मुझसे कोई दस बारह साल बडे़ रहे होंगे। लंबे, अच्छे डील डौल
वाले दादा जब भी हमारे यहाँ आते हम बच्चों की तो बाछें खिल जातीं । कहानी सुनाने में गोविंद दादा का कोई सानी नही था ।
कहानी सुनाते हुए वो कहानी में ऐसे रंग जाते कि कहानी के सारे पात्र जीवंत होकर हमारे साथ विचरने लगते ।
उनके आते ही हम सब उनके पीछे पड जाते कि गोविंद दादा कहानी सुनाइये । और वो हमें डपट कर कहते अभी नही
रात में । और आनन फानन में पूरे बाडे में यह बात फैल जाती कि गोविंद दादा आये हैं और रात में कहानी सुनाने वाले हैं ।
रात का खाना निबटाकर हम सब उन्हें घेर कर बैठ जाते । और शुरू हो जाती कहानी सात संकट गोविंद दादा की जबानी ।
इस कहानी में राज कुमार को सात समंदर पार से कोई अक्षय कमल लाकर राजकुमारी को सुंघाना होता था । और चल पडता
अपना राजकुमार अक्षय कमल की तलाश में ।



पहले तो राजकुमार महल से निकला और चलता ही चला गया जा…ते , जा…ते , जा..ते , जाते एक लं........................बे मैदान से होकर वह आगे चला और ......... और गोविंद दादा चुप । फिर क्या हुआ दादा बताईये ना, हमारा अनुनय । और....... एक जंगल में प्रवेश कर गया वह, शाम का वक्त, सन्नाटा, हवा की साँय साँय, झींगुरों की किर्र किर्र, बीच बीच में उल्लुओं की आवाज घू ...घू .....घू ......घू घू पर हमारा राजकुमार निडर चलता ही चला गया और अचानक सुनाई दी शेर की दहाड़ हा ................आ........................हा और अगले ही क्षण एक ही छलांग में शेर राजकुमार के ऊपर । राजकुमार के साथ साथ हमारी भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे । शेर के पंजे राजकुमार की छाती पर, मुँह खुल गया और दांत चमके जैसे बिजली कौंध गई हो। हम सांस रोक कर प्रतीक्षा में कि अब गया राजकुमार । पलक झपकते ही राजकुमार ने अपना एक हाथ शेर के जबडे में फँसा दिया और दूसरे हाथ से एक बडी सी लकडी शेर के गले में डाल दी । अब शेर सकते में आ गया न उगलते बने न निगलते । मौका पाकर राजकुमार ने हाथ निकाल लिया और एक बडे से पत्थर से शेर का खात्मा कर दिया । राजकुमार के साथ साथ हमारी भी जान में जान आ जाती ।
इसी तरह एक के बाद एक संकट आते और राजकुमार उनको पार करता हुआ आगे बढता जाता । और फिर आता आखरी संकट ।
राक्षस को हरा कर रात को राज कुमार गहरी नींद सोया । अब उसे समंदर पार करके तालाब तक पहुँच कर अक्षय कमल लाना था । वह समंदरके किनारे पहुँचा, वहाँ एक नाव खडी थी । राजकुमार नाव में बैठ कर चल पडा । वह पूरा जोर लगा कर नाव को खेने लगा । समंदर की दीवार जितनी ऊँची भयंकर लहरें उसकी नाव के ऊपर से गुजरती पर वह नाव को सावधानी से बचाकर आगे बढता । इन लहरों से बचता तो तूफान उसे घेरते उसकी नैया यूँ हिचकोले खाती जैसे अब उलटी तब उलटी लेकिन कुछ उसका साहस और कुछ ईश्वर की मदद से वह आगे बढता ही जाता। इस समंदर से जहां उसे नदी के अंदर प्रवेश करना था ठीक उसके पहले एक और भयानक संकट उसकी राह देख रहा था । इस समंदर में थे दो पहाड़ जो बराबर एक दूसरे के पास आते और कुछ पल ठहर कर दूर हो जाते । यह क्रम निरंतर चलता ही रहता । अब कैसे जाये राजकुमार की नैया इन पहाडों के बीच से । उसके चूर चूर होने का पूरा अंदेशा । राजकुमार मन ही मन ईश्वर को याद करने लगा । तभी उसने सोचा कि यदि वह कितने देर में पहाड दूर जाकर वापस आते हैं यह पता लगाले तो वह अपनी नाव उतनी ही या उससे कम देर में पहाडों के बीच से गुजा़र कर उस पार जा सकता है । और राजकुमार अपनी नैया को पहाडों के पास ले आया और जैसे ही पहाड़ पास आये वह चौकन्ना हो गया । पहाडों के दूर होना शुरू होते ही उसने अपनी सांसें गिनना आरंभ किया और तब तक गिनता रहा जबतक पहाड फिर से पास पास आने लगे । उसे अपनी नाव पचास की गिनती से पहले पहाडों के बीच में से निकाल कर ले जानी थी । अब राजकुमार और आगे बढ आया और जैसे ही पहाड़ दूर होने लगे वह अपनी नौका बीचोंबीच ले आया और जैसे जैसे पहाड दूर हों वैसे वैसे वह नौका आगे बढाने लगा और आधी से ज्यादा नौका उस तरफ आ गई । अब पहाड़ दूर जाकर एक क्षण को रुक गये और उन्होंने धीरे धीरे वापस आना शुरू किया । राजकुमार की नाव एक चौथाई अभी भी इस पार । राजकुमार पूरा जोर लगा कर नाव को खेने लगा इधर पहाड़ भी धीरे धीरे पास आते जा रहे थे, नाव को थोडा हिस्सा पार हुआ पर अभी भी आखरी का छोर इसी तरफ था । राजकुमार ने जी जान लगा दी नाव को पार करने में लेकिन पहाड़ अब एकदम करीब थे, लगा कि नही हो सकेगी नैया पार लेकिन एक जोरदार चप्पू का झटका और नैया पार और उसी क्षण दोनो पहाड़ एकदम पास । राज कुमार के चेहरे पर मुस्कान और हम एक गहरी सांस छोडकर शांत । फिर तो सब कुछ आसानी से हो जाता । राजकुमार समंदर से नदी में प्रवेश करता, गाँव में जाता तालाब से अक्षय कमल लेकर वापस आता । अक्षय कमल सूंघते ही राजकुमारी जाग जाती और राजकुमार से विवाह करती और वे दोनो सुख से रहने लगते ।

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

मन का एक कोना

मेरे मनका एक कोना रखा है मैने सुरक्षित अपने लिये ,
इस कोने में रहती है एक लडकी
बालिश, अल्हड, भोली
उसके बचपने में बहने देती हूँ मै उसको,
संजोकर रखती हूँ उसकी प्यारी प्यारी बोली




मेरा पीछा करते वार्धक्य की होने नही देती उसको आहट
उसके कैशोर्य में डूबने देती हूं उसे और सहेज कर रखती हूँ
उसकी खिलखिलाहट
उसकी आसमाँ को छूने की महत्वाकांक्षा को खूब देती हूँ खाद और पानी
और उसका विकास देख कर खुश होती हूँ मन ही मन
यह मेरा और उसका एक सांझा राज़ है तभी तो
मुझे ऐसे ही अलग रखना है ये कोना खास मेरा सिर्फ मेरे लिये ।


आजका विचार
ईश्वर हमारी सब प्रार्थनाएं सुनता है पर कभी कभी उसका जवाब होता है....नही ।

स्वास्थ्य सुझाव

पेट संबंधी ज्यादा तर तकलीफें रोज दही खाने से दूर हो जातीं हैं ।

रविवार, 14 अक्तूबर 2007

मन

मन उदास तो उदास मैं भी
मन रोया मैं रोई
मन जागा तो जागूं मै भी
मन सोया मैं सोई


मन खुश तो झोलीभर खुशियाँ
मैं भरकर ले आई
मन दुख गया तो फिर सुख कैसा
सुख की नही परछाई

मन उमंग से भरी पतंग सा
उडता फिरे आकाश
बिन कारण मुसकाऊं मै भी
घर में भरूं उजास

मन प्रसन्न तो फिर मै भी
खनकाऊँ चूडी पायल
मन के संग संग नाचूं गाऊँ
मन की बस मै कायल

किसने देखा है इस मनको
भेद ये किसने जाना
वैसे तो बचपन का साथी
फिर भी है अनजाना


आज का विचार

हमेशा अच्छा सोचिये, इससे आपकी प्रतिकार प्रणाली स्वस्थ रहेगी




आज का स्वास्थ्य सुझाव

हीमोग्लोबीन बढाने के लिये खजूर तथा अंजीर का सेवन भी हितकारी है ।