रविवार, 19 अप्रैल 2009

दंतकथा


इसकी शुरुवात कोई चार पांच साल पहले दिल्ली में हुई । मेरे पतिदेव के दांत में दर्द था और हम कोई अच्छा सा दाँत का डॉक्टर खोज रहे थे । राजू (मेरा बडा बेटा) से बात हुई तो बोला,” अरे, अपना अनुपम है ना, वसंत कुंज में ही तो है उसका क्लिनिक कर देगा आपका इलाज या फिर डॉ. जैना के पास चले जाइये“ । डॉ. जैना यानि बडी बहू के रिश्तेदार, हमसे पैसे नही लेंगे वगैरा वगैरा । तो हमने डॉ. अनुपम को फोन किया । तीसरी कक्षा से राजू का सहपाठी था .और मै जब एनसीईआरटी में काम करती थी तो ये सब बच्चे नीचे केंद्रीय विद्यालय में तीसरी कक्षा में पढते थे । बेक्टीरिया देखने मेरे पास लैब में आया करते थे । इतना विनम्र और प्यारा बेटा कि दूसरे ही दिन गाडी लेकर हमें लेने आ गया । इनका इलाज भी २-३ दिन में अच्छे से हो गया । बातों बातों में मैने उसे बताया कि .मेरी दो डाढों मे पिन जाये इतने बडे सूराख हैं अभी तो मुझे कोई परेशानी है नही लेकिन क्या आगे होगी ? तो उसने कहा इन्हें भरवा देते हैं सिरेमिक से मैने कहा मुझे डेन्टिस्ट की सुई से बडा डर लगता है, ५८ साल की हो गई पर अब तक डेन्टिस्ट से बच के रही हूँ । तो वह हँस के बोले, “ अरे आंटी आपको पता भी नही चलेगा । तीन दिन बाद अंकल को आना है तभी आप भी आ जाइये “ । और तीन दिन बाद मैने ओखली में सिर दे ही दिया ।
मेरे सारे दाँतों (३२) की बडे ही नफासत से उन्होंने सफाई की । पार्श्व में धीमा धीमा संगीत (हिमालयन चान्ट्स्) और बहुत ही मृदु आवाज में इधर उधर की बातें करके मेरा ध्यान बटाता हुआ डॉक्टर । मेरे डाढों के छोटे छोटे सूराखों को मशीन द्वारा बडा बडा कर के फिर उन्हें सीमेन्ट से भर दिया गया । इसके पहले बहुत ही महीन सुई से सुन्न करने का इंजेक्श न लगाया गया । कुल मिला के किसी विजयी वीर की तरह मै क्लिनिक से बाहर निकली और मेरा डेन्टिस्ट का भय भी जाता रहा ।
इसके तुरंत ही बाद हमें अमरीका जाना था । वहां जाकर हम दोनो ने अनुपम की खूब तारीफ की और मेरे दमकते दातों को देख कर राजू ने कहा, "वाह आय एम इंम्प्रेस्ड ”। तीन चार महीने तो सब ठीक चला पर एक दिन एक डाढ का सीमेंट उखड कर निकल आया । फिर बचे दो ढाई महीने वही डाढ बचा बचा कर खाना खाना चला । अमेरिका से वापसी पर फिर अनुपम जी की शरण ली । डॉक्टर के तो हम कायल थे, हमारे जाते ही झुक कर पांव छूना हमारा हाल चाल पूछना आदि बराबर करते । डाढ़ देखने पर बोले कि इसका रूट कनालिंग करना पडेगा वो करके पक्का फिलिंग करेंगे और फिर कैप कर देंगे फिर आपको कोई तकलीफ नही होगी । दोनों डाढों का करेंगे । ३-४ सिटिंग दे कर रूट कनालिंग और फिलिंग हुआ फिर बताया कि अब कैपिंग १५ दिन बाद करेंगे।
इस बीच हमें देहेरादून जाना पड गया । वहाँ इत्तेफाकन सोनपापडी खाते हुए कुछ कठोर चीज डाढ़ के नीचे आ गई और खोखलेपन की वजह से वह दो टुकडे हो गई । एक टुकडा एकदम हिल गया था और वह हिस्सा खूब दर्द भी कर रहा था । फिर देहरादून में डेन्टिस्ट को ढूँढा । तो डॉक्टर साहब ने कहा कि आधी डाढ टूट गई है और अपने जगह से हिल गई है इसे तो निकालना ही पडेगा पर बाकी आधी ठीक है इसे आप दिल्ली जा कर कैपिंग करवा लेना ये आधी मै निकाल देता हूँ । एक मोटासा इंजेक्शन देकर बाईं और का जबडा सुन्न किया गया और फिर आधी डाढ़ निकाली गई । इंजेक्शन लेने में काफी दर्द हुआ और बादमें मसूढा भी काफी सूज गया । ऐसे मे अनुपम की बडी याद आई । खैर ३-४ दिन में देहेरादून मसूरी से वापिस आये तब तक सब ठीक हो गया । डॉ. अनुपम ने देख कर कहा कि कैपिंग अब भी हो सकती है । तो कैपिंग करवाई और हम वापिस अमेरिका । वहाँ तो सब बढिया रहा भारत आकर भी सब ठीक ही था ।
एक दो महीने गुजरने के बाद लगा कि डाढ हिल रही है । लेकिन डॉ को दिखाने का मौका ही नही लग रहा था । इसी बीच रांची बोकारो का ट्रिप लगा । वहाँ से आकर डॉ अनुपम को दिखाया तो उन्होने कैप को कुरेद के हिला के देखा पर वह तो अंगद के पैर की तरह जमी हुई थी, पर अंदर की डाढ पिजडे के पंछी की तरह छटपटा रही थी । अभी चलने देते हैं आप अगली बार आयेंगी तब देखेंगे । सिर्फ ब्रश और फ्लॉस का खयाल रखना । इन्हें कुछ रूट केनालिंग करवाना था सो करवाया और वापिस अमेरिका । दातों का खूब ख्याल रखती दोनो वक्त ब्रश और फ्लॉस करती कि यहाँ डेन्टिस्ट का खर्चा न पडे । पर नही हुआ कुछ भी सब ठीक से निबट गया ।
इस बार जब वापिस आये तो तुरंत ही अनुपम को दिखाना चाह रही थी पर कुछ वाकयात ऐसे बने कि नही हो पाया, तो २-३ महिने बाद गये फिर अनुपम जी के शरण में । देख कर बोले डाढ़ काफी हिल रही है ज्यादा देर तक ऐसे छोडा तो इनफेक्शन हो सकता है इसे तो निकालना ही पडेगा । अगले हफ्ते आ जाइये । इसी बीच २-३ दिन बाद मुझे लगा कि मेरे सारे दातों मे ही दर्द है । इस दर्द के उद्गम को खोजना मुश्किल हो रहा था पर अपॉइन्टमेन्ट तो पांच दिन बाद था तो लौंग मुह में रख कर काम चलाते रहे ।
जैसे ही नियत दिन आया मै उतावली में आधा घंटा पहले ही पहुँच गई । पर मुझसे आगे कतार में ४-५ पेशंट पहले से थे । करीब एक घंटे बाद मेरा नंबर आया । डॉ. साहब को सब बताया तो निरीक्षण परीक्षण के बाद बोले दूसरे बाजू के डाढ़ में कीडा लगा है । इसकी सफाई करते है फिर फिलिंग कर देंगे । सो उस दिन तो सिर्फ उस डाढ़ की सफाई हुई .। तीन दिन बाद उसी की मरम्मत और अगले तीन दिन बाद का अपॉइन्टमेन्ट मिला आधी हिलने वाली डाढ़ के लिये । फिर गये साहब, आखिर मरता क्या न करता । बाहर की कैप इतनी बुलंद कि उसे उखाडने के लिये डॉक्टर साहब को काफी मशक्कत करनी पडी । मैं अपनी साँस अंदर खींचे लेटी रही कि अब खून का फव्वारा छूटा तब छूटा पर नही ऐसा कुछ नही हुआ क्यूंकि मेरी एस्पिरिन ८ दिन पहले ही बंद करवा दी गई थी और इंजेक्शन भी दे दिया था । तो साहब पहले कवच उतरा और फिर कुंडल की तरह हिलती मेरी आधी डाढ । उसको भी तीन टुकडों मे निकालना पडा क्यूं कि इसका एक रूट बहुत ही मजबूत था । “आज इधर से कुछ नही खाना और एक घंटे तक कुछ खाना ही नही “, एक मोटासा कपास का गोला उस खाई मे ठूंस कर डॉ.अनुपम बोले और हाँ रास्ते में यह दवाइयां खरीद लेना दिन में दो बार खानी हैं । हामी भरकर मैं चली आई तो साहब घाव तो ठीक हो गया पर वह जो खाली पन आगया वह कैसे कटे ? वहां आलू का टुकडा, मटर, कॉर्नफ्लेक्स मजे से फँसते हैं और मेरी जीभ के साथ लुकाछिपी खेलते हैं ।
अनुपम को बताया तो बोले कि ब्रिज कर सकते हैं पर आपको तो जाना है और इतनी जल्दी टिशू की नरमी जायेगी नही आप वापस आइये तब देखेंगे । बहर हाल अपने बिछडे डाढ के वियोग में समय काट रहे
है । एक बात बताऊं जब तक संभव है दांत के डॉक्टर के पास जाना नही, नही तो ये नित्य की बात बन जायेगी ।

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

लोरी


विपुल ओर रचना हाल ही में एक नन्ही सी बेटी से लाभान्वित हुए हैं ।
उनकी इस प्यारी सी बिटिया के लिये ये लोरी

मेरी नन्ही सी परी
बाबा माँ की दुलारी
प्यारी प्यारी सुकुमारी
सोजा चुप होजा ।

तेरे लिये आँखों के दिये जलाये हैं
तेरे लिये हाथों के पलने झुलाये हैं
कितना कितना करें जतन
फिर भी ना रुके रुदन
ना रो रे फुलवारी
प्यारी प्यारी सुकुमारी
सोजा चुप हो जा ।

हवा ने तेरे लिये गीत गुनगुनाये हैं
चांद तारों ने नये सपने साथ लाये है
रात रानी ने कैसी खुशबु बिखेरी है
दादी ने भी फूलों से नजर उतारी है
जाऊँ तो पे वारी वारी
प्यारी प्यारी सुकुमारी
सोजा चुप होजा ।