कितना सुंदर देश है हमारा, कितनी सुंदर
इसकी सभ्यता और संस्कृति।
विभिन्न भाषाएँ और बोलियाँ। हर प्रांत की
उसके लोगों की अपनी विशेषताएँ,
बिलकुल होली के खूबसूरत रंगों की तरह।
कहते हैं सारे रंग अगर मिल जायें तो बनता
है सफेद रंग, शांति और सद्भाव का प्रतीक।
पर क्या हो गया है, आजकल ये सारे रंग मिल
कर स्याह रंग क्यूँ बना रहे हैं। सारे खूबसूरत रंगों पर किसने पोती है ये कालिख?
हरा, भगवा और सफेद हमारे राष्ट्र ध्वज के
रंग, खुशहाली, पराक्रम और शांति के रंग उस पर ऩीले रंग का अशोक चक्र। आज क्यूं एक
दूसरे के विरोध में खडे होकर प्रतिशोध की
ज्वाला धधका रहे हैं।
अरे, सब अपने तरीके से पूजो न उस ईश्वर को,
करो इबादत जैसी चाहो, पर देश तो हमारा है न, सबका साझा है। फिर क्यूं लडे हम कि
कौन इसको ज्यादा प्यार करता है।
गलत बात है आपसी दुश्मनी के लिये देश को
बीच में लाकर उसके लिये अपमान-जनक भाषा का
प्रयोग करना। देश के शत्रुओं की जयकार लगाना।
और ये नेता लोग ये बडे हैं ना हमारे देश
के, इनसे तो वह भी नही होता जो घर के बडे करते हैं। कहने के लिये बडे हैं पर वे ही
इस आग को और धधका रहे हैं। यह तो नही होता कि सामंजस्य से विवाद निपटायें, हर कोई
इस आग में अपनी रोटी सेंक रहा है।
निकट आती कुर्सी जो दिखाई दे रही है।
न सही बडे, बच्चों तुम ही समझ जाओ वो
कहते हैं ना, Child is the father of Man. समझो इनकी चालों
को न आओ इनके कहे में। मन का वैमनस्य मिटा कर सब मिलकर खेलो होली ताकि खिल उठें सारे
रंग और सज जाये हमारा सुंदर इंद्र-धनुष।
होली की शुभ कामनाएँ।
होली मुबारक।
Happy Holi.
चित्र गूगल से साभार।