गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011
ट्राफिक
मेरा मन एक धुआंधार ट्राफिक वाला रस्ता ।
विचारों के छोटे, बडे , मझोले वाहन,
बेछूट दौडते हुए ।
बडे विचार, छोटे विचार
खरे विचार, खोटे विचार
बुरे विचार, अच्छे विचार
झूटे विचार, सच्चे विचार
निरंतर दौडते रहते हैं
साइकिलों, तिपहियों, कारों, बसों और ट्रकों की तरह ।
मै चाह कर भी इन्हे रोक नही पाती रोक सकती नही ।
कोई एक विचार जबरन बिजली की तरह कौंधता है जहन में,
इतना घिनौना कि मुझे अपने आप पर शर्म आती है । मैं, मैं ऐसे सोच सकती हूँ ?
फिर ये कहां से आया, क्यूं आया ।
सडक पर औचक गलत साइड से कोई ट्रक आजाये जैसे और आप बाल बाल बच जायें
और दिल देर तक धडकता रहे ।
कितनी बार किसी सीखे हुए निष्णात ड्राइवर की तरह विचारों को साधते हुए
सीधे चलाती हूँ । पर पता ही नही चलता कब कैसे मैं किसी गलत लेन में आ गई ।
मै यहां तो नही थी ?
यहां पर एक ट्रैफिक लाइट जरूरी है, बहुत जरूरी ।
ठहरो , देखो, जाओ ।
कहां से आयेगा ये लाइट कौन लगायेगा ? कि काबू हो जाये ये बेलगाम मन
वाचन ,चिंतन , मनन ।
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