शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

झंझावात



झंझावात की तरह आ कर लपेट ले वह मुझे
उठाले हवा में ऊपर
पांव तले ना रहे जमीं 
जकड ले बाहों में कस कऱ
नजर से बांधे नजर
अधरों से अधर
सांस से खींच ले सांस
गले में अटके कोई फांस
क्या हो रहा है ये समझने से पहले
ले ले कब्जे में मन ओर प्राण
उसकी बाहों में  मै पडी रहूं

नीरव, निश्चल, निष्प्राण ।


सोमवार, 12 अगस्त 2013

ओ सिंह , उठो

 सिंह , उठो, जवाब दो दुष्मन को ।
त्यजो दुविधा, कि क्या करूं, कैसे करूं ?
वही करो जो करना चाहिये , जो शास्त्र कहते हैं ।
वही करो जो ईश्वर ने कहा है, गुरू ने, संतों ने कहा है ।
वैसे ही करो जो इन परिस्थितियों में उचित है जैसा शास्त्र कहते हैं ।
मत भूलो कि देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है ।

डरो नही युध्द करो, युध्द अनिवार्यता है जीवन की ।
यह युध्द तुम पर, हम पर लादा जा रहा है । देश के प्रति कर्तव्य है तुम्हारा कि उठो और युध्द करो ।

आत्मरक्षण अनिवार्यता है । युध्द में जीतोगे तो सत्ता पाओगे और नाम भी ।
नही तो तुम्हारे मित्र और शत्रु दोनों तुम्हारी निंदा करेंगे, इतिहास भी तुम्हें माफ नही करेगा ।
तुम्हारे कायरता की गाथा नमूद करेगा ।

महाभारत युध्द में कम विनाश नही हुआ फिर भी तो हम आज संख्या में बुलंद हैं ।
इस संख्या की लाज रखो । युध्द करो ।
युध्द करो ताकि जनता समझे स्वतंत्रता का महत्व ।

अभी कोई कृष्ण नही आने वाले तुम्हारे लिये, ये जनता ही है तुम्हारे कृष्ण ।

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

बदले बदले मिजाज़ मौसम के






बदले बदले मिजाज़ मौसम के
बदला बदला है नूर बारिश का
सतरा प्रतिशत है हो गई ज्यादा
सबके अनुमानों को बता के धता ।

कभी होती थी पिया सी प्यारी
अब सिरिअल-किलर सी लगती है
लग रहा है की गीली, गीली, सिली
कोई एक आग सी सुलगती है ।

कहते हैं कि बुखार धरती का
कुछ ज्यादा ही हो गया है अब
हिम शिलाएं पिघल रही देखो
किंतु मौसम उबल रहा है अब ।

गर्मी से आदमी भडकते हैं
सोचते हैं न कुछ समझते हैं
बिन किसी बात के भडकते हैं
बसों में रास्तों में लडते हैं ।

काश इस गुस्से की दिशा बदले
गुस्सा इकजुट इस तरह उबले
करे इस दानवी व्यवस्था पर
जोर का इक प्रहार और बदले ।

फिर उगेगा इक नया सूरज
फिर मिलेगी सच में आजादी
फिर स्वतंत्रता का दिन मनायेगे
सही माने में जश्ने आजादी ।