रिश्ते भी कितने अजीब होते है,
कभी लगते हैं दूर,
पर्वत से
कभी दिल के करीब
होते हैं
कभी बहते हैं झरने
से कल कल
तो कभी बर्फ से जम
जाते हैं।
रिश्तों को सींच
के रखना जतन से
तभी वे पौधों से
लहलहाते हैं
रोशनी में होते
हैं सदा रोशन
और फूलों से
खिलखिलाते हैं।
वरना वे भाप से उड
जाते हैं
और मरुथल से सूख
जाते हैं।
रिश्ते मांगते हैं
गर्माहट
ये शीत बक्सों में
नही पलते
रिश्तों को सांस
खुल के लेने दो
ये अंधेरों में भी
नही खिलते।
रिश्ते चुभते हैं
कभी कांटों से
मन को लोहू-लुहान
करते हैं
ये आँसूं भी लाते हैं
आँखों में
गलतफहमी में खो से
जाते हैं
ऐसे में बात काम
आती है
तब खुशियां भी ये
खिलाते हैं।
रिश्ते अंधेरों
में थाम लेते हाथ
और फिर राह भी
सुझाते है
डगमगाने लगते है
जैसे कदम
सहारा दे के साध
लेते हैं।
ये रिश्ते भी
कितने अजीब होते हैं।