सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

सब के लिये यही मनाते हैं।



मन के सूने कोने भी जगमगाते हैं
अंधेरे में कई दीप झिलमिलाते हैं।

देख कर बाहर की रोशन दुनिया
दुखियारे दिल भी बहल जाते हैं।

ये दिवाली, ये मिठाई, और फुलझडियाँ
कितने रंगीं सुंदर समय को लाते हैं।

मिटा के सभी मनमुटाव के जाले
मन को निर्मल आनंदमय बनाते हैं।

ये रोशनी सदा बसी रहे मन में
हम तो सब के लिये यही मनाते हैं।

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

....चलते चलो रे 6- वापसी और सैन-फ्रांसिस्को की सैर-....





हमारी बस सुबह साडे छै बजे चल दी। जाते हुए सब वे ही पडाव थे जो आते हुए लगे थे। हमें अर्चना भाभी ने बताया था कि वापसी पर लंच के लिये जहां बस रुकेगी वहां से थोडी ही दूर एक इन्डियन रेस्तरां है। अगर 2-3 लोग जायें तो रास्ता ढूंढने की मुश्किल नही होगी और वहां खाना थोडा अपना जायके का मिलेगा। तो वाकई हमने देखा कि सारे अपने भाई बहन वहीं जा रहे थे तो हम भी साथ हो लिये और वाकई इतने (?) दिनों बाद अपना खाना पा कर और खा कर चैन आ गया।
सैन फ्रांन्सिस्को के पास एक जगह गिलरॉय में बस रुकी वहां लहसन की खेती होती है। वहां एक गार्लिक उत्सव आयोजित किया जाता है जहां लहसन के विभिन्न पदार्थ गारलिक ब्रेड से लेकर गार्लिक पुडिंग और आइसक्रीम तक बनाये जाते हैं। मुझे तो गार्लिक आइस क्रीम सुनते ही अजीब लगा, खाने की तो छोडो। करीब तीन बजे बस सेन फ्रांन्सिस्को पहुंची वहीं से एल ए को जाने वाले लोग अलग बस में चढे  जाने से पहले एक दूसरे से गले मिलना हुआ । सैनफ्रांसिस्को के अलग अलग इलाके में जाने वाले लोग हमारे साथ ही रहे। जब सारे लोग उतर गये तो बस हम छह लोग जिन्हे कूपरटिनो जाना था रह गये वही मां बेटी और बेटी के दो बच्चे। बस ने हमें मरीना सूपर स्टोर के पास उतारा। मकरंद भी पांच मिनिट में आ गया और हम अगले पंद्रह मिनिट में उसके घर।  घर आ कर उत्साह से सब को सारा वृतांत सुनाया। दो दिन और मकरंद के पास रह कर हमें हमारी भतीजी शाश्वती के पास जाना था।
 दो दिन बाद हम गये शाश्वती के घर लोस-अल्टोस (कूपरटिनो) मे गये। यहां से स्टेनफर्ड युनिवर्सिटी काफी पास है और गूगल और एपल कम्पनी के ऑफिसेज भी। उसकी बडी बेटी अमृता माउन्टेन व्यू  हायस्कूल में पढती है जहां बिल गेटस् ने भी पढाई की थी या छोड दी थी। शाश्वती मेरे बडे भाई साहब की बेटी है। भाभी भी वहीं आई हुईं थीं तो हमें थोडा और अच्छा लगा। शाश्वती अपने बेटियों के साथ रोज शाम को दुर्गा आरती करती है तथा  ग्यारा मनाचे श्लोक भी सब मिल कर बोलते हैं। उसकी बेटियाँ हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत भी सीखती है। एक दिन शाम को आरती के बाद उन्होने हमें गाने की एक झलक दिखाई आप भी सुनें। (घर विडियो फोटो)

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शाश्वती हमें दूसरे दिन ले गई एक आर्ट शो में वहां सब चीजों की कीमते तो काफी ज्यादा थीं पर शो में मजा आया और खाना पीना तो हर जगह होता ही है विडियो)।

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 शाश्वती गायनेकॉलॉजिस्ट है पर उसने हमार लिये दो दिन छुट्टी ले ली थी फिर वह हमें शाम को सैन होजे की पब्लिक लायब्रेरी ले गई वहां हिंदी और मराठी की किताबें भी थीं, बहुत ही अच्छा लगा। हमने पांच पांच किताबें चुनी और उसने वे इशू करा लीं। (विडियो art show)
अगले वीक एन्ड शाश्वती और नितिन हमें सैन-फ्रान्सिस्को ले गये हम गये सैन-फ्रान्सिस्को को बर्ड आय व्यू से देखने । वहां बहुत मजा आया। फिर गये गोल्डन गेट ब्रिज देखने। इसके लिये हमने एक क्रूज ले ली थी। उससे बोटिंग भी हो गई और गोल्डन गेट को भी अच्छे से देख लिया (विडियो)। बोट के ऊपर के डेक पर तो बहुत हवा थी  इसलिये हम बैठे तो अंदर पर जब ब्रिज पास आया तो नीचे के डेक पर चले गये और विडियो किया। यह एक सस्पेंशन ब्रिज है जो एक मील चौडी और तीन मील लंबी गोल्डन गेट स्टैट पर बना हुआ है। सैन फ्रान्सिस्को का लैन्ड मार्क है।  यह पुल सैन फ्रांसिस्को शहर को मरीन काउंटी से जोडता है। यह 1937 में बन कर पूरा हुआ और तब कंस्ट्रक्शन इंजिनियरिंग का एक अजूबा था।( video Sanfransisco Golden gate   cruise)
 यहीं से हमने अलकत्रास आयलैंड भी देखा, जहां एक लाइट हाउस और मिलिटरी जेल 1926 में बनाई गई।  भयंकर कैदियों को यहां रखा जाता था। पर अब तो इसका बस ऐतिहासिक महत्व रह गया है। यह जगह इतनी ठंडी और भयंकर थी कि सरकारी महकमा भी इसे अपने किसी काम के लिये लेना नही चाहता था। 1986 से इसे एक पर्यटन आकर्षण के तौर पर विकसित किया गया।  (Alcatras Video)
 मंगलवार  और बुधवार को शाश्वती ने हमारे लिये छुट्टी ली थी तो वह हमें मॉन्ट्रे बे ले गई। यह सैन होजे के दक्षिण में स्थित है। यहीं पर कैनरी रो के समुद्र तट पर फिशरमेन्स वार्फ औऱ बे एक्वेरियम भी हैं।  किसी समय यह मॉन्ट्रे पहले मेक्सिकन केलिफोर्निया की राजधाऩी हुआ करती थी। तब मेक्सिको भी स्पेन का उपनिवेश था। यह जगह भी उन्होनें ही सबसे पहले खोजी थी। वहां हमने बे पार्क की सैर की और एक ऐतिहासिक म्यूजियम देखने गये पर  वह बंद था। ( Montrey bayविडियो)।

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फिर हम गये सतरा मील लंबी सुंदर ड्राइव पर (17 miles Scenic drive) । हम जब पहले यहां आये थे तब भी  यहां कार से घूमे थे। तब नापा वैली और लेक टाहो भी गये थे। पर इस समंदर के किनारे किनारे चलने वाली सडक पर सुंदर सुंदर पॉइन्टस बहुत अच्छे लगते हैं। हमने शुरु किया पैसिफिक ग्रोव से। हकलबेरी हिल, पेस्काडेरा पॉइन्ट, स्पेनिश बे, सनसेट पॉइन्ट के अलावा लोन साइप्रस, घोस्ट ट्री, पेबल बीच, सील रॉक और बर्ड रॉक भी हैं। (विडियो)

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 लोन साइप्रस एक अकेला पेड है जो समंदर के अंदर तक गये एक टीले पर खडा है। 
घोस्ट ट्री एक सूखा सा साइप्रस का पेड है जो प्रकृती की मार झेलता हुआ एकदम सफेद हो गया है। शायद शाम के धुंधलके में भूत की तरह लगता हो।
बर्डरॉक नामक टीले पर कोरमोरान्ट और पेलिकन पक्षी आराम पर्माते देके जा सकते हैं। ये पक्षी हमने भरतपुर के पक्षी अभयारण्य में भी देखे थे।
सील रॉक पर खूब सारी सील्स आराम फर्माते हुए धूप सेंक रही थीं।
पेबल बीच पर ही है पेबल बीच लॉज जहां गोल्फ के रसिक लोग रुकते हैं और वे भी जो घूमने फिरने में आराम गाह की चाह रखते हैं। यहीं है जगद्विख्यात गोल्फ कोर्स । (विडियो)
स्पेनिश बे एक सुंदर समुद्रतट है। हकलबेरी हिल् पर शायद हकलबेरी की झाडियां होंगी । (फोटो)
ऐसे चलते चलते फिर हम पेबल बीच पर रुके और वह सुंदरसा लॉज देखा बाहर से ही। फिर चले और केलिफोर्निया राउट 101 पर निकल आये।
एक दिन हमने मराठी सिनेमा भी देखा बडी अलग सी कहानी थी थोडी मनोविज्ञान की झलक लिये हुए। बाज़ार जाना तो आते जाते हो ही जाता था। ऐसा लगा मानो हिंदुस्तान पहुंच गये हों।
एक और दिन शाश्वती हमें ले गई साइन्स म्यूजियम दिखाने । वहां काफी रोचक जानकारी मिली। वहां काफी मजेदार चीजें देखने को मिली  आप भी आनंद लें।( Science Museum)विडियो)
इस पूरे सफर में हमने महीना लगाया क्यूं कि अपनों के यहां रुकने की व्यवस्था थी नही तो शायद 8-10 दिन में ही सब निबटाना होता। इस तरह पहले कुसुम ताई के यहां और फिर मकरंद और शाश्वती के यहां मजे किये और फिर 23 तारीख को सुबह सुबह की (6 बजे) उडान से अपने घर वापिस।

(समाप्त)

बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

....चलते चलो रे - ५ - ग्रेंड केनियन्स...






हम ने अपने होटल वापिस आ कर खाना खाया और सो गये क्यूं कि ६ बजे निकलने के लिये साढे चार बजे तो उठना ही होगा । दिन भर का सफर था तो नहाना तो जरूरी ही था दोनों को । हम सोये तो पर यका यका एक तीखे अलार्म की आवाज़ ने हमें जगा दिया। घडी देखी तो दो बजे थे। अब यह क्या हुआ, लग तो रहा था कि फायर अलार्म है। अलार्म बजता ही रहा कोई  २५ मिनिट तक, हम लॉबी में जा कर देख भी आये सभी लोग टहल रहे थे पर थोडी देर बाद की अनाउन्समेन्ट से पता चला कि किसी फॉल्ट की वजह से अलार्म ट्रिगर हो गया है और वे उसे सही करने की कोशिश कर रहे हैं कोई आग वाग नही लगी है पर नींद तो उडा ही दी थी। सुबह तो उसी समय निकलन था क्यूंकि जाने के लिये ६ घंटे और आने के लिये ६ घंटे लगने वाले थे । हम जा रहे थे दक्षिणी केनियन्स देखने। मकरंद ने बताया था कि वहीं जाना क्यूं कि वहां I-Max  पर एक मूवी दिखाई जाती है जिसमें ग्रेंड-केनियन्स के बारे में उनका पूरा इतिहास भूगोल सब बताया जाता है।  
 तो उठे साढेचार बजे और नहा धो कर तैयार हो कर पांच मिनिट पहले ही नीचे पहुंच गये। चूंकि इतने जल्दी सफर शुरु हुआ था तो हम दो घंटे  के सफर के बाद रुके, बेस्टो में, और कॉफी और नाश्ता किया।  हम अब एरिझोना में सफर कर रहे थे। यहीं कोलारेडो नदी पर जग प्रसिध्द हूवर बांध बना है। जाते हुए तो हम सिर्फ इसका बडा सा रिझरवॉयर ही देख पाये पर हमारे गाइड ने आश्वस्त किया कि वापसी पर हम जरूर हूवर बांध के दर्शन कर पायेंगे। हमारा सफर लंबा था पर हमारे ड्राइवर और गाइड ने बिलकुल बोरियत नही महसूस होने दी। उसने बीच बीच में हिंदी गाने भी चलाये जिनका स्टॉक उसके पास सीमित ही था। यहां हमने फिर से वे जोशुआ नामके पेड देखे जो कि हाथ उठा कर अभिवादन करते से प्रतीत होते हैं।
ग्रेन्ड केनियन्स अपने विराट आकार और अनोखे अदभुत रंगों के कारण जो दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक  माना जाता है, एरिझोना राज्य में स्थित है । यह कोई १८ मील चौडी और २७७ मील लंबी और एक मील गहरी हैं।  यह  उत्तरी और दक्षिणी दो भागों में बंटी हुई है।  उत्तरी भाग में स्काय वॉक की सुविधा भी है और दक्षिणी केनियन्स में  आयमेक्स मूवी की। वैसे तो हम केनियन्स पहले भी देख चुके थे हवाइ में पर इनकी बात ही कुछ और है और ये अपने नाम की तरह ही ग्रेंड हैं। एकदम भव्य दिव्य। ये केनियन्स कोलारेडो नदी के कारण बनी हैं। कई वर्षों तक (करीब 170 लाख) पानी इन पहाडों पर से  वेग से गुजरने के  कारण बनी हैं। हूवर बांध के कारण यह नदी केनियन्स के इलाके में एकदम पतली हो गई है।
कोई साढे बारह बजे हम पहुंचे ग्रेन्ड केनियन्स के विजिटर सेन्टर में वहां पहले लाइन में लग कर जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर देखी वह मूवी जो नेशनल जिओग्राफिक की बनाई हुई है। बहुत ही कमाल की मूवी है जो कि प्रागैतिहासिक काल से शुरु होती है जब यहां के मूल निवासी प्यूब्लो जाति के लोग यहाँ स्वच्छन्दता से विचरते थे और यहां के प्राणियों के साथ ताल मेल बिठाये हुए थे । हालांकि शिकार ही उनका भोजन जुटाने का मुख्य जरिया था। इन लोगों की भाषा में केनियन्स का नाम था ऑन्गटुपका । ये लोग यहीं गुफाओं में रहते थे। उसके बाद का वृतांत बताता है कि कैसे फिर और प्रवासी यहां आये और किन किन कठिनाइयों का सामना उन्हे करना पडा । इस  मूवी को देख कर पैसा वसूल हो गया। इसकी झलक आपको यू ट्यूब पर मिल जायेगी। ( विडियो)
वहां से निकल कर हमने सेंटर में बने हुए नक्शे को देखा जिनमें इन केनियन्स के विभिन्न आकारों के कारण उन्हें दिये गये अलग अलग नामों की जानकारी थी। इनमें से एक विष्णु टेम्पल नामका भी था । फिर हम गये केनियन्स देखने। सेंटर से हम पैदल ही चल कर गये क्यूं कि केनियन्स पार्क कोई पांच मिनिट के चलने पर ही आ गया। हम थोडा चल कर गये और देखा एक विराट, भव्य, दिव्य प्राकृतिक अजूबा। ये रंगीन पहाडियाँ (पहाड कहना ही उचित होगा) और ये घाटी जो उतनी ही ऊबड खाबड और पथरीली और बीच में पतली सी धारा कोलेराडो नदी की जो कहीं कहीं से ही नजर आती क्यूं कि सब दूर से तले तक नजर पहुंचती ही नही थी। यह नदी पतली हूवर बांध की वजह से है। वरना जो मूवी हमने देखी उसमें जो कोलारेडो नदी है कितनी तूफानी और प्रचुर पानी वाली। अबी भी कहीं कहीं पानी तो है ही क्यूं कि रिवर वॉटर रेफ्टिंग    और बोटिंग के इश्तेहार तो होते ही हैं। इन पहाडियों के कितने रंग लाल, नारंगी, हरे (पेडों की वजह से), भूरे मटमैले और सफेद झक। केनियन्स देखने के लिये एक गैलरी-नुमा चलने का रास्ता बना हुआ है जहां से बीच बीच में सीढियां हैं जिनसे नीचे की ओर जाकर और तले तक देख सकते हैं और फोटो विडियो ले सकते हैं। (विडियो)

चारों तरफ बनी ये केनियन्स देखीं जो पानी से कटने के कारण बनी हैं। हमने कोई डेढ घंटा ही इन केनियन्स को देखने में गुजारा । विभिन्न रंगों, आकार प्रकार की यह कटी पहाडियां और घाटी लोगों की नजरों में अलग चित्रों के सृजन करती हैं इसी से इनके विभिन्न नाम है। हमने सफेद पहाडियों में एक पहाडी देखी जो भुवनेश्वर के बिंदुसागर मंदिर की तरह दिखती है। (विडियो केनियन्स)
 हमें कोई डेढ घंटे बाद वापिस जाना था। तो अनिच्छा से ही हम वापिस चल पडे। हम दोनो ही रह गये थे हमारे ग्रूप से तो और कोई हमारे साथ नही था आते हुए रास्ता जितना सरल लगा था वापसी मे वही हमें बस तक नही पहुंचा सका या हम नही पहुंच पाये इधर बस छूटने का समय हो रहा था। यह तो अच्छा हुआ कि हमारी गाइड सूझन का फोन नंबर हमने ले रखा था। फिर हम घूम घाम कर वापिस विजिटर सेंटर पहुंचे और उसको वहां से पोन किया कि हमें बस नही मिली तो हमें सेंटर से  ले लो।  सूझन नें कहा वहीं रुको मै आती हूँ। और इस तरह हम उसके  साथ बस तक पहुंचे। वहां जाने पर पता चला कि हमारे तरह काफी लोग रास्ता भटक गये थे और बस हमारी  आधे घंटे देर से ही चल पाई। वापसी पर हमने हूवर डैम का विडियो किया। एक जगह पहाडी पर एक बिल्ली जैसी आकृति बनी हुई थी। फिर हम रुके रूट 66 पर जो अमरीका कि पहली नेशनल हायवे है।  इसको विल रॉजर्स हाइ-वे या मदर रोड भी कहते हैं। यह शिकागो, इलिऩॉय से सान्ता मॉनिका केलिफोरनिया तक जाती है और बीच में मिसूरी, कन्सास, ओक्लाहोमा, टेक्सास, न्यू मेक्सिको और एरिझोना से गुजरती है। हमने इसका एरिझोना वाला छोटा सा हिस्सा देखा और वहां एक जगह एक दुकान में रुके जो इसके शुरुआत से है।  इसकी पूरी कहानी पर हमने बस में एक फिल्म भी देखी। उस दूकान में जब लोग खरीदारी कर रहे थे तो काफी समय गुजारा और एक मुंबई के पंजाबी कपल ओर उत्तर हि्दुस्तान के मराठी कपल से मिले जब कि हम सारा वक्त उलटा ही सोच रहे थे। बडा मज़ा आया। हमनेे आर्थ्राइटिस के बारे में एक दूसरे के अनुभव भी बांटें (विडियो रूट 66)। 
 शाम को करीब सात बजे हम वापिस लास वेगास पहुंचे और जल्दी से खा पी कर रात को फिऱ आस पास के होटल की रोशनाई देखने घूमे। इस बार हमारे अपने होटल का भी विडियो किया।
कलस सुबह हमारी वापसी थी।  
सुबह जल्दी उठना था । क्यूं कि लंबा रास्ता तय करना था। सब को वापिस अपने अपने गंतव्य पर जाना था कुछ लोग जो भारत से सीधे आये थे उनको आगे भी घूमना था न्यूयॉर्क बोस्टन वगैरा। बहुत से लोगों को लॉस एन्जिलिस जाना था। बचे हुए लोगों मे से अधिक तर सैन फ्रान्सिस्को के थे और हमें जाना था कूपरटिनो।

(क्रमशः)