अयोध्या आज हुई है धन्य
दशरथ घर गूंजे मंगल गान,
उपजे पुत्र चार कुल दीपक
अतीत का शाप बना वरदान ।
हर्षित तीनों ही मातायें
सुतमुख देख तृप्त मन-काम
राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघन
आज अवध आनंद को धाम ।
कौशल्या, चकित और विस्मित
प्रगट भये करुणा निधान,
धन्य हुई है कोख आज लगि,
सतजन्म पुण्य का ये वरदान ।
पुत्र जन्म उत्सव नगरी में
जन जन हरषे, मन अभिमान
कौशल्या घर प्रभू प्रगट भये
बालक अति सुंदर अभिराम ।
चर्चा करे नगर नर नारी
नंदन, मनमोहक घन-शाम
देखत मन आनंद से डोलत
तन-मन पुलक, अश्रु अविराम ।
मुदित भये महल भीतर सब
नगर भयो आनंद को धाम
सूरज भी रुक गये दो पहर
क्या ऐसा घटगया अनाम ।
शनिवार, 31 मार्च 2012
सोमवार, 26 मार्च 2012
६ त्रिदल
सिंदूरी आसमान
तुम्हारी चुनरी
फैली हो जैसे
नीला सागर
भूरी रेत
आंखें और दिल ।
सलेटी काला,
रात का साया
गहराता दुख ।
तारे टिमटिम
कोई तो किरण
रोशनी की ।
लंबी रात
बिना बात
खिंचता मौन ।
सुहानी हवा
भोर के पंछी
आस जगाते ।
तुम्हारी चुनरी
फैली हो जैसे
नीला सागर
भूरी रेत
आंखें और दिल ।
सलेटी काला,
रात का साया
गहराता दुख ।
तारे टिमटिम
कोई तो किरण
रोशनी की ।
लंबी रात
बिना बात
खिंचता मौन ।
सुहानी हवा
भोर के पंछी
आस जगाते ।
शुक्रवार, 16 मार्च 2012
ख्याली पुलाव
नेता जो बेईमान कम होते
लोगों के वे देवता होते ।
छोडते जो पचास प्रतिशत भी
प्रगति में आज हम कहां होते ।
जो लोगों के लिये पुलिस होती,
लोग भी फिक्रमंद ना होते ।
आतंकी पैदा भी तब नही होते
गलत करने से पहले घबराते ।
पढाते शिक्षक जो क्लास में दिल से,
तो कोचिंग क्लास भी कहां चलते ।
पैदावार आती जो सब बजारों में
चीजों के ऊँचे दाम, कयूं होते ।
गोदामों में गेहूं फिर नही सडता
अपने भंडारक ही जो सही होते
सब को जो काम काज मिल जाता
इतने उत्पात तब नही होते ।
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
घूस से काम हम न करवाते
तब तो फिर घूसखोर ना होते ।
ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।
लोगों के वे देवता होते ।
छोडते जो पचास प्रतिशत भी
प्रगति में आज हम कहां होते ।
जो लोगों के लिये पुलिस होती,
लोग भी फिक्रमंद ना होते ।
आतंकी पैदा भी तब नही होते
गलत करने से पहले घबराते ।
पढाते शिक्षक जो क्लास में दिल से,
तो कोचिंग क्लास भी कहां चलते ।
पैदावार आती जो सब बजारों में
चीजों के ऊँचे दाम, कयूं होते ।
गोदामों में गेहूं फिर नही सडता
अपने भंडारक ही जो सही होते
सब को जो काम काज मिल जाता
इतने उत्पात तब नही होते ।
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
घूस से काम हम न करवाते
तब तो फिर घूसखोर ना होते ।
ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।
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