मंगलवार, 28 सितंबर 2010

इतिहास


इतिहास अपने को दोहराता है ।
हर सदी में फिर वही होता है ।
वही झूट, वही फरेब, वे ही अत्याचारी और भ्रष्ट लोग ।
और सामान्य जनों की बेहाली ।
अत्याचारियों का राज,
और अच्छे विचारवंत लोगों की कमजोरी ।
इस सब में बिकता, लुटता देश ।
इतिहास किसी को माफ नही करता ।
यदि हमने सबक नही सीखा तो फिर फिर
अपने को दोहराता है इतिहास ।



मंगलवार, 21 सितंबर 2010

गणपति बाप्पा मोरया


आज गणेश विसर्जन का दिवस है । दस दिन के बाद गणपति का वापिस लौट जाना कितना खलता है पर वे तो जाते हैं क्यूं कि अगले साल लौट सकें । हमें अपनी आंखों से जतन करने वाले, सूंड से सहलाने वाले, हमारे अपराधों को अपने पेट में डाल कर हमारे ऊपर करुणा बरसाने वाले भगवान गणेश, हमारे बाप्पा आज वापिस चले जायेंगे । उनकी विदाई भी आगमन की तरह ही शानदार होनी चाहिये । इस अवसर पर मेरे स्वर्गीय बडे भाई साहब द्वारा रचित हिंदी में गणेश आरती ( जो मराठी आरती का  अनुवाद है और  तर्ज भी वही है ।) प्रस्तुत है । वे ऋतुरंग नाम से लिखते थे ।
           ।। श्री ।।
सुख कर्ता दुखःहर्ता वार्ता संकट की
तनिक न रहने पाये महिमा है उनकी
सिंदूरी उबटन से लिपटी छबि तनु की
कंठ दमकती माला श्री मुक्ताफल की
जय देव जय देव जय मंगल मूर्ती
हे श्री मंगल मूर्ती
दर्शन से ही मन की
चिंतन से ही मन की
कामना पूर्ती  ।। जय देव जय देव
रत्नजटित सिंहासन गौरी नंदन का
लेप लगायें कुकुम केसर चंदन का
हीरों जडा मुकुट है मस्तक पर बांका
रुनझुन रव नूपुर है, चरनों में हलका ।। जय देव जय देव
लंबोदर पीतांबर बांधा फणिवर से
सूंड सरल, वक्रानन, नयन त्रय मणि से
दास राम का जोहे बाट चिरंतन से
संकट दूर भगायें
ऋतु रंगीन बनाये
प्रभु करुणा घन से ।। जय देव जय देव
शरद काळे (ग्वालियर )
गणपति बाप्पा मोरया ! अगले बरस तू जल्दी आ ।





रविवार, 12 सितंबर 2010

बारिश

कभी तो ये आंगन छिडकती है बारिश
कभी पेड-पौधे धुलाती है बारिश ।
कभी तो झमाझम बरसती है बारिश
और मोर छमाछम नचाती है बारिश ।
बादल के ढोलक बजाती है बारिश
कभी बिजली में नाचती है ये बारिश ।
पवन में कभी सनसनाती है बारिश
कभी घोर गर्जन सुनाती है बारिश ।
कहीं आँसुओं को छुपाती है बारिश
तो चेहरे पे खुशियाँ खिलाती है बारिश ।
घटा में कभी घिर के आती है बारिश
कभी धूप मे मुस्कुराती है बारिश ।
कहीं नन्हे मुन्ने रुदन में है बारिश
बाढ आये तो सबके सदन में है बारिश ।
रास्तों बाजारों में पानी है बारिश
इन्सां की मुश्किल बढाती, ये बारिश ।
कभी आंधियों सी उखडती, ये बारिश
गाँवों, घरों को उजडती ये बारिश ।
कभी खेत में लहलहाती है बारिश
कभी दूर प्रीतम सी रहती है बारिश ।

सोमवार, 6 सितंबर 2010

फिर वही शाम है और वही रात है,.


फिर वही शाम है और वही रात है,
और फिर चांदनी में वही बात है ।
फिर से वो ही कशिश है फिजाओं में भी
और फिर से तुम्हारा हँसी साथ है । फिर..

फिर वही रातरानी है महकी हुई
खुशबुएँ और मस्ती, बिखरती हुई
कहीं लहरों पे संगीत बजता हुआ
चांद का एक जादू सा सजता हुआ
आँखों आँखों में ही हो रही बात है
प्यार की ये अनोखी ही सौगात है । फिर ..

फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..