शनिवार, 26 जुलाई 2014

धुंधली सी उम्मीद


राह खत्म है फिर भी चल रहा हूँ मै
कागज़ नही पर शब्द ही छलका रहा हूँ मै।

आँखों के आँसू सूख गये बडे दिन हुए,
दिल में कहीं नमी की, खोज में रहा हूँ मैं.

कैसे कोई किसी से इतनी बेरुखी करे,
सवाल का जवाब नही पा रहा हूँ मै।

मैने तो अपनी ओर से कोशिश भी की बहुत,
उस बंद दर को कहाँ खुलवा सका हूँ मै।

एक धुंधली सी उम्मीद कि शायद खुलेगी राह,
इसी आस को दिल में बसाये जा रहा हूँ मै.






चित्र गूगल से साभार।