मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
ग्यारा नवम्बर रात के नौ बजकर चालीस मिनिट पर जब हवाई जहाज दिल्ली की हवाई पट्टी पर उतरा तो जैसे घर पहुँचने का सुकून मिल गया । सामान लेकर घर आये तो उस वक्त बिस्तर पर लेट कर पीठ सीधी करने की आवश्यक्ता तीव्रता से महसूस हो रही थी । तो उस वक्त तो लेट गये पर तीन बजे ही नींद खुल गई । जिन्हे उठते ही चाय चाहिये, चाय के बिना दिन शुरू नही होता वे ही समझ सकते हैं कि दूध न होने से कितनी बेचैनी हो सकती है । काली चाय तो कभी पी नही तो आज कैसे पी लेते । जैसे तैसे सामान निकाल कर सूट केस खाली करने में थोडा समय बिताया । पाँच बजे मैने इनसे कहा, "चलते हैं शायद मदर डेयरी खुली हो दूध मिले तो चाय पी जाये ।" तो चल पडे । ठंड तो ज्यादा थी नही तो बिना स्वेटर के ही निकल गये । मदर डेयरी पहुँचे तो बंद पर सब्जी की दुकान में सब्जी उतारी जा रही थी । पता था कि दूध यहां मिलने के चान्सेज कम ही हैं फिर भी पूछने में क्या हर्ज की तर्ज पर पहुँच गई उनके पास, ”दूध तो न होगा आपके पास” तो बोले, ” ना जी दूध तो नही है “। फिर मै दुखी हो कर वापिस मुडने ही वाली थी कि दूसरा बोला, "टेट्रा पैक है, चालीस रुपये का टोन्ड मिल्क का ।" जैसे अंधे को दो आँखें मिल गई हों ऐसी खुशी हुई । टैट्रा पैक लेकर घर आये चाय बनाई और चाय पी । उसकी खुशामद कर के अद्रक भी ले लिया था । आनंद आ गया । पर 12 तारीख को मै और 14 को सुरेश दोनो फ्लू से बीमार । डर था कि कहीं चिकन गुनिया ना हो । उसकी काफी खबरें सुनने में आ रही थी । मेरे पास एक होमियो पैथिक दवा रखी थी चिकन गुनिया को रोकने की सो चार चार गोली दोनों ने खा ली । खैर चिकन गुनिया न था और तीन चार दिन में दोनो आदमी ठीक ठाक हो गये । अब घर की खबर ली तो पाया सीपेज था दो चार जगह और दीवार की पपडी सी उखड रही थी, एक खिडकी से वह जबरदस्त पानी आया था कि उसके नीचे की छोटी अलमारी फफून्द से भर गई थी । तो सोचा घर सैट करने से पहले सफाई, रंग रोगन करा लेते हैं । छैः साल पहले जिन रामदास ठेकेदार से काम कराया था उनका फोन नंबर भी मिल गया । फोन मिलाया तो वह जैसे मेरे लिये ही लाइन पर बैठे थे । बात की और शाम को वह हाजिर । कल से शुरू करा देते हैं जी काम और उन्होने फटाफट एस्टिमेट दे दिया । काफी ज्यादा लग रहा था पर काम तो कराना था तो मरता क्या न करता । तो काम शुरू, तीन दिन तक तो दीवार की मरम्मत होती रही फिर घर के अंदर आये पुताई के लिये । पहला पेन्ट खुरचा तो रामदास जी बोले घिसाई भी करवा लेते फर्श भी साफ हो जायेगा । एस्टिमेट में और इजाफा हुआ हमने सोचा इसके आगे हम तो और थकते ही जाने वाले हैं सो अभी करा ही लेते हैं आगे की किसने देखी । तो वह भी शुरू । घर में जो काम फैला है कि हमारा घर रेल्वे प्लेट फॉर्म और बस अड्डे से भी बदतर दिखने लगा । जब सफाई वाली आती तो काम चलता रहता और वह सिर्फ बर्तन कर के चली जाती । जब ये लोग जाते तो हम ही थोडी बहुत सफाई करके घऱ को सोने लायक बना लेते । झाडू लगाते लगाते समय मुझे भाई साहब की पैरॉडी याद आ जाती ।
सुनहरी ये धूल और हम सा हँसीं
हमें डर है हम खो न जाये कहीं ।। सुनहरी
ये झाडू चलती है जैसे जमींपर
वो धूल उडती है मेरे बदन पर
मेरा पाउडर, मेरा लिपस्टिक,
है सब कुछ शायद यही ।। सुनहरी..
अंततः जब चार दिसंबर को काम खत्म हुआ तो हमने इत्मिनान की सांस ली । अब बारी थी जो सामान फैला है उसको ठिकाने लगाना । एक दिन में सब कुछ समेट लेने का माद्दा तो अब रहा नही सो सोच लिया सुबह सुबह जितना हो पायेगा कर लेंगे एक बार दो बज गये कि काम बंद फिर अगले दिन करेंगे । तो वही किया बचे समय में टी वी पर प्याज के आसमान छूते भाव, बाकी वस्तुओं की महंगाई, नीरा राडिया, अनंत कुमार, और स्वामी आदि आदि को देखते और सुनते रहे । क्या क्या हो रहा था और हो रहा है । पर क्या आखिर तक जायेगा या; ये सफाई अभियान या थोडे दिन तक ढोल पीट कर ये मीडिया वाले भी बंद हो जायेंगे (जब इनको इनकी वाजवी कीमत मिल जायेगी) और आम आदमी हमेशा की तरह हाथ मलता रह जायेगा । अपने साफ सुथरे घर को देख कर अब एक सुकून सा महसूस होता है । क्या यही सुकून हमारे देश को साफ सुथरा देख कर पा सकेंगे हम । कितना कचरा, जाले, फफूंद और तिलचट्टे निकल बाहर आ रहे हैं, क्या होगा इनका सफाया या फिर ये अंधेरे कोनों में घुस कर ये फिर हम पर राज करेंगे ? क्या लायेगा नया साल हमारे लिये ? क्या छिपा है भविष्य के गर्भ में ? बहर हाल आप सब को नया साल मुबारक । आशा करते हैं कि हम थोडा अधिक साफ सुथरा समाज और व्यवस्था पायेंगे । बहुत कुछ अच्छा हो रहा है पर अभी काफी कुछ होने की जरूरत है ।
वे कहते हैं इस दशक में भारत समृध्द हुआ है ।
कितनी विशाल अट्टालिकाएँ, चौडी सडकें, उड्डान पुल,
खेल के मैदान, मेट्रो रेल, नये मॉडेल की कारें,
और नये आयाम छूते सेन्सेक्स और निफ्टी
और सब चीजों के आसमान छूते भाव ।
जिनकी जेबें गर्म हैं वे तो पार पा सकते हैं ।
अब भी होटलों में खा सकते हैं ।
छुट्टी में घूमने जा सकते हैं
बच्चों को महंगे स्कूलो में पढा सकते हैं ।
बीवियों की मोटी फरमाइशें पूरी कर सकते हैं ।
जिनकी गर्मागर्म हैं उनकी तो चांदी ही चांदी है ।
इच्छा करो और पैसे का जिन्न चीज हाज़िर कर देगा ।
जिनकी गुनगुनी है वे भी जी ही लेंगे ।
पर
उनका क्या जो
बढती कीमतों के साथ जद्दो जहद करते करते
अपनी जवानी गवाँ रहे हैं,
बुढापा झेल रहे हैं ।
बचपन खो रहे हैं ।
उन किसानों का क्या जो बैंक का कर्जा ना चुका पाने पर आत्महत्या करने पर मजबूर हैं ।
उन बच्चों का क्या जो चाय के कप धोते धोते,
कार्पेट बुनते बुनते,
चूडी बनाने के लिये कांच गलाते गलाते,
स्कूल जाते बच्चों को ललचायी नजर से देखते हैं ।
उनका क्या जिन्हें सरकारी स्कूल के मास्टर केवल ट्यूशन पर ही पढाते हैं ।
अगर टयूशन के पैसे नही तो पढो अपने आप ।
या न पढो मेरी बला से ।
उनका क्या, कि आज काम है खाना है पर कल.........?
और उनका जो मेम साहबों के बर्तन घिस कर, घर चमका कर ,
गर्म फुलकें परोस कर भी किसी इनक्रीमेन्ट की हकदार नही हैं ।
महंगाई की दुहाई दे कर भी तनखा में बढोतरी दस प्रतिशत भी नही ।
सुबह से रात तक जूझने का मोल
हाडतोड मेहनत और रात में शराबी पती के लात घूसे
उनका क्या ?
उनके बारे में सोचने की न फुर्सत है न जरूरत ।
कितनी तरक्की की है हमने इस गये दशक में,
क्या यह काफी नही है ?
फिर से एक बार नया साल मुबारक !
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
प्याज
आम आदमी के लिये ये देश
एक प्याज है ।
परत दर परत एक स्कैम आदर्श सोसायटी
उसे हटाओ तो एक और स्कैम सी डब्लू जी
उसके नीचे एक और स्कैम 2 जी
उसके भी नीचे एक और एल आय सी
परतें छीलते जाओ स्कैम पाते जाओ
शेष कुछ ना बचेगा
बचने के लिये कुछ छोडेंगे तब ना ।
गुरुवार, 18 नवंबर 2010
दास्ताने इश्क
जब जब जहां में जिंदगी के काफिले चलते रहे
दास्ताने इश्क के भी सिलसिले चलते रहे ।
मुस्कुरा कर हमको देखा उसने तो बस इक नजर,
दिल में उमंगों के खुशी के बुलबुले चलते रहे ।
हमने थामा हाथ उनका, खामोशी थी दरमियां
धीरे से जो हां कहा तो, मनचले जलते रहे ।
दोस्तों की महफिलों का बैठा मै सरताज बन,
उनके मेरे नाम संग संग यूं मिले मिलते रहे ।
आदमी-ए-आम का भी इश्क से है वास्ता
चाहे रोटी को तलाशे, चल पडे, चलते रहे ।
इश्क करना है तो यारों, कर लें इस धरती से हम
इसके अपने इश्क बाद-ए-मौत भी पलते रहे ।
अपनी ताकत को न हम पहचाने तो किस का कसूर,
हुक्मरानों के बनाये फासले चलते रहे ।
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
बुधवार, 3 नवंबर 2010
स्नेह के दीप
स्नेह के दीप जलाओ रे
लौटेंगे राम हमारे ।
कुछ प्रेम पगे फल लाओ रे
आयेंगे राम हमारे ।।
उसने नही बनाया हमको
हिंदु, मुस्लिम, सिख, इसाई
भेजा प्रेममयी धरती पर
प्रीत की रीत सिखाई
फिर क्यूं तलवार चलाओ रे
कैसे लौटें राम हमारे ।। स्नेह के...
झगडे से किसका भला हुआ ?
यह मुआ तो वह भी गया
खून बहा जो भी धरती पर
इन्सानों का ही बहा
जीवन का राग सुनाओ रे
तब लौटें राम हमारे ।। स्नेह के...
छोडेंगे विरासत में हम क्या
उजडी धरती टूटा रिश्ता
मन से मन तक जाने का
जटिल चक्रव्यूह सा रस्ता
ना बैर को और बढाओ रे
कैसे आयें राम हमारे ।। स्नेह के...
बच्चे हैं कोमल मन के
ये फूल हैं इस उपवन के
इस बगिया को न उजाडो
बमों के कर के धमाके
मत इनको झुलसाओ रे
कोई लाओ राम हमारे ।। स्नेह के...
आप सब को दीपावली शुभ हो ।
गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010
बुराई का अंत
आज मारना है रावण को, पर आज ही क्यूं
यहां तो रावण अब भरे पडे हैं
रोज ही मनाओगे दशहरा तब शायद
हो बुराई का अंत
तब ही मन करेगा अयोध्या लौटने को
मेरे आने तक भरत ने तो निष्कलंक रखी थी अयोध्या
तुम क्यों तुले हो इसे मलिन करने को
यहां के लोग तो नही चाहते ये सब
जिस कुर्सी के मोह में लिप्त हो, वही छोड दी थी
भरत ने, पाकर भी नही अपनाई थी
कुछ भी नही सीखे हो, सीख पाओगे भी नही
सिर्फ आग मत लगाओ
राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ।
बुधवार, 6 अक्तूबर 2010
भौरों के कदरदान
फूलों से ही भौरों की पहचान है
वरना इनके कहां कदरदान हैं ?
आदमी को चाहिये इन्सानियत़
उसके बिना क्या आदमी का मान है ?
हमने किस पत्थर से क्या मांगा भला,
मन की जो भी जान ले, भगवान है ।
नन्हे-मुन्नों पे न डालो बोझ तुम
इनका बचपन आजकल मेहमान है ।
तेरे मेरे बीच का ये फासला
मिट गया गर, एक दिल दो जान है ।
जो न मिट जाये वतन की राह में
वो क्या सच्चा वीर है, जवान है ?
तुम से जो बन पाये, तुम उतना करो
औरों की सोचो न , वे अनजान हैं ।
आस का होता क्या कोई अंत है,
कम न निकले, दिल के जो अरमान हैं ।
जैसे गुजरी है ये अब तक जिंदगी
आगे भी गुजरे ? तू तो बस नादान है ।
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
इतिहास
इतिहास अपने को दोहराता है ।
हर सदी में फिर वही होता है ।
वही झूट, वही फरेब, वे ही अत्याचारी और भ्रष्ट लोग ।
और सामान्य जनों की बेहाली ।
अत्याचारियों का राज,
और अच्छे विचारवंत लोगों की कमजोरी ।
इस सब में बिकता, लुटता देश ।
इतिहास किसी को माफ नही करता ।
यदि हमने सबक नही सीखा तो फिर फिर
अपने को दोहराता है इतिहास ।
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
गणपति बाप्पा मोरया
आज गणेश विसर्जन का दिवस है । दस दिन के बाद गणपति का वापिस लौट जाना कितना खलता है पर वे तो जाते हैं क्यूं कि अगले साल लौट सकें । हमें अपनी आंखों से जतन करने वाले, सूंड से सहलाने वाले, हमारे अपराधों को अपने पेट में डाल कर हमारे ऊपर करुणा बरसाने वाले भगवान गणेश, हमारे बाप्पा आज वापिस चले जायेंगे । उनकी विदाई भी आगमन की तरह ही शानदार होनी चाहिये । इस अवसर पर मेरे स्वर्गीय बडे भाई साहब द्वारा रचित हिंदी में गणेश आरती ( जो मराठी आरती का अनुवाद है और तर्ज भी वही है ।) प्रस्तुत है । वे ऋतुरंग नाम से लिखते थे ।
।। श्री ।।
सुख कर्ता दुखःहर्ता वार्ता संकट की
तनिक न रहने पाये महिमा है उनकी
सिंदूरी उबटन से लिपटी छबि तनु की
कंठ दमकती माला श्री मुक्ताफल की
जय देव जय देव जय मंगल मूर्ती
हे श्री मंगल मूर्ती
दर्शन से ही मन की
चिंतन से ही मन की
कामना पूर्ती ।। जय देव जय देव
रत्नजटित सिंहासन गौरी नंदन का
लेप लगायें कुकुम केसर चंदन का
हीरों जडा मुकुट है मस्तक पर बांका
रुनझुन रव नूपुर है, चरनों में हलका ।। जय देव जय देव
लंबोदर पीतांबर बांधा फणिवर से
सूंड सरल, वक्रानन, नयन त्रय मणि से
दास राम का जोहे बाट चिरंतन से
संकट दूर भगायें
ऋतु रंगीन बनाये
प्रभु करुणा घन से ।। जय देव जय देव
शरद काळे (ग्वालियर )
गणपति बाप्पा मोरया ! अगले बरस तू जल्दी आ ।
रविवार, 12 सितंबर 2010
बारिश
कभी तो ये आंगन छिडकती है बारिश
कभी पेड-पौधे धुलाती है बारिश ।
कभी तो झमाझम बरसती है बारिश
और मोर छमाछम नचाती है बारिश ।
बादल के ढोलक बजाती है बारिश
कभी बिजली में नाचती है ये बारिश ।
पवन में कभी सनसनाती है बारिश
कभी घोर गर्जन सुनाती है बारिश ।
कहीं आँसुओं को छुपाती है बारिश
तो चेहरे पे खुशियाँ खिलाती है बारिश ।
घटा में कभी घिर के आती है बारिश
कभी धूप मे मुस्कुराती है बारिश ।
कहीं नन्हे मुन्ने रुदन में है बारिश
बाढ आये तो सबके सदन में है बारिश ।
रास्तों बाजारों में पानी है बारिश
इन्सां की मुश्किल बढाती, ये बारिश ।
कभी आंधियों सी उखडती, ये बारिश
गाँवों, घरों को उजडती ये बारिश ।
कभी खेत में लहलहाती है बारिश
कभी दूर प्रीतम सी रहती है बारिश ।
कभी पेड-पौधे धुलाती है बारिश ।
कभी तो झमाझम बरसती है बारिश
और मोर छमाछम नचाती है बारिश ।
बादल के ढोलक बजाती है बारिश
कभी बिजली में नाचती है ये बारिश ।
पवन में कभी सनसनाती है बारिश
कभी घोर गर्जन सुनाती है बारिश ।
कहीं आँसुओं को छुपाती है बारिश
तो चेहरे पे खुशियाँ खिलाती है बारिश ।
घटा में कभी घिर के आती है बारिश
कभी धूप मे मुस्कुराती है बारिश ।
कहीं नन्हे मुन्ने रुदन में है बारिश
बाढ आये तो सबके सदन में है बारिश ।
रास्तों बाजारों में पानी है बारिश
इन्सां की मुश्किल बढाती, ये बारिश ।
कभी आंधियों सी उखडती, ये बारिश
गाँवों, घरों को उजडती ये बारिश ।
कभी खेत में लहलहाती है बारिश
कभी दूर प्रीतम सी रहती है बारिश ।
सोमवार, 6 सितंबर 2010
फिर वही शाम है और वही रात है,.
फिर वही शाम है और वही रात है,
और फिर चांदनी में वही बात है ।
फिर से वो ही कशिश है फिजाओं में भी
और फिर से तुम्हारा हँसी साथ है । फिर..
फिर वही रातरानी है महकी हुई
खुशबुएँ और मस्ती, बिखरती हुई
कहीं लहरों पे संगीत बजता हुआ
चांद का एक जादू सा सजता हुआ
आँखों आँखों में ही हो रही बात है
प्यार की ये अनोखी ही सौगात है । फिर ..
फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।
फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..
सोमवार, 30 अगस्त 2010
हाँ हमने बेच खाई ..
तिरसठ साल
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
इनके जो ये करम हैं
ईमान ना धरम है
अधिकारी हों या नेता
किस को कहाँ शरम हैं
पैसे का खेल सारा
चोर-चोर मौसेरे भाई
दिखता ही है हुई है
इनकी मोटी कमाई । हाँ हमने...
राष्ट्रकुल खेलों का
मिला है एक मौका
कुछ नाम अपना करते
लेकिन हुआ है धोखा
जनता की सारी दौलत
किस किसने है उडाई
इज्जते वतन भी
है धूल में मिलाई । हाँ हमने...
संसद में बैठे बैठे
जूतम-पैज़ार करते
संविधान अपने की
ये धज्जियाँ उडाते
आतंकियों से इनकी
है साँठ-गाँठ भाई
जनता मरे या जिये
इनको मिले मलाई । हाँ हमने...
राशन नही है मिलता
बच्चा न स्कूल जाता
सरकारी गोदामों में
देखो अनाज सड़ता
अब आसमान छूने
चल पडी है महंगाई
तिरसठ सालों का अपना
यही है हिसाब भाई । हाँ हमने...
कुछ अच्छे लोग भी है
जो रहते काम करते
दुनिया जहाँ में ऊँचा
भारत का नाम करते
हुई उनके भी राहों में
है काँटों की बुवाई
घायल हुए हैं फिर भी
लडते रहे सिपाही । हाँ हमने...
सोमवार, 23 अगस्त 2010
तुम क्यूं चले आते हो…..
तुम क्यूं चले आते हो…..
तुम क्यूं चले आते हो दबे पांव
मेरे खयालों में ?
अचानक ही अनमनी सी हो जाती हूँ मैं ।
किसी चीज का रहता नही होश,
जागती आँखों से सपने में खो जाती हूँ मै ।
किसी के पूछने पर कि क्या हुआ
एक झूटी सी हँसी हंसती हूँ मै ।
किताब में दबे मुरझाये सूखे फूलों को
हौले से सहलाती हूँ मै ।
किसी पुरानी चिठ्ठी को
आँसुओं से भिगोती हूँ मै ।
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो मेरे खयालो में ?
शनिवार, 14 अगस्त 2010
पालमा दे मालोरका
पालमा, मालोरका बैलेरिक द्वीपों की राजधानी है । अब ये स्पेन का ही एक राज्य है । इसका इतिहास तो धातुयुग तक जाता है जब आदिवासी लोग यहां पर रहते थे पर रोमन लोगों ने ही इसे पालमा नाम दिया । इसके बाद बेझेन्टियन लोगों का आधिपत्य रहा होगा क्यूंकि कुछ अवशेष यही बताते हैं । मध्ययुग में यहां कोई 300 साल तक अरब लोगों का आधिपत्य रहा जब सारे योरोप में ऑटोमन साम्राज्य की तूती बोल रही थी । अरबों ने इसे नाम दिया था मदीना मायूरका जो बादमें बिगड कर माजोरका और मालोरका हो गया । मदीना को तो एकदम ही बदल कर पालमा कर दिया गया । यहां के पुरानी इमारतों में अरब संस्कृती का प्रभाव स्पष्ट है । 1229 के आस पास रोमनों ने इस पर अपना अधिकार कर लिया । कई विभिन्न देशों के शासकों के बाद यह अब स्पेन का हिस्सा है । टूरिज्म यहां का बडा व्यवसाय है ।
तो हम सुबह करीब दस बजे शिप से एक सुंदर से खूब लंबे पुल से होकर बाहर आये । यहां पुल पर से गुजरते हुए हमने कई बडे बडे जहाज देखे । (विडियो 866-933-3 )
सुहास ने कहा वह तो नही घूमेगी उसे तो मॉल जाना है । यहां के मोती बहुत प्रसिध्द हैं । कई रंगों के शेडस् में मिलते हैं जैसै गुलाबी, नीले, ऊदे और काले भी । जयश्री और प्रकाश भी सुहास के साथ मॉल घूमने चले गये, पर मुझे तो देखना था और खरीदना कुछ नही था । तो मैं सुरेश और विजय ने हॉप ऑन हॉप ऑफ बस के 13-13 यूरो के टिकिट लिये और पालमा का चक्कर बस में बैठे बैठ ही लगा लिया ।
हमें यहाँ भी इयर फोन दिये गये थे और 3 नंबर चैनल से हमें अंग्रेजी में कमेंट्री सुनाई दे रही थी । पालमा का ला-सेयू चर्च बहुत प्रसिध्द है यह भी एक मस्जिद की जगह ही बनाया गया है । यहां भी वास्तुओं पर एन्तोनियो गाउदी साहब का प्रभाव स्पष्ट है । पुराने शहर के रास्ते संकरे हैं । हम हालाँकि अलमुदीना का राजसी महल नही देख पाये क्यूंकि हमारे रूट में वह शामिल नही था पर नाम से ही पता चलता है कि ये अरबों का किला रहा था जिसे बढा कर महल बना दिया गया । इस महल को जेम्स II नें बनवाया । बेलवर का किला जो गोलाकार में है वह भी मुस्लिम इमारत के अवशेष पर ही बना है। और भी बहुत सी इमारतें थीं जैसे म्यूजियम और कथीड्रल जो हमने देखें । समंदर के किनारे किनारे पाम के पेडों के साथ साथ हमारी बस चल रही थी । बंदर गाह सेल बोट्स सब बहुत ही अच्छा लग रहा था । (विडियो 866-932-2)
करीब एक घंटे बाद हम वापिस आये पर सुहास प्रकास और जयश्री का कहीं पता नही था । हम तीनों के पास अपने अपने एंट्री कार्ड थे ही तो हम तो वापिस शिप पर आ गये । बहुत से लोगों की अगली क्रूज आज पालमा से शुरू हो रही थी ( ये भी स्पेन में ही है ) तो उनका स्वागत शिप से बाहर हो रहा था हमारा यह आखरी पडाव और आखरी दिन था कल हमें बार्सीलोना उतरना था पर हमने भी बैठ कर कॉफी पी कुकीज खायीं और फिर शिप के अंदर गये कमरे मे गये रेस्ट किया तब भी इन लोगों का कोई पता नही था । फिर हम चाय पीने ऊपर गये चाय पी तब जाकर कहीं ये लोग आये । पूछा कि क्या क्या खरीदा, जवाब था कुछ भी नही । फिर सुहास मै और जयश्री इनफॉर्मेशन डेस्क पर गये पूछने के लिये कि सुहास को जो ज्वेलरी पर स्पेनिश टैक्स के पैसे वापिस लेने थे वे कहां से मिलेंगे तो रसीद देख कर वहां बैठी लडकी बोली कि आपको तो वापिस कुछ नही मिलेगा क्यूंकि ये तो सिर्फ 100 यूरो से ऊपर के खरीदारी पर ही लागू है । लो जी कल्लो बात, पहले नही बता सकते थे । खैर भुनभुनाते हुए वापिस आये । आज हम फिर एक बार सारे शिप का चक्कर लगाने वाले थे सो लगाया डेक पर घूमे । आप भी घूम लें सुबह से लेकर रात तक की दिन चर्या दिख जायेगी। विडियो कल क्रूझ तो खत्म पर हमें एक दिन बार्सीलोना रुक कर आगे व्हाया लंडन वाशिंगटन डी सी जाना था पर ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइटस् जा रही थीं यही तसल्ली थी ।(विडियो 866-932-1)
रात भर सफर कर के कल हमारा जहाज बार्सीलोना में डॉक होगा । आज ही सारा सामान पैक करके हमें सूट केसेस 11 बजे से पहले केबिन के बाहर रखनी थी । तो वह काम भी करना था । पर इन 6-7 दिनों में हमने भरपूर आनंद उठाया था । घूमने फिरने का शिप के जीवन का । आराम से रहो खाना पीना सब कुछ टाइम से बिना पत्ता हिलाये मिल रहा है । वहाँ डेक पर जा कर हमने गोल्फ और दूसरे गेम्स भी ट्राय किये ।
सच में कभी सोचा न था कि दुनिया में इतनी जगह घूम कर इतने देश घूम पायेंगे । ऐसी कोई ललक भी नही थी कि यहां जाना है वहाँ जाना है पर वो कहते हैं ना कि बिन मांगे मोती मिले............
सुबह सुबह कोई साढे छै बजे हमारा शिप बार्सीलोना पहुँच गया पर हमें 9 बजे बाहर जाने की परमिशन मिल गई थी । एनातोली तो 10 बजे आने वाले थे । खैर सामान वामान लेकर हम बाहर निकले । दस मिनिट में ही एनातोली हमे लेने आ पहुँचे । उनके घर गये तो कात्लीना और डेनियल भी वहीं थे पर हमारे कमरे हमें दे दिये गये हमें बहुत ही संकोच हो रहा था । डेनियल की तबीयत खराब चल रही थी । पर कात्लीना बच्चे के साथ एनातोली के कमरे में रही और एनातोली लिविंग रूम मे सोफे पर ।हमने रात का खाना बनाया और एक बार बीच पर घूम लिये वहां रेत में सीपियाँ ढूंढीं, रेत का किला बनाया । (विडियो 933-958-3)
अगले दिन 4 बजे उठना था फ्लाइट 8 बजे की थी । तो एनातोली जी ने हमे एयर पोर्ट पर छोडा ही नही बल्कि क्लॉक रूम में रखवाया हुआ हमारा लगेज भी दिलवाया और फिर हमें चेक-इन काउँटर पर छोड कर वे वापिस गये । उन्हें कार भी वापिस करनी थी ।
लंडन के फ्लाइट में वेज खाना ही नही था फिर एयर होस्टेस बडी अच्छी थी उसने बिझिनेस क्लास वालों का खाना हमें ला दिया बहुत बढिया पास्ता था । तो वही सारी ऊठा-पटक कर के फायनली 31 मई को हम वॉशिंगटन डी सी पहुँच ही गये । सुहास की पडोसन हेलेन और उसका दामाद दो गाडियाँ लेकर हमे लेने आ ही गये थे । सुहास का हेलन के साथ ये अच्छा अरेन्जमेन्ट है । तो लौट कर आ गये सुहास के घर जहां से हमें अपने अपने घर पहुँचना था । पर इन दो तीन दिनों में हमने अपने ट्रिप को खूब याद किया और खुश हुए । आपको हमारे साथ घूमना पसंद आया ? सुहास की अगले 15-20 दिनों में घुटने की सर्जरी होनी है । हम सबने उसे सर्जरी अच्छे से होने के लिये शुभ कामनाएँ दीं ।
(समाप्त)
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
नेपल्स का सौंदर्य
- नेपल्स एक अद्भुत और खूबसूरत जगह जो कि अपनी एक बांह से समंदर को अपने आगोश में बांधने की कोशिश करता सा प्रतीत होता है । यहीं से आप देख सकते हैं विसूवियस पर्वत के नजारे । यह भी अपनी खूबसूरती तथा अपने इतिहास की वजह से जग प्रसिध्द है । इसका ऐतिहासिक उद्गम कोई 7 वी शताब्दी में हुआ जब ग्रीक लोगों ने एट्रुस्कन लोगों के साथ युध्द करने के हेतु इसे अपनी कॉलोनी के रूप में विकसित किया । नाम दिया नापोलीस अर्थात् न्यू सिटी । कोई 4 थी शताब्दी में ये रोमन राज्य के घेरे में आया और कई सालों तक रोमन सम्राटों का प्रिय तफरीह स्थल रहा । उसके बाद ये स्वतंत्र राज्य के रूप में रहा । 15 वी से 18 वी सदी तक ये फ्रांस और स्पेन के बीच युध्द का कारण बना । बाद में गारीबाल्डी के समय ईताली में शामिल हुआ द्वितीय विश्व युध्द के दौरान नेपल्स को बॉम्ब हल्लों का और नात्सी अत्याचारों का शिकार होना पडा । हमने तो एक छोटीसी टूर व्यू ऑप नेपल्स करके ली जो हमें बसमें बिठा कर नेपल्स के सुंदर रास्तों की सैर कराने वाली थी ।
तो हमने वह बस ली और आराम से पीठ टिका के बैठ गये 6 मे से तीन लोगों के पास विंडो सीट थी । तो नज़ारे देखने का पूरा जुगाड था । इसमें हमारी गाइड हमें हर जगह के बारे में संक्षेप में बताती जा रही थीं । (विडियो )796-842-1
नेपल्स के चौक, बिल्डिंग्ज और चर्चेज देखे । यहाँ हमने उतर कर गेलरिया प्रिंन्सिपे दि नापोली देखी । यह एक बहुत सुंदर जगह है जिसे 1876 से 1883 के दौरान बनाया गया . यह लोहे शीशे तथा पत्थर की बनी एक सुंदर इमारत है जिसमें बीच मे बहुत खुली जगह है । इसमे हमे आधुनिक प्राचीन वास्तुकला का अदभुत संगम दिखता है । (विडियो 796-842-2 )
यहीं पास मे था सेन फ्रान्सिसको का कथीड्रल तथा एक पुरातन महल जहां आजकल ऑफिसेज हैं । यहीं पर आते आते हमने कासल नूओवो (न्यू कासल) देखा इस पुराने किले का चार्ल्स ऑफ एन्जौ ने नवीनीकरण कराया । हमने पोसिपिलो पहाडी भी देखी । फिर हमें एक जगह रिफ्रेशमेन्ट के लिये उतारा गया और कॉफी या चॉकलेट Ice cream में से एक चुनने के लिये बोला गया । मैने और विजय ने आइसक्रीम ली और बाकियों ने कॉफी । कॉफी वाले घाटे मे रहे क्यूं कि कॉफी ठंडी थी । उसके बाद समंदर के किनारे किनारा होते हुए माउंट विसूवियस देखा और देखा नया पॉम्पई शहर । (विडियो 796-842-3) पुराना शहर 79 ए डी में विसूवियस के फटने से मिनिटों में लावे के नीचे दफन हो गया था । लोगों को कोई अवसर नही मिला सोचने या जान बचाने का । रुइन्स देखने हम नही गये क्यूंकि ऊबड खाबड रास्तों पर कोई 3 घंटे चलना था । आप विडियो में नेपल्स के सौंदर्य की एक झलक देखें (। ये ट्रिप हमारी छोटी सी थी फिर भी वापिस आते आते 3-4 घंटे तो हो ही गये थे । आकर लंच किया और सोना था पर सुहास को ज्वेलरी का एक्जीबीशन देखना था तो हम भी उसके साथ हो लिये ये एक्जीबीशन 7 वे डेक पर था । तो वहां गये और जी भर के आँखें सेंक लीं (गलत वाक् प्रयोग है पर चीजें इतनी सुंदर थीं और लेना तो थी नही, तिस पर लाइटिंग ये लोग ऐसा करते हैं कि ज्वेलरी की सारी चमक परावर्तित होकर दुगनी तिगनी हो जाती है ) तो सुहास ने उल्का के लिये एक चेन ली । उसको वहां के सेल्सगर्ल ने बताया कि इसमे स्पेन का टैक्स शामिल है जो कि आपको उतरते समय ये रसीद दिखाने पर वापिस मिल जायेगा तो हम खुश हो गये । नीचे आये थोडा आराम किया और एक मूवी देखी “इनविक्टस” नेल्सन मंडेला के जीवन पर, बहुत अच्छी मूवी है । कल हमारे शिप का आखरी पडाव था पालमा डी मालोरका यहां हमने कोई टूर बुक नही की थी । (क्रमशः)
बुधवार, 4 अगस्त 2010
रोम का रोमांच -
रोम जाने के लिये हमे उतरना था पोर्ट सिविटाविचिया पर । सुबह सबह पोर्ट पर शिप की डॉकिंग हो गई थी फिर हमें पोर्ट पर उतरने के बाद शिप की तरफ से जो बस ठीक की गई थी हमे सेंट पीटर्स चौक में छोडने वाली थी । वहीं से हम सेंट पीटर्स बेसिलिका और सिस्टाइन चेपल देख सकते थे । क्रिस्चियन्स का सबसे बडा तीर्थ, इसी की वजह से सारे साल यहां टूरिजम जोरों पर रहता है । फिर वहां से हमे अपने आप घूमना था, चाहे हम हॉप ऑन हॉप ऑफ बस से घूमते जो कि 4 घंटे की टूर थी, या फिर टैक्सी से । हमने तय किया कि हम सेंटपीटर्स बेसिलिका देख कर फिर टैक्सी से घूमेंगे इस तरह घूमना हमारे कंट्रोल में रहेगा और समय रहते हम सेंट पीटर्स चौक पर आकर वापसी की बस ले सकेंगे ।
कहते हैं कि रोम रोम्यूलस ने ईसा पूर्व 735 के आस पास बसाया । रोम्यूलस और रूमस दो भाई थे जिन्हे भेडियों ने पाला था । बादमे रोम्यूलस ने अपने भाई को मार दिया । रोम्यूलस के नाम पर ही शहर का नाम रोम पडा । और एक किवदंती के अनुसार इन दो बच्चों में से एक लडकी थी रोमा जो बहुत चतुर और होशियार थी इसी के नाम पर रोम बसाया गया । पहले भारत की तरह ही ईताली ( इतालवी में ऐसे ही बोलते हैं ) भी कई राज्यों में बटा हुआ था और इनकी आपस में लडाईयां भी हुआ करती थी । रोम का विकास सबसे पहले रोमन राज्य के तौर पर हुआ इसके बाद ये बना रोमन रिपब्लिक जो करीब 500 वर्ष रहा और आखिर में रोमन साम्राज्य, जिसे ऑगस्टस ने उत्कर्ष पर पहुँचाया । रोमन शासक जूलियस सीज़र, जिसे तानाशाह के रूप में जाना जाता है और जिसने रोमन साम्राज्य की नीव डाली और नीरो का नाम तो सबने ही सुना है । वही नीरो, जो फिडल बजाता रहा और रोम जलता रहा । खैर ये तो हुई इतिहास की बातें । रोम शुरू सेही क्रिस्चियन धर्म का केन्द्र रहा है और रोमन शासकों का प्रणेता भी , इसीसे योरोप में इसका नाम आदर से लिया जाता है । सतत के य़ुद्धोंसे और षडयंत्रों से आखिर इस साम्राज्य का पतन हुआ । अब तो ईताली एक गणराज्य है । लेकिन इसने अपना प्रभाव सारी दुनिया के इतिहास पर छोडा है । वेटिकन अपने आप में एक स्वतंत्र देश है जहां का राजा है पोप । उसी की सार्वभौम सत्ता यहां चलती है ।
हम बाहर आये बस में बैठे और बसने कोई डेढ घंटे बाद हमे सेंट पीटर्स चौक पर छोड दिया । वहां से हम चल कर पहुंचे बेसिलिका बाहर ही एक तंबू के नीचे पोप बैठे हुए थे और ढेर सारी जनता । जिस बात को लेकर क्रिस्चियन्स इतने उत्साहित थे और जन्म सफल मान रहे थे हमारे लिये वही बात बेसिलिका न देख पाने का सबब बन गई ।(विडियो 702-734-2)
जब हमे पता चल गया कि बेसिलिका देखने का तो अभी कोई चान्स नही है तो सोचा टैक्सी कर के रोम घूम आते हैं और फिर कोशिश करेंगे । हम लोग 5 थे और टैक्सी सिर्फ 4 लोग लेती है पर हम अभी सोच ही रहे थे कि क्या करें, कि एक 22-23 साल का लडका पूछने लगा कि टैक्सी चाहिये ? हमने उससे कह हम लोग तो 5 जने हैं तो उसने फट से आगे बीच की एक और सीट गिरा दी और कहा दो आगे बैठ जाइये तीन पीछे । ड्राइवर का नाम था एन्ड्रे उसने हमे खूब घुमाया । हम तो सिर्फ कोलीसियम देखना चाहते थे, वह तो उसने दिखाया ही और भी बहुत घुमाया कॉन्टेस्टाइन की आर्च, रोमन फोरम, सेंट एन्जेलो का फोर्ट , टिबर नदी और शहर का एक चक्कर ।
सबसे पहले गये हम कोलीसियम । इसका पुराना नाम फ्लेवियन एम्फीथियेटर था । शायद यहां के राजा के नाम पर । बाद में इसके विशाल आकार प्रकार की वजह से लोग इसे कोलिसियम कहने लगे । यहां ग्लेडियेटर्स के ड्यूएट युद्ध खेले जाते थे यहां अतिथियों को उनके रुतबे के मुताबिक बैठाया जाता था । अक्सर ये युध्द किसी एक ग्लेडियेटर की मौत में निर्णित होते थे । इसे हम पुराने जमाने के स्टेडियम कह सकते हैं । यह इमारत बहुतही भव्य है । आप विडियो से पता लगा ही लेंगे । ये ग्लेडियेटर किसी ना किसी राजा या जमीदार के अधीन होते थे तथा इनके प्रशिक्षण पर बहुत ज्यादा समय और पैसा लगाया जाता था तो बाद में इनकी मौत को टालने के उपाय सोचे गये बेशक वह हार ही क्यूं ना जाये ।
कोलीसियम देखने के बाद हम रोम के रास्तों से चल कर गये रोमन फोरम देखने । ये पुराने रोमन राज्य के खंडहर हैं । यह जमीन पहले दल दल थी पर इसका भराव कर के यहां शहर बसाय गया । रोम नगर टिबर नदी पर स्थित है और ये नदी अभी भी सुंदरता बनाया हुए है । यहां आते आते हमने कॉन्टेस्टाइन की कमान देखी और उसके फोटो लिये । पुराने रोम के पतले रास्तों से हमारी टैक्सी जा रही थी ।
रोमन फोरम को ग्रीक नगरों की तरह बसाया गया यहां राजाओं के निवास, इनके बेसिलिका जो ग्रीक देवी देवताओं के मंदिरों के नामों पर बनाये गये जैसे वेस्टा का मंदिर । हमने टिबर नदी की भी तस्वीरें लीं और देखा हमने जेनीको और फव्वारा जो बहुत सुंदर है । पुराने रोम का ट्रेस्टावेरा देखा जहां लेग शाम को तफरीह के लिये आते हैं । हमने गैरीबाल्डी का स्मारक देखा इसी के नाम का रास्ता भी है इन्होने ऱोम को फ्रेन्चों से आजाद कराया था । सब इतना पुराना है पर अच्छी तरह सुरक्षित किया हुआ है ।
विडियो (702-734-3)
मुझे याद है जब हम शुरू शुरू में 1980 में दिल्ली आये थे तो कुतुबमीनार से आगे वसंत कुन्ज के बन रहे मकान देखने जाते हुए बल्बन की कबर रास्ते पर से दिखती थी पर अब ढूंढने पर भी दिखाई नही देती ।
इसके बाद हमें हमारा टैक्सी ड्राइवर ले गया सेंट एन्जेलो का किला देखने। यहां जाते हुए टिबर नदी के पुल पर से गुजरना होता है ये नज़ारा बहुत ही सुंदर है । वैसे भी पानी चाहे समुद्र हो या नही किसी भी जगह की शोभा में चार चांद लगा देता है । ये किला या कासल राजा हेड्रियन ने अपने मुसोलियम के तौर पर बनवाया था पर बाद में इसे किले के तौर पर इस्ते माल किया गया ये बहुत ही भव्य गोलाकार आकार में बना हुआ है । ऐसा कहते हैं कि यहां से वेटिकन में जाने का एक गुप्त रास्ता है जिससे पोप जब चाहे यहां जा सकते हैं । डैन ब्राउन की किताब एन्जेल्स एन्ड डीमन्स में इसका वर्णन है । (विडियो 735-765-1& 2)
यहां से हम वापिस वेटिकन गये (सेंट पीटर्स बेसिलिका ) पर वहां पर अभी भी बहुत भीड थी । हम लाइन में लगने जा रहे थे इतने में एक आदमी हमें ढूंढता हुआ आया और कहा ये कैमेरा आप का है ?
देखा तो सुहास का कैमेरा था । मुझे उस टैक्सी ट्राइवर ने दिया है । मै उसी टैक्सी में बैठा हूँ जिसे आपने छोडा । सुहास को तो पता ही नही था कि वो कैमेरा टैक्सी में भूल आई है पर उस लडके की दाद देनी पडेगी कि टैक्सी घुमाकर लाया कैमेरा वापिस करने । कहां तो हमने सुन रखा था कि ईताली में चोर और जेब कतरे बहुत हैं बडी सावधानी से रहना है वगैरा और कहां हमारा ये अनुभव, बिल्कुल उलट । वहां एक पादरी अचानक हमें मिल गये तो हमने पूछा कि हमें साढे चार बजे शिप पर पहुंचना है तो क्या हम अंदर का टूर करके वापिस आ सकते हैं उस समय दो बजे थे और लाइन बहुत लंबी थी । पादरी जी ने बताया कि अगर आपको शिप पर साढे चार बजे पहुंचना है तो आप क्यू में न लगें क्यूंकि एक बार आप अंदर चले गये तो वापिस पूरा देखे बगैर नही आ सकते । तो हमने अपना कार्यक्रम बदल दिया और बेसिलिका के बाहर बाहर से ही तस्वीरें लीं । हम चाहें अंदर ना जा पाये हों पर राजू और रुचिका अंदर गये भी और उन्होने शूटिंग भी की थी तो थोडा जायजा आप भी लें । इसमे बेसिलिका के अन्द बनी माइकल एन्जेलो की तस्वीरें हैं जो बाइबल की कहानियों से प्रेरित हैं जैसे आदम और हव्वा की कहानी, नोहाकी कहानी, स्वर्ग और नरक की कहानी (विडियो 4121-510 बेसिलिका क्लिप ) ।
सिस्टीन चैपल में मेरी का यीशू को गोद में लिया हुआ एक पुतला है जो बहुत ही प्रसिध्द है इसमें यीशू को क्रूस से उतारने के बाद मेरी उन्हें गोद में लेकर बैठी हैं । यीशू की लस्त काया और मेरी के चेहरे के भाव देखते ही बनते हैं ।(विडियो 0310 – 0823)
आस पास घूमे और वेटिकन के लाल कपडे पहने हुए सोल्जर्स की तसवीरें उतारीं । फिर एक जगह बैठ कर खानापीना किया वहीं पास में एक औरत आकर बैठ गई तो हमने अपना खाना सेंडविच केला एपल वगैरे उसके साथ बांटे । भूखी होगी, उसने बगैर कोई प्रतिवाद किये चुपचाप ले लिया और फटाफट खत्म भी कर लिया । शायद हम कोई पिछले जनम का कर्ज उतार रहे होंगे । फिर हम चल कर वहीं पहुँच गये जहां हमें बस लेनी थी ये एक रेस्तराँ था और क्यूरिओ शॉप भी । यहां बेसिलिका का प्रसिध्द चित्र जहां आदमी और ईश्वर हाथ मिलाने की कोशिश में है, था, और मेरी का वह पुतला भी जिसमे वे ईशू को क्रूस से उतारने के बाद गोद में लिये बैठी हैं । ईशू की लस्त पडी काया उस वक्त की उनकी स्थिती को एकदम जीवंतता से बता रही है । हम ने वहां टॉयलेट का प्रयोग किया । लोगों की इस प्राकृतिक जरूरत को भी ये लोग खूब एन-कैश करते हैं । खैर बस समय पर आई और वापसी पर भी हमने रास्ते में बिखरी सुंदरता आनंद उठाया । अपने शिप पर आये कार्ड दिखा कर अंदर आये और अपने कमरे में । चाय की तलब लगी थी तो गये डेक 12 और चाय पी, थोडी कुकीज खाईं और अंतरात्मा को तृप्त किया । रात को कोई डांस कॉम्पीटीशन था तो सोचा एक चक्कर लगा कर देख आयेंगे । वही किया । मध्यरात्री के बाद या कभी कभी दिन में भी तंबोला भी होता था यहां । बहुत सोचा था जयश्री ने और मैने कि एक बार खेलेंगे जरूर पर हो ही नही पाया । बल्कि एक्यूप्रेशर के फ्री टिकिटस थे जो पांच बजे से पहले जमा करने थे उसमें भी हम लेट हो गये खैर कोई बात नही वैसे भी मुफ्त की चीजें अपने को कब मिलीं हैं । कल हमे जाना था नेपल्स हां वहीं जिसके पास ही है पॉम्पई शहर जो कभी ज्वालामुखी फटने से खत्म हो गया था । हम सबने अंग्रेजी में Destruction of Pompei की कहानी तो पढी ही होगी । (क्रमशः)
बुधवार, 28 जुलाई 2010
लूका और पीसा के आश्चर्य़
सुबह सुबह हमारा शिप लूका के लिये लिवोर्नो नामक पोर्ट पर डॉक हो गये था ।यहां से हमें बस से आगे जाना था । हमारी बस नंबर थी 16 । लूका और पीसा इटाली के पुराने टस्कैनी प्रदेश के बडे शहर थे और हैं । पुराने जमाने में ये एक स्वतंत्र राज्य था । इसे सबसे पहले एट्रूस्कन्स-आदिवासीयों ने बसाया और बाद में ये रोमन कॉलोनी बन गया था । यहां अब भी रोमन फोरम की तरह अवशेष दिखते हैं । लगभग 11 वी शती में ये रोम के अधीन तो था पर लगभग स्वतंत्र राज्य था । इनकी पडोसी राज्य फ्लोरेन्स तथा पीसा के साथ लडाइयां होती रहती थीं और इसीलिये नगर के चारों और एक दीवार बनाई गई थी । इसके अवशेष हमने भी देखे । शिप से हम बस में बैठ कर सिटी सेंटर आये । वहाँ से फिर हमारी गाइड और लोगों को लेकर घूमी और हम लोगों ने उसे कहा कि हम अपने तरीके से घूम कर आपको वापिस इसी जगह मिलते हैं । पहले तो हमें 500 यूरो का नौट तुडवाना था तो हम में से तीन लोग गये बैंक । मै सेंट मेरी का चर्च देख आई फोटो भी खींचे । वापिस बैंक के बाहर खडी हो गई । (विडियो)646_668_2
फिर सुहास ने बाहर आकर कहा टॉयलेट जाना हो तो चलो बैंक में हो आते हैं वरना बाहर तो हरेक के 40-50 सेंट देने पडेंगे । तब हमे पता चला कि बटन दबाने के बाद ही बैंक का दरवाजा खुलेगा । अंदर जाकर हम ने ऐसे पोझ किया कि जैसे बैंक में हमे कोई काम है और टॉयलेट तक चलते चले गये । अपना काम किया और बाहर चले आये । वहाँ के स्क्वेअर में कुछ प्यारे प्यारे बच्चे खेल रहे थे आप भी देखें । वहां से चलते हुए फिर हम बज़ार गये छोटी छोटी दूकाने और गलियों जैसे संकरे रास्ते पर साफ सुथरे । वहां से कार्ड और टी शर्टस खरीदे । जयश्री ने बेटियों के लिये पर्सेज़ खरीजीं । यह सब करके हम वह पुरानी दीवार देखने गये जिसे नगर की रक्षा के लिये बनाया गया था पर इसकी ऊँचाई इतनी कम लगी कि घोडा आराम से छलांग लगा कर पार कर सकता होगा । लेकिन दीवार का अधिकांश हिस्सा आज भी सुरक्षित है । उस जमाने में ज्यादातर नगर शायद दीवार से सुरक्षित किये जाते होंगे । दिल्ली में भी तो वॉल्ड सिटी है । (विडियो) 669-688 (1)
वापसी पर हमने सैंडविचेज खरीदे, जो बहुत ही अच्छे निकले, और लंच किया । यहां से बहुत से लोग ड्यूओमो कथीड्रल के टॉवर पर चढने गये पर हम ने तो बस का इंतजार करना ही ठीक समझा । हम जब इंतजार कर रहे थे तो यहां हमने चिक्की खरीदी काजू की और बादाम की हम खा रहे थे कि हमारे पास एक कबूतर आ बैठा उसे हमने थोडी चिक्की दी पर उसने नही खाई फिर मैने उसे तोड कर उसका चाशनी वाल भाग हटा कर बादाम के छोटे टुकडे कर के उसे दिये तो खा गया फिर जयश्री ने उसे अपने सैंडविच में से ब्रेड भी दी । उसका पेट तो खासा भर गया था पर वो हमारे आसपास ही मंडरा रहा था । तो एक छोटा सा टुकडा और फेंका वह इसे अभी चोंच में दबाये ही था कि कहीं से एक चिडिया आ गई और उस पर खूब चिल्लाई चूंचूंचूंचूं चूंचूं चूंचूंचूं -जैसे कह रही हो, “पेटू कहीं का इतना खा लिया तब भी तसल्ली न हुई, चल ला इधर” और हमारे देखते ही देखते कबूतर के मुंह से टुकडा छीन कर.. यह जा और वह जा । उस दृष्य को याद कर के आज भी खूब हंसी आती है । उस वक्त कैमेरे का बाहर हाथ में न होना अखर गया ।
इसके बाद बस में बैठे और गये पीसा जहां का तिरछा टॉवर जग प्रसिध्द है । इसके लिये हमें जाना था मिरेकल स्क्वेअर । हम पीसा के शहर में प्रवेश करने के बाद चलते हुए सीधे मिरेकल स्क्वेअर पहुँचे क्या सुंदर दृष्य था । ताजमहल देखने पर कैसे लगता है कुछ कुछ वैसी अनुभूती थी । पूरा इलाका एक दीवार से घिरा हुआ और अंदर सफेद ग्रेनाइट ( हमारी गाइड ने यही बताया ) के एक के पास एक बने तीन अद्भुत आश्चर्य हमारे सामने उपस्थित थे । चारों तरफ खूबसूरत हराभरा लॉन । गाइड हमें इन इमारतों के इतिहास के बारे में बता रही थी । एक है केथीड्रल या ड्यूओमो । यह 1064 में बनना शुरू हुआ । युध्द और आग में झुलसने के बावजूद इसे बार बार ठीक किया गया और आज भी इसका रख रखाव बहुत ही अच्छा है । कथीड्रल के अंदर मेडोना की बच्चे के साथ मूर्ती है । शायद ये मेडोना ही मेरी है । इसके ठीक सामने है बाप्तिस्त्री जो सेंट जॉन बाप्टिस्ट के नाम पर है । हम अंदर तो नही गये । ड्यूओमा कथीड्रल या चर्च हमें तो सब एक से ही लगते हैं । ड्यूओमा के पीछे है पीसा का झुका हुआ टॉवर । कहते हैं इस टॉवर के सबसे ऊपर के बालकनी से गेलिलियो अपने टेलिस्कोप से सितारे देखा करते थे । कितना अच्छा लगता है जब हम ऐसी पुरानी इमारतों की सैर कर रहे होते हैं जहां बडे बडे दिग्गजों के कदम पडे थे । मुझे ऐसा ही अनुभव बनारस में पांडवों के कुएँ मे झांकते हुए हुआ था और तब भी जब पंढरपूर के विठ्ठल मंदिर में गई थी जहां ज्ञानेश्वर महाराज, नामदेव महाराज और एकनाथ महाराज कभी दर्शन करने आते थे । हम ने पहले तो बाहर से तीनों इमारतों को खूब गौर से देखा और तस्वीरें लीं फिर पास जाकर भी देखा । बहुत लोग पीसा के टॉवर को सहारा देकर गिरने से बचा रहे हैं ऐसी तस्वीरें खिंचवा रहे थे कोशिश तो हमने भी की पर कुछ खास जमा नही । पीसा के टॉवर पर जाने के लिये सिर्फ किसी एक समय 300 लोग ही जा सकते हैं एक साथ जिसमें एक घंटा लगता है (विडियो ) 669-688 942-1900
यहाँ हमें मुंबई से केसरी टूर्स एन्ड ट्रेवल्स के साथ आये कुछ मराठी लोग मिल गये जिनके साथ हमने नोट्स एक्सचेन्ज किये । बाप्तिस्त्री के साथ ही लगा हुआ है केम्पो सान्टो यानि कबर गाह या सीमेट्री । सारी की सारी इमारतें हजार साल पुरानी फिर भी इतनी सुंदर । फिर सारे इलाके में घूम घूम कर फोटो लिये और विडियो भी । आप भी देखें । वहीं एक छोटा सा बाजार था जहां पीसा के टॉवर, चर्च आदि की छोटी छोटी मूर्तियां मिल रही थीं तो दोनो बेटों के लिये एक एक पीसा का टॉवर खरीदा । (क्रमशः)
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
क्रूझ शुरू – मॉन्टेकार्लो (फ्रान्स)
सुबह ६ बजे तैयार होकर निकल पडे हम सब । थोडी सी धुकधुकी थी मन में कि टिकिट पूछा तो क्या होगा ? एनातोले जी ने हमे आठ बजे पियर पर उतार दिया हमारा शिप था नॉर्वेजियन जेड, कंपनी थी एन सी एल यानि ऩॉर्वेजियन क्रूज़ लाइन । वहीं बाहर ही हमे एक आदमी मिल गया जो टैग बांट रहा था और सामान चैक-इन करवा रहा था बोला टैग लगाकर सामान दे दो । । नेकी और पूछ पूछ । हमने सामान में और हैन्ड लगेज में भी टेग लगा दिये और सामान दे दिया । अब जान में जान आई उसने सिर्फ केबिन नंबर पूछे थे टिकिट तो पूछे नही और जांच के बाद पता लगा कि जिसे हम टिकिट समझ रहे थे उसमे टिकिट नाम की कोई चीज़ थी ही नही सिर्फ लगेज टैग्ज थे जो हमे भी बाहर मिल ही गये थे । शिप पर जाने का रास्ता या गेट तो ११ बजे ही खुलने वाला था । एनातोली तो हमसे विदा लेकर कार वापिस करने चले गये, ये बोल कर कि ३० तारीख को यहीं पर मिलता हूँ । तो हम एक बैंच के खाली होने के इन्तजार में पहले तो खडे रहे फिर लोगों से बतियाने लगे । एक महिला अपने परिवार के साथ थीं, उन्होने कहा कि वे अभी अभी क्रूझ से उतरी हैं और अपनी कार का इन्तजार कर रहीं हैं । उन्होने क्रूझ की बहुत तारीफ की तो हमे भी तसल्ली हो गई । फिर उनकी कार आधे घंटे में आ गई तो सारा बैन्च हमीं लोगों को मिल गया । अब आराम से गेट खुलने का इन्तज़ार किया जा सकता था । हमने साथ लाये हुए सैन्डविचेज खाये । ११ के बजाय १० बजे ही गेट खुल गया । अंदर कुर्सियां लगी हुईं थीं वहां बैठना था । ऑरेन्ज जूस भी रखा हुआ था । वहां बैठ गये फिर लाइन में लग कर पासपोर्ट वगैरा दिखा कर शिप में प्रवेश किया । (विडियो) vdo485_509_1
स्वागत डेस्क पर लोग नाच गा कर स्वागत कर रहे थे सुहास ने भी थोडासा नाच कर उनका साथ दिया ।हमारा मूड एकदम खुशियाला हो रहा था, फिर हम रिसेप्शन पर जाकर अपने कमरों की कार्ड-की लेकर ऊपर गये । इस बार हमारे कमरे ५ वे डेक पर थे । कमरे सुंदर थे पर तब साफ सुथरे नही थे । रूम सर्विस वालों ने कहा आप डेक बारा पर जाकर खाना खाइये तब तक आपके कमरे तैयार हो जायेंगे । भूख तो लगी ही थी तो हम डेक 12 पर गये । वहां लंच रेडी था तो हम लोग जुट गये खाना खाया और वह भी किसी और ने बनाया हुआ । क्रूज़ पर आप कभी गये हों तो आपको पता होगा कि वहां कितनी वेरायटी मिलती है । हमारी तो ये तीसरी क्रूज़ थी । क्रूज़ पर हैश-ब्राउन बडे बढ़िया मिलते हैं एकदम करारे (उबले आलूओ में नमक मिला कर उसके छोटे छोटे आयत से बना कर खूब करारा होने तक तलते हैं) । इसके अलावा सलाद, दही, खीर, नान, पिज्झा, क्रेप, नॉन वेज लोगों के लिये चिकन करी और ग्रिल्ड चिकन । बीफ की भी वरायटीज़ थीं पर वो हमारे किसी के भी मतलब की नही थी । हम मे से तीन लोग तो वेज ही थे और बाकी भी चिकन मछली तक ही सीमित थे । पर वेज होते हुए भी हमारी भी काफी मौज थी । खाना खाकर हम नीचे आये तो कमरे एकदम तैयार थे । बेड, दो नीचे और एक ऊपर टू टीयर के बर्थ की तरह, जयश्री सबसे छोटी ह तो ऊपर तो उसे ही चढना था । बाथरूम भी अच्छा था । चलिये आपको शिप की सैर करायें । चार बजे फिर सेफ्टी ड्रिल के लिये जाना था 6 टे डेक पर हॉल में ही यह ड्रिल हुई हमें कुछ भी नही करना था सिर्फ डेमॉस्ट्रेशन हुआ उसे देखा और समझा कि सेफ्टी जैकेट कैसे पहनना है, कैसे छोटी बोट में बैठ कर शिप को छोडना है आदि । भगवान न करे .............ऐसी नौबत आये । शाम ठीक पांच बजे हमारा शिप चल पडा । फिर हम शिप पर घूमे यहां सब कुछ था स्पा, स्विमिंग पूल, आयुर्वेदिक मसाज, योग, जिम, कैसीनो और थियेटर जहां हर शाम कुछ ना कुछ प्रोग्राम होता था आज तो काराओके कॉम्पीटीशन था जिसमे हमे ज्यादा दिलचस्पी नही थी हिंदी गानों का होता तो और बात थी । शाम की चाय पी । रात का खाना खाया । रात भर सफर कर के हम कल सुबह मॉन्टे कार्लो पहुँचने वाले हैं । यह फ्रान्स का दक्षिणी हिस्सा है । हमारे ग्रूप के के कुछ अर्ली-बर्डस 5 बजे उठ कर ही चाय पी कर 13 नंबर डेक पर चले जाते । आज उन्हे सूर्योदय तो नही मिला क्यूं कि बादल थे । जयश्री, मै और विजय हम साढे छह बजे तक उठते और फिर ऊपर जाकर चाय पीते, डेक पर जाकर घूमते, ब्रेकफास्ट करते फिर आते कमरे में । तो हमने ऊपर देखा कि हमारा शिप डॉक हो गये है और हमे 10 बजे तक बाहर निकलना है मोनेको देखने । हमने सारी टूर्स पहले ही बुक कर ली थीं ।(विडियो) vdo511_548_2
मॉन्टे कार्लो ये इतालवी नाम है इसका मतलब है चार्ल्स पर्वत (Mount Charles) । ये मोनेको के राजा चार्ल्स III के नाम पर पडा है । मोनेको अपने आप में एक देश है भले ही ये जयपुर से भी छोटा हो ।
यहां के पहले निवासी लेगूरियन जनजाति के थे (लंगूरियन नही) । ग्रीक लोग इन्हे मोनोको कहते थे इसी से इस देश को मोनेको भी कहा जाता है । यह कहा जा सकता है कि इसे ग्रिमाल्डी परिवार जो यहां के राजा भी हैं, ने ही इसे इसका असली रूप दिया, और हमेशा इसे अलग देश के रूप में ही रखा । पर इस देश की सुरक्षा व्यवस्था फ्रांस ही देखता है ।
हॉलीवुड अभिनेत्री, ग्रेस केली, की वजह से ये जगह ज्यादा प्रसिध्द है । इन्होने मोनेको के राजकुमार से शादी की थी पर एक एक्सीडेन्ट में युवावस्था मे ही उनकी मौत हो गई थी । इनका वंश आज भी है । प्रसिध्द है यहां के कसीनोज, जिसमे कसीनो ऑफ मॉन्टेकार्लो या कसीनो रोयाल का अपना अलग ही नाम है । मोनेको, ईझ और नीस ऐसी टूर हमने ली थी जो साढेसात घंटे की थी । शिप से बाहर निकल कर हमें एक छोटी बोट में बैठ कर किनारे जाना था जिसे टेन्डर कहते हैं । हर टूर के साथ एक गाइड थी जो हमें बस में बैठने के पहले ही मिल जाती थीं । ये गाइड ही हमें जगह के बारे मे तथा वापसी पर कहां मिलना है ये बताती जाती थी । सबसे पहले हम पहुँचे नीस, बस मे बैठ कर एक खूबसूरत रास्ते से जो समंदर के बगल से गुजरता है । रास्ते मे रशियन चर्च देखते हुए आगे बढे, इसके गुंबद विशेष प्रकार के एक बडे प्याज की तरह होते हैं और रंगीन भी (ज्यादा तर हरे) ।(विडियो)vdo549_577_1
यह नीस फ्रांस के दक्षिणी छोर पर बसा एक छोटासा गांव पर हमारे गांव की तरह नही, यहां सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध होती हैं । बहुत सुंदर जगह है यूरोप के बडे बडे धनिक और राजे महाराजे यहां तफरीह करने आते थे । इस वक्त तो हम ही थे । जगह जगह रुक कर हमारी टूर गाइड हमें सारी खास बातें बताती जा रही थीं । यहीं हमे उसने फ्लीस मार्केट पर छोडा ।(विडियो) 549_577 3
वहां बहुत सुंदर सुंदर पर सेकंड हैन्ड चीजें मिल रही थीं हमने तो कुछ खरीदा नही पर हां बाथरूम का इस्तेमाल जरूर किया 40-40 सेंट देकर । और लंच भी किया- क्रेप्स नामक बहुत पतला मैदे का चीला, चीज या मीट जो आपको पसंद हो भरकर दोसे की तरह सर्व किया जाता है । यह एक विशेष फ्रेंच पकवान है । तो ये क्रेप्स खाये और फिर गये हम ईझ नामक गांव मे, जहां हम उतरे और बहुत से लोग पहाड के ऊपर एक परफ्यूमरी देखने चले गये । हमारे तो बस की थी नही, चढ कर तो नही गये पर घूमते घामते हमे वहीं एक परफ्यूम की दुकान दिख गई तो खुशबूओं के रेले मे हम भी चले गये । वहां पर तरह तरह के सुगंध थे और आप तो जानते ही हैं कि ये हिस्सा जिसे फ्रेंच रेवियेरा के नाम से जाना जाता है अपने परफ्यूमरीज के लिये प्रसिध्द है । हमने तो अलमारी में रखने के लिये रोज और एम्बर के सेशेज लिये और पटशौली नामक एक परफ्यूम देखा पर खरीदा नही क्या खुशबू थी .....। वहां पर थोडा चल कर एक नदी थी और उसपर एक छोटा सा पुल । वहां से घाटी का बडा ही सुंदर दृष्य था । आते हुए हमने एक और पुल की भी तस्वीरें ली थीं जिसका नाम था Devil’s Bridge । (विडियो) 578_597
वापसी पर हम रुके मॉन्टे कार्लो । यहां से बस में बैठे और गये कसीनो रोयाल (Casino Royal ) । इसी नामकी मूवी आप में से बहुतों ने देखी होगी । यहां काफी चलना था हमारी गाइड 4 नंबर का बोर्ड लेकर बीच बीच में खडी हो जाती कि कोई पीछे ना रह जाय हमारे सब के ऊपर भी 4 नंबर के स्टिकर चिपकाये हुए थे। चलने के बाद काफी चढाई भी थी पर आ ही गये थे तो ऊपर तो जाना ही था तो गये । बाहर से खूब तस्वीरें लीं अंदर से तो तस्वीरें लेना मना था । पर है बहुत सुंदर क्या बाहर से और क्या अंदर से । यहां आने वाले सब रईस तो क्यूं न करें ऐश, और यहां के निवासी भी उनकी जेबें क्यूं न करायें खाली ।(विडियो)598_636_1
वहां से निकल कर बस में से आये मॉन्टेकार्लो के म्यूजीयम ऑफ ओशेनोग्राफी । एक सुरंग के भीतर से जाकर लंबे से एस्केलेटर पर चढ कर ऊपर जाना पडा । फिर हमे Museum of Oceanography के पास छोड दिया गया कि आप देख लो जो देखना है । म्यूजियम के अंदर तो हम नही गये पर बाहर से घूम घूम कर खूबसूरत नज़ारों की तस्वीरें लीं बाहर ही एक मानव शरीर की अंदरूनी एनाटॉमी दिखाने वाला एक बडा सा पुतला था तथा एक सींग वाला घोडा (यूनिकॉर्न ) भी था जिसकी हमने तस्वीरें लीं फिर मै अकेली ही पास में एक चर्च था वहां हो आई और तस्वीरें लीं आते हुए एक बहुत ही खूबसूरत बगीचा दिखा देख कर मन प्रसन्न हो गया । (विडियो)598_636_2
फिर वापिस बस में, बस से उतर कर टेंडर में और फिर अपने शिप पर । खाना पीना मौज । आज शाम को स्पेनिश डांसेज का प्रोग्राम था वह देखने गये और वाकई मज़ा आ गया । क्या मूवमेन्टस और क्या टैपिंग । आपको न दिखा पाने का खेद है पर वहां शूटिंग की इजाज़त नही थी । रात भर शिप में चल कर कल हमे जाना था लूका और पीसा देखने ( यह इटली- टस्कैनी के दो पुराने और प्रसिद्ध शहर हैं )। (क्रमशः)
शनिवार, 17 जुलाई 2010
बार्सीलोना -2
बार्सीलोना -2
हमारा अगला पडाव था पार्क जो फिर एन्तोनियो गाउदी साहब ने ही डिझाइन किया था । इसका नाम है ग्युएल पार्क । इसको वर्ल्ड हेरिटेज पार्क घोषित किया गया है । इस पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार सीढियों से होकर एक सौ खंबों वाले बरामदे में ले जाता है । और बहुत सुंदर सुंदर भित्ती चित्र है जो पॉटरी के टुकडों से बनाये गये है । गाउदी साहब की कल्पना यहां बेलगाम दौडी है । हमने सबसे ऊपर जाकर बार्सीलोना शहर का दृष्यावलोकन किया और वहां के सुन्दर शिल्प भी देखे ।वहीं पर कुछ संगीतकारों का ऑर्केस्ट्रॉ भी सुना आप भी लें इसका आनंद । पार्क की सैर कर के हम बहुत थक गये थे पर घर जाने से पहले थोडा दूध, ब्रेड, फल, सब्जी वगैरा लेनी थी तो ग्रोसरी स्टोर का स्टॉप लिया, घर गये खाना बनाया और खाया यहां हम ज्यादा तर चावल, दाल, सब्जी, सलाद, और थोडी ब्रेड ऐसा ही खाना खाते थे क्यूंकि आटा तो मिलता नही था और किसी मे भी घूमने के बाद रोटियां सेंकने की ताकद नही थी । पर एनातोली कहां हमे छोडने वाले थे, उन्होने तो दिल्ली मे हमारा खाना देखा था तो पूछ ही लिया ,”You don’t make rotees in US ? हमने कहा, ” we do, but we do not know where to get flour here.” यहां तो प्रकाश भाउजी की चांदी थी रेड वाइन काफी सस्ती थी तो ऐश ही हो गई ।
अगले दिन हमे जाना था मॉन्ट सेराट देखने । पहले पहल नाम से तो पता नही चल रहा था है क्या चीज पर एक लंSSSबे ड्राइव पर जो कि वहां जाने का रास्ता था एनातोली ने बताय कि ये मॉन्टसेराट एक खूबसूरत पहाड है । (विडियो ) 280_292331_1
मान्ट यानि पहाड (माउंट) और सेरात या सेराट यानि आरी की तरह सेरेटेड । रास्ता बहुत ही खूबसूरत था यहां के छत्री नुमा पाइन जगह जगह नजर आ रहे थे । जैसे जैसे पहाड नजदीक आता गया हम ऊSह आSह करके उससे प्रभावित होते रहे । पहाड पर एक Monastry भी है । हमें लगा कि यहां शायद बौध्द भिक्षु रहते होंगे पर ख्रिस्चियन लोगों की ही Monastry होती है उसी तर्ज पर वह बौध्दों के मठ को भी मोनेस्ट्री कहते हैं । वहां मेरी का काले पत्थर से बना स्टेचू भी है । मंदिर ही समझो । स्पेन में कैथलिक लोग ही हैं इसीसे चर्चेज भी कैथलिक ही हैं उन्हे मूर्तियों से कोई परहेज नही है । खूब सारे स्टेचूज जीजस के खास शिष्यों के भी थे । अन्हे ही शायद एपॉस्टल कहते है । मॉन्ट सेराट के चोटी पर जाने के लिये एक ट्रेन भी है पर उस दिन वो बंद थी । हमने ट्रेन के फोटो तो खींच ही लिये जो कि रुकी हुई थी । उस मोनास्ट्री के परिसर में खूब घूमे घाटी की और पहाड की ढेर सारी तस्वीरें खींची । आप भी लीजिये विडियो का मजा (विडियो ) । मुझे विश्वास है कि आपको भी आनंद आयेगा । वहीं मॉन्ट सेराट पर हमने लंच किया । शाम के लगभग वापिस आये । खाना तो बनाना ही था समय समय पर भूख जो लगती थी ।
दूसरे दिन हमें बार्सीलोना शहर देखने जाना था हॉप ऑन हॉप ऑफ बस लेकर । (विडियो )332_430_1
तो एनातोली साहब ने हमे टूरिस्टिक बस पर छोडा और हम बस लेकर चल दिये इस के दो स्पॉट कथीड्रल और पार्क तो हमारे देखे हुए ते तो उतरना नही था । हम तो बस में बैठे बैठे ही बार्सीलोना घूम लिये ।ऑलिम्पिक स्टेडियम, समंदर और पियर जहां से कल हमे क्रूझ लेनी थी देखा । खूब सारी सेल बोटस् मोटर बोटस् लगी हुई थीं वहां , पेलेसिओ रिआला यहां का महल, एक स्पेस शिप की तरह की बिल्डिंग, तरह तरह के स्कल्पचर्स जिसमे एक लॉबस्टर भी था । बारसीलोना के रास्ते, इमारतें । हमने जो देखा आप भी देखिये । (विडियो )332_430_2
घर आने के बाद खाना पीना किया । रास्ते मे हमने कैन्टक्की फ्राइड चिकन हमारे मेजबान के लिये ले लिया कि बेचारे इतने दिनो से हमारे साथ घास फूस खा रहे हैं आज इनकी पार्टी कराते हैं । पिर हम गये बार्सी लोना के सबसे महंगे घरों के इलाके मे । हमने तो बजार जाना चाहा था ताकि हम बच्चों के लिये कुछ ले लेते लेकिन एक ही दूकान मे खरीदारी के बाद हम वहां गये । कैमेरा नही था ये बहुत ही खला । बेहद खूबसूरत बागीचे और समंदर के किनारे बसे घर देखते ही बनते थे । खैर नेत्र सुख हमें तो मिल गया । 431_482_1
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घर आये और समंदर पर गई खाली सुहास और बाकी लोगों ने खाना बनाया शाम का । और अपनी अपनी पैकिंग भी करनी थी क्यूंकि एनातोली हमे ८ बजे सुबह ही पियर पर छोडने वाले थे । उन्हे कार जो वापिस करनी थी । उसी दिन शामको एक बडा हंगामा हुआ चेकिंग तो हो गया क्यूंकि टिकिट नंबर वगैरा सब लिखे हुए थे प्रकाश भाउजी के पास, पर जब सबके टिकिट देखने की बारी आई तो हमारा तीनों का यानि जयश्री, मै, और सुहास टिकिट ही नही था जिसके साथ लगेज टैग्ज भी थे । तो सब परेशान । मैने तो यहां तक कह दिया कि अब तो आप तीनों ही जाओगे क्रूझ पर । फिर सब ने सोचा कि चैक इन तो हो गया तो अब टिकिट की जरूरत नही होगी और तीन लगेज के टैग्ज तो हमारे पास थे ही ।एनातोली ने कहा कि आप लोग अपना सामान तीन बैग्ज में करलो । तीन बैग्ज यहीं मेरे घर में छोड दो फिर मै जब आपको लेने आऊंगा तो हम लोग सीधे एयर पोर्ट जा कर आपका सामान लॉकर में डाल देंगे ताकि घर से चलने पर हमारे पास तीन ही बडे बैग्ज रहेंगे । Boon in disguise होगया क्यूं कि यह दूसरी कार थी तो अच्छी पर थोडी छोटी थी तो ६ बैग्ज और ६ हैन्ड लगेज नही आ पाते । खैर रात को सो गये दूसरे दिन जल्दी जो उठना था । (क्रमशः)
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