गुरुवार, 19 जुलाई 2012

रब की मर्जी




खुली खिडकी से आती रोशनी
तुम्हारे चेहरे को सहलाती है
सवेरा कितना प्यारा  ।

ये खुली हवा, ये आसमाँ ,
ये छन छन कर आती धूप,
माँ के  आंचल सी ।

कितना निश्छल, कोमल
विश्वास भरा, प्यारा प्यारा
तुम्हारा ये चेहेरा ।

आई है ये सुबह
कितनी जहमतों के बाद.
मेरे जीवन में ।

साथ पा कर
इक नई शुरुवात
तो कर दी है हमने ।

तो लगता है कि
सब अच्छा होगा ।
अब रब की मर्जी है ।


रविवार, 1 जुलाई 2012

वयस का भार




चेहरे की झुर्रियों में अनुभव का सार है,
पर क्यूं ये लग रहा है, वयस हम पे भार है ।

डगमगाते हैं कदम, मन चाहे हो मजबूत ,
भावों की ओढनी क्यूं अब तार तार है ।

कोई पूछे तो, दें सकेंगे, सलाह हम भी कुछ,
पर किसको है जरूरत, सब समझदार हैं ।

समय बदल रहा है कुछ तेज़ कदम से,
बहते रहे इसी में, ये समय की धार है ।

भारभूत रीति रिवाजों को छोड दें,
जरूरी तो नही इसमे, हमारी ही हार है ।

प्रेम से सबसे मिलें, न मन में हो शिकवा,
हर किसी की सोच, और उसका विचार है ।

अपनी हंसी खुशी को चहूँ दिशि बिखेर दें,
लगने लगेगा कि फिरसे मौसम-ए-बहार है ।

तब ये समय भी गाते और हंसते जायेगा,
और ना लगेगा ये कि वयस हम पे भार है ।