बुधवार, 9 नवंबर 2016

फिर कविता



मेरी कविताएं नाचती हैं मेरे खयालों में।
घूमती हैं गोल गोल मेरे चारों और,
एक नई अनछुई कविता लेने लगती हा आकार
उनके बीचोंबीच।
जिसका हरियाली का लेहंगा, फूलों की चोली,
चांद सितारे टंकी झीनी झीनी चूनर,
उसके बादल से काजल काले गेसू।
सके अलंकार, उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष,
अपन्हुति, अन्योक्ति और जाने क्या क्या।
धीरे धीरे साफ होती जाती है उसकी आकृति मन दर्पण में
और मै उठा लेती हूँ कलम।



कविता, कविता का जन्म

सोमवार, 7 नवंबर 2016

घुटने की शल्यक्रिया के बाद




घुटना बोलता है,
जब उसे दुख  होता है
साथ छूटने का, साथी जो
उसके अपने थे।
होता है उनको भी दुख
अपने पुराने साथी से बिछडने का
उसकी जगह लेने वाले नये साथी से उनकी बनती नही है अभी।
नयी बहू की तरह सब की परीक्षा के घेरे में है वह।
इसीसे दुखी है और उसके दुख से मै दुखी।
पर धीरज रखना है। नई बहू को भी सब अंततः स्वीकार कर ही लेते हैं।
इसे भी कर लेंगे बल्कि कर ही रहे हैं।
उसका और मेरा दुख भी थोडा थोडा
हल्का हो रहा है।
जल्द ही वह भी हो जायेगा हिस्सा इस पैर का

फिर वह भी घुल मिल के रहेगा सबके साथ।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

जब चले आते हो,



जब चले आते हो, अंधेरे में रौशनी की तरह,
हर पोर मेरा, खिलता है एक कली की तरह।

ज्यूं छिटक जाये अमावस को चांदनी गोरी,
जगमगाते हो, हमेशा ही तुम, दिवाली की तरह।


किसी लमहे-उदास को लगे, खुशी की नजर,
मेरी उजडी सी जिंदगी, तुम गुलाली की तरह।

हमें तुम्हारी रुसवाइयाँ भी हैं मंजूर,
जो वादा कर लो, मिलोगे फिर, सबा की तरह।

कर लेंगे इंतज़ार, हम भी कय़ामत का सनम,
जो तुम बन के खुदा बख्श दो नबीं की तरह।

गजल जैसी, प्रेम, भावना


रविवार, 4 सितंबर 2016

गणेश चतुर्थी



द्वारे बंदनवार, सजाई रंगोली,
आईये गणपति
स्वागत है।

ढोल, ताशे, झांज, खूब बज रहे
आनंद अपार
आगमन से।

पांव धोके पीऊँ, आरती उतारूं
कुंकुम तिलक
सुंदर सोहे।

सजाया आसन, विराजे गणेश,
भक्तों का उत्साह
 कहूँ कैसे।

आचमन,स्नान को, जल ये पवित्र,
चंदन रोली अक्षत
भाल सोहे।

जवाफूल दूब करूं मै अर्पण,
मोदक इक्कीस
नैवेद्य के।

अथर्वशीर्ष का होता पारायण,
सुखकर्ता, दुखहर्ता,
करूँ आरती।

चरणों में, साष्टांग दंडवत,
सेवा में आपके,
सदा रहें।


दस दिन हमारे साथ रहें देव
भारत सदैव
उन्नति करे।

आशीष केवल, यही देते जाना
सर्व जन रहें
सदा सुखी।




चित्र गूगल से साभार।


सोमवार, 22 अगस्त 2016

हमारा कोलंबस सफर


हमारा कोलंबस सफर

हाल ही में हम कोलंबस गये थे सुंहास और विजय अब मार्टिनबर्ग से वहाँ जाकर बस गये हैं। वे रहते हैं डेलावेअर यानि कोलंबस के एक उपनगर में। मार्टिन बर्ग के जितना बडा तो नही पर सुंदर सा घर है। तीन बेडरूम  बैठक खाना रसोई आगे पीछे बैठने के लिये खुली जगह वगैरा वगैरा। सुबह की चाय के साथ पंछियों को  सुहास दाना डालती है तो उनका संगीत चाय का मज़ा दुगना कर देता है।
(Img 2570 & 2572)




चाय के बाद सुबह की सैर पर चल पडो तो छोटे छोटे  3-4 तालाब आपके सैर की खुशी बढाते हैं । तालाब में बत्तखों की टोली निर्बाध घूमती होती है पर हमारी आहट पर इधर उधर छुप जाती है। रोज ही इन बत्तखों को देख कर हम आनंद उठाते। (MvI 2519)

एक बार तो उनके छोटे छोटे बच्चों की टोली भी थी माँ के साथ।
उसके भी  आगे एक छोटासा सैर पथ है वहां के पेड पर एक काले रंग का खूबसूरत पंछी जिसके परों में लाल या गहरे नारंगी रंग का पट्टा है हमारा स्वागत तरह तरह की बोलियों से करता है। उसका नाम है Red winged bird।
चित्र विडियो


घर आकर फिर नाश्ता फिर एक घंटे बाद व्यायाम  फिर हम दोनो मिलकर खाना बनाते
और फिर निकल पडते बाजार । बाजार घर से काफी नजदीक है और वहां पर काफी सारे हमारे रुचि की दूकानें भी हैं। वहां से घर के लिये सामान लेते, कुछ मुझे लेना होता तो वह भी।
घर आकर खाना खाने से पहले या बाद में ब्रिज़ का गेम जमता। उनके वहाँ दो सीनियर सिटिझन सेंटर हैं एक हिन्दुस्तानी और एक अमेरिकन वे दोनों जगह के सभासद हैं। दोनो ही जगह हम होकर आये और ब्रिज भी खेला।  
वहाँ पर हमने मिल कर सत्यनारायण भगवान की पूजा भी की। (Img 2562) प्रसाद और भोग का खाना मैने बनाया पूजा की तैयारी सुहास ने की।

एक सुबह जब हम थोडा सुस्ताने के लिये एक बेन्च पर बैठे तो एक पेड के फुनगी पर एक छोटी सी सुंदर सी पीले रंग की चिडिया दिखी उसका फोटो हम तो नही ले पाये लोकिन  इंटरनेट पर उसकी तस्वीर मिल ही गई। उसका नाम है, Prothonotary Warbler Maggy marsh.


सुहास के घर से नजदीक ही एक बडा सा लेक भी है जेसे कि छोटा मोटा समुद्र हो वहाँ एक पार्क भी है हमने वहाँ पिकनिक भी मनाई। लेक का नाम है,Alum Creek Lake । वहाँ कि नदी का नाम बडा मज़ेदार है उलनटांगी। जेसे कि उलटी-टांगी कह रहे हों।



इस तरह पंद्रह दिन सुहास के साथ मजे में बिताकर 18 तारीख को हम अमित के यहाँ डरहम, न्यू हैम्पशायर पहुँचे।



रविवार, 14 अगस्त 2016





सभी ब्लॉगर बंधु भगिनियों को स्वतंत्रता दिवस और राखी की शुभ कामनाएँ ।

शनिवार, 6 अगस्त 2016

क्या सचमुच ..

क्या सचमुच कोई नेता नही चाहता
कि देश तरक्की करे,
लोगों को काम मिले,
उनके सर पे भी छत हो,
बदन पर कपडा।
उनके भी बच्चे जायें स्कूल,
बगिया मे खिले फूल।
खेतों में अनाज हो,
समंदर में देश के जहाज़ हों
बीमारों को दवा मिले,
साफ सुथरी हवा चले।
सैनिक रहें सज्ज सदा,
मिले उन्हे सम्मान और मुआवजा।
पडोसी देशों से मेल हो,
शांति से खेल हों।
वे भी और हम भी रहें खुशहाल,
किसी के दिल में ना हो मलाल।
प्रकृती की मार तो पडती ही है,
पर सरकार क्यूं हम से अकडती है।
क्या सचमुच कोई नेता, कोई अफसर,कोई नही चाहता
कि लोगों का काम हो
और उसका भी नाम हो।

हाँ एक नेता है ऐसा, जो चाहता भी है और कर भी रहा है । बस थोडा धीरज रखना होगा।



शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

वो दिन हवा हुए

वो दिन हवा हुए, जब पसीना था गुलाब,
आँखों में रंग थे और थे सुनहरे ख्वाब।

मेरे सवाल से पहले आता था उनका जवाब,
जिस काम को छूते हम बन जाता था सवाब।

रौनकें लगी रहती थीं हर तरफ,
रोशनी के चाशनी का माहौल हर तरफ,
रातें थीं चांदनी की और हम थे माहताब।

अब आज का जिक्र क्यूं कर करेंगे हम,
यादों की जब रखी हुई है खुली किताब। 

शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

छटने लगे हैं अंधेरे

छटने लगे हैं अंधेरे
घुल गये बादल घनेरे,
रोशनी सी फैलती है
किरणों ने डाले बसेरे।

अभी कुछ है धुंद बाकी,
अभी हैं साये हाँलाकि,
राहें नजर आने लगीं हैं,
उजलते मंजिल के डेरे।

नाव डगमग डोलती थी,
कुछ भंवर को तोलती थी,
ले ही आया है ये नाविक
धीरे धीरे तीरे तीरे।

अब है आगे तेज़ धारा,
पर है मजबूती सहारा,
मंजिल बहुत है दूर अब भी
पर है पथ दीपक उजेरे।

हम हैं तेरे साथ नाविक,
और ऊपर वाला मालिक,
तेरे हाथों हाथ देकर
चल पडें सारे के सारे।

चित्र गूगल से साभार।

रविवार, 12 जून 2016

जीवन की यह अजब पहेली

कभी कहानी बहती रहती, कभी मोड पर रुक जाती है।
कभी कविता सी मचलती रहती, कभी अडियल सी ठहर जाती है।

कभी सुरों की सजीली महफिल, जमते जमते उठ जाती है,
बजते बजते ही सितार की तार टूट के सिहर जाती है।

हीरा तराशते तराशते, जैसे कोई दरार पड जाती,
जानें कितनी सुंदर कलियाँ बिना खिले मुरझा जाती हैं।

मन के इस चंचल से पट पर जब कोई आकृति उभरती,
जाने क्या हो जाता है कि बनते बनते मिट जाती है।

मंदिर की घंटी का मधुरव, कानों में रस घोल रहा हो,
कैसे कोई कर्कश सी ध्वनी, लय, ताल बिखरा जाती है।

लहरों पर खेलती नाव जब लहर लहर मचलती होती,
कभी अचानक भँवर में फँस कर वजूद अपना खो जाती है।

राह एक पकड के राही मंजिल अपनी पा जाता है
तब जीवन की अजब पहेली उलझ उलझ के सुलझ जाती है।

गुरुवार, 2 जून 2016

इंतजार में

मुद्दत हुई कि बैठे हैं बस इंतज़ार में,
काटीं हैं सुबहें,रातें कितनी,इंतज़ार में।















करके गये थे वादा,जल्द लौट आयेंगे,
अब भी सहन में बैठे हैं हम इंतज़ार में।

ये कुछ ही दिन फुरकत के हैं,कहके गये थे,
आयेंगे लेके अच्छे दिन, कुछ इंतज़ार में।

आँसूं भी गये सूख, हँसी फीकी हो गई,
गुज़रा हमारे साथ क्या,इस इंतज़ार में।

हम ख़ुद को भुला बैठे हैं,याद में तेरी,
तू है कि हमें रखता है बस,इंतजार में।

सोचा था आयेंगे गर उम्दा ख़याल तो,
हम भी तो कुछ लिखें, हैं बस इंतज़ार में।

कर लेंगे दिन ये पार,रख के हौसला सनम,
न सोचना कि मर जायेंगे हम इंतजारमें।




चित्र गूगल से साभार।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

गर्मी की क्षणिकाएँ

पसीना, लू के थपेडे और ये झुंझलाहट
बिलकुल तुम्हारे गुस्से से तमतमाये चेहरे सी,
फिर पन्ने की, तरबूजे, खरबूजे की तरी
बिलकुल तुम्हारे, मान जाने के बाद की हँसी जैसी।

कहाँ गये वे खस के पर्दे, कहाँ गये वे ठंडे कूलर,
वो खुशबू वो रूह की शांति, क्या देगा ये एयर कंडीशनर
इस गर्मी में पर तुम मिल जाओ तो, लू भी लगे पुरवाई सी
और धूल.. धूल, डर्मीकूल पाउडर।


ऊपर गुस्साया सूरज, नीचे जलती अंगार सी धरती,
बूंदों के लिये तरसता जीवन और इन्सानों की बेचारगी
किसी के तो होंगे पुण्य जो जगायेंगे सोये ईश्वर को कि
वह भी रो पडे हमारे दर्द में और हो बारिश तृप्ति की


टूटी चप्पल के साथ घिसटते जलते पाँव,
फटे कमीज को गीला करता पसीना,
ओर उसी को सुखाती गर्म हवा, मन में ये सोच कि
आज भी नही मिला काम और न ही मिला कहीं पानी


रविवार, 17 अप्रैल 2016

अकाल









सूखी नदियाँ,सूखे ताल
प्यासे इन्साँ, जानवर बेहाल,
चटखी धरती, दरार दरार,
सूरज बरसाये अंगार।

जलते पांव, लतपथ काया
दूर तक जाना ही जाना
दूर से ही मिलेगा पानी
दो बूँद लाना ही लाना

साफ मिले या मिले मैला
प्यास तो बुझानी है,
पीने से चाहे मिले बीमारी,
पानी फिर भी पानी है।

कब तक तरसेंगी अंखियाँ,
बादल के दरस को
कब तक ये तन तरसेगा
बूंदों के परस को।

रोज प्रार्थना करते स्वर में,
हम मिलायें अपना भी स्वर
तब शायद पसीजेगा पत्थर
औ बनेगा कृपालू ईश्वर।

फिर छायेंगे बादल काले
चमकेगी  लकदक बिजली
बरसेगी जलधार धरा पर
तृप्त धरा हो खिली खिली।

चित्र गूगल से साभार।
हाल ही में मै पूना गई थी। महाराष्ट्र में पानी की भयंकर कमी के चलते ये विचार मन में आये।



बुधवार, 30 मार्च 2016

आजकल










आजकल देख कर मुस्कुराने लगे हैं,
धीरे धीरे करीब दिल के आने लगे हैं।

बातों बातों में बातें निकली कुछ ऐसे,
लोग उसके के फसाने बनाने लगे हैं।

मुझे उनके इतने करीब जानकर अब,
दोस्त भी मेरे नजदीक आने लगे हैं।

किसी बात की पक्की खबर न हो तो
बात का ही बतंगड बनाने लगे हैं।

हमें आपसे इक लगावट तो है पर,
लोग इसको मुहब्बत बताने लगे हैं।

माहौल ये अब मर्जी का ही है,
उदासी के बादल जो जाने लगे हैं।

रविवार, 20 मार्च 2016

Happy Holi

कितना सुंदर देश है हमारा, कितनी सुंदर इसकी सभ्यता और संस्कृति।
विभिन्न भाषाएँ और बोलियाँ। हर प्रांत की उसके लोगों की अपनी विशेषताएँ,
बिलकुल होली के खूबसूरत रंगों की तरह।
कहते हैं सारे रंग अगर मिल जायें तो बनता है सफेद रंग, शांति और सद्भाव का प्रतीक।
पर क्या हो गया है, आजकल ये सारे रंग मिल कर स्याह रंग क्यूँ बना रहे हैं। सारे खूबसूरत रंगों पर किसने पोती है ये कालिख?

हरा, भगवा और सफेद हमारे राष्ट्र ध्वज के रंग, खुशहाली, पराक्रम और शांति के रंग उस पर ऩीले रंग का अशोक चक्र। आज क्यूं एक दूसरे के विरोध में खडे होकर प्रतिशोध  की ज्वाला धधका रहे हैं।
अरे, सब अपने तरीके से पूजो न उस ईश्वर को, करो इबादत जैसी चाहो, पर देश तो हमारा है न, सबका साझा है। फिर क्यूं लडे हम कि कौन इसको ज्यादा प्यार करता है।
गलत बात है आपसी दुश्मनी के लिये देश को बीच में लाकर उसके लिये अपमान-जनक भाषा का प्रयोग करना। देश के शत्रुओं की जयकार लगाना।
और ये नेता लोग ये बडे हैं ना हमारे देश के, इनसे तो वह भी नही होता जो घर के बडे करते हैं। कहने के लिये बडे हैं पर वे ही इस आग को और धधका रहे हैं। यह तो नही होता कि सामंजस्य से विवाद निपटायें, हर कोई इस आग में अपनी रोटी सेंक रहा है।
निकट आती कुर्सी जो दिखाई दे रही है।
न सही बडे, बच्चों तुम ही समझ जाओ वो कहते हैं ना, Child is the father of Man. समझो इनकी चालों को न आओ इनके कहे में। मन का वैमनस्य मिटा कर सब मिलकर खेलो होली ताकि खिल उठें सारे रंग और सज जाये हमारा सुंदर इंद्र-धनुष।

होली की शुभ कामनाएँ।
होली मुबारक।
Happy Holi.    

चित्र गूगल से साभार।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

खोया पाया

कितना कुछ खोना पडता है,
कुछ पाने के लिये।
और देना पडता है श्रमदान,
पाया बनाये रखने के लिये।

हम अक्सर गफलत कर जाते हैं,
पाये पर अपना मालिकाना हक समझने की।
नही जानते कि हमने किराये पर लिया है इसे,
हमारे इस देह की तरह।

इसको जतन करना है तो करना पडेगा श्रम,
ये तो हमारा ही है कहाँ जायेगा, नही पालना है ये भ्रम।

जहाँ किराया भरने से चूके, कि पाया खो जाता है,
देह को उपेक्षित किया कि घुन लग जाता है।
मन दुर्लक्षित हुआ कि मैला हो जाता है। 

देह को श्रम साध्य करना,
मन को रखना स्वच्छ, सरल निर्मल शिशुसा

फिर शायद पाया रहेगा पाया, लंबे समय तक।
पर चिरंतन तो कुछ भी नही।

   

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

इक लडकी






गेंहूँ के दाने सी इक लडकी
सुनहरी, चमकती, खनकती।
अपने नसीब से अनजान,
इठलाती, बलखाती, खिलखिलाती।

जानती कहाँ है पिसेगी वो,
पानी में भीगेगी, पिटेगी, मसली जायेगी
सिंकेगी जिंदगी के चूल्हे पर,
दुखों की आग में जलेगी,
परोसी जायेगी किसी के आगे,
फिर भी मुस्कुरायेगी, चाहे म्लान ही क्यूं न हो मुस्कान।

या फिर गाड दी जायेगी जमीन में,
लेकिन उसकी जिजिविषा देखो,
फिर उगेगी, लहरायेगी, खिलखिलायेगी, लौटायेगी तुम्हें सौ गुना।

ये लडकी गेंहूँ के दाने सी।

चित्र गूगल से साभार।

गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएँ।

शनिवार, 16 जनवरी 2016

याद करना मुझे

याद करना मुझे मेरे जाने के बाद।
याद करना मेरी बातें, मेरी आदतें
अपनी चाहतें।
याद करना मेरा सजना, संवरना
घर को सजाना।
याद करना मेरा प्यार, मेरा राग-अनुराग,
मेरा त्याग।
याद करना अपनी लडाई, मेरी बुराई,
थोडी अच्छाई।
मिलन के क्षण, थोडी जुदाई
प्यार की गहराई।
याद कर के खुश होना, रोना नही।
या फिर नही याद करना।
क्यूं कि याद करके दुखी होने से अच्छा है
भूल जाना।

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

शुभ कामनाएँ

उज्वल, शांतिपूर्ण, यशदायी,
नया वर्ष हो सब को सुखमय,
औऱ कभी मुश्किल आये तो
उसका हल निकलना हो तय।

अच्छे नेताओं के हाथ,
करेंगे हम सदा मजबूत 
अपने अपने ही स्तर पर,
हम करेंगे परिश्रम अकूत।

छोटे छोटे लोभ मोह को,
तज ही देंगे हम प्रयत्न से,
तभी तो फिर आगे बढेगी
सच्चाई हर झूटे-पन से।

समय से सारा काम करेंगे,
तब जाकर आराम करेंगे
समय की पहचानेंगे कीमत
समय पर जायेंगे आयेंगे।

पानी, बिजली खर्च तो करेंगे,
नही कदापि व्यर्थ करेंगे,
घर को तो रखते ही हैं साफ
परिसर को भी साफ रखेंगे।

बस के टिकिट, छिलके मूंगफली के
एक थैली में पास रखेंगे
जब भी कूडादान मिलेगा,
उसी में ही उनको फेकेंगे।

प्लास्टिक की थैली का वापर
बहुत ही अब हम कम कर देंगे,
पुरानी पैंट और कप़डों के थैले
सिल कर उनसे ही काम लेंगे।

इन थोडी सी बातों से ही
बहुत बडा बदलाव आयेगा,
भारत के हम लोगों को फिर
विश्व जरूर नक्शे पे लायेगा।


सारे ब्लॉगर बंधु भगिनियों को नये वर्ष की मंगल कामनाएँ।