लेकर अनूठी बारात, चली तारों भरी रात
चांदसा दूल्हा, साँवली दुलहन
मंद मंद सुगंधी पवन
नया जोडा, दूधिया चांदनी,
शर्मीली दुलहन, रात मन मोहनी
साथ साथ ले हाथों में हाथ
दूल्हा दुल्हन बिछायें बिसात
सुबह तक चले फिर खेल
जबतक न बैठे हार जीत का मेल
मेरी हुई जीत या तुम हारे
दोनो सोचते रहे बिचारे
थक कर सो गई रात
चांद भी लुढका देने साथ
सुबह जब आई
कर दी सारी सफाई
आजका विचार
आप कभी भी उतने ज्यादा दुखी या खुश नही होते जितना आप सोचते हैं।
स्वास्थ्य सुझाव
तुलसी के काढे से तनाव दूर होता है ।
11 टिप्पणियां:
आप जरा यह बतायें कि एक बढ़िया चित्र और मोहक फॉण्ट में उसपर पोस्ट का शीर्षक डालने का काम आप कौन सी तकनीक से करती हैं?
काढ़ा यानी, पानी में तुलसी की पत्ती डाल के गरम करना, वही, या कुछ और?
कविता पसंद आई।
आपने चांद और रात का जो presonification किया है, वह अद्भुत है।
एकदम सही फरमाती हैं आप कि हम कभी भी उतने दुखी या खुश नही होते जितना सोचते हैं। लेकिन दुख ऐसा चढ़ जाता है कि झटक पाना बड़ा मुश्किल होता है जैसे सपने में आपके सीने पर कोई बैठा हो तो उसे हटाने के लिए हाथ नहीं चल पाते।
ज्ञानदत जी के सवाल का जनाब तो मैं भी जानना चाहता हूँ।
c* जनाब = जवाब
अच्छी कविता.
दूल्हा दुल्हन के रूप में चाँद और रात के बिम्बों का खूबसूरती से किया गया प्रयोग अच्छा लगा।
चांदसा दूल्हा, साँवली दुलहन--- प्रकृति में मानवीकरण मन को मुग्ध कर देता है..
बहुत प्यारी सावँली दुल्हन सी कविता...
चुनिंदा शब्दों में चुनिंदा बात. सुन्दर.
ज्ञानदत्त जी,विपुलजी, धन्यवाद फोटो और फॉण्ट पसंद करने के लिये । फोटो हमारे कलेक्शन से हैं कई बार यह कलेक्शन खरीदे सॉफ्टवेअर के साथ होता है।
फॉण्ट है रिचा । सॉफ्टवेअर है पिक्चर पब्लिशर और फोटोशॉप है ।
आलोकजी, काढा यानि वहीजो आपने समझा है यानि
तुलसी के पत्ते पानी में उबालना ।
bahut sunder hai kavita......
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