शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

गोविंद दादा

हमारे एक फुफेरे भाई हुआ करते थे गोविंद दादा । उमर में मुझसे कोई दस बारह साल बडे़ रहे होंगे। लंबे, अच्छे डील डौल
वाले दादा जब भी हमारे यहाँ आते हम बच्चों की तो बाछें खिल जातीं । कहानी सुनाने में गोविंद दादा का कोई सानी नही था ।
कहानी सुनाते हुए वो कहानी में ऐसे रंग जाते कि कहानी के सारे पात्र जीवंत होकर हमारे साथ विचरने लगते ।
उनके आते ही हम सब उनके पीछे पड जाते कि गोविंद दादा कहानी सुनाइये । और वो हमें डपट कर कहते अभी नही
रात में । और आनन फानन में पूरे बाडे में यह बात फैल जाती कि गोविंद दादा आये हैं और रात में कहानी सुनाने वाले हैं ।
रात का खाना निबटाकर हम सब उन्हें घेर कर बैठ जाते । और शुरू हो जाती कहानी सात संकट गोविंद दादा की जबानी ।
इस कहानी में राज कुमार को सात समंदर पार से कोई अक्षय कमल लाकर राजकुमारी को सुंघाना होता था । और चल पडता
अपना राजकुमार अक्षय कमल की तलाश में ।



पहले तो राजकुमार महल से निकला और चलता ही चला गया जा…ते , जा…ते , जा..ते , जाते एक लं........................बे मैदान से होकर वह आगे चला और ......... और गोविंद दादा चुप । फिर क्या हुआ दादा बताईये ना, हमारा अनुनय । और....... एक जंगल में प्रवेश कर गया वह, शाम का वक्त, सन्नाटा, हवा की साँय साँय, झींगुरों की किर्र किर्र, बीच बीच में उल्लुओं की आवाज घू ...घू .....घू ......घू घू पर हमारा राजकुमार निडर चलता ही चला गया और अचानक सुनाई दी शेर की दहाड़ हा ................आ........................हा और अगले ही क्षण एक ही छलांग में शेर राजकुमार के ऊपर । राजकुमार के साथ साथ हमारी भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे । शेर के पंजे राजकुमार की छाती पर, मुँह खुल गया और दांत चमके जैसे बिजली कौंध गई हो। हम सांस रोक कर प्रतीक्षा में कि अब गया राजकुमार । पलक झपकते ही राजकुमार ने अपना एक हाथ शेर के जबडे में फँसा दिया और दूसरे हाथ से एक बडी सी लकडी शेर के गले में डाल दी । अब शेर सकते में आ गया न उगलते बने न निगलते । मौका पाकर राजकुमार ने हाथ निकाल लिया और एक बडे से पत्थर से शेर का खात्मा कर दिया । राजकुमार के साथ साथ हमारी भी जान में जान आ जाती ।
इसी तरह एक के बाद एक संकट आते और राजकुमार उनको पार करता हुआ आगे बढता जाता । और फिर आता आखरी संकट ।
राक्षस को हरा कर रात को राज कुमार गहरी नींद सोया । अब उसे समंदर पार करके तालाब तक पहुँच कर अक्षय कमल लाना था । वह समंदरके किनारे पहुँचा, वहाँ एक नाव खडी थी । राजकुमार नाव में बैठ कर चल पडा । वह पूरा जोर लगा कर नाव को खेने लगा । समंदर की दीवार जितनी ऊँची भयंकर लहरें उसकी नाव के ऊपर से गुजरती पर वह नाव को सावधानी से बचाकर आगे बढता । इन लहरों से बचता तो तूफान उसे घेरते उसकी नैया यूँ हिचकोले खाती जैसे अब उलटी तब उलटी लेकिन कुछ उसका साहस और कुछ ईश्वर की मदद से वह आगे बढता ही जाता। इस समंदर से जहां उसे नदी के अंदर प्रवेश करना था ठीक उसके पहले एक और भयानक संकट उसकी राह देख रहा था । इस समंदर में थे दो पहाड़ जो बराबर एक दूसरे के पास आते और कुछ पल ठहर कर दूर हो जाते । यह क्रम निरंतर चलता ही रहता । अब कैसे जाये राजकुमार की नैया इन पहाडों के बीच से । उसके चूर चूर होने का पूरा अंदेशा । राजकुमार मन ही मन ईश्वर को याद करने लगा । तभी उसने सोचा कि यदि वह कितने देर में पहाड दूर जाकर वापस आते हैं यह पता लगाले तो वह अपनी नाव उतनी ही या उससे कम देर में पहाडों के बीच से गुजा़र कर उस पार जा सकता है । और राजकुमार अपनी नैया को पहाडों के पास ले आया और जैसे ही पहाड़ पास आये वह चौकन्ना हो गया । पहाडों के दूर होना शुरू होते ही उसने अपनी सांसें गिनना आरंभ किया और तब तक गिनता रहा जबतक पहाड फिर से पास पास आने लगे । उसे अपनी नाव पचास की गिनती से पहले पहाडों के बीच में से निकाल कर ले जानी थी । अब राजकुमार और आगे बढ आया और जैसे ही पहाड़ दूर होने लगे वह अपनी नौका बीचोंबीच ले आया और जैसे जैसे पहाड दूर हों वैसे वैसे वह नौका आगे बढाने लगा और आधी से ज्यादा नौका उस तरफ आ गई । अब पहाड़ दूर जाकर एक क्षण को रुक गये और उन्होंने धीरे धीरे वापस आना शुरू किया । राजकुमार की नाव एक चौथाई अभी भी इस पार । राजकुमार पूरा जोर लगा कर नाव को खेने लगा इधर पहाड़ भी धीरे धीरे पास आते जा रहे थे, नाव को थोडा हिस्सा पार हुआ पर अभी भी आखरी का छोर इसी तरफ था । राजकुमार ने जी जान लगा दी नाव को पार करने में लेकिन पहाड़ अब एकदम करीब थे, लगा कि नही हो सकेगी नैया पार लेकिन एक जोरदार चप्पू का झटका और नैया पार और उसी क्षण दोनो पहाड़ एकदम पास । राज कुमार के चेहरे पर मुस्कान और हम एक गहरी सांस छोडकर शांत । फिर तो सब कुछ आसानी से हो जाता । राजकुमार समंदर से नदी में प्रवेश करता, गाँव में जाता तालाब से अक्षय कमल लेकर वापस आता । अक्षय कमल सूंघते ही राजकुमारी जाग जाती और राजकुमार से विवाह करती और वे दोनो सुख से रहने लगते ।

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

चलिये, बड़ी राहत मिली कि राजकुमार अक्षय कमल ले आये और राजकुमारू के साथ सुख से रहने लगे. गोविन्द दादा को भी चैन मिला होगा कि कहानी खत्म हुई अब छूटे.

:)

अब दूसरी कहानी सुनाईये.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

गोविन्द दादा की जमात उत्तरोत्तर कम होती जा रही है।
या यह भ्रम है मेरा?
जीवन की आपाधापी में किस्सागोई की बलि चढ़ रही है।

Atul Chauhan ने कहा…

आपके लेख ने मुझे अपनी नानी की याद दिला दी। बचपन में इसी तरह कहानियां सुनाती थी।
काफी मेह्नत की है इस लेख पर आपने। आपको धन्यावाद।

Sagar Chand Nahar ने कहा…

सन २००२ में मेरी बुआ वे देहांत होने के पहले तक जब भी मौका मिलता मैं उनकी गोदी में सर रख कर सो जाता और उनसे पिचले पच्चीस तीस सालों में अनगिनत बार सुनी कहानियाँ फिर से सुनता। उससे पहले दादीजी से।
अब ना तो बुआ है ना वे कहानियाँ। आजकल बच्चों को कहाणियाँ सुनने में रुचि नहीं है, उन्हें कम्प्यूटर/वीडियो गेम से ही फुर्सत नहीं मिलती।

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है कहानी!

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है कहानी!

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है कहानी!

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है कहानी!

विनोद पाराशर ने कहा…

बढिया कहानी सुनाई गोविंद दादा ने.सच! बचपन की यादें ताजा हो गय़ीं.