हम कोवालम के लिये निकले तो हमें ड्राइवर से ही पता चला कि रास्ते में ही त्रिवेन्द्रम पडता है इसीको तिरुअनंतपुरम भी कहते हैं (तिरु का मतलब शायद श्री होता होगा मुझे ठीक से पता नही पर लगता ऐसा ही है) । हमने कहा कि रास्ते में है तो चलते हैं हम पैलेस और पद्मनाभ मंदिर देखते हुए कोवालम पहुंचेंगे वहां तो वैसे भी बीच पर ही समय बिताना है । थोडे पीछे पडने के बाद ड्राइवर मान गया और हमें पहले राजा महेन्द्र वर्मा के महल जो कि राजा के वस्तुओं का संग्रहालय भी है ले गया । टेक्काडी से त्रिवेंद्रम का रास्ता २ घंटो का ही है और वहां से कोवालम कुल २० मिनिट की ड्राइव ।
महल देखना सार्थक हो गया । राजा महेंद्र वर्मा, प्रसिध्द चित्रकार राजा रवि वर्मा के ससुर थे, उनकी (रवि वर्मा की ) काफी पेंटिंग्ज यहां थीं । महेन्द्र वर्मा त्रिवेन्र्दम के आखरी प्रशासक थे । इसके पहले कोई १५० वर्षो तक यह महल बंद ही रहा । महल में राजा नें एकत्रित की हुई काफी चित्र विचित्र वस्तुएँ थीं । महल से ही राजा जी को पद्मनाभ मंदिर के कलश के दर्शन हो जाते थे और एक चोर रास्ता भी था जो सीधा मंदिर में खुलता था ।
महल देखने के बाद हम गये पद्मनाभ मंदिर । पता चला कि चार बजे खुलेगा तो वहां कुछ दुकाने थी, केरल हैंडलूम साडियँ और सलवार कमीज़ और छोटी बच्चियों के ड्रेस भी मिल रहे थे । अर्चना ने तीन साडियां खरीदीं, सुंदर थी और दाम भी ज्यादा नही थे, ३५०-४५० के बीच में थे। मैने श्रेया के लिये और अर्चना की पोती देवांशी के लिये एक एक घागरा और ब्लाउज का सेट खरीदा । इसके बाद मंदिर की सीढियों पर बैठ कर भजन सुनते रहे । विष्णु स्तुति । चार बजे मंदिर के कपाट खुले तो अंदर गये उस वक्त ज्यादा भीड भी नही थी पर बहुत सारा चल कर जब गर्भ गृह तक पहुंचे तो पता चला कि दर्शन तो पांच बजे से पहले नही होंगे । तो फिर उतना ही चल कर बाहर आये । वापिस सीढियों पर (विडियो) । फिर देखा एक जगह गरम गरम पकोडे और चाय और कॉफी मिल रही थी । तो सोचा पेटपूजा ही की जाये सिर्फ ब्रेकफास्ट कर के ही चले थे, भूख तो लग आई थी पकोडे वाकई बहुत अच्छे थे । हमने खाना शुरू किया था इतने में ही मंदिर के कपाट खुल गये हम तीनों जब इसके पहले गये थे तो सुरेश जूते कैमरा वगैरा की रखवाली कर रहे थे तो बोले, मै जल्दी से दर्शन कर आता हूँ । हमने जब तक खाया वे दर्शन कर के वापिस भी आ गये बोले अब चलते हैं बहुत भीड है तुम लोग छोडो अब दर्शन वर्शन । तो हम भी मान गये बडा अफसोस हुआ कि इतने देर इंतजार भी किया और दर्शन से भी वंचित रहे । सुरेश चाय कॉफी के पैसे देने के लिये गये तो एक मराठी महिला वहां आई बोली, “झालं ना दर्शन “। मै बोली,” नाही हो खूप गर्दी आहे म्हणे “। वह बोली, “नही कोई ज्यादा भीड नही है आप कर के आ जाओ दर्शन” । फिर तो हम तीनों फटाफट अंदर भागे और दर्शन कर के ही वापिस आये । पद्मनाभ की मूर्ती शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु जी की मूर्ती है जिनके नाभी से कमल निकला है और ब्रम्हाजी उस पर विराजमान हैं । इस मूर्ती के दर्शन तीन हिस्सों में होते हैं एक दरवाजे से सिर और शोष नाग का फन दिखता है बीच वाले से धड और तीसरे दरवाजे से पैर दिखते हैं मंदिर में बिजली नही है दियों के प्रकाश से ही उजाला किया जाता है जो काफी नही होता पर फिर भी मन प्रसन्न हुआ । आंखे बंद की और जो बचपन से याद था वो स्तोत्र अपने आप मनमे साकार हो उठा ।
शांताकारम्, भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्,
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभांगम्
लक्ष्मीकांतम् कमलनयनम् योगिभिरध्यान गम्यम्
वंदेविष्णुम् भव भय हरम् सर्व लोकैक नाथम्।
जैसा कि मंदिरों में होता है फोटो खींचने की इजाजत नही थी ।
बाहर आये तो सुरेश हमें ढूंढ ही रहे थे । कहां चले गये थे, के जवाब में दर्शन करने बता कर हम सब वपिस गाडी में बैठे और चल पडे कोवालम ।
कोवालम तो २० मिनिट में ही पहुँच गये । वहां हमारा होटल था सागर बीच । होटल एकदम नया था बल्कि कुछ भाग अभी बन ही रहा था । रिसेप्शन पर हमारा स्वागत ठंडे ठंडे पाइन एपल जूस से हुआ । हमें कमरे मिले थे बेसमेंट में और वहां तक लिफ्ट नही थी । कमरे तो बडे बडे और सुंदर थे पर सीढियां चढते उतरते मेरे घुटनों की तो जान ही निकल जाती थी ब्रेकफास्ट लंच डिनर सबके लिये ऊपर ही आना पडता था । सामान वामान रखा चाय पी और थोडा आराम किया । शाम को गये बाहर बीच पर घूमें पर शाम हो चली थी । यहां पर सीपियां वगैरा कुछ ज्यादा नही थी जो थीं वे समुद्र के लहरों से घिस घिस कर एकदम पतली हो गई थीं । वहां एक लाइट हाउस भी था पर बीच से ऊपर जाना पडता था और बहुत सारी सीढियाँ थीं तो मैने तो विचार त्याग दिया मेरे घुटनों की वजह से बेचारी अर्चना भाभी के उत्साह पर पानी पड जाता था पर वे अकेली जाने की हिम्मत नही जुटा पाईं । देर तक वहीं बैठे रहे । समुद्र की यही खासियत होती है कितनी भी देर बैठो मन नही भरता है । निरंतर किनारों को चूमती लहरें सुंदर साफ रेतीला किनारा और सूरज के प्रकाश के साथ लहरों की अठखेली सब कितना मनमोहक । फिर होटल वापिस आये डिनर किया और फिर ही कमरे में गये । इतने दिनों के बाद सुखद आश्चर्य कि टी वी पर झी टी वी का हिंदी चैनल आ रहा था वरना तो मलयालम ही था टी वी पर । थोडा प्रोग्राम देखा न्यूज सुनी और सो गये । अगले दिन सुबह उठने की कोई जल्दी नही थी ये दिन भी हमारा कोवालम का ही था । तो आराम से उठे तैयार हुए और नाश्ता कर के बाहर जाने को निकले । ड्राइवर ने कहा यहां तो समंदर ही है और तो कुछ है नही । पर हमारे होटल के आगे ही एक एक्वेरियम दिखा टिकिट भी केवल १० रु. था । मेरी तो इसमे स्वाभाविक रुचि थी पर और लोग भी इंटरेस्टेड दिखे तो देखने गये । एक्वेरियम छोटासा था पर मछलियों की काफी प्रजातियां रखी थीं । सी हॉर्स, पफर मछली, एन्जल मछली स्कॉरपियन मछली और भी बहुत सी ।
एक्वेरियम देख कर निकले तो तय किया यहां का बाजार घूमेंगे । तो गाडी मे बैठे । ड्राइवर हमे एक टूरिस्ट इंटरेस्ट की दुकान मे ले गये । वहां पर शो पीसेज मूर्तियां ज्वेलरी आदि थे । तय तो किया था कि हम कुछ नही लेंगे । मै तो सबसे ज्यादा ना ना कर रही थी । पर अंत में ४ हजार रु. खर्च करके निकले । वहां सोचा था कि कोई ढंग की जगह हुई तो लंच करेंगे पर नही मिली तो आ गये बीच पर । वहां जाने के लिये भी काफी चलना पडता । तो हम ने ड्राइवर से कहा हमें बीच पर ही छोड दे । वहीं पर फिर लहरे गिनते रहे । चलते रहे । सीपियां उठाते रहे और फेंकते रहे । कोवालम का सागर है बडा सुंदर मुंबई के जुहू बीच से तो लाख दर्ज अच्छा । कचरा तो था पर अपेक्षाकृत बहुत कम था । शाम होने तक रुके और सूर्यास्त की कई तस्वीरें उतारी । क्या खूबसूरत नजारा था । फिर वापिस होटल । (विडियो)
दूसरे दिन यानि २१ को हमें जाना था अलेप्पी जहां बोट लेकर केरल के सुप्रसिध्द बैकवॉटर्स की सैर करनी थी । समुद्र का पानी काफी अंदर तक यहां आ जाता है और आप बोट से पानी के बिल्कुल संकरे गलियारे मे से और फिर चौडे पाट से होकर एकदम खुले सागर तक पहुँच जाते हैं । दोनो और की हरियाली, खुली हवा इसका आनंद लेना था ।
तो दूसरे दिन नाश्ता कर के हम अलेप्पी चल पडे । अलेप्पी में हमारा होटल था पागोडा रिसॉर्ट । सुंदर सा था । हांलांकि कमरे छोटे थे । ड्राइवर नें बताया कि बोट एक एक घंटे बाद जाती रहती है । तो हमने सामान कमरे में रखा और चल पडे सैर को । यहां ओपन बोट के अलावा हाउस बोट भी होती हैं कुछ लोग शायद होटल की बजाय बोट में ही रहना पसंद करते हैं । हमने तो एक ओपन बोट की जिसपर छप्पर भी था । पर साइड से खुली होने के कारण दृष्यावलोकन अच्छी तरह संभव था । चारों के चारों बोट में डटे और बोट चल पडी । दोनों और क्या हरियाली थी । आम नारियल की तो भरमार थी पर और भी बहुतसी वनस्पतियां थीं और तरह तरह के पक्षी भी जिनकी फोटो कभी तो ले पाये और कभी नही । जब तक कैमरा साधते चिडिया फुर्र । बहर हाल जो कुछ देखा वर्णनातीत था । वो हरियाली और पानी दोनोंने मिलाकर एक अति सुंदर दृष्य की सृष्टी की हुई थी । आप तो विडियो देखें । दो से चार घंटे की सैर आप ले सकते हो हमने दो घंटे की सैर की औऱ ७५० रुं अदा किये । पर पैसा वसूल लगा । पानी के किनारे ही रेस्टॉरेन्ट, पानी वाले नारियल की दूकान वगैरह थीं तो हमने बोट रुकवा कर नारियल पानी पिया । खूप सारी हाउस बोटस घूम रही थीं जो बहुत सुंदर थीं आप ने विडियो मे देखा ही होगा । आखिर में जब खुला समंदर आप देखते हैं तो एकदम क्लायमेक्स पर पहुँचते हैं । वापसी पर फिर वही हरी भरी प्राकृतिक सुंदरता ।
वापिस आये तो भी उसी में खोये हुए थे । आज का काम हो गया था पागोडा में आ कर विश्राम किया शाम को टहलने चले गये । यह हमारा आखरी पडाव था ।
कल तो हमें अर्नाकुलम या कोची पहुँच कर दिल्ली की उडान पकडनी थी । उसके पहले खरीदारी करनी थी । अलेप्पी से कोची २ घंटे का रास्ता है । दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद हम निकल पडे । कोची में रुक कर हमने वहां के सबसे बडे सिल्क की दूकान कांचन सिल्क से केरल सिल्क की साडियां खरीदी । फिर हमारी गाडी ने हमे हवाइ अड्डे पर छोड दिया वहां सारे चेक वगैरा करवा कर हमने थोडा खाना पीना किया । फ्लाइट समय पर थी । तो ४ घंटे बाद शाम को ६ बजे हम दोनो और शरदिनि वैनी दिल्ली पहुंच गये । अर्चना वैनी को पूना जाना था तो वह कोची से ही ट्रेन से पूना के लिये निकल गई । भाभी ने गाडी बुला रख्खी थी तो हमें वसंतकुंज छोडते हुए वे घऱ चली गईं । बहुत दिनों की साध पूरी हो गई थी ।
15 टिप्पणियां:
सुन्दर विवरण
बहुत सुन्दर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई |
कोवलम का बीच वाकई बहुत सुन्दर है ..मेरी केरला ट्रिप में मैं वहाँ दो बार गयी हूँ..
मेरा ख्याल से केरल इतना सुन्दर और मनोरम है कि एक-दो महीने भी हम वहाँ घूमे तो देखने की जगहें खतम नहीं होंगी.
अगली बार प्रयाप्त समय हो और दो तीन परिवार साथ हों तो रेल से सफर करीए बहुत आनंद आता है..[मेरी पसंद बता रही हूँ!]:)
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राजा रवि वर्मा की पेंटिंग बहुत ही लाजवाब हैं...[वह क्लिप अभी देखनी बाकी है.]
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बिन्नी सिल्क के साथ केरल कोटन भी काफी प्रसिद्द है.वहाँ की सूती साडियां बहुत अच्छी होती हैं.
आप के साथ इन गर्मियों में हम ने भी केरल की सैर कर ली.सुन्दर विडियो क्लिप्स के लिए भी
बहुत बहुत आभार.
bahut hi sundar lag raha hai aapka yah keral vivaran ,ham bhi saath me jan kariya sametate chal rahe hai.
poonam
Aapka warnan,mujhe fafar pe le jata hai!
अच्छा यात्रा संस्मरण ,सलीकेदार प्रस्तुति
अल्पना जी की बात से सहमत !
बस दिक्कत ये है कि अधिक दिनों तक लगातार वहाँ कका खाना खाओ ( उत्तर भारतीयों के लिए खासकर ) तो पेट जबाब देने लगता है !
Apne sath hume bhi yatra karane ka aabhar.
रोचक एवँ ज्ञानवर्धक ।
आपने तो पूरी जम कर घुमाई की ...लगता है मुझे फिर जाना पड़ेगा एक बार और !
ब....हु....त दिनों बाद आना हो सका है और उम्मीद है कि बिना मांगे आप माफी दे ही देंगी.
केरल यात्रा वृत्तांत १-२-३ सब पढ़ डाला. वीडियोज देख डाले. याद नहीं कभी किसी ब्लॉग पर इतना समय दिया था.
लेकिन मन तृप्त हो गया. आपकी लेखनी, जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ जादू की छड़ी है जो पढ़ने वालों को दृश्य भी दिखाती रहती है.
एक निवेदन: वंदेविष्णुम् भव भय हरम् सर्व लोकैक नाथम्।
जहां तक मेरी स्मरण शक्ति काम करती है, "भय हरम" के स्थान पर "भय हरणं" होना चाहिए.
सही क्या है, मुझे बताइएगा जरूर.
मैने अनुभव किया है...पर्यट्न हंमेशा दिल को सुकून देता है!... और आपकी लेखनी ने केरल की भूमि को और भी रोचक अनुभव के रुप में ढाला है आशाताई!....बहुत अच्छा लगा!
केरल का यह रूप आपकी कलम से और सुन्दर लग रहा है ।
Aaj phir ekbaar fursat se padhtee aur dekhti gayi...is warnan ko padh keral jane kee behad ichha ho rahi hai..kaash swasthy ijazat deta!
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