बुधवार, 17 अक्टूबर 2007

मन का एक कोना

मेरे मनका एक कोना रखा है मैने सुरक्षित अपने लिये ,
इस कोने में रहती है एक लडकी
बालिश, अल्हड, भोली
उसके बचपने में बहने देती हूँ मै उसको,
संजोकर रखती हूँ उसकी प्यारी प्यारी बोली




मेरा पीछा करते वार्धक्य की होने नही देती उसको आहट
उसके कैशोर्य में डूबने देती हूं उसे और सहेज कर रखती हूँ
उसकी खिलखिलाहट
उसकी आसमाँ को छूने की महत्वाकांक्षा को खूब देती हूँ खाद और पानी
और उसका विकास देख कर खुश होती हूँ मन ही मन
यह मेरा और उसका एक सांझा राज़ है तभी तो
मुझे ऐसे ही अलग रखना है ये कोना खास मेरा सिर्फ मेरे लिये ।


आजका विचार
ईश्वर हमारी सब प्रार्थनाएं सुनता है पर कभी कभी उसका जवाब होता है....नही ।

स्वास्थ्य सुझाव

पेट संबंधी ज्यादा तर तकलीफें रोज दही खाने से दूर हो जातीं हैं ।

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मुझे ऐसे ही अलग रखना है ये कोना खास मेरा सिर्फ मेरे लिये ।


--अति उत्तम. जरुर रखना चाहिये. सुन्दर रचना और सुन्दर विचार.

अनिल रघुराज ने कहा…

अच्छी कविता ही नहीं, ऊर्जावान सहज जीवन का सुंदर आत्मीय सा दर्शन भी है। पढ़कर बहुत सुकून मिला। अच्छा लगा।

मीनाक्षी ने कहा…

मेरे मनका एक कोना रखा है मैने सुरक्षित अपने लिये --- सत्य वचन... वही कोना तो है जिसे अपना कह सकते हैं. बहुत सुन्दर भाव हैं जैसे हर किसी के मन की बात हो.

Atul Chauhan ने कहा…

खास कोना………वाकई सुन्दर रचना है…।धन्यवाद

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर लगा आपका लिखा पहली बार पढ़ा और दिल को छु गया
सच में मन का एक कोना अपना रखना बहुत बहुत जरुरी है
:)सुंदर बात सुंदर भाव के साथ