रविवार, 14 अक्टूबर 2007

मन

मन उदास तो उदास मैं भी
मन रोया मैं रोई
मन जागा तो जागूं मै भी
मन सोया मैं सोई


मन खुश तो झोलीभर खुशियाँ
मैं भरकर ले आई
मन दुख गया तो फिर सुख कैसा
सुख की नही परछाई

मन उमंग से भरी पतंग सा
उडता फिरे आकाश
बिन कारण मुसकाऊं मै भी
घर में भरूं उजास

मन प्रसन्न तो फिर मै भी
खनकाऊँ चूडी पायल
मन के संग संग नाचूं गाऊँ
मन की बस मै कायल

किसने देखा है इस मनको
भेद ये किसने जाना
वैसे तो बचपन का साथी
फिर भी है अनजाना


आज का विचार

हमेशा अच्छा सोचिये, इससे आपकी प्रतिकार प्रणाली स्वस्थ रहेगी




आज का स्वास्थ्य सुझाव

हीमोग्लोबीन बढाने के लिये खजूर तथा अंजीर का सेवन भी हितकारी है ।

5 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सवेरे सवेरे इस कविता के निमित्त केनोप्निषद याद हो आया - किसने इस मन को भेजा है? किसने प्रथम सांस दी!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना. सुन्दर विचार एवं सुझाव. आभार एवं बधाई.

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर सुकोमल मनोभाव... जो मन को न जान पाये.....

फ़िर भी तन से चाहे भाग ले कोई.. मन से भाग न पाये

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर!!

मन को परिभाषित करने की एक कोशिश मैने भी की थी या यूं कहें कि मन ने कुछ शब्द दिए थे अपने आप को ढालने के लिए!!

Atul Chauhan ने कहा…

मन चंचल है।एक जगह स्थिर नहीं रह सकता।मन को लेकर की गई आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है।