रविवार, 7 अक्टूबर 2007

समझ की समझ




बहुत पहले किसी सिनेमा में अमिताभ बच्चन ने एक संवाद कहूँ या छंद, बोला था ।
समझ समझ के समझ को समझो, समझ समझना भी एक समझ है
समझ समझ के भी जो न समझे, मेरी समझ में वो नासमझ है
तो भैया अपनी अपनी समझ होती है और दूसरे उसे समझ पाये ये जरूरी नही ।

बचपन में कोई ४-५ साल की रही हूँगी मैं, तब एक गाना सुना था ।
चुप चुप खडे़ हो ज़रूर कोई बात है,
पहली मुलाकात है जी पहली मुलाका़त है ।
तब मेरी अदना सी बुध्दी में ये आया कि हो न हो दो लड़कियाँ हैं जो चोरी से कुछ खा रहीं हैं ।
मेरी परेशानी ये थी कि अगर पहली मूली ( मराठी में मूली को मुळा कहते हैं) खा रही है तो दूसरी
क्या खा रही है ? शायद गाजर । मेरी बाल बुध्दी ने मुलाका़त को अपने हिसाब से मूला खात कर
लिया और चुपचाप भी खडी हैं, तो जाहिर है चोरी से ही खा रही होंगी । बहुत छोटी थी इसलिये तब ये
बात किसी को बताई नही।

मेरी एक और समझ की कहानी सुनिये । उन दिनों रिश्ते-दारी में जिसकी भी जनेऊ (व्रतबंध) होती उस लडके का
पूरा मुंडन होता और उसकी घुटी चप्पी पर मुहल्ले के बच्चे खूब टप्पियाँ मारते । तो उस बार हमारे मामाजी
जिनका नाम अरविंद था उनकी जनेऊ हुई थी और दूसरे लडके उनके सिर पर मार मार कर यह तुक्तक
बोलते थे ।
चम्मन गोटा, लाल बटाटा
हिरवा कांदा, काळा अरविंदा (हरा कांदा काला अरविंदा )
मामाजी बडे धाकड़ थे वे भी उन लडकों की जमकर पिटाई करते । पर मेरे मन में यह बात बैठ गई कि चमन या चम्मन याने सिर । फिर एक फिल्म आई थी शायद हम पंछी एक डाल के । बच्चों की फिल्म थी
तो गणेश उत्सव में मुफ्त दिखाई गई थी । उसमें एक गाना था,

ये चमन हमारा अपना है इस देश पे अपना राज है
मत कहो कि सर पे टोपी है कहो सर पे हमारे ताज है ।
गाना सुन कर तो मुझे पूरा विश्वास हो गया कि मेरी धारणा बिलकुल सही है । और सर पे टोपी वाली बात ने
तो मानो इसे पक्का कर दिया । फिर देश और राज वाली बात पर कौन ध्यान देता । और उर्दू किस
चिडिया का नाम है यह किसे पता था । और तो और यह बात सबको पता भी चल गई । फिर क्या था
इस बात पर तब तो जो खिंचाई हुई सो हुई पर आज भी भाई तो भाई मेरे अपने बच्चे भी मुझे चिढाने
से बाज़ नही आते ।

तो सारी समझ की बातें हैं जिसकी जैसी भी हो । अब अगर कुछ राजनीतीबाजों की समझ में न्यूक्लीयर डील नहीं आती तो ये उनकी समझ है । और कुछ समझकर नहीं समझते तो ये उनकी । अपनी अपनी समझ और जरूरतों के साथ जनता की जरूरतों को भी तो समझो भाई लोगों । जरूरत है आज बिजली की जिसकी किल्लत तो राजधानी में भी अच्छी तरह महसूस हो रही है । फिर दूर दराज के गाँवों की तो बात ही क्या । एक बिजली की समस्या हल होने से कितने और सवाल हल हो जायेंगे यह किसी की भी समझ में आ सकता है । उत्पादन बढेगा, रोज़गार बढेंगे, चीजों की आवक ज्यादा होगी तो दाम गिरेंगे, निर्यात बढेगा, खुशहाली आयेगी ।
और अभी तो आगे वहुत से व्यवधान हैं जिन्हे पार करना है । फिर अपनी तरफ से तो रुकावटें मत डालो भाई । ईश्वर करे सबकी समझ में आ जाये ।



5 टिप्‍पणियां:

अनिल रघुराज ने कहा…

चम्मन की कथा से चमन की चिंता तक। बहुत रोचक और सार्थक लिखा है आपने। बीच में हंसी भी आई और आखिर में गंभीर हो गया।

सुनीता शानू ने कहा…

हाँ आप बिलकुल सही कह रहीं हैं बात कि बात में आपने सब कह दिया...बहुत साधारण और सही ढंग से...

सुनीता(शानू)

आलोक ने कहा…

आपको मन-बोल काफ़ी दिलचस्प लगेगा।

मनबोल है क्या?

पारुल "पुखराज" ने कहा…

सच्ची सरल अभिव्यक्ति

संजीव कुमार ने कहा…

बहुत दिलचस्प है.
धन्यवाद.