सोमवार, 24 सितंबर 2007

हालात




ये किसने हमारे आईने पे धूल बिखरा दी
कि इसमें अब चेहेरा हमे अपना नज़र आता नही।
हम इस कदर भटक गये हैं अपनी राहोंसे
इन अजनबीं राहों पे अपना कोई नज़र आता नही।
हर शख्स सहमाया हुआ, हर सांस है अटकी हुई
हर दर पे हैं पहरे लगे, रस्ता कहीं जाता नहीं।
शक ने किया है काम वो दुश्मन न कर पाया कोई
हुआ गैर सा अपना शहर पहचाना भी जाता नही।
कौन हैं ये लोग, हैं किस मुल्क से आये हुए
चेहेरा न कोई नाम है, घर-बार का भी पता नही।
किसने बहा दी खून की नदियाँ मेरे इस देश में
हैवान है, शैतान है इन्साँ तो हो सकता नही।
हिन्दू था वो, मुस्लिम था वो, ईसाइ था या सिख था वो
मासूम सा इन्साँ था वो, जो था अभी पर अब नही।
अल्लाह कहो, ईश्वर कहो, वाहेगुरू, ईसा कहो
सबका है वो भगवान जो हममें ही बसता है कहीं।
मज़हब वो क्या मज़हब है जो बांटे दिलों को नाम पर,
मज़हब तो वो मज़हब है जो हमें राह दिखलाता सही।

आज का विचार
क्रम महत्वपूर्ण है उसका ध्यान रखें।


स्वास्थ्य सुझाव
शहद का प्रयोग खूब करें।

1 टिप्पणी:

अनिल रघुराज ने कहा…

आशा जी, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है।
शक ने किया है काम वो दुश्मन न कर पाया कोई
हुआ गैर सा अपना शहर पहचाना भी जाता नही।
लेकिन ये शक पैदा करने का काम देश में वोट बैंक की राजनीति करनेवाले ही कर रहे हैं। लोगों को बांटकर अपना भला कर रहे हैं।