गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

चांदनी की झीनी ओढनी


चांदनी की झीनी ओढनी
प्रीत की सुमधुर रागिनि
यमुना जैसे मंदाकिनि
शरद की ऋतु सुहावनी
आओ ना गिरिधर।

तज दो ना ये विराग
बसा लो मन में अनुराग
गूंज रहा प्रेम राग
जाग रहा है सुहाग
देखो मुरलीधर।

सखियाँ करे ठिठोली
बोल कर मीठी बोली
चली आई यूँ अकेली
तेरी प्यारी सहेली
ना तरसाओ श्रीधर।

ये मधुऋतु सुहानी
बिन तुम्हारे विरानी
न रूठो राधा रानी
आ गये प्रियकर।


चित्र गूगल से साभार





9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना |

मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

अरुन अनन्त ने कहा…

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (20-10-2013) के चर्चामंच - 1404 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sundar bhawon se saji rachna ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही प्यारे भाव पिरोय हैं.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर रचना !

Suman ने कहा…

सखियाँ करे ठिठोली
बोल कर मीठी बोली
चली आई यूँ अकेली
तेरी प्यारी सहेली
ना तरसाओ श्रीधर।
बहुत सुन्दर ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भावपूर्ण ... चांदनी की झीनी चादर पूर्णिमा के चाँद की चादर पहने प्रिय का आगमन ... मधुर प्रेम की वर्षा ...

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.
नई पोस्ट : धन का देवता या रक्षक

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्यारभरी कोमल रचना।