सोमवार, 12 अगस्त 2013

ओ सिंह , उठो

 सिंह , उठो, जवाब दो दुष्मन को ।
त्यजो दुविधा, कि क्या करूं, कैसे करूं ?
वही करो जो करना चाहिये , जो शास्त्र कहते हैं ।
वही करो जो ईश्वर ने कहा है, गुरू ने, संतों ने कहा है ।
वैसे ही करो जो इन परिस्थितियों में उचित है जैसा शास्त्र कहते हैं ।
मत भूलो कि देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है ।

डरो नही युध्द करो, युध्द अनिवार्यता है जीवन की ।
यह युध्द तुम पर, हम पर लादा जा रहा है । देश के प्रति कर्तव्य है तुम्हारा कि उठो और युध्द करो ।

आत्मरक्षण अनिवार्यता है । युध्द में जीतोगे तो सत्ता पाओगे और नाम भी ।
नही तो तुम्हारे मित्र और शत्रु दोनों तुम्हारी निंदा करेंगे, इतिहास भी तुम्हें माफ नही करेगा ।
तुम्हारे कायरता की गाथा नमूद करेगा ।

महाभारत युध्द में कम विनाश नही हुआ फिर भी तो हम आज संख्या में बुलंद हैं ।
इस संख्या की लाज रखो । युध्द करो ।
युध्द करो ताकि जनता समझे स्वतंत्रता का महत्व ।

अभी कोई कृष्ण नही आने वाले तुम्हारे लिये, ये जनता ही है तुम्हारे कृष्ण ।

18 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर उम्दा प्रस्तुति ,,,

RECENT POST : जिन्दगी.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर दृष्टांत दिया आपने महाभारत से, पर हमारे सिंह तो सोये पडे हैं मुंह ही नही खोलते. किससे कहें?

रामराम.

Anupama Tripathi ने कहा…

सशक्त सार्थक अभिव्यक्ति आशा जी ....!!

Alpana Verma ने कहा…

बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

विचारणीय ..... अब तो जागें .....

Suman ने कहा…

ताई, ये सिंह अब आपकी इस प्यारी भूपाळी से
उठने वाले नहीं है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उठो पार्थ, गांडीव सम्हालो।

समयचक्र ने कहा…

बढ़िया भाव प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है की जब युद्ध अनिवार्य हो तो तन, मन, धन से करना चाहिए ... लाजवाब अभिव्यक्ति ....
आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ...

Ankur Jain ने कहा…

उत्तम प्रस्तुति।।।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

लाजवाब...बहुत बहुत बधाई...

virendra sharma ने कहा…

बस हमारे नेताओं से हाथ पैर खुलवा दो -जिन्हें अब कटे शीश अच्छे लगतें हैं बहादुरशाह जफर तो बन नहीं सकते उनका नाम और डुबो रहें हैं ये गणतंत्री मूषक राज। बेहतरीन रचना हिन्दुस्तान के आवाम की आवाज़।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सशक्त और सार्थक प्रस्तुति...

Satish Saxena ने कहा…

सशक्त अभिव्यक्ति ...
बधाई !

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत ही सशक्त रचना दीदी . बहुत अच्छा लगा पढ़कर .

दिल से बधाई स्वीकार करे.

विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

ZEAL ने कहा…

very nice.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



ओ सिंह ,
उठो,
जवाब दो दुश्मन को

वही करो जो करना चाहिये ,
जो शास्त्र कहते हैं

देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है

अब जाग्रत होना परमावश्यक है...

आदरणीया आशा जोगळेकर जी
राष्ट्र भक्ति के आपके जज़्बे को नमन !

याद हो आई ये पंक्तियां -
हमने अभिषेक किया था
जननी का अरि षोणित से,
हमने शृंगार किया था
माता का अरि-मुंडों से,

हम करें राष्ट्र आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार

Unknown ने कहा…

जागे हुये को कैसे जगाया जाए ....सुंदर प्रस्तुति