बुधवार, 21 अप्रैल 2010
अशेष
पैसठवा साल खत्म हो गया मेरा । जिंदगी के इस मोड पर आकर लगता है अब कुछ पाना शेष नही है । किसी बात का अफसोस भी नही, उन बातों का भी नही जो कुछ साल पहले तक भीतर तक दुख पहुंचाती थीं कि हाय, मैने ऐसा क्यूं नही किया । पर अब प्रसन्न हूँ जो कुछ किया उसमें मेरी औऱ ईश्वर की, दोनों की, मर्जी थी । कुछ और करती तो जीवन कुछ और तरह का हो जाता । पर मुझे तो यही राह चुननी थी जो मैने चुनी ।
जिंदगी हमेशा आपको दो राहे पर लाकर खडा कर देती है पर चुनाव पूरी तरह आपका अपना होता है । किसी और को उसका दायित्व आप दे ही नही सकते । उस वक्त की मजबूरियाँ जो भी रही हों निर्णय सर्वस्वी आपका होता है । दबाव हो सकते हैं किंतु कोई आपका हाथ पकड कर आपसे काम नही करवाता, करवा सकता भी नही । निर्णय लेते वक्त उसके क्या परिणाम आप झेल सकते हैं और क्या नही, यही होता है निर्णय के पीछे का एक बडा मुद्दा । कई बार ऐसी स्थितियाँ होती हैं कि परिणाम सोचे बिना ही आप एक राह पर चल पडते है । अधिकतर आप आसान राह चुन लेते है, जिसमें परिणाम सहना थोडा आसान होता है । मुश्किल राह चुनने वाले को सफलता मुश्किल से मिले, राह कांटों भरी हो, पर अंतत: अपना साध्य उन्हे मिल ही जाता है खुशी भी मिलती है, शाश्वत होती है या नही यह कहना कठिन है । कई बार आसान निर्णय आपको ज्यादा खुशी दे जाता है बनिस्बत कठिन और मुश्किल राह के । पर कहीं न कहीं भगोडे पन की टीस आपको सालती रहती है कि मेरी काबिलियत को चुनौती देने वाली राह मैने नही चुनी ।
लेकिन अब नही । अब जैसे सब कुछ शांत है । जीवन जैसे परिपूर्ण तृप्त महसूस हो रहा है । वह संघर्ष, वह जी जान से किसी चीज़ को पाने की चाह, सब कुछ अब कितना बचकाना लग रहा है । आखरी वक्त तो आप यही सोचते हैं कि एक इन्सान के नाते आपका जीवन सफल रहा या विफल । और लग रहा है कि सफलता के जो दुनियाई मापदंड हैं उसमें गिलास आधे से थोडा ज्यादा ही भरा है ।
जन्म अच्छे सुसंस्कृत घर में होना किस्मत की ही तो बात है, उसी तरह ये बात भी कि लडका लडकी के लिये अलग मापदंड होते हुए भी मेरे पिता हमेशा मेरे पीछे चट्टान की तरह खडे रहे और मेरी शिक्षा बदस्तूर जारी रही । शादी के बाद घर परिवार भी आधुनिक खयालों वाला मिला तो आगे उच्च शिक्षा के लिये भी कोई रुकावट न थी । पती समझदार, स्त्री को उचित आदर सम्मान देने वाले मिले । आज संतान भी सफल सुफल है । तो सब कुछ ठीक ही रहा, रास्ते में कठिनाइयाँ भी आईं पर उनको पार पाने के रास्ते भी मिलते ही गये । तो ईश्वर ने मेरी झोली में आम आदमी से कुछ अधिक ही डाला है । मेरे ही अपने भाई बहन जो मुझ से कहीं अधिक काबिल थे जीवन ने उनके साथ न्याय नही किया । एक तरफ अच्छा दिया तो दूसरी तरफ से निकाल भी लिया । अधिकतर लोगों के साथ ऐसा ही होता है । कुछ ही खुश-नसीब होते हैं जिनके हिस्से अधिकतर जीत ही आती है । इस सब के लिये ईश्वर का अनेक धन्यवाद ।
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31 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
कुछ ही खुश-नसीब होते हैं जिनके हिस्से अधिकतर जीत ही आती है । ...सही कहा आपने ...मुख्य बात अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट होना है ..आपके लिखे में वही झलक रहा है ...यही ज़िन्दगी का रंग है और यही ख़ुशी देने का कारण ...अच्छा लगा इसको पढना ...शुक्रिया
Behad suljha hua,sanjeeda aalekh..
Mere 'sansmaran' blogpe comment ke liye tahe dilse shukriya...comment bhi bada sahaj aur sanjeeda hai..Aapse mujhe kaafee kuchh seekhne ko milta hai..
आपकी संतुष्टि को जानकार प्रसन्नता हुई वर्ना तो .... कहाँ कोई संतुष्ट मिलता है !
बहुत ठहरी हुई पोस्ट ... जीवन का अनुभव जैसे समेट दिया है आपमे इस पोस्ट में .... देखने का दृष्टिकोण बदल देती है आपकी पोस्ट ... बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...
आप ने जीवन के ६५ बसंत देखे .आप को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई...
बहुत कुछ इस पोस्ट के ज़रिये कहा भी ..आप को जान सके..'मुश्किल राह और आसान राह 'और उनके परिणाम के बारे में आप की बात बहुत पसंद आई.
६५ वर्ष बीतने पर आज जिस तृप्ति का अनभव आप कररही हैं उसमें आप का परिश्रम और समर्पण भी शामिल है.
बहुत सधा हुआ लिखा है ,पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई.
खुशियाँ आप के साथ हमेशा रहें ,ढेर सारी शुभकामनाओं सहित.
बहुत बधाई जी। आप झ्टपट अगले तीस साल में करने के लक्ष्य बनाने में जुट जायें!
अच्छा लगा आपके बारे में जानकर ।
जीवन में संतुष्टि का भाव बहुत बड़ी दौलत होती है. ये आत्म अवलोकन जैसा आलेख पढ़कर बहुत प्रेरणा मिली है.
Jeevan ke 65 basant dekhne ke liye dher sari badhai.Lekh aapke anubhavon ka nichod hai.
aapka lekh padh kar bahut kuchh seekh ne ko mila.aapne bilkul hi sach kaha hai ki koi aapka haath pakad kar jabar dasti kuchh bhi nahi kara sakta jab tak usa me aapki marji na shamil ho.fir ham to kewal karm hi kar sakate hai,uska pratifal hame kitna milna hai vo ishwar ki marji hai.vo sukh de ya dukh hame dono roopon me use sweekar karna hi padta hai.
poonam
Ab tak ki uplabdhiyon kee badhai!
Deerghaayu aur sehat kee shubh kaamna!
:) बधाई हो एक और आकडा छूने के लिये..
हम तो अभी आपके आधे पर भी नही पहुचे.. :) सफ़र जारी है.. चलता रहेगा.. आप हमेशा ऎसी ही खुश रहे और ऐसे ही अपने अनुभव हम लोगो से शेयर करती रहे..
aapka lekh padh kar bahut kuchh seekh ne ko mila.aapne bilkul hi sach kaha hai ki koi aapka haath pakad kar jabar dasti kuchh bhi nahi kara sakta jab tak usa me aapki marji na shamil ho
६५ साल को क्यों याद किया आपने ? अथवा संस्मरण बहुत अच्छा लगा, पिता हमेशा साथ रहे, ईश्वर करे हर लडकी को ऐसे पिता मिलें !
सादर !
Aapko jab kabhi padhati hun,hausla badhta hai..isliye baar,baar aane lagi hun..
उम्र का ये फासला तय करने के बाद इस तरह की मन:स्थिति और संतुष्टि का बयान पढ़कर अच्छा लगा।
सोच में पड़ गया कि आज मैं आपकी उम्र का आधा हूँ, और ऐसे विचार मेरे मन में भी आते-जाते रहते हैं। ये सवाल क्यों कुरेदते रहते हैं सबको।
शायद इसी का नाम जिंदगी है, इसी का नाम जिंदा रहना है्.........
बहुत जमाने बाद आ सका हूँ आपके ब्लाग तक. इस लम्बे अंतराल के लिए क्षमाप्रार्थी भी हूँ.
मैं चूंकि अभी ६५ का नहीं हुआ, बहुत सी आशाएं, लालसाएं, कामनाएँ मुझे अभी व्यथित करती रहती हैं.
आपने जीवन का दर्शन निचोड़ कर रख दिया इस पोस्ट में. आपको इतने दिनों तक न पढ़ पाने का दुःख तो बहुत रहा लेकिन कुछ मजबूरियों ने इतना जकड़ रखा था कि बेबस हो गया था.
हम अब जल्दी जल्दी मिला करेंगे.
आप की सोच सही है आशाताई !.....हमें जीवन में जो कुछ हासिल होता है, उतने ही के हम हकदार होते है.... लेकिन कुछ लोग कम मिलने की शिकायत करतें है, जो सोच सही नहीं है!... आपने सकारात्मक सोच रखने की उत्तम शिक्षा दी है, धन्यवाद!
...rachanakar.blogspot.com पर मेरी कहानी' मोहिनी समाई सागर में' अवश्य पढें और अपनी बहुमूल्य राय दें!
.... सुनहरे भविष्य के लिये शुभकामनाएं!!!
अभी आपको बहुत अच्छी अच्छी पोस्ट पर हम लोगों की बधाई पाना है ... जारी रहे ।
AASHA JEE.
sHIRSHAK PADHKAR KHICHA CHALA AAYA.
PAR NIRASHA HUYEE.. FONT VISBLE NAHI HAI.
KYA KARU KI AAPKE BLOG PADH PAUN?
TASVEEREN BEHTAREEN LAGAYEE HAI.
PADH PAYA TO KUCHH AUR LIKHUNGA.
SADHANYAVAAD.
माफ़ी चाहुंगा देरी के लिये, ६६th year मे प्रवेश करने के लिये बहुत बहुत बधाई । आपका लेख और आपके बारे मे पढ़कर अच्छा लगा ।
जिंदगी मुट्ठी की रेत जैसी फिसलती जाती है ... कितनी दूर चलें लेकिन पलट कर देखो तो लगता है कल ही की बात है .. सच में तो जिंदगी का कोई पड़ाव नहीं ... बहती है बहने दीजिए
बहुत गंभीर पोस्ट
अच्छा लगा यह संतुष्टि की अनुभूति देख...अन्यथा तो आज....कहाँ कोई संतुष्ट दिख रहा है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत अच्छा लगा आपका संतुष्टि वाला पक्ष।
परम आदरणीय आशा जी,
सर्वप्रथम तो आपको आपके जन्मदिवस पर बहुत बहुत बधाईयाँ। सच में आपको संतुष्ट देखकर हमें भी संतोष हो रहा है। कितनी सारी अच्छी अच्छी बातें आपने इतने से पत्र में कह डालीं।
समीर जी ने बिल्कुल सही फ़रमाया के "अच्छा लगा यह संतुष्टि की अनुभूति देख...अन्यथा तो आज....कहाँ कोई संतुष्ट दिख रहा है।”
हमारी तरफ़ से एक बार फिर
अनेक शुभकामनाएँ
जीवन का अनुभव समेट दिया है …………………शुक्रिया।
जन्मदिन की बधाइयाँ ! आपको जिंदगी से शांति संतुष्टि और सुख प्राप्त हो यही कामना है ..
asha tai khup chhan lihalat vachun agdi chaan vatle.tumhi majhya blog vare alaat dhanyavad. mi pan maharashtriyen ahe.pan lahanpanapasun hyderabad madhe aslyamule sikshan ithe jhale.pan marathichi godi ajun ahe.
aapko padhna accha laga ! likhte rahein !
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