शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

घुमक्कडी -9 ऑस्ट्रेलियन म्यूज़ियम



ऑस्ट्रेलियन म्यूज़ियम इस देश का सबसे पुराना म्यूज़ियम है । यह दुनिया भर में अपने नेचुरल हिस्ट्री तथा मानव विज्ञान विभाग के लिये मशहूर है । इसकी नीव 1845 में पडी थी। clp8 (विडिओ देखें)


म्यूजियम का टिकिट था 12 डॉलर प्रति व्यक्ती । टिकिट लेकर पहुंचे देखने । शुरु में ही क्वाला जी दिख गये एक पेड के तने पर चढे हुए । उल्लूजी भी थे जिन्हें देख कर बचपन में पढी एक कविता याद आ गई और हंसी भी ।
उसे उल्लू, ऊ से ऊन कहती है ये नानी
हिंदी में उल्लू उल्लू है, अंग्रेजी में ज्ञानी
मास्टर जी जब उल्लू कह कर के मुझे खिजाते
मै अंग्रेजी मतलब लेता उलटे मुंह की खाते । clp9 (विडिओ देखें)

आगे बढे तो कुछ समुद्री शेल्स थे बहुत बडे बडे । फिर यहां के एब-ओरिजिनल्स के बनाये स्लिट ड्रम थे कुछ टोटम पोल्स भी थे जो आयलैन्ड (द्वीप) कल्चर की खासीयत है । फिर हम गये स्केलिटन के विभाग में जहां एमू, पिंजरे में तोता, कुर्सी पर बैठा आदमी, घोडे पर आदमी, ऐसे ऐसे अस्थिपंजर दिखाये गये थे । वहीं हाथी, व्हेल वगैरा के भी विशालकाय अस्थिपंजर वहां थे ।
एक सीढी चढ कर ऊपर गये तो पहुँच गये मिनरल्स और मेटल्स विभाग में जहां एक सचित्र जानकारी दी गई है कि पृथ्वी के अंदर किस तरह से किन सतहों पर ये कैसे बनते हैं । मेलेचाइट, यही एक नाम अब याद है वगैरा के सुंदर सुंदर क्रिस्टल्स, रत्न, उपरत्न आंखें ही नही ठहर रहीं थीं । सोना तथा चांदी दूसरे धातू, ऑस्ट्रेलिया का गोल्ड रश, वहां की माइनिंग का इतिहास तथा एक माइन का अवशेष सब कुछ था वहां ।
वहां से निकले तो सरीसृप विभाग में आ गये, सांपों और छिपकलियों का विभाग । इनके अलावा वहां बडे बडे मगर मच्छ और कछुए भी रखे थे ।
फिर देखा डायनोसॉर कलेक्शन । यहां थे तो सारे के सारे कंकाल । पर किस तरह एक एक हड्डी जोड कर इन कंकालों को तैयार किया गया, वाकई वैज्ञानिकों की दाद देनी पडती है ।
(video) clp10 (विडिओ देखें)

एक जगह तो स्पॉट-लाइट कार्यक्रम भी था अंधैरा करके केवल एक बडे डायनेसॉर कंकाल पर रोशनी डाल कर उनके धम धम चलने की और चीखने की आवाज सुनाई जाती है । तरह तरह के डायनेसॉर, मछली की तरह तैरने वाले, उडने वाले, विशाल काय, कडे आर्मर वाले, सजाये गये हैं, देखते ही रह जाना पडाता है बस । आप भी देखें (विडियो)
vdo clip 11 (विडिओ देखें)

स्तनधारी प्राणियों में थे व्हेल, तरह तरह के बंदर और उनके रिश्तेदार- प्रायमेट्स ,कांगारू और क्वाला भी ।
फिर आया पक्षी विभाग यह दक्षिण गोलार्ध में पक्षियों का सबसे बडा संग्रह है । ऑस्ट्रेलिया में प्रजनन करने वाली सभी पक्षी-प्रजातियां यहां प्रदर्शित हैं । एमू, कॉसावरी ( इसके पंजे इतने मजबूत और तीक्ष्ण नखों वाले होते हैं कि दुश्मन की क्या मज़ाल जो इसके सामने टिक जाये इसके पर भी काफी कडे होते है ), और किवी जैसे न उडने वाले पक्षी तो हैं ही और भी विविध तरह की चिडियां जैसे स्वेलो, रेन, क्रेन,समुद्री पक्षी आयबिस , सीगल्स, अलबेट्रॉस और गरुड, चील, तथा दूसरे मांसाहारी पक्षी भी । सफेद गरुड (ईगल) भी है जो अब नही पाया जाता । बहुत से दुर्लभ तथा लुप्त पक्षी भी । यहीं आकर पता चला कि असल शुतुरमुर्ग (ऑस्ट्रिच) अब यहां नही पाये जाते सिर्फ अफ्रीका में ही पाये जाते हैं एमू की भी कई प्रजातियां अब लुप्त हैं । सबसे तेज दोडने वाले और विशाल काय पक्षी के लुप्त होने के पीछे अर्थात मानव का ही हाथ है । (विडिओ देखें) clp12

आखरी में थी यहां के मूल निवासियों(एबओरिजिनल्स) की जानकारी जो एक नही बल्कि कई जनजातियों में बटे हुए थे हरेक की अलग पहचान और संस्कृति, .पर सारे परिवार और नाते रिश्तों को महत्व देने वाले, मेहमानों की आवभगत करने वाले । इसी का फायदा उठाया अंग्रेंजोनें । अपने शस्त्रों अस्त्रों के बल पर उनका प्रदेश तो छीना ही उनकी संस्कृति को नेस्त-नाबूद करने में कोई कसर नही छोडी । उनके बच्चों को अगुआ करके सालों साल उन्हे मिशनरियों के साथ रखा जाता था अपनी भाषा अपने लोग अपने रहन सहन से दूर बिलकुल काट कर । पर फिर भी इन लोगोंने अपनी संस्कृति को जीवित रखा हमारी स्मृति और श्रृति की तरह पीढी दर पीढी ।clip13 (विडिओ देखें)

इनके द्वारा बनायी गयी बहुतसी कलाकृतियां वहां दर्शाई गई हैं । एक तो जानवर की खाल से बना बडा सा लंबा कोटनुमा परिधान जो कितनी भी ठंड में आपकी रक्षा कर सके । बहुतसी मालायें चित्र लकडी की चीजें, वाद्य आदि भी हैं । आज की इनकी एक मिली जुली संस्कृति है जो इनकी पारंपरिकता तथा अंग्रेजीयत का मिश्रण है ।
म्यूजियम का ये हमारा आखरी पड़ाव था, अब पेटपूजा । तो म्यूजियम का ही रेस्तराँ खोजा और सैन्डविचेज और कॉफी का लंच करके निकले बाहर फिर हाइड पार्क से होते हे दो ट्रेने लेकर वापिस वायतारा स्टेशन और एक दो एक दो करते घर (विडियो) ।
सिडनी का ये हमारा आखरी दिन था तो सेलिब्रेशन तो जरूरी था और हमारे ग्रूप का सेलिब्रेशन याने खाने के बाद हाथ में रेड वाइन के गिलास थाम कर दिन भर की शूटिंग देखना वो भी सोफे पर पसर के-- अल्टिमेट लक्झरी । कल जल्दी उठकर क्वीन्सटाउन (न्यूजीलैन्ड) के लिये प्रस्थान करना था ।
(क्रमश:)

8 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

चलिये; प्रतीक्षा करते हैं कीवीलैण्ड की घुमक्कड़ी की!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

bahut badhiya laga padh ke...........

nayi nayi jannkariyan milin........

mehek ने कहा…

aare waah museum bada khubsurat hai.aur ullu wali kavitane muskan bikher di.pudchya prawasa sathi shubhecha. anni ho tumha sarwanna dasharyachya shubhechya.

निर्मला कपिला ने कहा…

रापकी पोस्ट का हमेशा इन्तज़ार रहता है। विडिओ के साथ इसकी सुन्दरता और बढ जाती है शुभकामनायें अगली पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा

Arshia Ali ने कहा…

अ र रे, मुझे तो डायनासोर से डर लगता है। कहीं जिन्दा हो गये तो--
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दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत सुन्दर यात्रा विवरण . दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामना .

Udan Tashtari ने कहा…

आभार घुमवाने का.


दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Abhishek Ojha ने कहा…

म्यूजियम देखना तो हमेशा ही सुखद होता है और फिर ऐसा म्यूजियम हो तो क्या बात है !