सोमवार, 18 मई 2009

नीड का निर्माण फिर फिर

राष्ट्रवादी ताकतों की हार पर दुख और हताशा जताने वाला एक लेख पढा । पर लेख के अंत में उत्साह बढाने वाली हरिवंश राय बच्चन की यह कविता पढकर बहुत अच्छा लगा । काँग्रेस ने शायद इसी तर्ज पर काम किया होगा । अब भाजपा हो या हम में से कोई सबके लिये यह कविता संबल बनकर उभरती है । कितनी बार जीवन में ऐसे प्रसंग आते है जब हम चारों तरफ से निराश और हताश हो जाते हैं । उस वक्त के लिये यह कविता ।

नीड का निर्माण फिर फिर
नेह का आव्हान फिर फिर

यह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँती घेरा
रात सा दिन हो गया
फिर रात आई और काली
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा
रात के उत्पात भय से
भीत जन जन भीत कण कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर फिर
नीड का निर्माण फिर फिर
नेह का आव्हान फिर फिर

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में
उषा है मुसकराती
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती
एक चिडिया चोंच में तिनका लिए
जो जा रही है
वह सहज में ही पवन
उनचास को नीचा दिखा रही है
नाश के दुःख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता में
सृष्टि का नवगान फिर फिर
नीड का निर्माण फिर फिर
नेह का आव्हान फिर फिर ।

9 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

मुझे नहीं लगता भाजपा ही राष्ट्र वादी है ,

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सही में हार के बाद ही जीत है...नीड़ का निर्माण तो फिर से करना ही होगा...!ये बात सब पर लागू होती है...पार्टी विशेष पर ही नहीं..सब पर..!

संगीता पुरी ने कहा…

हां .. हर असफलता में ही सफलता छिपी होती है .. सकारात्‍मक लेना चाहिए हमें।

श्यामल सुमन ने कहा…

सचमुच हार संकेत है आनेवाले जीत की।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Nice poem & good thinking Asha ji

P.N. Subramanian ने कहा…

सही कहा है आशा जी. असफलता ही सफलता की और ले जाती है. बच्चन जी की कविता भी खूबसूरत है.

मीनाक्षी ने कहा…

कविता का आशावादी स्वर जीवन में हारे को आशा की किरण दिखाता है...

Science Bloggers Association ने कहा…

Is prernaprad kavita ko hamare sath sajha karne ke liye aabhaar.

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

गौतम राजऋषि ने कहा…

कभी शायद दसवीं कक्षा में पढ़ी थी ये कविता मैंने...और आज इतने दिनों बाद और वो भी वर्तमान परिपेक्ष्य में इसे पढ़ना बड़ा दिलचस्प लगा