शुक्रवार, 2 नवंबर 2007
वो बारिश के दिन
वो बारिश के दिन और भीगी सी रातें
तुम्हारी ही यादें तुम्हारी ही बातें
वो शाम सलोनी नदी का किनारा
वो पानी में पांव हिलाना तुम्हारा
वो पायल का बजना
वो लहरों का उठना
और पत्तों का करना हवाओ से बातें । वो बारिश....
महकता सा गजरा,और तीखा सा कजरा
वो नदिया पे बहता हुआ एक बजरा
वो बिखरी सी अलकें
वो बोझिल सी पलकें
वो प्यार की अनगिनत सौगातें । वो बारिश....
हवा का मचलना दुपट्टे का उडना
तुम्हारा सहमना सिमटना सिकुडना
वो आंचल को ओढे
फिरसे सम्हलना
और करना सहज प्यारी प्यारी सी बातें । वो बारिश....
बिजली कड़कना, बूंदों का गिरना
बूंदों का लडियों में बंध कर बिखरना
वो भीगा बदन
और भीगा सा चेहेरा
और आँखों में सिमटी हुई बरसातें । वो बारिश....
कहाँ है वो नदिया, कहाँ है वो पानी
कहाँ थम गई तेरी मेरी कहानी
भँवर में कहाँ
खो गई नाव अपनी
बिछडे हैं ऐसे कि मिल भी न पाते । वो बारिश..
आज का विचार
हारने के कई रास्ते होते हैं पर जीतने का सिर्फ एक ।
स्वास्थ्य सुझाव
बकरी का दूध पीना Cirrhosis of Liver में लाभकारी होला है ।
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9 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना, बधाई.
अच्छी अभिव्यक्ति.
बहुत सुंदर.
संजना
www.raviwar.com
क्या कंहू शब्द नही मिल रहे. इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई. पढ़ते पढ़ते जगजीत सिंह जी द्वारा गई एक गजल याद आ गई.
यह कविता तो ऐसी है जैसे किसी 16-17 साल की किशोरी ने लिखी हो। आपने उसे (किशोरी को) अपने में जिन्दा रखा है - यह बहुत प्रशंसनीय है।
वो शाम सलोनी नदी का किनारा
वो पानी में पांव हिलाना तुम्हारा
बहुत सुन्दर रचना... !
बहुत सुंदर रचना है यह आशा जी ..बधाई
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद ।
सुंदर ,सुंदर बहुत सुंदर……एक चित्र सा खींच गया
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