Samay ki dhara bahati hai
Nirantar abadhit.
Main to usability ek choosing boond
Jo ho jayegi jalashay men samarpit.
Ya dhara me awashoshit.
Nahi janati kya hai niyati
Par achcha lagata hai
Samay ki dhara men is boond Roop me
Nirantar behana.
Samay ki dhara bahati hai
Nirantar abadhit.
Main to usability ek choosing boond
Jo ho jayegi jalashay men samarpit.
Ya dhara me awashoshit.
Nahi janati kya hai niyati
Par achcha lagata hai
Samay ki dhara men is boond Roop me
Nirantar behana.
गुज़ारे साथ में जो दिन,
वो दिन कितने सुहाने थे।
फिर हमें छोड कर जाने के
बोलो क्या बहाने थे?
पल , छिन, दिन, महीने, साल
कितने सुख से बीते थे
क्या मुझे ही ये लगता है
तुम्हारे लिये सब रीते थे ?
नहीं ऐसा नहीं होगा
तुम भी तो मुस्कुराते थे
शामको फूलों का गजरा
मेरे लिये ख़ास लाते थे।
जब तुम्हारे देर से आने पर
मैं कुछ रूठ जाती थी,
पीछे से,चुपके वो गजरा
मेरे बालों में सजाते थे।
खट्टे और मीठे साल
हमनें संग गुज़ारे जो
उन्हीं का फल है देखो
आज सामने बेटे लायक़ जो।
सलोनी बहुएँ, ससुर और सास का
जो ख़्याल रखतीं हैं
नाती और नातिनें भी
जो ढेर सा प्यार रखती हैं।
फिर बताओ बात पर किस तुम
यूँ मुझ से रूठे, दूर गये
बस इसी प्रश्न का उत्तर
ढूँढती हूँ रात गये ।
मैं प्रपंच गुड पर बैठी मक्खी,
गुड पर बैठ बैठ इतराऊँ
अपने देह ताप से और लार से
पिघले गुड से मधु रस पाऊं
रस पीते पीते खूब अघाऊं
पता ना चले कैसे गुड में
धंसती ही जाऊँ।।मैं
खुली हवा मुझको पुकारे
पर चाहूँ भी तो उड़ ना पाऊँ
जितनी कोशिश करती जाऊँ
ज़्यादा ही ज़्यादा धंसती जाऊँ।। मैं
लोभ मोह से भला किसी का
कब होता है, लालच में जो
लिप्त हुआ जीवन खोता है
समय जाय जब बीत तब पछताऊँ
मैं प्रपंच गुड में लिपटी मक्खी।