मंगलवार, 13 सितंबर 2022

Boond

      Samay ki dhara bahati  hai  

Nirantar abadhit.

Main to usability ek choosing boond

Jo ho jayegi jalashay men samarpit.

Ya dhara me awashoshit.

Nahi janati kya hai niyati 

Par achcha lagata hai

 Samay ki dhara men is boond Roop me

Nirantar behana.

  


रविवार, 20 फ़रवरी 2022

क्यूं ?

 गुज़ारे साथ में जो दिन,

वो दिन कितने सुहाने थे।

फिर हमें छोड कर जाने के

बोलो क्या बहाने थे?


पल , छिन, दिन, महीने, साल 

कितने सुख से बीते थे

क्या मुझे ही ये लगता है

 तुम्हारे लिये सब रीते थे ?


नहीं ऐसा नहीं होगा 

तुम भी तो मुस्कुराते थे

शामको फूलों का गजरा

मेरे लिये ख़ास लाते थे।


जब तुम्हारे देर से आने पर

मैं कुछ रूठ जाती थी,

पीछे से,चुपके वो गजरा

मेरे बालों में सजाते थे।


खट्टे और मीठे साल 

हमनें संग गुज़ारे जो

उन्हीं का फल है देखो 

आज सामने बेटे लायक़ जो।


सलोनी बहुएँ, ससुर और सास का 

जो ख़्याल रखतीं हैं

नाती और नातिनें भी

जो ढेर सा प्यार रखती हैं।


फिर बताओ बात पर किस तुम

यूँ मुझ से रूठे, दूर गये

बस इसी प्रश्न का उत्तर

ढूँढती हूँ रात गये ।



रविवार, 9 अगस्त 2020

मैं प्रपंच गुड की मकखी

मैं प्रपंच गुड पर बैठी मक्खी,

गुड पर बैठ बैठ इतराऊँ

अपने देह ताप से और लार से

पिघले गुड से मधु रस पाऊं

रस पीते पीते खूब अघाऊं

पता ना चले कैसे गुड में

धंसती ही जाऊँ।।मैं

खुली हवा मुझको पुकारे

पर चाहूँ भी तो उड़ ना पाऊँ

जितनी कोशिश करती जाऊँ

ज़्यादा ही ज़्यादा धंसती जाऊँ।। मैं

लोभ मोह से भला किसी का

कब होता है, लालच में जो 

लिप्त हुआ जीवन खोता है

समय जाय जब बीत तब पछताऊँ

मैं प्रपंच गुड में लिपटी मक्खी।


शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

अरे अरे अरे

आ गईं तुम
आना ही था तुम्हे
देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था,
आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी।
 वह भीगी हुई चने की दाल  और हरी मिर्च
जो तोते के लिये रखी थी तुमने,वह भी तो रखनी है
उसके पिंजरेमें।
और मंदिर में भगवानजी भी तो प्रतीक्षारत हैं तुम्हारी आरती के लिये।
और हाँ गैस पर दाल चावल का कुकर भी तो रखना है।
रस्सी पर टँगी साड़ी भी तो तहाकर रखनी है।
और मैं जो यहाँ बाँहें फैलाये खड़ा हूं तुम्हारे लिये
कि तुम आओ तो तुम्हें बाँहों में भर लूँ
अरे अरे यह क्या, अच्छा.......
अ रे   अरे   अरे....,

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

रूठी कविता

मेरी कविता मुझसे रूठ गई,
शब्दों की श्रुंखला टूट गई ।।

शब्द नाचते से आते थे
इक माला में गुँथ जाते थे
रंगों गंधों से सज धज कर
चारों और महक जाते थे
क्या हुआ कि सरगम टूट गई ।। मेरी

शब्द शब्द में भाव बरसता
 निर्मल जल सा कल कल बहता
रसिक मनों को छू सा जाता
मन मयूर किलकारी भरता
बरखा क्यूं अचानक सूख गई।। मेरी

अब तक में कर रही प्रतीक्षा
कब खत्म हो मेरी परीक्षा
किस गुरुवर से लूं अब दीक्षा
जो दे मुझको उत्तम शिक्षा
ऐसा क्या मिलेगा मुझे कोई।। मेरी




बुधवार, 1 अगस्त 2018

जिंदगी


हर पल तो नही पर हर घंटे लेती है इम्तहान,
ये हमारी जिंदगी जो बनाना चाहती है हमें महान।
पर हम साधारण से मानव कोई राम या धर्मराज तो नही
जो सफल हों हर इम्तहान में और तैयार हों अगले के लिये।

हम होते हैं कभी सफल तो कभी असफल और भुगतते हैं परिणाम
अपने ठीक से तैयार न होने का या होने का
कभी भाग्य के साथ देने का कभी न देने का
कभी जिंदगी के हमें रुलाने का कभी हँसाने का।

एक इम्तहान खत्म हुआ नही कि दूसरे की तैयारी
कैसी मुश्किल हमारी कैसी ये लाचारी
दुनिया हँस के कहती है बेचारा या बेचारी
कैसी जिंदगी इसकी काँटों भरी सारी की सारी।

देती है समय हमको काँटा निकाल,पाँव सहलाने का
थोडा बैठ के दिल बहलाने कि हम हो जायें तैयार
अगले काँटे की चुभन के लिये और चुभाने दें काँटे
जिंदगी को, जब तक कि पाँव लहू-लुहान ना हो जायें।


मंगलवार, 19 जून 2018

कितने दिन

कितने दिन हो गये हैं
देस छोडे हुए हैं।
पडे परदेस में हैं,
अजब से वेश में हैं।
न चुन्नी और न आँचल
पेंट शर्ट में खडे हैं।
याद आती है घर की
अपने दिल्ली शहर की।
वहाँ के भीड भडक्के
और लोगों के वे धक्के।
वो त्यौरियाँ चढाना
वो दस बातें सुनाना।
और किसी का वो कहना
बस भी करो अब बहना।
साथ तो रोज का है
सफर थोडी देर का है।
उतरना है सभी को
न रहना है किसी को।
समझदारी की बातें
सॉरी सॉरी की घातें।
उस सबको याद करती
मन को बहलाती रहती।