मैं प्रपंच गुड पर बैठी मक्खी,
गुड पर बैठ बैठ इतराऊँ
अपने देह ताप से और लार से
पिघले गुड से मधु रस पाऊं
रस पीते पीते खूब अघाऊं
पता ना चले कैसे गुड में
धंसती ही जाऊँ।।मैं
खुली हवा मुझको पुकारे
पर चाहूँ भी तो उड़ ना पाऊँ
जितनी कोशिश करती जाऊँ
ज़्यादा ही ज़्यादा धंसती जाऊँ।। मैं
लोभ मोह से भला किसी का
कब होता है, लालच में जो
लिप्त हुआ जीवन खोता है
समय जाय जब बीत तब पछताऊँ
मैं प्रपंच गुड में लिपटी मक्खी।
15 टिप्पणियां:
सुन्दर सृजन।
समय उड़ायेगा
जब उड़ने का आयेगा।
गुड़ धरा रह जायेगा :)
आपकी पोस्ट डीलिट हो गयी है।
अब फिर से पोस्ट कर दी है।
बेहतरीन लेखन शैली व उत्कृष्ट रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
सही कहा है लोभ के विनाश होता अहि खुद का भी जो पता ही नहीं चल पाता ...
अच्छी रचना से आप पुनः ब्लॉग जगत पर वापस हैं ... बहुत स्वागत है आपका ... कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
लोभ मोह से भला किसी का
कब होता है, लालच में जो
लिप्त हुआ जीवन खोता है
वाह!!!
क्या बात...बहुत ही लाजवाब।
आप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।
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BA 2nd year timetable
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आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
Lalch aur lobh hame aage Bhadne nahi dete, sahi baat. Baht khub.
सुन्दर प्रस्तुति! बहुत-बहुत बधाई.
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