मेरी कविता मुझसे रूठ गई,
शब्दों की श्रुंखला टूट गई ।।
शब्द नाचते से आते थे
इक माला में गुँथ जाते थे
रंगों गंधों से सज धज कर
चारों और महक जाते थे
क्या हुआ कि सरगम टूट गई ।। मेरी
शब्द शब्द में भाव बरसता
निर्मल जल सा कल कल बहता
रसिक मनों को छू सा जाता
मन मयूर किलकारी भरता
बरखा क्यूं अचानक सूख गई।। मेरी
अब तक में कर रही प्रतीक्षा
कब खत्म हो मेरी परीक्षा
किस गुरुवर से लूं अब दीक्षा
जो दे मुझको उत्तम शिक्षा
ऐसा क्या मिलेगा मुझे कोई।। मेरी
शब्दों की श्रुंखला टूट गई ।।
शब्द नाचते से आते थे
इक माला में गुँथ जाते थे
रंगों गंधों से सज धज कर
चारों और महक जाते थे
क्या हुआ कि सरगम टूट गई ।। मेरी
शब्द शब्द में भाव बरसता
निर्मल जल सा कल कल बहता
रसिक मनों को छू सा जाता
मन मयूर किलकारी भरता
बरखा क्यूं अचानक सूख गई।। मेरी
अब तक में कर रही प्रतीक्षा
कब खत्म हो मेरी परीक्षा
किस गुरुवर से लूं अब दीक्षा
जो दे मुझको उत्तम शिक्षा
ऐसा क्या मिलेगा मुझे कोई।। मेरी
2 टिप्पणियां:
Aasha ji, aare aapki Kavita ruthi kaha hai, Lauzon ki khubsuart Mala yaha par saji hai es Kavita ke Roop mein. Behtarin.
nice kavita, thanks, for sharing, Free me Download krein: Mahadev Photo
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