मंगलवार, 15 सितंबर 2015

गणपति बाप्पा हमार

आँखों से करे जतन,
सूंड से सहलाये है।
गणपति बाप्पा हमार,
कितना मन भाये है।

भादों की चौथ शुध्द
आगमन दिन उनका
दस दिन रह कर फिर
अपने घर को जाये हैं।

हाथों में पाशांकुश
अर्ध दंत पाये है,
हंसी मुख पे मन मोहक
वरद अभय दायें है।

मस्तक मुकुट सोहे
सूंड सरल, नयन मणि
मोदक दाये हाथों
पीतांबर पाये है।

उदर विशाल अति,
फणिवर कटि वस्त्र धरे,
भक्तन को सब गलति,
इसी उदर तो समाये है।

दस दिन रहकर बाप्पा,
आशीष दे  कर जाये ,
अपने इस भारत को
और भला बनाये हैं।

पूजा इनकी करें
दूब, जवा फूलों से,
बडे पंडाल, गाने
इनको कब भाये हैं।

दारू पीना थिरकना,
सिनेमा के गीतों पर,
इस से तो कान उनके
शोर से भर जाये है

जबरन चंदा लेना,
पैसा खूब उडाना
इससे तो मन उनका
रोष से भर जाये है।

मन में बस भाव रहे,
पूजा का चाव रहे
फिर मन को कैसे वे
खुशियों से भर जाये हैं।


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