मंगलवार, 30 जुलाई 2013

सुबह






स्वर्णिम प्रभात में धीरे धीरे घुलता अंधकार
पक्षियों का कलरव, गमले में खिलता गुलाब
नल में पानी की आवाज
गैस पे पत्ती के इंतजार मे खौलता पानी,
कप में चम्मच की टुनटुन
दरवाजे की घंटी का संगीत
दूधवाला, अखबार
हाथ में चाय का कप
बाहर छज्जे पर एक कुर्सी
उस पर  मेरा बैठना
और....

सुबह सार्थक हो जाती है ।




चित्र गूगल से साभार ।

14 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (01-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 72" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

रविकर ने कहा…

सुबह सार्थक हो जाती है-
छज्जे पर कोयल गाती है-
हाथों में अखबार चाय है,
कुदरत मन को बहलाती है-
बढ़िया-
आदरेया शुभकामनायें-

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कितना कुछ मिलकर सार्थक बनाता है नए दिन की शुरुआत को ....

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

सुबह की सार्थकता सकुन देकर गई। ऐसा ही जीवन सबके हिस्से हो और आपके जीवन की भी सार्थकता बनी रहें।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर चित्रण किया, पूरा दृष्य आंखों के सामने आ गया, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नित नवदिवस की शुभकामनायें।

Satish Saxena ने कहा…

शुभकामनायें आपको !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

नित नये दिन की शुभकामनाएं !

RECENT POST: तेरी याद आ गई ...

Aparna Bose ने कहा…

सुबह का मनमोहक दृश्य
सुन्दर प्रस्तुति

Durga prasad mathur ने कहा…

सुबह और भी सुन्दर हो जाती है जब हाथ में कलम हो और मन लिखने को कह रहा हो !
प्रतिदिन सुप्रभात ही रहे ऐसी शुभ कामनाएं !

Suman ने कहा…

bahut pyari rachna
meri tippani gayab hai !

Satish Saxena ने कहा…

लगता है आप अपने देश में हैं ..
मंगलकामनाएं !

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर, संक्षिप्त, सारगर्भित रचना...

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर चित्रण किया