शनिवार, 22 जून 2013

तांडव



शिव ने बिखरा दी हैं जटायें
आंख तीसरी खोली है
माथे पर गंगा है उबलती
पांवों में बांधी बिजली है
अब ये नहीं हैं रुकने वाले
जाग जरा तू, ए मानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

घर,मैदान खेत और बगिया
जंगल बस्ती सब जलमय
इसको ही शायद कहते हैं
गीता और पुराण प्रलय
सब इसके कोप भाजन हैं
कैसा मच रहा विप्लव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

सम्हल जा ये तो है शुरुवात
ध्यान में रखले अब ये बात
जन सुरक्षा और जन जीवन
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।

21 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव

और थम जायेगा तांडव ।

अब हमे जागना ही होगा ....
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ....

Arvind Mishra ने कहा…

ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।
यही है सारभूत बात

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-06-2013) के चर्चा मंच -1285 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Unknown ने कहा…

आपकी यह रचना कल रविवार (23 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर भाव. इसमें कोई शक नहीं की प्रकृति का जिस तरह दोहन किया जा रहा है, उसको दुष्परिणाम भी हमे ही उठाने होंगे.

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

प्राकृतिक विपदा के मूल कारणों का विश्लेशन करती कविता। मनुष्य द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेपों का नतिजा केदारनाथ घटना है। इंसान स्वार्थ में डूब चुका है, वह रूकेगा नहीं चाहे कितनी भी तबाही हो। प्रकृति ही विध्वंस कर उसे रोक सकती है। भविष्य में ऐसी विपदाएं बार-बार आएगी।

Guzarish ने कहा…

सार्थक सन्देश देती रचना
नमस्कार
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (24-06-2013) के :चर्चा मंच 1285 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अतिक्रमण ही इस सबकी वजह है .... सुंदर प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का ...

सटीक और सच ... चाहे तीखा कहा है ... इंसानी भूख इतनी ज्यादा हो गई है की किसी बात को देखती नहीं ... फिर ऐसे में भोले बाबा अपना रूप दिखाने को मजबूर हो जाते हैं ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रलयमान है प्रकृति अवस्था,
हम अब किसका आश्रय धारें।

ज्योति-कलश ने कहा…

सचेत करती ..प्रभावी प्रस्तुति ....

Suman ने कहा…

सार्थक रचना ...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…


"ये परिणाम है अति दोहन का..."
- काश ,अब भी समझ में आ जाय !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।---
त्रासदी का कारण को रेखांकित करती सुन्दर रचना
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

shyam gupta ने कहा…

इसको ही शायद कहते हैं
गीता और पुराण प्रलय

---सही कहा ..क्या बात है ..

अगर प्रलय से बचना चाहें
तो प्रकृति का आश्रय धारें |
कृत्रिमता छोड़ें जीवन में,
प्रकृति को भी यथा सुधारें |

रविकर ने कहा…

दो माह से धनबाद में नहीं था-
अब नियमित हुआ हूँ-
आभार दीदी-

रचना दीक्षित ने कहा…

शिव के तांडव का परिणाम तो हम सभी ने देख लिया अब शांति रहे यही प्रार्थना है.

सुंदर सामायिक प्रस्तुति.

संजय भास्‍कर ने कहा…

धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का ...

सटीक और सच .

Kailash Sharma ने कहा…

जन सुरक्षा और जन जीवन
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।

....काश हम यह समझ सकें...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव।

...सार्थक संदेश।

संजय भास्‍कर ने कहा…

संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव


सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ....!!!